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Saturday, February 15, 2025
श्री रामाष्टक Shri Ramashtak
हे राम मैं तुममें रम जाऊं, ऐसी निर्मल बुद्धि दे दो।
Saturday, July 16, 2022
रक्षाबन्धन कब है 2022 rakshabandhan 2022
रक्षाबन्धन कब है 2022
रक्षाबन्धन पर्व को लेकर इस बार लोगों के मन में दुविधा है कि इस वर्ष 2022 में रक्षाबन्धन का त्योहार किस दिन मनाया जाएगा यह विषय लेकर हम आपके समक्ष प्रस्तुत है।
यद्यपि पूर्णिमा 11तारीख को प्रातः10:38 मिनट के बाद प्रारम्भ होगी और इसी समय से भद्रा काल आरम्भ हो जाएगा जो रात्रि में 08:51 मिनट तक रहेगी।
साथ ही पूर्णिमा 12 तारीख को प्रातः सूर्योदय के बाद 3 घड़ी 3 पल तक रहेगी।
रक्षाबन्धन प्रतिवर्ष अपराह्न या प्रदोषकाल व्यापिनी श्रावण सुदी पूर्णिमा में मनाया जाए, यह कथन धर्मसिन्धु का है बशर्ते कि कर्मकाल के समय भद्रा की व्याप्ति ना हो।
यथा- पूर्णिमायां भद्रारहिताया त्रिमुहूर्ताधिकोदय व्यापिन्यामपराह्ने प्रदोषे वा कार्यम्।।
और निर्णयसिन्धु में हेमाद्रि का मन्तव्य भविष्य पुराण का उल्लेख करते हुए लिखा है कि श्रावण की पौर्णमासी में सूर्योदय के अनन्तर श्रुति-स्मृति विधान से बुद्धिमान उपा कर्म श्रावणी कर्म रक्षाबंधन को करें।
उपरान्त अपराह्न के समय शुभरक्षा पोटलिका को बांधे, जिसमें चावल सरसों के दाने तथा स्वर्ण हो। इदं भद्रायां न कार्यम्।इस काम को शुभ की इच्छा रखने वाली माताएं, बहन, बेटियाँ अपने भाइयों की कलाई में राखी भद्रा मे न बांधे तथा द्विजचार्यों की विदुषी महिलायें एवं द्विजमात्र विद्वान यजमानों के हाथ में रक्षा विधान भद्रा में ना करें-
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी।।
भद्रा में रक्षाबन्धन घर के प्रधान व्यक्ति को और होलिका दहन ग्राम, नगर, मोहल्ला विशेष को क्षति करने वाला होता है।अर्थात् हानि होती है।
निर्णयामृत में लिखा है कि अपराह्न या रात्रि में भद्रा रहित समय हो तो रक्षा विधान करें अन्यथा नहीं।
किन्तु लौकिक व्यवहार में रक्षाविधान हमेशा सुबह के समय दिन में होता रहा है।
ध्यान रहे-श्रीरामनवमी, दुर्गाष्टमी, एकादशी, गुरुपूर्णिमा, रक्षाबंधन, भाईदूज,भ्रातृद्वितीया आदि का कर्मकाल दिन में पड़ता है, इसलिए इन्हें दिनव्रत के नाम से जाना जाता है।
दिनव्रत के लिए केवल उदया तिथि (साकल्यापादिता तिथि) ली जाती है।
तिथि दो प्रकार की होती है।
एक तो वह तिथि जो सूर्य-चंद्र के भोग्यांश प्रति 12 अंश पर सुनिश्चित करके पंचांग में प्रतिदिन समय के सहित दी जाती है।
दूसरी वह तिथि होती है, जिसे साकल्यापादिता तिथि के नाम से जाना जाता है।
ध्यान दें- साकल्यापादिता तिथि सूर्योदय के बाद चाहे जितनी हो, उसी को उस दिन व्रत, पूजा,यज्ञानुष्ठान, स्नान, दानादि के लिए सम्पूर्ण दिन अहोरात्र में पुण्यफल (सफलता) प्रदान करने वाली माना जाता है। केवल श्राद्ध कर्म को छोड़कर सभी शुभकर्मों में ग्राह्य मानी गई है। चाहे वह एक घटी हो या आधी घटी।
जैसाकि कालमाधव का कहना है-
या तिथि समनुप्राप्य उदयं याति भास्करः।
सा तिथि:सकला ज्ञेया स्नान-दान-व्रतादिषु।।
उदयन्नैव सविता यां तिथिं प्रतिपद्यते।
सा तिथि: सकलाज्ञेया दानाध्यन कर्मसु।।
व्रतोपवास नियमे घटिकैकायदा भवेत्।
सा तिथि सकला ज्ञेया पित्रर्थेचापराह्निकी।।
इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा 12 अगस्त 2022 शुक्रवार में सूर्योदय के बाद 3 घटी से भी अधिक रहेगी, जो कि साकल्यापादिता तिथि धर्म कृत्योपयोगी रक्षाबन्धन के लिए श्रेष्ठ मानी जाएगी।
याद रहे कोई पंचांग अथवा जंत्री आदि ज्योतिष की पत्रिकाओं में पहले दिन तारीख 11 अगस्त गुरुवार में राखी बांधने के लिए लिख सकते हैं,जो कि सिद्धान्तत: गलत है क्योंकि तारीख 11 अगस्त गुरुवार में चौदस प्रातः 10:38 तक रहेगी उसी समय भद्रा प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि रात्रि में 08:51 तक रहेगी।
भद्रा में रक्षाबन्धन सर्वमतेन वर्जित है- भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।
कोई विद्वान रात्रि में रक्षाबन्धन के लिए लिख सकता है।
इस विषय पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।और यदि इस ब्लॉग की कोई भी विषय वस्तु आपको उपयोगी सिद्ध होती है तो हमारा प्रयास सार्थक होगा।
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Wednesday, November 10, 2021
आरती श्री जगदीशजी ॐ जय जगदीश हरे
॥ आरती श्री जगदीशजी ॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
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ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
Friday, February 21, 2020
दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र Daridraya Dahana Shiv Stotra
दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र
दारिद्रयदहन शिव स्तोत्र
Friday, October 4, 2019
आरती माँ जगदम्बा गौरी गिरिराज किशोरी
आरती माँ जगदम्बा गौरी गिरिराज किशोरी
जै गौरी गिरिराज किशोरी आरती तुम्हारी।
जै महेश मुख चन्द्रचकोरी आरती तुम्हारी।।
एक भरोसा तेरा मईया दूजा नही सहारा है।2
कर दो मईया मोरि सहईया 2 आरती तुम्हारी।।
जै गौरी गिरिराज किशोरी आरती तुम्हारी।
जै महेश मुख चन्द्रचकोरी आरती तुम्हारी।।
अतुलित तेज बदन पर सोहै तिहुँ लोक उजियारा है।2
भक्तों की कल्याण करइया 2 आरती तुम्हारी।
जै गौरी गिरिराज किशोरी आरती तुम्हारी।
जै महेश मुख चन्द्रचकोरी आरती तुम्हारी।।
जो कोई माँ की करे आरती कष्ट कभी नही पाता है।2
दूध पूत भण्डार भरईया 2 आरती तुम्हारी।।
जै गौरी गिरिराज किशोरी आरती तुम्हारी।
जै महेश मुख चन्द्रचकोरी आरती तुम्हारी।।
रोग हरो माँ, शोक हरो माँ, शत्रु से बचाओ।2
"विजय"करो माँ बजे बधइया 2,आरती तुम्हारी।।
जै गौरी गिरिराज किशोरी आरती तुम्हारी।
जै महेश मुख चन्द्रचकोरी आरती तुम्हारी।।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्येत्र्यंबके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।
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Friday, August 30, 2019
कल्याणवृष्टिस्तवः kalyaanavrshtistavah
तस्य क्षोणिभुजो भवन्ति वशगा लक्ष्मीश्चिरस्थायिनी,
माता महालक्ष्मी जी की आरती Aarti of Goddess Mahalaxmi
माता महालक्ष्मी जी की आरती
तुमको निसि दिन सेवत, हर विष्णु धाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
जो कोई तुमको ध्याता, रिधि सिधि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की त्राता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
खान पान का वैभव सब तुमसे आता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहिं पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
आ आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
Tuesday, August 27, 2019
भगवती कामेश्वरीस्तुति: Bhagwati Kameshwaristuti:
भगवती कामेश्वरीस्तुति:
श्रीमहालक्ष्म्याष्टकम् Shrimahalakshmishtakam
श्रीमहालक्ष्म्याष्टकम्
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोSस्तु ते ।।6।।
श्रीकनकधारास्तोत्रम् shree Kanak Dhara Stotram
श्रीकनकधारास्तोत्रम्
कनकधारा स्त्रोत पाठ विधि
एक चौकी पर लाल या पीले कपड़े पर माँ कनकधारा लक्ष्मी की बैठी हुई प्रतिमा या फोटो लगाये और साथ में एक कनकधारा यंत्र स्थापित करे।
रोजाना नियमित रूप से कनकधारा यंत्र के सामने धुप-बत्ती जलाये,और माता का पूजन कर गोघृत का दीपक जलाएं।
अब इस कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ करें।वैसे 16 पाठ करने को कहा गया है किन्तु एक पाठ जरूर करें।
इस यंत्र की विशेषता है कि यह किसी भी प्रकार की विशेष माला, जप, पूजन, विधि-विधान की मांग नहीं करता बल्कि सिर्फ दिन में एक बार इसको पढ़ना पर्याप्त है।
माता सबका कल्याण करेंगी।
स्तोत्र
श्रीकनकधारा स्तोत्र का हिन्दी रूपान्तर (पद्यानुवाद)Hindi version of Srikankadhara Stotra (verse)
अंग अंग से पुलकित होकर, स्वर्ण प्रदान करो माता।
मेरे शून्य सदन के अंदर, स्थिर सुख शांति भरो माता।।
अलिका सी श्री हरि के मुख पर, मुग्ध हुई मंडराती हो।
तरु तमाल सी आभा पाकर, भरमाती शरमाती हो,
लीलामयी दया की दृष्टि, मुझको दान करो माता।।
मेरे शून्य सदन के...............।।1।।
देवाधिप को वैभव देती, दे आनन्द मुरारी को।
नीलकमल की सहोदरा मां, सरसाती हर क्यारी को।।
वही मधुर ममता की दृष्टि, मुझे प्रदान करो माता।
मेरे शून्य सदन के..........।।2।।
कोटि काम छवि के अभिनेता, सत् चित आनंद ईश मुकुन्द।
जिनके हृदय कमल मे राजी, मना रही अतिशय आनन्द।।
शेषशायिनी श्री हरि माया, मुझको धन्य करो माता।
मेरे शून्य सदन के.......।।3।।
मधुसूदन के वक्षस्थल पर, कौस्तुभ मणिका राज रही।
कमल वासिनी श्री की आभा, जिसके अन्दर साज रही।।
नीलाभापति का मन हरती, मेरी विपति हरो माता।
मेरे शून्य सदन के.......।।4।।
जैसे श्याम घटा सुषमा में, विद्युत कान्ति चमकती है।
वैसे हरि के हृदय कमल में, माता आप दमकती हैं।।
भार्गव नन्दिनि विश्व वन्दिनी, दिव्य प्रकाश भरो माता।
मेरे शून्य सदन के........।।5।।
सिन्धु सुता श्री की सुन्दरता, मन्थरगति महिमा वाली।
मधुसूदन का मन हरती है, मंगल मुख गरिमा वाली।।
स्नेहमयी दारिद्र्य हारिणी, दुख दारिद्रय हरो माता।
मेरे शून्य सदन के.......।।6।।
श्री नारायण की प्रिय प्राणा, करुणामयि करुणा कर दो।
मेरे पाप ताप सब मेटो, मेरा गृह सुख से भर दो।।
मैं प्यासा हूँ जन्म जन्म का, शुभ जल वृष्टि करो माता।
मेरे शून्य सदन के........।।7।।
पद्मासना पद्मजा पद्मा, बुध जन तुम्हे मनाते हैं।
मेरी अनुपम अनुकम्पा से, अनुपम साधन पाते हैं।।
मेरी सब अभिलाषा पूरो, मम गृहवास वास करो माता।
मेरे शून्य सदन के...........।।8।।
ब्रह्म शक्ति बनकर जग रचती, लक्ष्मी बन पालन करती।
शिव शक्ति बन प्रलय मचाती, तीन रूप धारण करती।।
शाकम्भरी शारदा श्री माँ, ज्ञान प्रदान करो माता।
मेरे शून्य सदन के........।।9।।
शुभ कर्मों का फल प्रदायिनी, दुष्कर्मों का करती अन्त।
सहज कमल दल में निवासिनी, रमा शक्ति समृद्धि अनन्त।।
पुरुषोत्तम की प्राण वल्लभा, परम प्रकाश भरो माता।
मेरे शून्य सदन के.........।।10।।
क्षीर सिन्धु तनया शशि भगिनी,अमृत सहोदरा शुभ रूप।
नारायण की परम प्रेयसी, कमलमुखी सौम्या श्री रूप।।
बारम्बार प्रणाम आपको, मम दुर्भाग्य हरो माता।
मेरे शून्य सदन के.........।11।।
मातु आपकी सतत वन्दना, करती सुख साम्राज्य प्रदान।
पाप ताप सन्ताप मिटाती, देती सब साधन सम्मान।।
चरण वन्दना करूं आपकी, शुभ सद्भक्ति भरो माता।
मेरे शून्य सदन के........।12।।
जिनकी कृपा कटाक्ष मात्र से, पूर्ण मनोरथ होते हैं।
विपुल विभव सन्तति सुख मिलते, दुख दरिद्र सब खोते हैं।।
तन मन वचन कर्म से सुमिरो, मन में हर्ष भरो माता।
मेरे शून्य सदन के.........।।13।।
कमल कुन्ज कलिका निवासिनी, हरि पत्नी आनन्दमयी।
श्वेताम्बरा गंध माला में, कमल कान्ति नित नवल नयी।।
त्रिभुवन को वैभव प्रदायिनी, मुझको मत विसरो माता।
मेरे शून्य सदन के..........।।14।।
गगन जान्हवी नीर क्षीर से, जिनका हो अभिषेक सदा।
उन्हीं जगन्नायक की प्रणया, हो मुझ पर मांगल्य मुदा।।
प्रणत प्रभात प्रणाम आपको, स्वीकारो मेरी माता।
मेरे शून्य सदन के.........।।15।।
कमलनयन की प्राण वल्लभे, अग्रगण्य मैं दीन दुखी।
मातु सहज करुणा की सागर, कर दो तत्क्षण मुझे सुखी।।
मुझ पर दया दृष्टि बरसा कर, अभ्युत्थान करो माता।
मेरे शून्य सदन के..........।।16।।
लक्ष्मी के इस कनक स्तोत्र का, तीन काल जो पठन करें।
त्रिभुवन को सुख देने वाली, सुख से उनका सदन भरे।।
सुख सौभाग्य सहज मे देकर, विपत हरो माँ जल जाता।
मेरे शून्य सदन के.............।।17।।
आद्य शंकराचार्य रचित यह, कनक स्तोत्र जो गाते हैं।
मां लक्ष्मी की अनुकम्पा से, सब सुख साधन पाते हैं।।
करती हैं कल्याण शीघ्र ही, त्रिभुवन की मां सुखदाता।
मेरे शून्य सदन के...........।।18।।
कमल कान्ति करुणामयी, करुणा की अवतार।
माँ लक्ष्मी करुणा करो, करो कनक बौछार।।
मेरे दुख दारिद्र हरो, करो सिद्धियाँ दान।
माँ कनके! मेरा करो, पद पद पर कल्याण।।
भगवान श्री राम चालीसा Lord Shri Ram Chalisa
भगवान श्री राम चालीसा
श्री भगवती स्तोत्रम Sri Bhagwati Stotram
श्री भगवती स्तोत्रम
जय शुम्भ-निशुम्भ-कपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ।।1।।
जय भैरवदेहनिलीनपरे, जय अन्धकदैत्य विशोषकरे ।।2।।
जय देवि पितामहविष्णुनते, जय भास्करशक्रशिरोsवनते ।।3।।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे, जय पुत्रकलत्रविवृद्धि करे।।4।।
जय व्याधि विनाशिनि मोक्ष करे, जय वांछित दायिनि सिद्धिवरे ।।5।।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा ।।6।।
भगवती गंगा आरती Bhagwati Ganga Aarti
भगवती गंगा आरती
भगवती दुर्गा की आरती Aarti Bhagwati Durga
भगवती दुर्गा की आरती
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ।।1।।
उज्जवल से दोउ नैना, चंद्र बदन नीको ।।2।।
रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजै ।।3।।
सुर नर मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ।।4।।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योति ।।5।।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ।।6।।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ।।7।।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ।।8।।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु ।।9।।
भक्तन की दुख हरता सुख संपत्ति करता ।।10।।
मन वांछित फल पावत, सेवत नर-नारी ।।11।।
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ।।12।।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे ।।13।।
Wednesday, August 21, 2019
श्री कृष्ण चालीसा Shree Krishna Chalisa
इसे जन्माष्टमी के नाम से भी जानते हैं। इसीलिए इस दिन श्री कृष्ण को बाल रूप में झूले में झुलाया जाता है और उन्हें भोग लगाया जाता है,और भक्त तरह-तरह से उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। ऐसे में श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए पढ़ी जाती है श्री कृष्ण चालीसा।।
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
Wednesday, June 12, 2019
अमोघ शिव कवच
विनियोग:
ॐ अस्य श्री शिव कवच स्त्रोत्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि:, अनुष्टुप छंद:, श्री सदाशिव रुद्रो देवता, ह्रीं शक्ति:, रं कीलकम, श्रीं ह्रीं क्लीं बीजं, श्री सदाशिव प्रीत्यर्थे शिवकवच स्त्रोत्र जपे विनियोग: ।
अथ न्यास: ( पहले सभी मंत्रो को बोलकर क्रम से करन्यास करे ।
तदुपरांत इन्ही मंत्रो से अंगन्यास करे| )
करन्यास
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने अन्गुष्ठाभ्याम नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने तर्जनीभ्याम नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने मध्यमाभ्याम नम:।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्याम नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कनिष्ठिकाभ्याम नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने करतल करपृष्ठाभ्याम नम:।
अंगन्यास
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने हृदयाय नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने शिरसे स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने शिखायै वषट ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने नेत्रत्रयाय वौषट ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कवचाय हुम
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने अस्त्राय फट ।
अथ दिग्बन्धन:
ॐ भूर्भुव: स्व: ।
चारो दिशाओं में चुटकी बजाएं।
ध्यानम
कर्पुरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम ।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ।।
श्री शिव कवचम्
ॐ नमो भगवते सदाशिवाय, सकलतत्वात्मकाय, सर्वमंत्रस्वरूपाय, सर्वमंत्राधिष्ठिताय, सर्वतंत्रस्वरूपाय, सर्वतत्वविदूराय, ब्रह्मरुद्रावतारिणे, नीलकंठाय, पार्वतीमनोहरप्रियाय, सोमसुर्याग्नीलोचनाय, भस्मोधूलितविग्रहाय, महामणिमुकुटधारणाय, माणिक्यभूषणाय, सृष्टिस्थितिप्रलयकालरौद्रावताराय, दक्षाध्वरध्वन्सकाय, महाकालभेदनाय, मुलाधारैकनिलयाय, तत्वातीताय, गंगाधराय, सर्वदेवाधिदेवाय, षडाश्रयाय, वेदांतसाराय, त्रिवर्गसाधनाया, नेक्कोटीब्रहमांडनायकायानन्त्वासुकीतक्षककर्कोटकशंखकुलिकपद्ममहापद्मेत्यष्टनागकुलभूषणाय, प्रणवरूपाय, चिदाकाशायाकाशदिकस्वरूपाय, ग्रहनक्षत्रमालिने, सकलायकलंकरहिताय, सकललोकैककर्त्रे, सकललोकैकसंहर्त्रे, सकललोकैकगुरवे, सकललोकैकभर्त्रे, सकललोकैकसाक्षीणे, सकलनिगमगुह्याय, सकलवेदांतपारगाय, सकललोकैकवरप्रदाय, सकललोकैकशंकराय, शशांकशेखराय, शाश्वतनिजावासाय, निराभासाय, निरामयाय, निर्मलाय, निर्लोभाय, निर्मोहाय, निर्मदाय, निश्चिन्ताय, निर्हंकाराय, निराकुलाय, निष्कलन्काय, निर्गुणाय, निष्कामाय, निरुप्लवाय, नीवद्याय, निरन्तराय, निष्कारणाय, निरातंकाय, निष्प्रपंचाय, नि:संगाय, निर्द्वंदाय, निराधाराय, नीरोगाय, निष्क्रोधाय, निर्गमाय, निष्पापाय, निर्भयाय, निर्विकल्पाय, निर्भेदाय, निष्क्रियाय, निस्तुल्याय, निस्संशयाय, निरंजनाय, निरुपम विभवाय, नित्यशुद्धबुद्धपरिपूर्णसच्चिदानंदाद्वयाय, परमशांतस्वरूपाय, तेजोरूपाय, तेजोमयाय, जयजय रूद्रमहारौद्र, भद्रावतार, महाभैरव, कालभैरव, कल्पान्तभैरव, कपाल मालाधर, खट्वांगखंगचर्मपाशांकुशडमरूकरत्रिशूल चापबाणगदाशक्तिभिन्दिपालतोमरमुसलमुदगरप्रासपरिघभुशुण्डीशतघ्नीचक्रद्यायुद्धभीषणकर, सहस्रमुख, दंष्ट्रा कराल वदन, विक्टाट हास विस्फारित ब्रहमांड मंडल, नागेन्द्र कुंडल, नागेन्द्रहार, नागेन्द्र वलय, नागेन्द्र चर्मधर, मृत्युंजय, त्रयम्बक, त्रिपुरान्तक, विश्वरूप, विरूपाक्ष, विश्वेश्वर, वृषवाहन, विश्वतोमुख सर्वतो रक्ष रक्ष माम ।
ज्वल ज्वल महामृत्युअपमृत्युभयं नाशय नाशय चौर भयंमुत्सारयोत्सारय: विष सर्प भयं शमय शमय: चौरान मारय मारय: मम शत्रून उच्चाटयोच्चाटय: त्रिशुलेंन विदारय विदारय: कुठारेण भिन्धि भिन्धि: खंगेन छिन्धि छिन्धि: खट्वांगेन विपोथय विपोथय: मूसलेन निष्पेषय निष्पेषय: बाणे: संताडय संताडय: रक्षांसि भीषय भीषयाशेष्भूतानी विद्रावय विद्रावय: कुष्मांडवेतालमारीचब्रहमराक्षसगणान संत्रासय संत्रासय: माम अभयं कुरु कुरु: वित्रस्तं माम अश्वास्याश्वसय: नरक भयान माम उद्धरौद्धर: संजीवय संजीवय: क्षुत्रिडभ्यां माम आप्यापय आप्यापय: दु:खातुरं माम आनंदय आनंदय : शिव कवचे न माम आच्छादय आच्छादय: मृत्युंजय! त्रयम्बक! सदाशिव!!! नमस्ते नमस्ते ।।
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Saturday, February 16, 2019
कूष्माण्डा kooshmaanda
श्री कूष्माण्डा चालीसा का प्रणयन संवत् २०१९ कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को पं.-श्री सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय 'संत'द्वारा हुआ.
यह वही समय है जब विश्व पर अष्टग्रही योग का प्रभाव व्याप्त था और भारत पर चीन का आक्रमण हुआ था.उस समय ये परास्नातक (हिन्दी) के विद्यार्थी थे.ये बचपन से ही शान्त एवं अध्यात्मिक विचारधारा के व्यक्ति रहे हैं.
उस समय तीन वर्ष घाटमपुर में प्रवास करने के दौरान माँ कूड़हा (कूष्माण्डा) देवी के प्रति लगन एवं उनके आशीर्वाद से इनके ह्रदय में ऐसी प्रेरणा हुई कि अपने कृतित्व द्वारा माँ के चरणों में कुछ श्रद्धा सुमन अर्पित किये जायें.
इसी सन्दर्भ में माँ की चालीसा की रचना का विचार उत्पन्न हुआ,उस समय अपने जेब खर्च से इन्होंने इसकी रचना कर एक हजार प्रतियाँ छपवा कर वितरित की,इस क्रम से आज तक इसकी रचना का प्रसाद भक्तों में वितरित होता रहा.
उम्र के अनुभव और अंतर्मन की प्रेरणा से जीवन के उत्तरार्ध में इन्हें पुनः यह विचार आया कि इस रचना को वह पुनः प्रसाद रूप में वितरित करे,किन्तु आज की प्रति में संशोधन एवं कुछ और प्रकरण जो मूल प्रति में थे परन्तु बाद के संस्करणों में उनका अभाव देखा गया,इसलिये रचयिता द्वारा अन्य प्रतियो में छोड़े गये अंशो को पुनः प्रकाशित करना आवश्यक समझा गया साथ ही इसमें कूष्माण्डा पंचामृत,शिव शतनाम को जोड़ा गया है.
इस प्रकार यह संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण पुनः आपके सम्मुख माँ के प्रसाद के रूप में प्रस्तुत है.
-:निवेदक:-
विजय कुमार शुक्ल (आचार्य)
कानपुर (उत्तर प्रदेश )
मो_9936816114
vijay.shukla003@gmail.com
कूष्माण्डा महात्म्य
या देवी सर्व भूतेषु मात्र रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः.
सुरा सम्पूर्ण कलशं रूधिराप्लुतमेव च .
दधाना हस्त पद्माभ्याम कूष्माण्डा शुभदास्तुमे.
माँ भगवती दुर्गा के चौथे स्वरुप का नाम कूष्माण्डा हैं.अपनी मंद हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रम्हाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है.
जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था चारो ओर अन्धकार ही अन्धकार परिव्याप्त था तब इन्ही देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रम्हाण्ड की रचना की थी.अतः यही सृष्टि की आदि स्वरूपा शक्ति है.
इनका निवास सूर्य मण्डल के भीतर के लोक में है सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्ही में है,इनके शरीर की कान्ति और प्रभा भी सूर्य के समान ही देदीप्यमान और भास्वर है,इनके तेज की तुलना इन्ही से की जा सकती है.
इनकी आठ भुजायें है,अतः यह अष्टभुजी देवी के नाम से भी विख्यात है,इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डलु,धनुष,बाण,कमल-पूष्प,अमृत पूर्ण कलश,चक्र,तथा गदा है आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है,इनका वाहन सिंह है,बलियों में इन्हें कुम्हड़े की बलि सर्वाधिक प्रिय है इसलिये भी इन्हें कूष्माण्डा कहा जाता है.
नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरुप की पूजा की जाती है,इस दिन साधक का मन 'अनाहत चक्र' में अवस्थित होता है,इनकी भक्ति से आयु,यश,बल,और आरोग्य की वृद्धि होकर समस्त रोग-शोक विनष्ट हो जाते है,यदि मनुष्य सच्चे ह्रदय से माँ के शरणागत हो जाये तो उसे अत्यन्त सुगमता से परमपद की प्राप्ति हो जाती है,अतः लौकिक,पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिये.
दोहा
अम्बे पद चित लाय करि विनय करहुँ कर जोरि,
बरनऊ तव मै विशद यश करहु विमल मति मोरि.
दीन हीन मुझ अधम को आप उबारो आय,
तुम मेरी मनकामना पूर्ण करो सरसाय.
चौपाई
जय जय जय कुड़हा महरानी, त्रिविध ताप नाशक तिमुहानी. १.
आदि शक्ति अम्बिके भवानी, तुम्हरी महिमा अकथ कहानी .२.
रवि सम तेज तपै चहुँ ओरा, करहु कृपा जनि होंहि निहोरा .३.
धवल धाम मंह वास तुम्हारो, सब मंह सुन्दर लागत न्यारो .४.
तिनकै रचना बरनि न जाई, सुन्दरता लखि मन ठग जाई.५.
सोहत इहां चारि दरवाजा, विविध भॉंति चित्रित छवि छाजा.६.
चवँर घंट बहु भॉंति विराजहिं, मठ पर ध्वजा अलौकिक लागहिं.७.
शीश मुकुट अरु कानन कुण्डल, अरुण बदन से प्रगटै तव बल.८.
रूप अठ्भुजी अद्भुत सोहे, होय सुखी जो मन से जोहै.९.
तन पर शुभ्र वसन हैं राजत, कर कंकन पद नूपुर छाजत.१०.
विविध भॉंति मन्दिर चहुँ ओरा, चूमत गगन हवै सब ओरा.११.
शंकर महावीर को वासा, औरहु सुर सुख पावहिं पासा.१२.
सरवर सुन्दर जहाँ सुहाई, तेहि कै महिमा बरनि न जाई.१३.
घाट मनोहर सुन्दर सोहैं, पडत दृष्टि तुरतै मन मोहैं.१४.
नीर मोति अस निर्मल तासू , अमृत आनि कपूर सुवासू .१५.
पीपल नीम आछि अमराई, औरहु तरुवर इहां सुहाई .१६.
बहु भांतिन ध्यावैं नर नारी, मन वांछित फल पावहिं चारी.१७.
तुम्हरो ध्यान करहिं जे प्रानी, होहिं मुक्त रहि जाइ कहानी.१८.
जोगी जती ध्यान जो लावें, तुरतै सिद्ध पुरुष होई जावै.१९.
नेत्र हीन तव आवहिं पासा, पूजा करहिं होइ तम नासा.२०.
दिव्य दृष्टि तिनकै होइ जाई, होहिं सुखी जब होउ सहाई.२१.
पुत्रहीन कहुं ध्यान लगावै, तुरतै पुत्रवान होइ जावै.२२.
रंक आइ सब नावहिं माथा, पावहिं धन अरु होंहिं सनाथा.२३.
नाम लेत दुःख दरिद नसाहीं, अक्षत से अरिगन हटी जाहीं.२४.
नित प्रति आइ करहिं जो दर्शन, मनवांछित फल पावै सो जन.२५.
जो सरवर मंह मज्जन करहीं, कलुष नसाइ जात हैं सबहीं.२६.
जो जन मन से ध्यावहिं तुमही, सब विपत्ति से छूटहिं तबहीं.२७.
सोम शुक्र दिन आवहिं प्रानी, पूजा करहिं प्रेम रस सानी.२८.
कार्तिक माह पूर्णिमा आवत, तेहि दिन मेला सुन्दर लागत.२९.
लेत नाम भव भय मिटि जाई, भूत प्रेत सब भजै पराई.३०.
पूजा जो जन मन से करहीं, होहिं सुखी मुद मंगल भरहीं.३१.
दूर दूर से आवहिं प्रानी, करहिं सुदर्शन मन सुख मानी.३२.
तुम्हरी कीर्ति रही जग छाई, तेहिते सब जन आवत भाई.३३.
दरश परश कर मन हरषाहीं, जग दुर्लभ तिनकहु कछु नाहीं.३४.
जो ध्यावें पद मातु तुम्हारे, भव बन्धन मिटि जाइ सकारे.३५.
बालक प्रमुदित करहिं जो ध्याना, आइ करहिं बहु विनती नाना.३६.
तिन कहँ अवसि सफलता देहू, बुद्धि बढ़ाइ सुखी करि देहू.३७.
आवहिं नर अरु नावहिं शीशा, होहिं सुखी पावहिं आशीषा.३८.
जो यह पाठ करै मन लाई, अम्बे ता कहूँ होहिं सहाई.३९.
'सन्त' सदा चरनन तव दासा, आय करहु मम ह्रदय निवासा.४०.
दोहा
मातु तुम्हारी भक्ति से सुख उपजै मन माहि.
करहु कृपा हम दीन पर आयहु चरनन माहि..
मंगलमय तुम मातु हो सदा करहु कल्यान.
गावहिं सुनहिं जे प्रेम से पावहिं सुन्दर ज्ञान..
जग के जंजाल माहि जकड़े हुये को मातु,
आप ही छुडाय कर दुःख दूर करती हो .
संतन की रक्षा हित धरती हो रौद्र रूप,
दुष्टों का विनाश कर शान्ति बसा देती हो.
सिंह पै सवार हो कंपाती दल असुरन के,
भक्तों के ह्रदयों में मोद सुधा भरती हो.
करती हो सभी का कुशल मातु जगदम्बा तुम,
नाम की महिमा मातु कुशला बता देती हो ..१..
असहायों अनाथों का सहारा हो मातु तुम,
गिरे हुये जनमन को तुम ऊपर उठा देती हो.
करती हो पूर्ण तुम मनोरथ सभी के मातु,
जीवन की कटुता में मृदुता भर देती हो .
आता जो भी है शरण तुम्हारी माँ,
उसको निज गोद में तुरत उठा लेती हो.
देती हो मनः शान्ति दुःख से उबार कर,
उसके फिर मन में आनन्द बसा देती हो..२..
तुमने ही बड़े-बड़े दुष्टों को संहारा मातु,
किसने नहीं जानी तुम्हारी यह महिमा है.
गूँज रही त्रिभुवन में तुम्हारी गुण गाथा एक,
उसके समान 'सन्त' किसकी और महिमा है.
तुम नहीं होती यदि मातु जगदम्बा तो,
शव समान शिव की न होती यह महिमा है.
जग की हो आदि अन्त मातु कूष्माण्डा जी,
पाता न कोई नर तुम्हारी शक्ति सीमा है..३..
तुम हो निष्शीम और अक्षय जगदम्बिके,
पुत्र वत्सलता की रखती एक सानी हो.
आँख भी उठाता यदि कोई दुष्ट नीच व्यक्ति,
एक ही बार में बनाती काल की कहानी हो.
देखा सुना हमने भी अरियों को जलते हुए,
कोई न बचा जिसने तुमसे रांर ठानी हो.
करती हो चूर्ण अभिमान अहंकारी का,
पाखण्डी के पाप की मिटाती निशानी हो..४..
मधु और कैटभ का किया है मान-मर्दन भी,
महिषासुर की कुमहिमा की मिटाई निशानी है.
सेनापति धूम्रलोचन का किया है अन्त आपने ही,
चन्ड-मुन्ड के जीवन की अन्त की कहानी है.
रक्त-बीज वंशजों को किया है काल-कवलित,
शुम्भ और निशुम्भ बध माँ की मनमानी है.
माँ का बल विक्रम-पराक्रम देख देवों नें,
बार-बार वाणी से माँ की महिमा बखानी है..५..
शिव शतनाम
जय महादेव शिव शंकर शम्भो उमाकान्त त्रिपुरारी,
चंद्रमौलि गंगाधर सोमेश्वर भूतनाथ कामारी ..१..
हर-हर शूलपाणि गिरिजापति बाघाम्बर धारी,
पंचानन कालेश्वर नागेश्वर आशुतोष प्रलयंकारी..२..
तीननेत्र भुजगेन्द्र्हार कर्पूरगौर करुणावतार,
केदारनाथ देवाधिदेव गिरिईश रूद्र संसार सार..३..
घुष्मेश जटाधर विश्वरूप श्री विरूपाक्ष श्री शिवाधार,
सर्वशक्ति श्मशानवास पशुपति भोला तन लसित छार..४..
नीलकंठ वृषकेतु महेश्वर विश्वनाथ अवढर दानी,
कैलाशनाथ डमरूधर गौरी पति गुणातीत गुणखानी..५..
वेधषे दिगम्बर वेदगीत गोपत कपोत मंगलदानी,
लिंगरूप परमार्थरूप अव्यय त्रिदेव सर्वज्ञानी ..६..
लालाबन्ध सरूप सिंह अज्ञात ज्ञात विज्ञानी,
लोहित नील व्याघ्र गर्वकित श्री सुरेश परमात्म बखानी..७..
भीमशंकर मल्लिकार्जुन हे कपर्दिन मुण्डमाली,
सिद्धिदा परमेष्टिने हे महीधर मरीचिमाली..८..
हे व्यालप्रिय मृत्युंजयी हे दीर्घरूप हे दीर्घनाम,
हे बुद्धिनाथ हे जगत्पिता हे व्योमकेश करते प्रणाम..९..
रंगदेव रामेश्वर जागेश्वर हे अजगव धारी,
त्र्यम्बक प्रभाव हे अर्थरूप श्री महेश प्रतिवास बिहारी..१०..
हे चन्द्रचूड शशि-शेखर नन्दीश्वर अवलेश्वर ललाम,
हे तपोरूप दुर्गा दुर्गेश्वर करते चरणों में शत-शत प्रणाम..११..
शान्ति पाठ
जै जै अम्बे जय जगदम्बे जय कुशले कल्याण करो,
जय कूष्माण्डा जय कल्याणी सदबुद्धि का दान करो.
उग्रवाद आतंकवाद का माँ समूल तुम नाश करो ,
पुत्र पुकारें जय जगदम्बे जग का माँ उत्थान करो.
नैतिकता का पाठ पढ़ाकर माँ चरित्र निर्माण करो,
साहस शील शिष्टता संयम से मानव का उत्थान करो.
दैहिकादि त्रिविध तापों से माँ जग का तुम उद्धार करो,
शान्ति-शान्ति माँ शान्त रूप से जग को शान्ति प्रदान करो..
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