ग्रहशांति एक विलक्षण प्रयोग
हमारे शास्त्रों में यद्यपि ग्रह शान्ति के अनेकों उपाय बताये गये हैं।जिनमे मुख्य रूप से जप-तप-दान-यन्त्र-स्नान-रत्न-रुद्राक्ष-वनस्पतियों आदि को धारण कराया जाता है।
-जप और तप दोनों ही काफी कठिन और खर्चीले उपाय हैं ग्रहों की विशेष स्थिति पर ही इनका उपयोग होता है।
-दान और टोटके अधिकतर ग्रहों के गोचर के लिए किए जाते हैं।
-रत्न-रुद्राक्ष ग्रहों को बल प्रदान कर उन्हें अनुकूल बनाते हैं।
-ग्रहों से संबंधित औषधियों का प्रयोग जल में डालकर स्नान करने का विधान है।यह भी गोचर को प्रभावित करता है।
-रत्न और रुद्राक्ष की तरह ग्रहों की कुछ वनस्पति हम धारण कर सकते हैं जिनका काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है लेकिन इनकी आयु कम होती है और इन्हें बदलना पड़ता है।
-किसी विशेष समय में ग्रहयन्त्र का निर्माण कर उसका नित्यपूजन करना भी ग्रह सम्बन्धी शुभता को देनेवाला है।किन्तु बदलते परिवेश/दिनचर्या में सबके लिए ऐसा कर पाना सम्भव नहीं होता है।
अतः आज हम आपके लिए ग्रहों की शान्ति के लिए और उनकी अनुकूलता प्राप्ति के लिए अत्यन्त साधारण और विलक्षण प्रयोग लेकर आए हैं-
यद्यपि इसमें मेरा कुछ भी नही है शास्त्र और गुरुजनों की कृपा से प्राप्त यह प्रयोग करके न केवल आप अपने ग्रहों को अनुकूल कर पाएंगे बल्कि उनकी शुभता/कृपा भी प्राप्त कर सकेंगे।
यह अत्यंत दुर्लभ प्रयोग है जिसका उपयोग हम एक यन्त्र के माध्यम से करते हैं।
सबसे पहले हमें यह ज्ञात करना होगा कि जन्मपत्रिका में किस ग्रह को अनुकूल बनाना है।
दूसरे तीसरे सातवें आठवें भाव के स्वामी ग्रह मारक क्षमता से युक्त होते हैं।इसी प्रकार छठे, ग्यारहवें, और बारहवें भाव के स्वामी भी अशुभ फल देने वाले माने जाते हैं।अतः इन्ही भावेशों को अनुकूल/शान्त करने की आवश्यकता होती है।
किन्तु हम इस यन्त्र का प्रयोग सभी नव ग्रहों के लिए कर सकते हैं चाहे वह शुभ फल देने वाले हैं या अशुभ फल देने वाले।
इस प्रयोग से शुभ फल देने वाले ग्रहों की शुभता में वृद्धि होती है और अशुभ फल देने वाले ग्रहों की अशुभता कम होकर वह हमारे लिए अनुकूलता प्रदान करते हैं।
नवग्रह शान्ति यन्त्र
नवग्रह शान्ति यन्त्र का प्रयोग कैसे करें?
रवि के प्रतिकूल होने पर एक से
सोम/चन्द्रमा के प्रतिकूल होने पर दो से
मंगल के प्रतिकूल होने पर तीन से
बुध के प्रतिकूल होने पर चार से
बृहस्पति के प्रतिकूल होने पर पांच से
शुक्र के प्रतिकूल होने पर छह से
शनि के प्रतिकूल होने पर सात से
राहु के प्रतिकूल होने पर आठ से और
केतु के प्रतिकूल होने पर नव से
आरम्भ करके क्रमानुसार यन्त्र को लिखना चाहिए।
'ह्रीं आदित्याय नमः'- इसी प्रकार सबके साथ "ह्रींकार" को लिखना चाहिए।
पीपल के पत्ते पर या भोजपत्र पर लिखकर यन्त्र को पीपल की जड़ में रख देना चाहिए। इस प्रकार 28 दिन तक करने से सभी ग्रह शान्त/प्रसन्न हो जाते हैं और पीड़ा नहीं देते हैं।
यन्त्र क्रम
816 357 492
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