Saturday, May 19, 2012

रोग एवं अपमृत्यु-निवारक प्रयोग rog aur apamrtu-nivaarak prayog


                     
                 ।। श्री अमृत-मृत्युञ्जय-मन्त्र प्रयोग ।।
किसी प्राचीन शिवालय में जाकर गणेश जी की “ॐ गं गणपतये नमः” मन्त्र से षोडशोपचार पूजन करे । तदनन्तर “ॐ नमः शिवाय” मन्त्र से महा-देव जी की पूजा कर हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़े -

 ॐ अस्य श्री अमृत-मृत्युञ्जय-मन्त्रस्य श्री कहोल ऋषिः, विराट् छन्दः, अमृत-मृत्युञ्जय सदा-शिवो देवता, अमुक गोत्रोत्पन्न अमुकस्य-शर्मणो मम समस्त-रोग-निरसन-पूर्वकं अप-मृत्यु-निवारणार्थे जपे विनियोगः ।

ऋष्यादि-न्यासः- श्री कहोल ऋषये नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे, अमृत-मृत्युञ्जय सदा-शिवो देवतायै नमः हृदि, मम समस्त-रोग-निरसन-पूर्वकं अप-मृत्यु-निवारणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।

कर-न्यासः- ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः, जूं तर्जनीभ्यां नमः, सः मध्यमाभ्यां नमः, मां अनामिकाभ्यां नमः, पालय कनिष्ठिकाभ्यां नमः, पालय कर-तल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः ।

षडङ्ग-न्यासः- ॐ हृदयाय नमः, जूं शिरसे स्वाहा, सः शिखायै वषट्, मां कवचाय हुं, पालय नेत्र-त्रयाय वोषट्, पालय अस्त्राय फट् ।

ध्यानः-
 स्फुटित-नलिन-संस्थं, मौलि-बद्धेन्दु-रेखा-स्रवदमृत-रसार्द्र चन्द्र-वन्ह्यर्क-नेत्रम् ।
स्व-कर-लसित-मुद्रा-पाश-वेदाक्ष-मालं, स्फटिक-रजत-मुक्ता-गौरमीशं नमामि ।।

मूल-मन्त्रः-
“ॐ जूं सः मां पालय पालय ।”

पुरश्चरणः- सवा लाख मन्त्र-जप के लिए पाँच हजार जप प्रतिदिन करना चाहिए । जप के बाद न्यास आदि करके पुनः ध्यान करे । फिर जल लेकर - ‘अनेन-मत् कृतेन जपेन श्री-अमृत-मृत्युञ्जयः प्रीयताम्’ कहकर जल छोड़ दे ।
जप का दशांश हवनादिक करे । ‘हवन’ हेतु ‘तिलाज्य’ में ‘गिलोय’ भी डालनी चाहिए । हवनादि न कर सकने पर ‘चतुर्गुणित जप’ करने से अनुष्ठान पूर्ण होता है एवं आरोग्यता मिलती है, अप-मृत्यु-निवारण होता है ।

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