मन्त्रों के दस संस्कार
Ten rites of mantras
कोई भी मन्त्र छिन्न,रुद्ध, शक्तिहीन, पराङ्मुख, आदि पचास दोषों से बच नहीं सकता।सप्तकोटि मन्त्र हैं, सभी इन दोषों में किसी न किसी दोष से दृष्ट पाये जाते हैं।इन दोषों की निवृत्ति के लिए मन्त्र के निम्नलिखित दस संस्कार करने चाहिए--
1-जनन, 2-दीपन, 3-बोधन, 4-ताडन, 5-अभिषेक, 6-विमलीकरण, 7-जीवन, 8-तर्पण, 9-गोपन और 10-आप्यायन।
1-जनन, 2-दीपन, 3-बोधन, 4-ताडन, 5-अभिषेक, 6-विमलीकरण, 7-जीवन, 8-तर्पण, 9-गोपन और 10-आप्यायन।
जो इन दोषों को जाने बिना जप करता है, उसे सिद्धि नही प्राप्त होती है-
दोषानिमानविज्ञाय यो मन्त्रान् भजते जड:। सिद्धिर्न जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ।।
1-जनन संस्कार :-भोजपत्र पर गोरोचन, चन्दन, कुमकुम आदि से आत्माभिमुख त्रिकोण लिखें। फिर तीनों कोणों में छः-छः समान रेखायें खीचें। ऐसा करने से 49 त्रिकोण कोष्ठ बनेंगे, उनमें ईशान कोण से क्रमशः मातृका वर्ण लिखें। फिर देवता को आवाहन-पूजन करके मंत्र के एक-एक वर्ण का उद्धार करके अलग पत्र पर लिखें। ऐसा करने पर "जनन" नामक प्रथम संस्कार होगा।
2- दीपन संस्कारः- ’हंस’ मंत्र से सम्पुटित करके एक हजार बार मंत्र का जप करना चाहिए।यथा-'हंसः रामाय नमः सोहम।'
3- बोधन संस्कारः ’ ह्रूँ 'बीज मंत्र से सम्पुटित करके पाँच हजार बार मंत्र जाप करना चाहिए।
यथा-" ह्रूँ रामाय नमः ह्रूँ।'
यथा-" ह्रूँ रामाय नमः ह्रूँ।'
4- 'फट्' सम्पुटित मन्त्र का एक हजार जप करने से ' ताडन' नामक चतुर्थ संस्कार होता है।
यथा-'फट् रामाय नमः फट्।'
यथा-'फट् रामाय नमः फट्।'
5- अभिषेक संस्कार:- मंत्र को भोजपत्र पर लिखकर
’ रों हंसः ॐ’ इस मंत्र से अभिमंत्रित करें, तत्पश्चात एक हजार बार जप करते हुए जल से अश्वत्थपत्रादि द्वारा मंत्र का अभिषेक करें।
6- विमलीकरण संस्कारः- ’ ओं त्रों वषट्' इन वर्णों से सम्पुटित मन्त्र का एक हजार बार जप करने से विमलीकरण नामक छठा संस्कार होता है।यथा-' ओं त्रों वषट् रामाय नमः वषट् त्रों ओं।'
7- स्वधा-वषट्- सम्पुटित मूलमन्त्र का एक हजार जप करने से' ' जीवन ' नामक सातवाँ संस्कार होता है।यथा-' स्वधा वषट् रामाय नमः वषट् स्वधा।'
8- तर्पण संस्कार:- मूल मंत्र से दुग्ध ,जल और घृत द्वारा सौ बार तर्पण करना चाहिए।
9- गोपन संस्कार:- मंत्र को ’ ह्रीं ’ बीज से सम्पुटित करके एक हजार बार जप करना चाहिए।यथा-' ह्रीं रामाय नमः ह्रीं।'
10- आप्यायन संस्कार:- ह्रौं -बीज-सम्पुटित एक हजार जप करने से 'आप्यायन ' नामक दसवाँ संस्कार होता है।यथा- ' ह्रौं रामाय नमः ह्रौं।'
इस प्रकार संस्कृत किया हुआ मन्त्र शीघ्र सिद्धिप्रद होता है।
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