Wednesday, April 8, 2020

गुलहाये अक़ीदत Gulhaye Aqeedat

गुलहाये अक़ीदत Gulhaye Aqeedat


रात काली गई भोर होने को है

याद करने को लब पर वह नाम आ गया।
" दूर जुल्मत हुई छा गई चांदनी
बज्में हस्ती में माहे तमाम आ गया"
माहो अन्तुम गगन रख़्स करने लगे
और बहारों में रंगीनिया छा गई
आप आने को हैं सुन के बेताब हैं
इस धरा पर अहो स्वर्ग धाम आ गया
सारे आलम में किस्मत का वह है
धनी जिसने देखा मदीने में दर आपका
गोल गुंबद हरा सुन रही जालियां
चूमने के लिए ये गुलाम आ गया
आ गया आ गया आ गया आ गया
जब मोहम्मद का होठों पे नाम आ गया
हरो गिलमान क्या जिन्नो इन्सान क्या
खुद खुदा के दरुदो सलाम आ गया
कंकरो ने भी कलमा पढ़ा चाव से
चांद सूरज इशारे पे नाचा किए
ताजदारे हरम है शहे अम्बिया
नाम उनका ही महशर में काम आ गया
आप अर्शे बरी पर रहे जब तलक
कौन जाने कि क्या थे पता ही नहीं
आप सुये ज़मी को जभी चल पड़े
आमना के यहां खुश कलाम आ गया
आपका जिस्म पूरा ही पुरनूर है
और पसीने की खुशबू में क्या बात है
आप महबूब अल्लाह के प्यारे नबी
रब के लब से नबी को सलाम आ गया
आपको दो जहाँ की रिसालत मिली
फिर भी फाका कशी में रही जिंदगी
शाहे कोनैन होकर भी हर रजो ग़म
मेरे महबूब सब तेरे नाम आ गया
सन्त के भाग में क्या लिखा देखिए
आज पढ़ने को नाते नबी आ गया
खौफ नारे जहन्नम का अब कुछ नहीं
मेरे लब पे नबी जी का नाम आ गया
"ऐ सन्त" मुझे भी तो एक उनसे अकीदत है
एक मैं भी हूं दीवाना सरकार मोहम्मद का
जब आए वो दुनिया में पैगामें में खुदा लेकर
हर कौल किया जग ने स्वीकार मोहम्मद का
हासिल न हुआहरगिज़ शाहाने जहां को भी
जैसा कि मिला हमको दरबार मोहम्मद का
दुनिया के लिए बेशक इक उसवए कामिल है
इतना मुकम्मल है किरदार मोहम्मद का।।1।।

इस जग में हुआ जब से अवतार मोहम्मद का
हर एक ने किया दिल से सत्कार मोहम्मद का।
दुनिया भी उसी की है उकबा भी उसी का है
एक बार हुआ जिसको दीदार मोहम्मद का।
एक ही सफर्म खड़े कर दिए महमूदो अयाज
कैसा पैगामे मसावात है अल्ला अल्ला।
"सन्त" सुनने सुनाने में भली लगती है
आज हर बात में एक बात है अल्ला अल्ला।।2।।

शाहे उमम  हैं शाहे दीं वो दिलरुबा भी है
वो चारागर वो राहबर वो रहनुमा भी है।1।
हाकिम भी है हकीम भी वह पेशवा भी है
मेरे हुजूर पैकरे लुत्फो अता भी है।2।
क्या मरतबा हुजूर का जाने जहां में कौन
जाने खुदा के मुस्तफा जो कि जुजा भी है।3।
मन्दिर में दिल के उनको सजाए हुए हैं हम
बादज खुदा हमारे लिए देवता भी है।4।
मुझकोनहीं है खौफ़ अब दोजख की आग का
वो मुझनबी के शहफये रोजे जजा भी है।5।
किरदार में वो आप ही अपनी मिसाल हैं
दर्शन में सबसे बढ़ के वह नूरे खुदा भी है।6।
खुशबू की क्या मिसाल दूं वो बेमिसाल है
एहसास के लिए वही बादे सबा भी हैं।7।
।।3।।

उठो जागो जरा देखो अमीनों का अमी आया
सभी ईमान ले आओ बताने शाहे दीं आया।1।
जगाने नींद से जग को जहां का जाँनशीं आया
शबे असरा का दूल्हा ज़ीनते अर्शे बरीं आया।2।
बजाहिर थे हमीं  जैसे मगर क्या थे नहीं समझे
पढ़ाने दिल से कलमा कंकरो को मोमनीं आया।3।
मिटाने तीरगी जुल्मत की दुनिया से ऐ लोगों
वही नूरे खुदा पैगामे रब लेके हंसी आया।4।
नबूवत खत्म है इनसे ना अब कोई नबी होगा
यही सरताज नबियों का तुम्हारे ही करीं आया।5।
किए थे चांद के टुकडे उगाया डूबता सूरज
तुम्हारे वास्ते अल्लाह का प्यारा नगीं आया।6।
मोहम्मद मुस्तफा सा इस जहां में आज तक कोई
भरे जो झोलिया खाली वह दानी ही नहीं आया
अभी तक नाज था किरदौस को जिस पे वही लोगों
जमी पै आज की शब वो उतर माहे मुवीं आया।8।
करी रोशन शमा दीं की जहां में या रसूल अल्लाह
बड़ा अफजल वा बालातर मुकद्दस है नगीं आया।9।
मुबारक ये घड़ी आई बहारें मुस्कुराई है
नजारों ने कहा सुन लो हसीनों का हसीं आया।10।
यही है "सन्त" की ख्वाहिश मुझे दर्शन मिले आका
इसी से नाम लब पे रहमतुल्लिल आलमीं आया।11।
।।4।।

ऐ फ़र्शे ख़ाक कौन हसीं आ रहा है आज।
जिसका कोई जवाब नहीं आ रहा है आज।1।
इस संत की जबां पे यही आ रहा है आज
इस दिल को हो रहा है यकीं आ रहा है आज।2।
वह आचरन में माहे जबीं आ रहा है आज
दर्शन में सबसे यकता हसीं आ रहा है आज।3।
करदे क्षमा जो शत्रु को ऐसा नहीं है और
रखकर क्षमा का रूप ज़मीं आ रहा है आज।4।
जन्नत भी रश्क करती है ख़ाके हिजाज पर
वो रब का अलंकार हसीं आ रहा है आज।5।
हर सिम्त आज नूर बरसता है देखिए
नूर ए खुदा का हुस्न नबीं आ रहा है आज।6।
उम्मत के बक्शवाने की है फिक्र रोज़ो शब
रहमत की घटा बनके मुबीं आ रहा है आज।7।
।।5।।

आचरन में न सानी कोई आपका और दर्शन में सबसे जुदा आप है।
रहमतुल आलमीं दो जहां के सखी सारी दुनिया में बादज खुदा आप है।
नूर से ही संवारा गया है जिन्हें नूरी बन गई जिन की पहचान है।
नूर ही आप की ज़ात है या नबी इसलिए जग में नूरे खुदा आप हैं।
आपकी जैसी खुशबू मिली है नहीं जिससे महके है दोनों चमन आज तक।
सिर्फ एहसास करने को ही कह रहे लग रहे जैसे बादे सवा आप है।
पापियों के दिलों से मिटा पाप को और इंसान उम्दा बनाया उन्हें।
राहें दीं पे चला के किया जन्नती क्योंकि परमात्मा के सखा आप हैं।
जालिमों का किया खौफ हरगिज़ नहीं और ईमान लाओ खुदा पे कहा।
आप जैसा मसीहा ना देखा सुना मज़लूमीं के बने पेशवा आप हैं।
सिलसिला इस नबूवत का अब खत्म है पुश्त पे रब ने मोहर लगाकर कहा।
या शफी उल बरा या शहे दो सरा इब्तदा आप है इंतिहा आप है।
" सन्त" की इल्तिजा दस्त बस्ता यही हदियाये नात का हो असर इस तरह।
मुझको अपना कहें  बख्शवायें गुनाह हम ग़रीबों के ख़ैरुल वरा आप है।।6।।

मेरे आका से ही ईमान की ऐसी बहार आई।
कि जैसे रेत में बरसात की पहली फुहार आई।।
कहा अल्लाह से बढ़कर नहीं कोई पुकार आई।
कि जिससे अम्मती को याद उनकी बेशुमार आई।।
कहा अल्लाह ने कह दो मुहम्मद है रसूल्लाह।
ये सुनकर के फरिश्तों में व मोमिन में बहार आई।
मुहम्मद मुस्तफा पे ही हुआ कुरआन नाजिल है।
उसी कुरआन से ही दो जहां में ये बहार आई।।
शबे मेराज पहुंचे अर्श पर जब ये नबी प्यारे।
मेरे नजदीक तर आओ खुदा की ये पुकार आई।।7।।

सरकारे दो आलम के कहने पे जो चलता है।
पैगामे ख़ुदा सुनकर पत्थर भी पिघलता है।।
अपने नबी के जो दामन को पकड़ता है।
तकदीर संवरती है अल्लाह से मिलता है।।
उस दौर में जब बदतर हालात हुए यारों।
तब आका की आमद से हर जर्रा संभलता है।।
हाफिज जो यहां मिलते शम्मा से वह जलते हैं।
उनके ही उजाले में इस्लाम सम्हलता है।।
इंसानियत की खातिर ही कुरआन यहां लाए।
जब उसका बयां करते शैतान दहलता है।।8।।


ऐ दोस्त मेरे मुझको इतना तो बता देना।
दीदार मुहम्मद का हो जाए बता देना।।
तैबा के नजारो तुम मुझको न सुला देना।
आंखें न मेरी इतनी ख्वाबीदा बना देना।।
मैं उनके तसव्वुर में बेचैन हूँ बे कल हूँ।
बेतानी ए दिल मुझको राहत की हवा देना।।
सूरज में चमक उनके तारों में जिया उनकी।
क्यों चांद हुआ टुकड़े यह राज बता देना।।
ऐ शाहे मर्दाना मैं दीदार का प्यासा हूं।
मुझे सन्त को भी अपना तुम रूप दिखा देना।।
अल्लाह के रसूल है महबूब हैं वही।
वो तख़्ते ला मकां का नशीं आ रहा है आज।।
जुल्मों सितम की स्याह शब में बनके आफताब।
अर्शे बरीं को छोड़ यही आ रहा है आज।।
अल्लाह एक उस पे ही ईमान लाइए।
अर्श से सरताज-ए-दीं आ रहा है आज।।
जोरो सितम का उठ रहा तूफां है हर तरफ।
उसको मिटाने अज बरीं आ रहा है आज।।9।।

दहरे फानी में मुझे कुछ भी नहीं अच्छा लगा।
इक हकीकी इश्क ही अब सन्त को अच्छा लगा।।
गुफ्तगू मूसा ने की खालिक से कोहे तर पर।
दीद का जब वक्त आया देखिए कैसा लगा।।
जब शबे मेराज पहुंचे अर्श पर प्यारे नबी।
ताजदार ए अंबिया आए यही नारा लगा।।
दीद से लौटे रसूल्लाह तो मूसा मिले।
इश्क यजदा रहमते आलम तेरा सच्चा लगा।।
नाक-ए- तकदीर है अल्लाहो अकबर की सदा।
पैकरे खाकी खुदा की दीद का प्यासा लगा।।10।।


                   "हम्द"
मेरा कमाल है न तुम्हारा कमाल है।
ये जिसकी कायनात वही बे मिसाल है।।
सूरज की रोशनी हो कि महताब की चमक।
हर शै में उसका हुस्न उसी का जमाल है।।
दुनिया में और दीन में इज्जत मिली उसे।
कल्बो जिगर में जिसके उसी का ख्याल है।।
जीरक कोई है और न मूरख कोई यहां।
जिस पर तेरी नजर वही बा कमाल है।।
कुछ लोग अंधकार से यहां भटक गए।
उनके लिए कुरान ही जलती मशाल है।।
या रब मेरी दुआवों को अब तो कुबूल कर।
फैला हुआ जो "सन्त" का दस्ते सवाल है।।
मयस्सर हो सबको चैन ओ सुकूं इस जहान में।
"सन्त" का सीधा सा यही एक सवाल है।।11।।

इस कदर शिद्दत ए जज्बात थी मेराज की रात।
लुत्फ था और नई बात थी मेराज की रात।।
था उधर हुस्ने खुदा और इधर इश्के नबी।
और दोनों की मुलाकात थी मेराज की रात।।
एक अजब मन्जरे दिलचस्प रहा होगा वहां।
नर पर नूर की बरसात थी मेराज की रात।।
फर्श से अर्श तलक जलवानुमा नूर ही नूर।
हर तरफ नूर की बहुततात थी मेराज की रात।।
" सन्त" इस बात पर सब लोगों का है एक ख्याल।
सारी रातों से हंसी रात थी मेराज की रात।।12।।

दया का दीप जलाया है रोशनी के लिए।
नुकूशे पा तेरे काफी हैं रहबरी के लिए।।
सभी के वास्ते बक्शा है जाम वहदत का।।
पिया है और पिलाया है आशिकी के लिए।
करम से फूल खिलाया है इस बियाबां में। 
 बहार तुमने बिखेरी कली कली के लिए।।
यहां पे आए जो भर भर के ले गए झोली।
नहीं है अजनबी यारों वह अजनबी के लिए।।
सजा के "सन्त" अकीदत के फूल लाया है।
कुबूल कीजिए आका मेरी खुशी के लिए।।13।।

तोहसे लागी है लगन मन मोरा है मगन
सरकार मदनी सरकार मदनी
सीख तुम्हारी द्विआलम में
जानी मानी पहचानी
अमल मा लावे जो कोउ अपने
वह सुरत पावे मनमानी
मिटे जिय की जरन
सरकार मदनी सरकार मदनी
वादे सबा की लज्जत मोहका
तोहरी याद दिलावे
तोहरे पसिनवा की खुशबू
या दुनिया का महकावे
महके धरती औ गगन
सरकार मदनी सरकार मदनी
द्वि आलम के वाली हुइके
फ़कत कमलिया काली
पथरा बांध पेट मा अपने
भर दैं झोली खाली
रोसन देख ना सजन
सरकार मदनी सरकार मदनी
नूरानी चेहरे पे सोहें
जुल्फें काली काली
रहमत बरसे द्वि आलम पै
बिछी चटाई खाली
ता पै बैठे हैं मगन
सरकार मदनी सरकार मदनी
और नहीं है कोउ हमारो
तूफ़ां में रखवारो
तुम्ही से है अरज हमारी
तुम्ही पार उतारो
नैय्या "सन्त" की फंसी है
मझदार मदनी
सरकार मदनी सरकार मदनी।।14।।


मुस्कुराए तो नजारों ने कदम चूम लिए।
आप आए तो बहारों ने कदम चूम लिए।।
अर्श पर जब शबे मेराज मुहम्मद पहुंचे।
अर्श के चांद सितारों ने कदम चूम लिये।।
काफिला ले के जहां पहुंचे रसूले अरबी।
सारी दुनिया के दयारो ने कदम चूम लिए।।
बागे इस्लाम खिला आपकी आमद के तुफैल।
फूल तो फूल है खारों ने कदम चूम लिये।।
" सन्त" हर शख्स मुहम्मद पे फ़िदा होता है।
एक मैं क्या हूं हजारों ने कदम चूम लिये।।15।।

मोहम्मद मुस्तफा की ही मुसलसल याद आती है।
उन्हीं से रहमतों की देखिए बरसात आती है।।
हमेशा साथ उनके हैं जिन्हें मजलूम कहते हैं।
उन्हीं में ताजगी की हर समय बूबास आती है।।
जहां के गोशे-गोशे में मदीने की सबा आई।
दो आलम में उन्हीं की हर जगह आवाज आती है।।
रसूलल्लाह को इस काली कमली से मोहब्बत थी।
इसी से काली कमली ये जहां को रास आती है।।
हमारे दिल में आका ने दिया जो दीन का जज्बा।
खुशी की शम्मा से एक रोशनी महफिल में आती है।।16।।

यादे शहे उमम में मेरी चश्म नम रहे।
ताजीम को हुजूर की सर मेरा खम रहे।।
जब भी हो नाम लब पे तो कोई न गम रहे।
करता रहूं तवाफ मदीने में दम रहे।।
दिल में खुदा का नाम नजर में करें नबी।
दोनों की मेरे हाल पर नजरें करम रहे।।
बस इतनी इल्तजा है मेरी आपसे हुजूर।
तेरी निगाहे लुत्फ से मेरा भरम रहे।।
तू इतना नर्म कर दे मेरे दिल को ऐ खुदा।
जब ज़िक्रे पंजतन हो मेरी आंख नम रहे।।17।।

गुंबद से आपके मुझे बाबस्तगी मिले।
दिल चाहता है ऐसी मुझे जिंदगी मिले।।
इक आरजू है एक तमन्ना है ऐ खुदा।
हर लम्हा लब पे नाम की ही तशनगी मिले।।
ग़ाफ़िल रहे न दिल मेरा यादों से आपकी।
दुनिया में दीन की मुझे कुछ रोशनी मिले।।
हर एक शह में आपका जलवा मुझे मिला।
जलवा फिगन हुजूर मेरे दिल में भी मिले।।
तस्वीर दिल में आपकी तो नाम लब पे हो।
उल्फत में आपकी मुझे दीवानगी मिले।।
जिस जिस ने पी लिया है वही पाक हो गया।
मुझको भी तू पिला दे कि पाकीज़गी मिले।।18।।

खुद को अनवार के पर्दों में छिपाता कोई
ख़ाक के जर्रों में जलवा है दिखाता कोई
माहो अन्जुग को जिया बख्श दी जिसने यारों
अपने महबूब को चाहत से बुलाता कोई
रश्क करती है जहां हुस्न फ़जाए जन्नत
मुझको दिखला दे वही शहरे मदीना कोई
जज़्बये हुस्ने मुहम्मद हो तसव्वुर में तेरे
ऐसी तस्वीर बना ऐ दिले शैदा कोई
जैसी सरकारे दो आलम ने मसीहाई की
ऐसा दुनिया में नहीं और मसीहा कोई
नाते सरकारे दो आलम है लबों पर इसके
आज देखे तो जरा सन्त का जलवा कोई।।19।।

ख़ुशा ताजदार ए हरम आ रहे हैं।
मुबारक हो शाहे उमम आ रहे हैं।।
किसी को न तकलीफ पहुंचेगी उनसे।
मुजस्सम करम ही करम आ रहे हैं।।
अभी तक रहे थे जो अर्शे बरीं पर।
जमीं पर अब उनके कदम आ रहे हैं।।
हमें भी दिखा दीजिए जलवा आका।
लिए दिल में ये आस हम आ रहे हैं।।
बदल देंगे जो "सन्त" का भाग आकर।
वो दाता खुदा की क़सम आ रहे हैं।।20।।

है यकीं दिल को कि वक़्ते खुशगवार आने को है।
दिल तपिश के कट गए बरखा बहार आने को है।।
अपनी उम्मत के किए वोह शाहकार आने को है।
रहमते आलम तड़पकर बेकरार आने को है।।
रोता रहता हर एक लम्हा मैं उनकी याद में।
देखिए कब तक मेरा वह ग़म गुसार आने को है।।
खोजते रहती है नजरें उस रूखे पुरनूर को।
मुद्दों के बाद अब दिल को करार आने को है।।
जब चलीं जुल्मों सितम की आंधियां चारों तरफ।
फैसला देने खुदा का पेशकार आने को है।।
" सन्त" अब मुझ पर भी होगी इक इनायत की नजर।
सारे दुखियों का सहायक गम गुसार आने को है।।21।।

याद आते हैं मुसलसल वो मदीना वाले।
जिनसे महकी है सबा ऐसे पसीना वाले।।
नात पढ़ने को मचलते हैं चमन में गुल भी।
मरहबा देख कर उनको कहे दुनिया वाले।।
नाम पर उनके मूलायक के सलाम आते हैं।
बा अदब हो के खड़े होते हैं दुनिया वाले।।22।।

इक नजर शाहे मदीना की अगर हो जाए।
जिंदगी चैन-ओ- मसर्रत के बसर हो जाए।।
या नबी आपसे है इतनी तमन्ना मेरी।
याद जब आए मेरी आंख भी तर हो जाए।।
बख्शवायें गें गुनाह आपसे हम हश के दिन।
हदिया-ये-बात का कुछ ऐसा असर हो जाए।।
उम्मती को है ये उम्मी लकवी से उम्मीद।
जन्नती होंगे अगर उनकी नजर हो जाए।।
मैं न छोडूंगा कभी आप का दामन आका।
ये जमाना है चाहे इधर उधर हो जाए।।
आप अल्लाह के महबूब है और मेरे हबीब।
आपका "सन्त" भी मंजूरे नज़र हो जाए।।23।।

इक नमूना दिया जिंदगी के लिए।
इक तरीका दिया बंदगी के लिए।।
आपका शुक्रिया हम अदा करते हैं।
हो निगाहे करम हर खुशी के लिए।।
फर्ज हैं पांच दुनिया में इंसान की।
आप बतला गए जन्नती के लिए।।
दीन इस्लाम से है उजाला किया।
और कुरआन ही उम्मती के लिए।।
मुफ़लिसी गुरबती से न परहेज था।
काली कमली फ़कत सादगी के लिए।।
कौम के रहनुमा दीन है खुशनुमा।
की है जद्दोजहद आदमी के लिए।।24।।

तेरा नाम है मुकद्दस जो करारे कल्बे जां है।
तेरा काम है नुमाया तो दिलों पर हक्म रां है।।
तू हकीम मोमिनों का तू ही रहनुमा है दीं का।
तेरा नाम है मुहम्मद तेरी बज़्म आसमां है।।
तेरी रहमतों की बारिश है तेरे करम से होती।
तुझे रहमते दो आलम कहती हर एक जुबां है।।
तेरा जिस्म है मुअत्तर तेरा हुस्न है मुनव्वर।
हर ब-ए- गुल से देखो यही हो रहा आया है।।
बे इम्तियाज मांगी सबके लिए दुआयें।
मजलूम के निगेहबां तू सब का पासबां है।।
जो पांव है जमीं पर वो आसमां पे भी है।
अल्लाह ने रिसालत बख्शी ये दो जहां है।।
नाते रसूल पढ़कर हम पाक हो गए हैं।
ऐ"सन्त" पाक अपना दिल और ये जबां है।।25।।


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