Vedic Vidha एक वैदिक परंपरागत, सनातन धर्म, संस्कृति, और कर्मकाण्ड के बारे मे उपयुक्त एवं प्रामाणिक जानकारी हेतु|
अपने प्रश्न Ask Your Question Here ऑप्शन से पूछें
यदि Blog कंटेंट को आप कही पर Copy Paste करते हैं या तोड़ मरोड़ कर पेश करने की कोशिश करते हैं तो आप पर CYBER LAW के तहत कार्यवाही की जाएगी
Wednesday, January 10, 2024
Monday, July 3, 2023
ढोल गँवार सूद्र पशु नारी dhol ganwar sudra pashu naari
ढोल गँवार सूद्र पशु नारी
गोस्वामी तुलसीदास रचित यह चौपाई इस समय सबसे विवादित विषय है।
इसी के संदर्भ में कुछ प्रस्तुत किया गया है-
ढोल गँवार सूद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी।।
गोस्वामी तुलसीदास जी की इस चौपाई में दोष निकालने वाले अवश्य पढ़ें और गुनें।
ढोल-
काठ की खोल तामें मढ़ो जात मृत चाम।
रसरी सो फाँस वा में मुँदरी अरझाबत हैं।
मुँदरी अरझाय तीन गाँठ देत रसरी में।
चतुर सुजान वा को खैंच के चढ़ाबत हैं।
खैंच के चढ़ाय मधुर थाप देत मंद मंद।
सप्तक सो साधि-साधि सुर सो मिलाबत हैं।
याही विधि ताड़त गुनी बाजगीर ढोलन को।
माधव सुमधुर ताल सुर सो बजाबत हैं।।
गँवार-
मूढ़ मंदमति गुनरहित,अजसी चोर लबार।
मिथ्यावादी दंभरत, माधव निपट गँवार।।
इन कहुँ समुझाउब कठिन,सहज सुनत नहिं कान।
जा विधि समुझैं ताहि विधि,ताड़त चतुर सुजान।।
सूद्र-
भोजन अभक्ष खात पियत अपेय सदा।
दुष्ट दुराचारी जे साधुन्ह सताबत हैं।
मानत नहिं मातु-पितु भगिनी अरु पुत्रवधू।
कामरत लोभी नीच नारकी कहाबत हैं।
सोइ नर सूद्रन्ह महुँ गने जात हैं माधव।
जिनके अस आचरन यह वेद सब बताबत हैं।
इनकहुँ सुधारिबे को सबै विधि ताड़त चतुर।
नाहक में मूढ़ दोष मानस को लगाबत हैं।।
पशु-
नहिं विद्या नहिं शील गुन,नहिं तप दया न दान।
ज्ञान धर्म नहिं जासु उर,सो नर पशुवत जान।।
सींग पूँछ नख दंत दृढ़, अति अचेत पशु जान।
तिन कहुँ निज वश करन हित,ताड़त चतुर सुजान।।
नारी-
नारि सरल चित अति सहज,अति दयालु सुकुमारि।
निज स्वभाव बस भ्रमति हैं,माधव शुद्ध विचारि।।
माधव नारि सुसकल विधि,सेवत चतुर सुजान।
ताड़िय सेइय आपनो, जो चाहत कल्यान।।
।।जय जय श्री राम जय हनुमान जयतु सनातनः।।
Related topics-
Wednesday, September 21, 2022
हरितालिका व्रत haritalika vrat
हरितालिका व्रत
हरितालिका व्रत को हरितालिका तीज या तीजा भी कहते हैं। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है।इसमें हस्त नक्षत्र का संयोग अतिउत्तम होता है।हरितालिका व्रत में तृतीया तिथि में द्वितीया तिथि का योग निषेध और चतुर्थी तिथि का योग श्रेष्ठ होता है।अतः तृतीया तिथि मुहूर्त मात्र हो तो भी परा तिथि ग्रहण की जाती है।
शास्त्र में इस व्रत के लिए सधवा, विधवा,सबको आज्ञा है।
यह व्रत करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चन्द्र देखने के उपरांत व्रत सम्पन्न कर दिया जाता है, वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत सम्पन्न जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।
हरितालिका तीज व्रत विधि-विधान
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियाँ मनोवांछित वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव-शंकर के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी-शंकर का ही पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं फिर स्नानादि कर श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी-शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
उनका स्थापन पूजन धूप दीप नैवेद्य आदि से पूजन करें।और निराहार रहें।दूसरे दिन पूर्वाह्न में पारणा करके व्रत का समापन करे।8 या 16 युग्म ब्राह्मणों को भोजन करावे। 16 सौभाग्य द्रव्य और वस्त्रादि दे।फिर स्वयं भोजन करें।
इसी दिन हरिकाली, हस्तगौरी और कोटीश्वरी आदि व्रत भी होते हैं इन सबमें पार्वती जी के पूजन का प्राधान्य है और विशेषकर इनको स्त्रियां करती हैं।
व्रत की अनिवार्यता
इस व्रत की पात्र कुमारी कन्याएँ व सुहागिन महिलाएँ दोनों ही हैं परन्तु एक बार व्रत रखने उपरांत जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना होता है। यदि व्रती महिला गंभीर रोग की स्थिति में हो तो उसके स्थान पर दूसरी महिला या उसका पति भी इस व्रत को रख सकता है ऐसा विधान कहा गया है।
Related topics:-
Sunday, August 7, 2022
शिवोपासना या रुद्राभिषेक shivopasana rudrabhishek
शिवोपासना या रुद्राभिषेक
शिव की उपासना के लिए कहा गया है
"जगतः पितरौवन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ"
शिव शब्द स्वयं कल्याण वाचक है।यह शिवशक्ति दोनों का उद्बोधक भी है।शिव उच्चारण करने मात्र से विश्व के उत्पादक-पालक एवं संहारक प्रकृति पुरुषात्मक ब्रह्म का स्मरण हो जाता है।
भगवान शिव तो विश्वरूप है उनका ना कोई स्वरूप है ना कोई चिन्ह है ऐसी अवस्था में उनका पूजन कहां और कैसे किया जाए? क्योंकि पृथ्वी जल वायु तेज आकाश सूर्य चन्द्रमा आत्मा आदि सभी में शिव तत्व विद्यमान है।
चिन्तन करने पर यह समझ में आता है कि सभी में एक गोलाकृति का गुण समान रूप से विद्यमान है। अतएव उसी आकृति को चिन्ह मानकर कर उसे शिवलिंग कह कर उसकी उपासना आरम्भ हो गयी। क्योंकि शिव ने सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु दोनों को इसी रूप में दर्शन कराया था।
इसलिए संसार में लिङ्गोपासना के विविध विधान बताए गए हैं। चारों वेदों में यजुर्वेद यजन का प्रतीक है। इसी से प्रायः सभी वैदिक उपासनाएँ संपन्न होती हैं।
वैदिक-विधान में प्रायः रुद्राष्टाध्यायी का ही प्रयोग प्रचिलित है।इसका पाठ कई प्रकार से करते हुए भक्तजन शिवोपासना करते हैं।
वे अवघड़दानी महेश्वर एक ॐ के उच्चारण मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं फिर वेद स्तुति करने वालों को क्या फल देंगे।अर्थात् उनकी सभी मनोकामनाओं को सहज ही पूर्ण कर देते हैं।
सर्वदोष नाश और मनोकामना पूर्ति के लिये रुद्राभिषेक विधान
वेदों में कहा गया है कि शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।
हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ विधान माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।
शिव के मस्तक पर किए किया जाने वाला घटाभिषेक अग्नि द्वारा सोमपान का ही रूपक है प्रत्येक शरीर के भीतर प्रकृति की ओर से यह अभिषेक हो रहा है जब तक यह अभिषेक चल रहा है तब तक शिवत्व है। जहां यह बंद हुआ तभी शिव यम हो जाता है और संहारक बन जाता है।
शिवार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।
वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रयोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को रुद्राभिषेक करना परम कल्याणकारी है। श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है।
रुद्राभिषेक क्या है ?
अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है।
वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसन्न करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय कहा गया है।
रुद्राभिषेक क्यों किया जाता हैं?
रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।
रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?
प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जब अपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है।
परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।
जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे शीघ्र ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई पशु/वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए।
यदि कोई रोग दुःख आदि व्याधियों से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।
रुद्राभिषेक पाठ एवं उसके भेद
शास्त्रों और पुराणों में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसे यज्ञों से भी प्राप्त नही होता है।
स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते हैं । संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है ।यथा-
(1) रूपक या षडंग पाठ - रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ कहा गया है ।
इस प्रकार - सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी के दस अध्यायों का पाठ रूपक या षडंग कहलाता है ।
(2) रुद्र या एकादिशिनि - रुद्राध्याय की ग्यारह आवृति को रुद्र या एकादिशिनी कहते है रुद्रो की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है।यह नमक-चमक के नाम से भी प्रसिद्ध है।
(3) लघुरुद्र- एकादिशिनी की ग्यारह आवृतियों के पाठ को लघुरुद्र कहा गया है।यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है । तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादिशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होता है।
(4) महारुद्र -- लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है । यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है ।
(5) अतिरुद्र - महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 1331 आवृति पाठ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है ये (1)अनुष्ठानात्मक
(2) अभिषेकात्मक
(3) हवनात्मक , तीनो प्रकार से किये जा सकते है शास्त्रों में इन अनुष्ठानो का अत्यधिक महत्व और पुण्य लाभ बताया गया है।
रुद्राभिषेक से लाभ
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।
रुद्राभिषेक अनेक पदार्थों से किया जाता है और हर पदार्थ से किया गया रुद्राभिषेक अलग फल देने में सक्षम है जो की इस प्रकार से बताया गया है-
◆जल से रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि होती है।
◆कुशा जल से अभिषेक करने पर रोग, दुःख आदि व्याधियों का निवारण होता है।
◆दही से अभिषेक करने पर पशु,भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
◆गन्ने के रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी प्राप्ति होती है।
◆मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर धन वृद्धि के लिए।
◆तीर्थ जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
◆इत्र मिले जल से अभिषेक करने से रोग नष्ट होते हैं ।
◆दुग्ध से अभिषेक करने से पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
◆गंगाजल से अभिषेक करने से ज्वर ठीक हो जाता है।
◆दुग्ध शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है।
◆घी से अभिषेक करने से वंश का विस्तार होता है।
◆सरसों के तेल से अभिषेक करने से रोग तथा शत्रु का नाश होता है।
◆शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से पाप क्षय अर्थात् पापों का निवारण होता है।तथा कोष की प्राप्ति होती है।
नाना प्रकार के शिवलिंग का पूजन-
शिवजी को अनन्त मानते हुए उनका पूजन विभिन्न वस्तुओं एवं नाना प्रकार के लिगों पर होता है।
◆चांदी के लिंग का पूजन करने से पितरों की मुक्ति होती है। ◆स्वर्ण लिंग से वैभव एवं सत्य लोक की प्राप्ति होती है।
◆ताम्र एवं पीतल के लिंग से पुष्टि एवं कांसे के लिंग से सुंदर यश की प्राप्ति होती है।लौह लिंग से मारण सिद्धि होती है। ◆स्तंभन के लिए हल्दी का लिंग, आयु-आरोग्यता के लिए शीशे के लिंग का पूजन करना शुभ फलदायी होता है।
◆रत्न लिंग श्रीप्रद होता है।
◆गोमय से निर्मित लिंग का स्वयं पूजन करने से अतुल ऐश्वर्य प्राप्त होता है, किंतु दूसरे के लिए करने पर मारक होता है। इसी प्रकार से और भी अनेक अनेक प्रकार के लिंगो का वर्णन मिलता है। इनका अर्चन विभिन्न कामनाओं के लिए किया जाता है। इस पर भी पार्थिवेश्वर का पूजन सर्वप्रचिलित एवं शुगम बताया गया है इससे चतुर्वर्ग की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूज अभिषेक करने से जाने-अनजाने होने वाले पापाचरण से भक्तों को शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है और साधक में शिवत्व का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभाशीर्वाद से समृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति होती है।
Related topics-
Saturday, April 11, 2020
शिवाष्टक shivaashtaka
शिवाष्टक shivaashtaka
जय शिव शंकर जय गंगाधर करुणाकर करतार हरे,
जय कैलाशी जय अविनाशी सुखरासी सुखसार हरे,
जय शशि शेखर जय डमरुधर जय जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी जय मद हारी अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय सगुण अनामय निराकार साकार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।1।।
जय रामेश्वर जय नागेश्वर वैद्यनाथ केदार हरे,
मल्लिकार्जुन सोमनाथ जय महाकाल ओंकार हरे,
त्रंबकेश्वर जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
काशीपति श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नीलकंठ जय भूतनाथ जय मृत्युंजय अविकार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।2।।
जय महेश जय जय भवेश जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुणातीत प्रभु तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भव कारक तारक हारक पातक दारक शिव शम्भो,
दीन दुःखहर सर्व सु:खकर प्रेम सुधाधर की जय हो,
पार लगा दो भवसागर से बनकर करुणाधार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।3।।
जय मन भावन जय अति पावन शोक नशावन शिव शम्भो,
विपद विदारन अधम उधारन सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयन वर धवल वरन तन शिव शम्भो,
मदन दहन कर पाप हरन हर चरन मनन धन शिव शम्भो,
विवसन विश्वरूप प्रलयंकर जग के मूलाधार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।4।।
भोलानाथ कृपालु दयामय अवघड दानी शिव योगी,
निमिष मात्र में देते हैं नवनिधि मन मानी शिव योगी,
सरल हृदय अति करुणासागर अकथ कहानी शिव योगी,
भक्तों पर सर्वस्व लुटा कर बने मसानी शिवयोगी,
स्वयं अकिंचन जन मन रंजन पर शिव परम उदार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भोपाहि पाहि दातार हरे।।5।।
आशुतोष से इस मोहमयी निद्रा से मुझे जगा देना,
विषम वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना,
रूप सुधा की एक बूंद से जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य ज्ञान भंडार युगल चरणों की लगन लगा देना,
एक बार इस मन मंदिर में कीजै पद संचार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।6।।
दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनुपायनि भक्ति प्रभो,
शक्तिमान हो दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,
त्यागी हो, दो इस असार संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,
परमपिता हो दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुण पुकार हरे,
पार्वतीपति पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।7।।
तुम बिन वेकल हूँ प्राणेश्वर आ जाओ भगवन्त हरे,
चरण शरण की बाँह गहो हे उमा रमण प्रिय कन्त हरे,
विरह व्यथित हूँ दीन दुखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,
आओ तुम मेरे हो जाओ आ जाओ श्रीमन्त हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।8।।
Related topics-
● शिवलिङ्ग का महत्व Importance of Shivling
● महामृत्युञ्जय mahaamrtyunjay
Saturday, August 31, 2019
शिवलिङ्ग का महत्व Importance of Shivling
शिवलिङ्ग का महत्व
शिवोपासना की महिमा का वर्णन शास्त्रों में सर्वत्र मिलता है। लिङ्ग शब्द का साधारण अर्थ चिह्न अथवा लक्षण है। देव-चिह्न के अर्थ में लिङ्ग शब्द शिवजी के ही लिङ्ग के लिए आता है।
पुराण में लयनालिंगमुच्यते कहा गया है अर्थात् लय या प्रलय से लिंग कहते हैं। प्रलय की अग्नि में सब कुछ भस्म होकर शिव में समा जाता है। वेद-शास्त्रादि भी शिव में लीन हो जाते हैं। फिर सृष्टि के आदि में सब कुछ लिङ्ग से ही प्रकट होता है।
शिव मंदिरों में पाषाण निर्मित शिवलिंगों की
अपेक्षा बाणलिंगों की विशेषता ही अधिक है। अधिकांश उपासक मृण्मय शिवलिंग अर्थात बाणलिंग की उपासना करते हैं। गरुड़ पुराण तथा अन्य शास्त्रों में अनेक प्रकार के शिवलिंगों के निर्माण का विधान है। उसका संक्षिप्त वर्णन भी पाठकों के ज्ञानार्थ यहां प्रस्तुत है।
दो भाग कस्तूरी, चार भाग चंदन तथा तीन भाग कुंकुम से ‘गंधलिंग’ बनाया जाता है। इसकी यथाविधि पूजा करने से शिव सायुज्य का लाभ मिलता है।
‘रजोमय लिंग’ के पूजन से सरस्वती की कृपा मिलती है। व्यक्ति शिव सायुज्य पाता है। जौ, गेहूं, चावल के आटे से बने लिंग को ‘यव गोधूमशालिज लिंग’ कहते हैं।
इसकी उपासना से स्त्री, पुत्र तथा श्री सुख की प्राप्ति होती है। आरोग्य लाभ के लिए मिश्री से ‘सिता खण्डमय लिंग’ का निर्माण किया जाता है।
हरताल, त्रिकटु को लवण में मिलाकर लवज लिंग बनाया जाता है। यह उत्तम वशीकरण कारक और सौभाग्य सूचक होता है। पार्थिव लिंग से कार्य की सिद्धि होती है।
भस्ममय लिंग सर्वफल प्रदायक माना गया है। गुडोत्थ लिंग प्रीति में बढ़ोतरी करता है। वंशांकुर निर्मित लिंग से वंश बढ़ता है। केशास्थि लिंग शत्रुओं का शमन करता है। दुग्धोद्भव लिंग से कीर्ति, लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है।
धात्रीफल लिंग मुक्ति लाभ और नवनीत निर्मित लिंग कीर्ति तथा स्वास्थ्य प्रदायक होता है। स्वर्णमय लिंग से महाभुक्ति तथा रजत लिंग से विभूति मिलती है। कांस्य और पीतल के लिंग मोक्ष कारक होते हैं।
पारद शिवलिंग महान ऐश्वर्य प्रदायक माना गया है। लिंग साधारणतया अंगुष्ठ प्रमाण का बनाना चाहिए। पाषाणादि से बने लिंग मोटे और बड़े होते हैं। लिंग से दोगुनी वेदी और उसका आधा योनिपीठ करने का विधान है।
लिंग की लंबाई उचित प्रमाण में न होने से शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होती है। योनिपीठ बिना या मस्तकादि अंग बिना लिंग बनाना अशुभ है।
पार्थिव लिंग अपने अंगूठे के एक पोर के बराबर बनाना चाहिए। इसके निर्माण का विशेष नियम आचरण है जिसका पालन नहीं करने पर वांछित फल की प्राप्ति नहीं हो सकती।
लिंगार्चन में बाणलिंग का अपना अलग ही महत्व है। वह हर प्रकार से शुभ, सौम्य और श्रेयस्कर होता है। प्रतिष्ठा में भी पाषाण की अपेक्षा बाण लिंग की स्थापना सरल व सुगम है।
नर्मदा नदी के सभी कंकर ‘शंकर’ माने गए हैं। इन्हें नर्मदेश्वर भी कहते हैं। नर्मदा में आधा तोला से लेकर मनों तक के कंकर मिलते हैं। यह सब स्वतः प्राप्त और स्वतः संघटित होते हैं। उनमें कई लिंग तो बड़े ही अद्भुत, मनोहर, विलक्षण और सुंदर होते हैं। उनके पूजन-अर्चन से महाफल की प्राप्ति होती है।
मिट्टी, पाषाण या नर्मदा की जिस किसी मूर्ति का पूजन करना हो, उसकी विधिपूर्वक प्राण-प्रतिष्ठा, स्थापना आदि की विधियां अनेक ग्रंथों मे वर्णित है |
पवित्र मनुष्य सदा ही उत्तराभिमुख होकर शिवार्चन करें।
-मृत्तिका, भस्म, गोबर, आटा, ताँबा और कांस का शिवलिङ्ग बानाकर जो मनुष्य एकबार भी पूजन करता है वह अयुतकल्प तक स्वर्ग में वास करता है।
शिवलिङ्ग की माप
नौ, आठ, और सात अँगुल का शिवलिङ्ग उत्तम होता है। तीन, छः, पाँच तथा चार अँगुल का शिवलिङ्ग मध्यम होता है। तीन, दो, और एक अँगुल का शिवलिङ्ग कनिष्ठ होता है। इस प्रकार यथा क्रम से चर प्रतिष्ठित शिवलिङ्ग नौ प्रकार का कहा गया है।
शूद्र, जिसका उपनयन सँस्कार नहीं हुआ है, स्त्री और पतित ये लोग केशव या शिव का स्पर्श करते हैं तो नरक प्राप्त करते हैं। (स्कन्द पुराण)
स्वयं प्रदुर्भूत बाणलिंग में, रत्नलिंग में, रसनिर्मित लिंग में और प्रतिष्ठित लिंग में चण्ड का अधिकार नहीं होता।
जहाँ पर चण्डाधिकार होता है वहाँ पर मनुष्यों को उसका भोजन नहीं करना चाहिये। जहाँ चण्डाधिकार नहीं होता है वहाँ भक्ति से भोजन करें। (नि.सि.पृ.सं.७२ॉ)
पृथिवी, सुवर्ण, गौ, रत्न, ताँबा, चाँदी, वस्त्रादि को छोड़कर चण्डेश के लिये निवेदन करें। अन्य अन्न आदि, जल, ताम्बूल, गन्ध और पुष्प, भगवान् शंकर को निवेदित किया हुआ सब चण्डेश को दे देना चाहिये।(नि.सि.पृ.सं.७१९)
विल्वपत्र तीन दिन और कमल पाँच दिन वासी नहीं होता और तुलसी वासी नहीं होती। (नि.सि.पृ.सं.७१८)
अँगुष्ठ, मध्यमा और अनामिका से पुष्प चढ़ाना चाहिये एवं अँगुष्ठ-तर्जनी से निर्माल्य को हटाना चाहिये।
‘अहं शिवः शिवश्चार्य, त्वं चापि शिव एव हि।
सर्व शिवमयं ब्रह्म, शिवात्परं न किञचन।।
मैं शिव, तू शिव सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है- ‘शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्।
शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मंगल, परम कल्याण।
Related topics-
● जानें भगवान शिव का प्रसाद ग्रहण करें या नहीं? Learn whether or not to accept Lord Shiva's offer
● तिथि और वार के अनुसार माँ जगदम्बा को अर्पित करें विशेष भोग
● Mahamrityunjay Mantra
● शतरुद्री अर्थात 100 मंत्रो से रुद्र पूजन या अभिषेक Rudra Pujaan or Abhishek from Shatrudri meaning 100 Mantras
● रुद्राभिषेक सम्पूर्ण जानकारी। Rudrabhishek complete information
Wednesday, August 28, 2019
शिव सहस्त्रनामावली। Shiva Sahastranamavali
शिव सहस्त्रनामावली
कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त
कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace
कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...

-
श्रीकनकधारास्तोत्रम् भगवती कनकधारा महालक्ष्मी स्तोत्र की रचना श्री शंकराचार्य जी ने की थी।उनके इस स्तुति से ...
-
सत्यनारायण व्रत कथा मूल पाठ (संस्कृत) प्रथमोऽध्याय: व्यास उवाच- एकदा नैमिषारण्ये ऋषय: शौनकादय:। पप्रच्छुर्मुनय: सर्वे सूतं पौराणि...
-
श्री वन-दुर्गा मन्त्र-विधान Srivan-Durga Mantra-Vidhan संकल्प : - देश-कालौ स्मृत्वा अमुक-गोत्रोऽमुक-शर्मा...