Wednesday, December 11, 2013

प्रेम व् अंतरजातीय विवाह Love and inter caste marriages


भारतीय समाज मे विवाह सोलह संस्कारों में  एक संस्कार के  रूप मे माना जाता हैं जिसमे शामिल होकर स्त्री पुरुष मर्यादापूर्ण तरीके
से अपनी काम इच्छाओ की पूर्ति कर अपनी संतति को जन्म
देते हैं समान्यत: विवाह का यह
संस्कार
परिवारजनों की सहमति या इच्छा से
अपनी जाति,समाज या समूह मे
ही किया जाता हैं पर फिर भी हमे ऐसे
कई उदाहरण मिलते हैं जहां विवाह
परिवार की सहमति से ना होकर स्वय
की इच्छा से किया जाता हैं ।
पूर्वसमय मे प्रेम संबंध या यौन आकर्षण
विवाह के बाद ही होता था परंतु
आज के इस भागते दौड़ते कलयुग मे
विवाह के पूर्व स्त्री पुरुष के बीच
प्रगाढ़ परिचय व आकर्षण हो जाने
पर उनमे प्रेम संबंध हो जाते हैं।
 स्त्री पुरुष रागाधिक्य के
फलस्वरूप स्वेच्छा से परस्पर संभोग
करते हैं जिसे (शास्त्रो मे) गंधर्व
विवाह कहा जाता हैं । इस संबंध मे
स्त्री पुरुष के अतिरिक्त
किसी की भी स्वीकृति ज़रूरी नहीं समझी
जाती हैं।
प्रेम विवाह या गंधर्व विवाह के कई
कारण हो सकते हैं परंतु यहाँ हम केवल
ज्योतिषीय द्रष्टि से यह जानने
का प्रयास करेंगे की ऐसे कौन से ग्रह
या भाव होते हैं जो किसी को भी प्रेम
या गंधर्व विवाह करने पर मजबूर कर
देते हैं । इस प्रयास मे हमने कुछ
जातको की कुंडलियों का अध्ययन
किया जिन्होने प्रेम विवाह
किया था हमने यह पाया की लगभग
85% प्रेमविवाह
अपनी जाति या समाज से बाहर
अर्थात अंतरजातीय होते हैं ।

भाव –
लग्न,द्वितीय,पंचम,सप्तम,नवम व
द्वादश

ग्रह – मंगल,गुरु व शुक्र

लग्न भाव- यह भाव स्वयं या निज
का प्रतिनिधित्व करता हैं
जो व्यक्ति विशेष के शरीर व
व्यक्तित्व के विषय मे सम्पूर्ण
जानकारी देता हैं ।

द्वितीय भाव- यह भाव कुटुंब,खानदान
व अपने परिवार के विषय मे बताता हैं
जिससे हम बाहरी सदस्य का अपने
परिवार से जुड़ना भी देखते हैं ।

पंचम भाव- यह भाव हमारी बुद्धि,सोच
व पसंद को बताता हैं जिससे हम अपने
लिए किसी वस्तु या व्यक्ति का चयन
करते हैं ।

सप्तम भाव – यह भाव हमारे विपरीत
लिंगी साथी का होता हैं जिसे भारत मे
हम पत्नी भाव भी कहते हैं इस भाव से
स्त्री सुख देखा जाता हैं ।

नवम भाव- यह भाव परंपरा व
धार्मिकता से जुड़ा होने से धर्म के
विरुद्ध किए जाने वाले कार्य
को दर्शाता हैं ।

द्वादश भाव- यह भाव शयन सुख
का भाव हैं ।

ग्रह – मंगल यह ग्रह
पराक्रम,साहस,धैर्य व बल
का होता हैं जिसके बिना प्रेम संबंध
बनाना या प्रेम विवाह करना असंभव हैं
क्यूंकी प्रेम की अभिव्यक्ति साहस
बल व धैर्य से ही संभव हैं ।

शुक्र – यह ग्रह आकर्षण,यौन
आचरण,सुंदरता,प्रेम वासना
,भोग,विलास,ऐश्वर्या का प्रतीक हैं
जिनके बिना प्रेम संबंध
हो ही नहीं सकते ।

गुरु – यह ग्रह स्त्रीयों मे पति कारक
होने के साथ साथ पंचम व नवम भाव
का कारक भी होता हैं साथ ही इसे
धर्म व परंपरा के लिए
भी देखा जाता हैं ।

प्रेम विवाह के सूत्र वैसे तो बहुत से
बताए गए हैं परंतु हमने अपने इस शोध
मे जो सूत्र उपयोगी पाये या प्राप्त
किए वह इस प्रकार से हैं ।

१) पंचम भाव , पंचमेश का मंगल, शुक्र
से संबंध ।
२) पंचम भाव , पंचमेश,सप्तम भाव,
सप्तमेश का लग्न, लग्नेश या द्वादश
भाव, द्वादशेश से संबंध ।
३) लग्न,सूर्य,चन्द्र से दूसरे भाव
या द्वितीयेश का मंगल से संबंध ।
४) पंचम भाव, पंचमेश का नवम भाव,
नवमेश से संबंध ।
५) पंचम भाव , पंचमेश,सप्तम भाव,
सप्तमेश,नवम भाव, नवमेश का संबंध ।
६) एकादशेश का, एकादश भाव मे
स्थित ग्रह का पंचम भाव, सप्तम भाव
से संबंध और शुक्र ग्रह का लग्न
या एकादश भाव मे होना ।
७) पंचम-सप्तम का संबंध ।
८) मंगल-शुक्र
की युति या दृस्टी संबंध किसी भी भाव
मे होना ।
९) पंचमेश-नवमेश
की युति किसी भी भाव मे होना ।
अंतरजातीय विवाह मे इन सूत्रो के
अलावा यह चार सूत्र भी सटीकता से
उपयुक्त पाये गए ।
१) लग्न, सप्तम व नवम भाव पर
शनि का प्रभाव ।
२) विवाह कारक शुक्र व गुरु पर
शनि का प्रभाव ।

३) लग्नेश, सप्तमेश का छठे भाव , 

षष्ठेश से संबंध-अंतरजातीय विवाह मे
शत्रुता या विवाद का होना आवशयक
होता हैं जिस कारण छठे भाव का संबंध
लग्नेश या सप्तमेश से होना ज़रूरी हो
जाता हैं ।
४) द्वितीय भाव मे पाप ग्रह ।

कपड़े और आपका व्यक्तित्व Clothes and your personality


कपड़े ना सिर्फ शरीर ढकने के काम
आते है बल्कि हमारे
व्यक्तित्व,व्यवसाय,स्तर के साथ
साथ हमारे
चरित्र,व्यवहार,आत्मविश्वास
को भी दर्शाने के काम आते हैं
किसी भी व्यक्ति को उसके कपड़े
पहनने के तरीके से,कपड़ो के रंग
से,कपड़ो की गुणवत्ता से अर्थात
पहनावे से सरलता से
पहचाना जा सकता हैं
की उसका सामाजिक स्तर उसकी सोच
व व्यवसाय किस प्रकार का है।

ढीले कपड़े–ऐसे वस्त्र पहनना जातक
के शांत,कोमल,सीधे व सरल स्वभाव
को बताता हैं ऐसे लोग धैर्यवान
दूसरों को राह बताने वाले स्वयं
को किसी भी परिस्थिति मे ढालने वाले
होते हैं प्राय; इनके लग्न या चन्द्र
पर गुरु गृह का प्रभाव होता हैं इसलिए
ये चिंतन,मनन,ध्यान व अध्यात्म मे
ज़्यादा रुचि रखते हैं .

तंग कपड़े- ऐसे जातक
चुस्त,फुर्तीले,कुछ कर गुजरने की सोच
वाले,अस्थिर स्वभाव वाले, निडर व
साहसी प्रवर्ती के होते हैं . इनका मन
मस्तिष्क हर वक़्त
किसी ना किसी उधेड़ बुन मे
लगा रहता हैं . इनके लग्न या चन्द्र
पर शनि अथवा राहू ग्रह का प्रभाव
रहता हैं दिखावा व बहसबाजी
करना इन्हे पसंद होता हैं लंबे समय
तक कोई काम करना इन्हे पसंद
नहीं होता स्वयं पर खूब लगाव रखते
हैं तारीफ के भूखे परंतु खर्च के मामले
मे कंजूस होते हैं अपना काम निकलवाने
मे तथा धन कमाने मे ये लोग माहिर
होते हैं कभी कभी हीन भावना के कारण
छोटा रास्ता (शॉर्ट कट)
भी अपना लेते हैं

 े ब्रांडेडकपड़े -पहनने वाले
जातक महत्वकांक्षी,मूडी व बिंदास होते
हैं सदैव ऊपर उठने की कोशिश करते
रहते हैं इनमे आत्मविश्वास
की कमी होती हैं जिसे यह छिपाते रहते
हैं दूसरों के प्रति होड,जलन व
प्रतिद्वंदिता की भावना इनमे
पनपती रहती हैं जिस कारण यह अपने
को आर्थिक रूप से सम्पन्न दर्शाते हैं
छोटी छोटी बातें व मोलभाव
करना इन्हे पसंद नहीं होता अपने से
कमजोर से यह बहस बाजी करते हैं
परंतु साथ वाले या बड़े से यह
ज़्यादा नहीं बोलते या बिलकुल चुप
रहते हैं . इनके लग्न अथवा चन्द्र पर
सूर्य ग्रह का प्रभाव रहता हैं जिस
कारण यह बड़े आत्मसम्मान से
जीना पसंद करते हैं .

हाथ से बने कपड़े -ऐसे वस्त्र पहनने
वाले लोग
हंसमुख,संवेदनशील,भावुक,शांत व
प्रतिभावान होते हैं अपने सभी कार्य
स्वयं करना पसंद करते हैं
इनकी बातों मे दर्शन,धर्म,दया व
अनुभव साफ झलकता हैं ये रचनात्मक
व कला से संबन्धित कार्य करते हैं
पारखी नज़र व दूरदर्शी होते हुये
दूसरों के दूख दर्द को समझते हैं समय
व नियम के पक्के होते हैं प्राय: इनके
लग्न या चन्द्र का संबंध गुरु
या शनि से होता हैं जिसके कारण
इनकी मेहनत,त्याग व प्रेम को लोग
समझ नहीं पाते और
इनको अपना उचित हक़ भी नहीं मिल
पाता हैं परंतु यह किसी से शिकायत
ना करते हुये भी किसी पर आश्रित
रहना पसंद नहीं करते हैं .

कपड़ो का रंग -ज़्यादातर लोग कुछ
विशेष रंग के कपड़ो का प्रयोग कुछ
ज़्यादा करते हैं इससे उनके स्वभाव व
व्यक्तित्व का काफी पता चलता है।

लाल रंग -इस रंग के कपड़े
ज़्यादा पहनने वाले लोग
गुस्सेबाज़,कामुक,उत्साही,ऊर्जावान
तथा प्रबल इच्छाशक्ति वाले होते हैं
जो ठान लेते हैं उसे करके ही दम लेते हैं
सुनते कम व सुनाते ज़्यादा हैं इनमे
धैर्य की कमी होती हैं जिससे इन्हे कई
बार हानी का सामना करना पड़ता हैं
अपनी हरकतों व बातों के द्वारा ये
सदा आकर्षण का केंद्र बनना चाहते हैं
. यह जातक मंगल ग्रह से प्रभावित
होने के कारण ज़्यादातर मेष
अथवा वृश्चिक राशि के हो सकते हैं
 काला रंग- यह रंग त्याग व
रहस्यात्मकता दर्शाता हैं जिस कारण
इनका प्रयोग करने वाले लोग अच्छे
विचारवान व अनुशाशित होते हैं जिन्हे
स्वयं पर पूरा नियंत्रण होता हैं यह
अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाना जानते
हैं इनके जीवन मे आकस्मिक घटनाए
ज़्यादा होती हैं जिस कारण इनके
व्यक्तित्व व कार्य पर

हमेशा प्रश्नचिह्न लगतारहता हैं ।

यह जातक शनि ग्रह से संबन्धित होने
के कारण मकर या कुम्भ राशि के
हो सकते हैं .

सफ़ेद रंग-इस रंग का प्रयोग करने
वाले जातक
शांत,संतुलित,स्पष्टवक्ता,सकारात्मक
व आशावादी दृस्टीकोण रखने वाले होते
हैं खुले विचारो वाले ये लोग एकांत एवं
साधारण जीवनशैली मे रहना व
जीना पसंद करते हैं . यह जातक चन्द्र
ग्रह से प्रभावित होने के कारण कर्क
राशि के हो सकते हैं .

पीला रंग-ऐसे जातक
चुनौती पसंद,प्रेरणा प्रदान करने वाले
व सदा अपने कार्यो मे लगे रहने वाले
होते हैं आध्यात्मिक प्रवृति के लोग
सहजता से जीवन गुजारना पसंद करते
हैं इनकी वाणी मे मिठास,समर्पण व
अपनत्व की भावना अधिक होती हैं . ऐसे लोग गुरु ग्रह से प्रभावित होने के
कारण धनु व मीन राशि के हो सकते हैं
.
नीला रंग -ऐसे लोग आत्मनिर्भर व
गहरे विचार रखने वाले होते
हैं,काल्पनिक व व्यावहारिक
दोनों प्रकार का दृस्टीकोण रखते हैं
शांत एवं ज़रूरत से ज़्यादा श्रम करने
के शौकीन तथा किसी भी बात की तह
तक जाना पसंद करते हैं जिस कारण
इन्हे कई बार
दूसरों की जिम्मेदारिया भी पूरी करनी प
ड़ती हैं . ऐसे जातक शनि व शुक्र
दोनों ग्रहो के प्रभाव मे रहते है .
हरा रंग- यह जातक अपनी वाणी से
किसी को भी अपना बना लेते हैं परंतु
किसी पर जल्दी से
भरोसा नहीं करते,स्वतंत्र जीने के
शौकीन यह लोग किसी के अधीन
ना रहकर घूमने फिरने का बेहद लगाव
रखते हैं हर समस्या का समाधान इनके
पास होता हैं . ऐसे जातक बुध ग्रह से
प्रभावित होने के कारण मिथुन
या कन्या राशि के होते हैं .

भूरा रंग-यह लोग आत्मकेंद्रित,अकेले
जीवन जीने वाले तथा स्वनियंत्रित
होते हैं अच्छे मार्गदर्शक व आलोचक
हो सकते हैं समय का नियोजन ना कर
पाने के कारण हमेशा तनाव मे रहते हैं . इन जातको पर राहू ग्रह का ज़्यादातर
प्रभाव रहता हैं .

गुलाबी रंग- इस रंग को चाहने वाले
जातक स्नेही,उदार व समझदार होते हैं
परंतु इनमे इच्छाशक्ति का अभाव
होता हैं अपनी उम्र के हिसाब से इनमे
बचपना अधिक रहता हैं छोटी सी बात
भी इन्हे परेशान कर देती हैं .यह लोग
सूर्य ग्रह से प्रभावित होने के कारण
सिंह राशि के हो सकते हैं .


पहनने का ढंग एवं बांधने का तरीका-
नाभि से ऊपर कपड़े बांधने वाले लोग
चिंतित,व्याकुल,संजीदा,संस्कार व
परंपरा को मानने वाले होते हैं
मनचाहा प्राप्त ना होने से असहज
महसूस करते हैं वस्तुओ व
लोगों को जल्दी से अपनी पसंद
नहीं बनाते हैं बड़े बुजुर्गो का आदर
करने वाले तथा रूढ़िवादी विचारधारा के
होते हैं .

नाभि के नीचे वस्त्र बांधने वाले लोग
स्वतंत्र विचार रखने
वाले,मस्तमौला,अपनी ही दुनिया मे
रहने वाले,आत्मविश्वासी व निडर
प्रवृति के होते हैं .इन्हे बंधन या रोक
टोक मे रहना बिल्कुल पसंद
नहीं आता,भीड़ से अलग दिखना इन्हे
बहुत पसंद होता हैं दिखावे के साथ
साथ इनमे कामुकता भी कूट कूट कर
भरी होती हैं यह सुनते सबकी हैं पर
करते अपने मन की  हैं .
चमक दमक व भड़कीले कपड़े पहनने
वाले लोग दिखावटी एवं रसिक मिजाज़
के होते हैं पारदर्शी वस्त्र पहनने वाले
निर्भीक,स्वतंत्र तथा मनमौजी होते है ।

प्रैस किए हुये वस्त्र पहनने वाले
बुद्दिमान,सभ्य व सजग
जबकि उधड़े,फटे कपड़े पहने
व्यक्ति लापरवाह व गैर जिम्मेदार
प्रकार के होते हैं ।

 कमीज़ को अंदर
दबाकर पहनने वाले औपचारिक व
सभ्य स्वभाव के तथा कमीज़ बाहर
रखने वाले हंसमुख,रौबीले एवं बिंदास
प्रकार के होते है.
प्लेन कमीज़
या टी शर्ट वाले सीधा,सरल व
चिन्तामुक्त जीवन जीने वाले
जबकि चैक या लाइन कमीज़
या टी शर्ट पहनने वाले लोग
चुनौतियों के शौक़ीन होते हैं इन्हे
परिवर्तन या नवीनता पसंद होती हैं .

महिलाओं के श्रंगार और बिंदी Women's darts and bindi

शास्त्रों में स्त्री के सोलह श्रंगार बताए गये हैं।अंगशुची, मंजन, वसन, माँग, महावर, केश।

तिलक भाल, तिल चिबुक में, भूषण मेंहदी वेश।।

मिस्सी काजल अरगजा, वीरी और सुगंध।

अर्थात् अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, माँग भरना, महावर 

लगाना, बाल सँवारना, तिलक लगाना, ठोढी पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी 

रचाना, दाँतों में मिस्सी, आँखों में काजल लगाना, सुगांधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला 

पहनना, नीला कमल धारण करना।

स्नान के पहले उबटन का बहुत प्रचार था। इसका दूसरा नाम अंगराग है। 

जिनमें से बिंदी लगाना भी एक है।बिंदी का संबंध हमारे मन से जुड़ा हुआ है। जहां बिंदी लगाई जाती है वहीं हमारा आज्ञा चक्र स्थित होता है। यह चक्र हमारे मन को नियंत्रित करता है ।मन को एकाग्र करने के लिए इसी चक्र पर दबाव दिया जाता है ।

महिलाओं का मन अति चंचल होता है। इसी वजह से किसी भी स्त्री का मन बदलने में पलभर का ही समय लगता है। वे एक समय एक साथ कई विषयों पर चिंतन करती रहती हैं। अतः उनके मन को नियंत्रित और स्थिर रखने के लिए यह बिंदी बहुत कारगर उपाय है। इससे उनका मन शांत और एकाग्र बना रहता है।अतः

बिंदी लगाने के तीन खास फायदें होतें है। 

बिंदी लगाने से सौन्दर्यमें वृद्धि होतीहै।विवाहित स्त्री के सुहाग का प्रतीक है।

मन को स्थिर रखने में बहुत ही कारगर उपाय है।

मूलांक और प्रेम अभिव्यक्ति Radix and love expression

जिस तरह मेष आदि लग्नों में जन्म लेने का अपना-अपना फल है। ठीक उसी तरहअंक हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे अपना महत्व रखते हैं ।

यह अंक जन्म तारीख(मूलांक ) के रूप मे हर व्यक्ति के जीवन मे कुछ ना कुछ प्रभाव अवश्य डालतें हैं। यहाँ हमने मूलांक द्वारा प्रेम संबंधो पर प्रकाश डालने का प्रयास किया हैं । 

मूलांक 1 –इस मूलांक के जातक स्थिर मन व स्थिर प्रकृति के कारण पहली नज़र मे प्रेम प्रदर्शित नहीं करते बल्कि पूर्ण संतुष्ट होने पर ही बात आगे बढ़ाते है। यह अटूट प्रेम व जीवन भर प्रेम को निभाने पर यकीन करते हुए शारीरिक सौन्दर्य के मुक़ाबले विचारो को अधिक महत्व प्रदान करते हैं । 

 मूलांक 2 –इस मूलांक के जातक चंचल मन व स्वभाव से कल्पनाशील होने के कारण कई बार एक तरफा प्रेम कर बैठते हैं जिस कारण बदनाम भी हो जाते हैं अत्याधिक भावुकता व त्यागी स्वभाव के चलते प्रेम मे ज़्यादातर असफल होते हैं । 

 मूलांक 3 -इस मूलांक के जातक अनुशाशन व आदर्शवादी प्रकृति के होने के कारण प्रेम अभिव्यक्ति सोच समझकर करते हैं । प्रेम मे स्थायित्व चाहने के कारण अपने प्रेम को विवाह मे बदलना पसंद करते हैं । 

मूलांक 4 –इस मूलांक के जातक प्रेम मे पड़ने से पहले किसी भी प्रकार का सोच विचार करना पसंद नहीं करते बस पहली नजर मे ही प्रेम कर बैठते हैं । इनका प्रेम ऊंच-नीच,अमीर- गरीब,सुंदरता इत्यादि पर विचार ना कर दार्शनिकता लिए हुए होता हैं जिस कारण यह प्रेम मे धोखा खा जाते हैं । 

 मूलांक 5 –इस मूलांक के जातक व्यापारिक प्रकृति व लेखक हृदय के होने के कारण प्रेम के लिए ज़्यादा उत्साही नहीं होते बल्कि प्रेमी के विचार व कला से ज़्यादा प्रभावित होते हैं ।प्रेम अभिव्यक्ति कविता व शायरी के रूप मे करना पसंद करते हैं । 

 मूलांक 6-इस मूलांक के जातक कलाप्रिय,सौन्दर्य प्रेमी व आधुनिक विचारो के होते हैं अपने प्रेम मे सौंदर्यता देखने पसंद करते हैं इसलिए खूबसूरत प्रेमी की चाह रखते हैं अपने मे ग़ज़ब का आकर्षण लिए हुए यह जातक भावुक होने के कारण प्रेम का इजहार अलग ढंग से करना पसंद करते हुये ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीना चाहतें हैं। 

 मूलांक 7-इस मूलांक के जातक कल्पनाओ की दुनिया मे जीने वाले,घूमने फिरने के शौकीन व भावुकता लिए हुए होने के कारण प्रेम करने के लिए ही पैदा हुये होते हैं ।यह प्रेम मे पहल स्वयं करते है परंतु प्रेम अभिव्यक्ति देर से करते हैं जिस कारण इनका प्रेम जितनी तेजी से आरंभ होता हैं उतना ही तेजी से समाप्त भी हो जाता हैं प्राय एक से ज़्यादा प्रेम संबंध बनाते हैं । 

मूलांक 8-यह मूलांक वाले जातक गंभीर,एकांकी व उदासीन प्रकृति के होने के कारण बहुत देर से प्रेम अभिव्यक्ति करते हैं जिस कारण गुप्त प्रेमी कहलाते हैं अपने साथी से प्रेम की पहल की अपेक्षा रखते हुए सादा जीवन ऊंच विचार मे विश्वास रखते हैं व एक ही साथी से जुड़ा रहना चाहते हैं । 

 मूलांक 9 -इस मूलांक के जातक साहसी,उग्र,जल्दबाज़ व आक्रामक होने के कारण पहली मुलाक़ात मे ही प्रेम अभिव्यक्ति करना पसंद करते हैं जिस वजह से कई बार इन्हे नाकामयाबी या बदनामी प्राप्त होती हैं| अपने प्रेम निवेदन को अस्वीकार प्राप्ति होने पर प्रेमी को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं ।अपनी इस प्रकार की आदतों के कारण बहुत कम ही अपने प्रेम को विवाह मे तब्दील कर पाते हैं ।


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Friday, December 6, 2013

अष्ट सिद्धियाँ Ashta Siddhiya

सिद्धि अर्थात पूर्णता की प्राप्ति होना व सफलता की अनुभूति मिलना है। जो इन सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है वह जीवन की पूर्णता को पा लेता है. असामान्य कौशल या क्षमता अर्जित करने को 'सिद्धि' कहा गया है. चमत्कारिक साधनों द्वारा 'अलौकिक शक्तियों को पाना जैसे - दिव्यदृष्टि, अपना आकार छोटा कर लेना, घटनाओं की स्मृति प्राप्त कर लेना इत्यादि। सिद्धियाँ दो प्रकार की होती हैं, एक परा और दूसरी अपरा. यह सिद्धियां इंद्रियों के नियंत्रण और व्यापकता को दर्शाती हैं. सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियाँ अपरा सिद्धियां कहलाती है . मुख्य सिद्धियाँ आठ प्रकार की कही गई हैं. इन सिद्धियों को पाने के उपरांत साधक के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं रह जाता। सिद्धियां क्या हैं व इनसे क्या हो सकता है इन सभी का उल्लेख मार्कंडेय पुराण तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में प्राप्त होता है जो इस प्रकार है:- अणिमा लघिमा गरिमा प्राप्ति: प्राकाम्यंमहिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वंच सर्वकामावशायिता:।। यह आठ मुख्य सिद्धियाँ इस प्रकार हैं:- अणिमा सिद्धि- अपने को सूक्ष्म बना लेने की क्षमता ही अणिमा है. यह सिद्धि यह वह सिद्धि है, जिससे युक्त हो कर व्यक्ति सूक्ष्म रूप धर कर एक प्रकार से दूसरों के लिए अदृश्य हो जाता है. इसके द्वारा आकार में लघु होकर एक अणु रुप में परिवर्तित हो सकता है. अणु एवं परमाणुओं की शक्ति से सम्पन्न हो साधक वीर व बलवान हो जाता है. अणिमा की सिद्धि से सम्पन्न योगी अपनी शक्ति द्वारा अपार बल पाता है। महिमा सिद्धि- अपने को बड़ा एवं विशाल बना लेने की क्षमता को महिमा कहा जाता है. यह आकार को विस्तार देती है विशालकाय स्वरुप को जन्म देने में सहायक है. इस सिद्धि से सम्पन्न होकर साधक प्रकृति को विस्तारित करने में सक्षम होता है. जिस प्रकार केवल ईश्वर ही अपनी इसी सिद्धि से ब्रह्माण्ड का विस्तार करते हैं उसी प्रकार साधक भी इसे पाकर उन्हें जैसी शक्ति भी पाता है । गरिमा सिद्धि - इस सिद्धि से मनुष्य अपने शरीर को जितना चाहे, उतना भारी बना सकता है. यह सिद्धि साधक को अनुभव कराती है कि उसका वजन या भार उसके अनुसार बहुत अधिक बढ़ सकता है जिसके द्वारा वह किसी के हटाए या हिलाए जाने पर भी नहीं हिल सकता । लघिमा सिद्धि- स्वयं को हल्का बना लेने की क्षमता ही लघिमा सिद्धि होती है. लघिमा सिद्धि में साधक स्वयं को अत्यंत हल्का अनुभव करता है. इस दिव्य महासिद्धि के प्रभाव से योगी सुदूर अनन्त तक फैले हुए ब्रह्माण्ड के किसी भी पदार्थ को अपने पास बुलाकर उसको लघु करके अपने हिसाब से उसमें परिवर्तन कर सकता है। प्राप्ति सिद्धि - इस सिद्धि के बल पर जो कुछ भी पाना चाहें उसे प्राप्त किया जा सकता है. इस सिद्धि को प्राप्त करके साधक जिस भी किसी वस्तु की इच्छा करता है, वह असंभव होने पर भी उसे प्राप्त हो जाती है. जैसे रेगिस्तान में प्यासे को पानी प्राप्त हो सकता है या अमृत की चाह को भी पूरा कर पाने में वह सक्षम हो जाता है केवल इसी सिद्धि द्वारा ही वह असंभव को भी संभव कर सकता है। प्राकाम्य सिद्धि- कोई भी रूप धारण कर लेने की क्षमता प्राकाम्य सिद्धि की प्राप्ति है. इसके सिद्ध हो जाने पर मन के विचार आपके अनुरुप परिवर्तित होने लगते हैं. इस सिद्धि में साधक अत्यंत शक्तिशाली शक्ति का अनुभव करता है. इस सिद्धि को पाने के बाद मनुष्य जिस वस्तु कि इच्छा करता है उसे पाने में कामयाब रहता है. व्यक्ति चाहे तो आसमान में उड़ सकता है और यदि चाहे तो पानी पर चल सकता है। ईशिता सिद्धि - हर सत्ता को जान लेना और उस पर नियंत्रण करना ही इस सिद्धि का अर्थ है. इस सिद्धि को प्राप्त करके साधक समस्त प्रभुत्व और अधिकार प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है. सिद्धि प्राप्त होने पर अपने आदेश के अनुसार किसी पर भी अधिकार जमाय अजा सकता है. वह चाहे राज्यों से लेकर साम्राज्य ही क्यों न हो। इस सिद्धि को पाने पर साधक ईश रुप में परिवर्तित हो जाता है। वशिता सिद्धि- जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण पा लेने की क्षमता को वशिता या वशिकरण कही जाती है. इस सिद्धि के द्वारा जड़, चेतन, जीव-जन्तु, पदार्थ- प्रकृति, सभी को स्वयं के वश में किया जा सकता है. इस सिद्धि से संपन्न होने पर किसी भी प्राणी को अपने वश में किया जा सकता है।

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