Sunday, December 15, 2013

गायत्री संग्रह gaayatree sangrah

गायत्री संग्रह gaayatree sangrah


ब्रह्म गायत्री-   ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।

रूद्र गायत्री-   ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।।

गुरु गायत्री - ॐ परब्रह्मणे विद्महे गुरुदेवाय धीमहि 
                    तन्नो गुरु: प्रचोदयात्।
**************************************

नवग्रह गायत्री----

सूर्य गायत्री- ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः                       सूर्यः प्रचोदयात्।
चन्द्र गायत्री - ॐ अत्रिपुत्राय विद्महे सागरोद्भवाय धीमहि                            तन्नश्चन्द्र: प्रचोदयात्।
भौम गायत्री - ॐ क्षितिपुत्राय  विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि                           तन्नो भौमः प्रचोदयात्।
बुध गायत्री - ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणीप्रियाय धीमहि
                    तन्नो बुधः प्रचोदयात्।
गुरु गायत्री - ॐ अङ्गिरोजाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि
                   तन्नो गुरु: प्रचोदयात्।
शुक्र गायत्री - ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि
                    तन्नो कविः प्रचोदयात्।
शनि गायत्री - ॐ कृष्णाङ्गाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्नो                       सौरिः प्रचोदयात्।
राहु गायत्री- ॐ  नीलवर्णाय विद्महे सैहिकेयाय धीमहि
                     तन्नो राहु: प्रचोदयात्।
केतु गायत्री - ॐ अत्रवाय विद्महे कपोतवाहनाय धीमहि
                    तन्नो केतु: प्रचोदयात्।
नोट- इन गायत्री का प्रयोग हम ग्रहों की आराधना हेतु करते हैं।
**************************************
ग्रह गायत्री -
सूर्य- ॐ आदित्याय विद्महे प्रभाकराय धीमहि तन्नः सूर्य:
          प्रचोदयात्।
चन्द्रमा- ॐ अमृताङ्गाय विद्महे कलारुपाय धीमहि तन्नश्चन्द्र:
           प्रचोदयात्।
मंगल- ॐ अङ्गारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः             प्रचोदयात्।
बुध- ॐ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नो सौम्यः                प्रचोदयात्।
गुरु-  ॐ आङ्गिरसाय विद्महे दण्डायुधाय धीमहि तन्नो जीवः            प्रचोदयात्।
शुक्र-  ॐ भृगु सुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नः शुक्रः                  प्रचोदयात् ।
शनि-  ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नो सौरिः
           प्रचोदयात्।
राहु-  ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु:
           प्रचोदयात्।
केतु-  ॐ गदाहस्ताय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु:
          प्रचोदयात्।
नोट- इन गायत्री का प्रयोग हम ग्रहों की शांति के लिए करते हैं।
**************************************
पञ्च तत्व गायत्री -

अग्नि गायत्री - ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निमग्नाय धीमहि
                      तन्न: अग्निः प्रचोदयात्।
पृथ्वी गायत्री - ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्त्रमूर्तये धीमहि
                      तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।
वायु गायत्री - ॐ पवनपुरुषाय विद्महे सहस्त्रमूर्तये धीमहि
                   तन्नो वायु: प्रचोदयात्।
जल गायत्री - ॐ जलबिम्वाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि
                   तन्नो अम्बु: प्रचोदयात्।
आकाश गायत्री - ॐ आकाशाय विद्महे नभोदेवाय धीमहि
                       तन्नो खं हि प्रचोदयात्।
**********************************
महामृत्युञ्जय गायत्री मंत्र

ॐ जूं सः परमहंसाय विद्महे सो हंसः मृत्युञ्जयाय धीमहि जूं ॐ ॐ तन्न: अमृतेश्वर: प्रचोदयात्।।
*********************************
दश दिक्पाल गायत्री मन्त्र

इन्द्र-(प्राच्ये दिशे) ॐ सुराधिपाय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात्।।

अग्नि-(आग्नेयै दिशे) ॐ जातवेदाय विद्महे सप्तहस्ताय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात्।।

यम-(दक्षिणायै दिशे) ॐ पितृराजाय विद्महे दण्डहस्ताय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात्।।

निऋति-(नैऋत्ये दिशे) ॐ रक्षोधिपाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो निऋति:प्रचोदयात्।।

वरुण-(प्रतिच्यै दिशे) ॐ जलाधिपाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नो वरुणः प्रचोदयात्।।

वायु-(वायव्यै दिशे) ॐ प्रणाधिपाय विद्महे महाबलाय धीमहि तन्नो वायुः प्रचोदयात्।।

सोम-(उदीच्यै दिशे) ॐ नक्षत्रेशाय विद्महे अमृतंगाय धीमहि तन्न:सोमः प्रचोदयात्।।

रुद्र-(ईशान्यै दिशे) ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।

ब्रह्म-(उर्ध्वायै दिशे) ॐ लोकाधिपाय विद्महे चतुर्वक्त्राय धीमहि तन्नो ब्रह्म:प्रचोदयात्।।

नाग-(अधरायै दिशे) ॐ नागराजाय विद्महे सहस्राक्षाय धीमहि तन्नो नगः प्रचोदयात्।।
**********************************

गणेश गायत्री - ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि
                     तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
लक्ष्मी गायत्री - ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि
                    तन्नो लक्ष्मिः प्रचोदयात्।
विष्णु गायत्री - ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि
                    तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।
नारायण गायत्री - ॐ नारायणाय विद्महे शेषशायिने धीमहि
                       तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।
त्रैलोक्य मोहन गायत्री - ॐ त्रैलोक्य मोहनाय विद्महे                                 आत्मारामाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।
काम गायत्री - ॐ मन्मथाय विद्महे कामदेवाय धीमहि
                   तन्नो अनंग: प्रचोदयात्।
हंस गायत्री - ॐ परम हंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि
                   तन्नो हंसः प्रचोदयात्।
त्वरिता गायत्री - ॐ त्वरिता देव्यै च विद्महे महानित्यायै                                धीमहि तन्नो देविः प्रचोदयात्।
सरस्वती गायत्री - ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि
                         तन्नो देविः प्रचोदयात्।
राम गायत्री - ॐ दाशरथाय विद्महे सीता वल्लभाय धीमहि
                     तन्नो राम: प्रचोदयात्।
सीता गायत्री- ॐ जनक नंदिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि तन्न:                      सीता प्रचोदयात्।
लक्ष्मण गायत्री - ॐ  दशरथाय विद्महे उर्मिलेशाय धीमहि
                         तन्नो लक्ष्मण:प्रचोदयात्।
हयग्रीव गायत्री- ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि                               तन्नो हयग्रीवः प्रचोदयात्।
कृष्ण गायत्री - ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि
                    तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्।
राधा गायत्री- ॐ बृषभानुजायै विद्महे कृष्ण प्रियायै धीमहि                          तन्नो राधा प्रचोदयात्।
नृसिंह गायत्री - ॐ नृसिंहाय विद्महे वज्रदंताय धीमहि
                     तन्नो नृसिंह:प्रचोदयात्।
हनुमत् गायत्री - ॐ अंजनीजाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि
                  तन्नो वीरः(हनुमत् ) प्रचोदयात्।
गरुड़ गायत्री - ॐ तत्पुरुषाय विद्महे स्वर्णपक्षाय धीमहि
                     तन्नो गरुड़:प्रचोदयात्।
परशुराम गायत्री - ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि
                   तन्नो विप्रः प्रचोदयात्।
तुलसी गायत्री - ॐ तुलसीपत्रायै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि
                   तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।
गंगा गायत्री - ॐ भागीरथ्यै च विद्महे विष्णुपद्दयै च धीमहि
                  तन्नो गंगा प्रचोदयात्।
पितृदोष गायत्री- ॐ पितृगणाय विद्महे जगत्धारिणाये धीमहि                      तन्नो पितरः प्रचोदयात्।
कालसर्प (सर्प) गायत्री- 'ॐ नव कुलाय विद्महे विषदन्ताय                                धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात्॥
***********************************
 सञ्जीवनी महामृत्युञ्जय मन्त्र  - 

ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं त्रयम्बकं यजामहे  भर्गोदेवस्य धीमहि सुगन्धिम्पुस्टिवर्धनम् धियो   यो नः प्रचोदयात् उर्व्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
*******************
सामग्री-एक गरी का गोला
           फूलवाली लौंग
            कपूर
            गुग्गुल
            लोबान
           चन्दन पाउडर
            गुड़
तैयारी-गरी के गोले को खड़ा काटे  फिर उसमे कपूर डाले फिर थोड़ा गुग्गुल लोबान चन्दन पाउडर और गुड़ डाले ऊपर से फिर कपूर डाले और उसके ऊपर एक जोड़ा लौंग रखे।
यह हमारा हवनकुण्ड तैयार है।

प्रार्थना -किसी भी काल में जाने अनजाने हमसे या हमारे पूर्वजों से जो भी गलती हुई हो उसे क्षमा करो हमें और हमारे परिवार को स्वस्थ करो हमारी आर्थिक स्थिति सही करो हमें ऋण मुक्त करो(इसके बाद अपनी मनोकामना कह सकते है)|
तत्पश्चात अग्नि प्रज्वलित करके तत्वानुसार गायत्री का पाठ करते हुए एक-एक लौंग से आहुति दे।सबसे बाद में सञ्जीवनी का हवन करे।
नोट-यह हवन किसी भी स्थिति मे सूर्योदय से पहले या सूर्योदय के बाद होगा।
अपने को ऊर्जावान बनाये रखने और जीवन की विभिन्न समस्याओं के निवारण हेतु हम इसका अलग-अलग प्रकार से  प्रयोग कर सकते है।
दीपावली- पांच दियाली रखे।और पांचो में कपूर और एक-एक जोड़ा फूलवाली लौंग रखें।
पहली दियाली का कपूर जलाकर हनुमान गायत्री का पाठ करे।।कम से कम ग्यारह बार।।
इसी तरह दूसरी दियाली  मे गणेश गायत्री तीसरी दियाली मे लक्ष्मी गायत्री चौथी मे कुबेर गायत्री और पांचवी मे सञ्जीवनी का पाठ करे।
यदि चाहे तो पहले नवग्रह गायत्री का हवन कर  ले।
दियाली परिवार का हर व्यक्ति अलग-अलग या मिलकर भी जला सकते है।
सरस्वती पूजन -नवग्रह गायत्री सरस्वती गायत्री सञ्जीवनी का प्रयोग करें।

नवरात्रि-नवग्रह गायत्री सञ्जीवनी दुर्गा गायत्री राम गायत्री।
शिवरात्रि-नवग्रह सञ्जीवनी और शिव गायत्री।
जन्माष्टमी-नवग्रह सञ्जीवनी कृष्ण और विष्णु गायत्री।
पितृदोष और कालसर्प दोष-(इसमे पांच लोग चाहिए)
नवग्रह सञ्जीवनी फिर पितृदोष या कालसर्प गायत्री से हवन करे।
शादी मे बिलम्ब या शादी न होने पर- नवग्रह सञ्जीवनी और विष्णु गायत्री।
विवाह -वर और कन्या दोनों मे किसी एक के मंगली होने पर या दोनों की कुंडली में कोई दोष होने पर-
विवाह पूर्व दोनों के हाथ मे कलावा पकड़ाकर नवग्रह गायत्री संजीवनी और विष्णु गायत्री का एक-एक माला से हवन करे।
पति-पत्नी मे सामंजस्य और प्रेम बढ़ाने हेतु-नवग्रह गायत्री सञ्जीवनी और काम गायत्री।
मनपसन्द जीवन साथी हेतु-नवग्रह सञ्जीवनी और तत्सम्बन्धित गायत्री।
संतानप्राप्ति हेतु-नवग्रह सञ्जीवनी और उससे सम्बंधित गायत्री।
किसी भी बीमारी के निवारण हेतु- नवग्रह सञ्जीवनी की एक-एक मालाऔर उस ग्रह (जिससे रोग का सम्बन्ध है)की गायत्री की तीन माला फिर सञ्जीवनी की एक माला रोग ठीक होने तक करें।

विशेष-इस तरह से करने से शीघ्र ही दोष नष्ट हो जाते है मनोकामना पूरी होती है।और पूर्व जन्म के दोष मिटते है।यह अनुभूत है।
******************
ग्रह और सम्बंधित रोग

सूर्य-कमजोर दृष्टि,ह्रदय रोग,विषाक्तता,हड्डी टूटना,मानसिक परेशानी,सिरदर्द,माइग्रेन,बुखार,जलना,कटना,चोट,सुजाक,पीलिया,पित्त पृकृति,क्षय,अतिसार।

चन्द्रमा-टी बी,गले से सम्बंधित समस्यायें,खून की कमी,मधुमेह,मासिक अनियमितता,बेचैनी,सुस्ती,सूजन,गर्भाशय सम्बंधित रोग,कफ,ड्रॉप्सी,फेफड़े की सूजन,गुर्दा,रक्त अशुद्धता,उदार शूल,त्वचा रोग,खसरा,पेचिस,नजला,जुकाम,अस्थमा,बुखार,पीलिया,पथरी,दस्त,पाण्डुरोग,जलोत्पन्न रोग,स्त्री सम्बन्ध से होने वाले रोग,।

मंगल- रक्तचाप,फोड़ा,रक्त से सम्बंधित परेशानी,जलन,कटना,चोट,बवासीर,चढ़ी हुई आँखे,गांठ,ट्यूमर,मिर्गी,घाव,।

बुध- मानसिक रोग,टायफायड,मष्तिष्क एवं मुखर अंगों के विकार,गर्दन संबंधी रोग,यकृत,सिर चकराना,हकलाना,अत्यधिक पसीना आना,नपुंसकता,आलसीपन,व्यर्थ अभिमान अकारण कल्पनाओं मे खो जाना,स्मरण शक्ति का ह्रास,गला रुक जाना।

बृहस्पति- पेट की समस्या,गैस की परेशानी,मधुमेह,बदहजमी,आंत उतरना,बेहोशी,सूजन,अंगों का बढ़ना,नाभि से सबंधित रोग,पेट फूलना,रक्तहीनता,पित्ताशय,पीलिया,बदन दर्द,कैंसर,गुल्म,आंतों के विकार,ज्वर,कफ,शोक,मूर्च्छा,कर्ण रोग।

शुक्र- मोतिया बिन्द,जलोदर,चेहरा आँख व गुप्तांगों के रोग,अत्यधिक यौनेच्छा,स्वप्न दोष,गुप्त रोग,मूत्राशय मे पथरी,गुर्दा रोग,प्रजनन सम्बन्धी रोग,मधुमेह,पाण्डु रोग,कफ़रोग,वातरोग,मूत्रावरोध,कामसुख मे बाधक रोग,वीर्यस्राव,सूखारोग।

शनि- मानसिक पतन,वातरोग,लकवा,बहरापन,अंगों की हानि,ग्रंथियों के रोग,चोट के निशान,बेवक्त बुढ़ापा,हड्डी की टी बी,कान के रोग,चौथिया ज्वर,दांत शीत ज्वर,उदासीनता और उष्णता से उत्पन्न ज्वर,कामला,अर्धांगवायु,कम्प,निरर्थक भय,संधिवात।

राहु- त्वचारोग,कृत्रिम जहर,प्लीहा,पैरों के रोग,अल्सर,नासूर,शरीर मे जलन,ऐसे रोग जिनका निदान कठिन हो,दुर्बलता,पागलपन,पिशाच बाधा,एलर्जी,कालरा।

केतु- शरीर मे सनसनाहट,आत्म घाती प्रवृत्ति,लाइलाज बीमारी,अनजाने कारणों से होने वाले रोग,त्वचा की बीमारी,भगन्दर।
************************************
दीपावली पर्व का विशेष पूजन

दीपावली में माता महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए एक चमत्कारी उपाय

दीपावली पर्व पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तथा अपने को ऊर्जावान बनाये रखने और जीवन की विभिन्न समस्याओं के निवारण हेतु हम इस विधि का  प्रयोग कर सकते है।

दीपावली में मुख्य रूप से गणेश और लक्ष्मी जी का पूजन होता है।साथ ही हनुमान और कुबेरादि का पूजन किया जाता है।अन्त में संजीवनी का पाठ किया जाता है।

● हनुमान जी असीमित शक्तियों के स्वामी होते हुए भी हमेशा सेवक धर्म का पालन करते रहे इनका पूजन करने से हमारे अन्दर अहंकार की भावना नही आती है,और हम सफलता की नित नई सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं।

● गणेश जी इनके उदर में सब समाहित हो जाता है,और इनका वाहन चूहा छोटी से छोटी जगह में चला जाता है।अर्थात् व्यापारी को हमेशा बड़े पेट वाला होना चाहिए, ताकि वो सबकी सुन सके और ग्राहक उससे संतुष्ट हो।
और छोटी जगहों से भी वो व्यापारिक लाभ ले सकें।

● लक्ष्मी जी अर्थात् लक्ष्य में लगा हो मन जिसका उसी के पास ये आती हैं।

● कुबेर अर्थात् स्थायित्व।लक्ष्मी किसी के पास रुकती नही हैं, उन्हें स्थिर रखने के लिए कुबेर जी की शरण मे जाना पड़ता है।

● और अन्त में संजीवनी अर्थात् स्वास्थ्य की रक्षा तभी हम जीवन के सारे सुखों का रसास्वादन कर पाएंगे।

दीपावली पूजन की विशेष विधि
सबसे पहले नवग्रह गायत्री का पाठ कर  ले।

दीपावली पूजन(विशेष विधि):- पांच दियाली रखे।और पांचो में कपूर का एक टुकड़ा और एक-एक जोड़ा फूलवाली लौंग रखें।

● पहली दियाली का कपूर जलाकर हनुमान गायत्री का पाठ करे।।कम से कम ग्यारह या एक सौ आठ बार।।

● इसी तरह दूसरी दियाली का कपूर जलाकर गणेश गायत्री ग्यारह या एक सौ आठ बार पढ़ें।।

● तीसरी दियाली का कपूर जलाकर लक्ष्मी गायत्री का एक सौ आठ बार पाठ करें।

● चौथी दियाली का कपूर जलाकर कुबेर गायत्री का एक सौ आठ बार पाठ करें।।

●  और पांचवी  दियाली का कपूर जलाकर सञ्जीवनी  महामृत्युंजयका कम से कम ग्यारह बार पाठ करे।

दियाली परिवार का हर व्यक्ति अलग-अलग या मिलकर भी जला सकते है।

नोट:- लौंग देवी देवताओं का भोजन है, और कपूर हमारे घर के वास्तु संबंधित सभी दोषों को नष्ट कर देता है।

Related topics-

पञ्च तत्व गायत्री मंत्र यूट्यूब पर देखें

Wednesday, December 11, 2013

प्रेम व् अंतरजातीय विवाह Love and inter caste marriages


भारतीय समाज मे विवाह सोलह संस्कारों में  एक संस्कार के  रूप मे माना जाता हैं जिसमे शामिल होकर स्त्री पुरुष मर्यादापूर्ण तरीके
से अपनी काम इच्छाओ की पूर्ति कर अपनी संतति को जन्म
देते हैं समान्यत: विवाह का यह
संस्कार
परिवारजनों की सहमति या इच्छा से
अपनी जाति,समाज या समूह मे
ही किया जाता हैं पर फिर भी हमे ऐसे
कई उदाहरण मिलते हैं जहां विवाह
परिवार की सहमति से ना होकर स्वय
की इच्छा से किया जाता हैं ।
पूर्वसमय मे प्रेम संबंध या यौन आकर्षण
विवाह के बाद ही होता था परंतु
आज के इस भागते दौड़ते कलयुग मे
विवाह के पूर्व स्त्री पुरुष के बीच
प्रगाढ़ परिचय व आकर्षण हो जाने
पर उनमे प्रेम संबंध हो जाते हैं।
 स्त्री पुरुष रागाधिक्य के
फलस्वरूप स्वेच्छा से परस्पर संभोग
करते हैं जिसे (शास्त्रो मे) गंधर्व
विवाह कहा जाता हैं । इस संबंध मे
स्त्री पुरुष के अतिरिक्त
किसी की भी स्वीकृति ज़रूरी नहीं समझी
जाती हैं।
प्रेम विवाह या गंधर्व विवाह के कई
कारण हो सकते हैं परंतु यहाँ हम केवल
ज्योतिषीय द्रष्टि से यह जानने
का प्रयास करेंगे की ऐसे कौन से ग्रह
या भाव होते हैं जो किसी को भी प्रेम
या गंधर्व विवाह करने पर मजबूर कर
देते हैं । इस प्रयास मे हमने कुछ
जातको की कुंडलियों का अध्ययन
किया जिन्होने प्रेम विवाह
किया था हमने यह पाया की लगभग
85% प्रेमविवाह
अपनी जाति या समाज से बाहर
अर्थात अंतरजातीय होते हैं ।

भाव –
लग्न,द्वितीय,पंचम,सप्तम,नवम व
द्वादश

ग्रह – मंगल,गुरु व शुक्र

लग्न भाव- यह भाव स्वयं या निज
का प्रतिनिधित्व करता हैं
जो व्यक्ति विशेष के शरीर व
व्यक्तित्व के विषय मे सम्पूर्ण
जानकारी देता हैं ।

द्वितीय भाव- यह भाव कुटुंब,खानदान
व अपने परिवार के विषय मे बताता हैं
जिससे हम बाहरी सदस्य का अपने
परिवार से जुड़ना भी देखते हैं ।

पंचम भाव- यह भाव हमारी बुद्धि,सोच
व पसंद को बताता हैं जिससे हम अपने
लिए किसी वस्तु या व्यक्ति का चयन
करते हैं ।

सप्तम भाव – यह भाव हमारे विपरीत
लिंगी साथी का होता हैं जिसे भारत मे
हम पत्नी भाव भी कहते हैं इस भाव से
स्त्री सुख देखा जाता हैं ।

नवम भाव- यह भाव परंपरा व
धार्मिकता से जुड़ा होने से धर्म के
विरुद्ध किए जाने वाले कार्य
को दर्शाता हैं ।

द्वादश भाव- यह भाव शयन सुख
का भाव हैं ।

ग्रह – मंगल यह ग्रह
पराक्रम,साहस,धैर्य व बल
का होता हैं जिसके बिना प्रेम संबंध
बनाना या प्रेम विवाह करना असंभव हैं
क्यूंकी प्रेम की अभिव्यक्ति साहस
बल व धैर्य से ही संभव हैं ।

शुक्र – यह ग्रह आकर्षण,यौन
आचरण,सुंदरता,प्रेम वासना
,भोग,विलास,ऐश्वर्या का प्रतीक हैं
जिनके बिना प्रेम संबंध
हो ही नहीं सकते ।

गुरु – यह ग्रह स्त्रीयों मे पति कारक
होने के साथ साथ पंचम व नवम भाव
का कारक भी होता हैं साथ ही इसे
धर्म व परंपरा के लिए
भी देखा जाता हैं ।

प्रेम विवाह के सूत्र वैसे तो बहुत से
बताए गए हैं परंतु हमने अपने इस शोध
मे जो सूत्र उपयोगी पाये या प्राप्त
किए वह इस प्रकार से हैं ।

१) पंचम भाव , पंचमेश का मंगल, शुक्र
से संबंध ।
२) पंचम भाव , पंचमेश,सप्तम भाव,
सप्तमेश का लग्न, लग्नेश या द्वादश
भाव, द्वादशेश से संबंध ।
३) लग्न,सूर्य,चन्द्र से दूसरे भाव
या द्वितीयेश का मंगल से संबंध ।
४) पंचम भाव, पंचमेश का नवम भाव,
नवमेश से संबंध ।
५) पंचम भाव , पंचमेश,सप्तम भाव,
सप्तमेश,नवम भाव, नवमेश का संबंध ।
६) एकादशेश का, एकादश भाव मे
स्थित ग्रह का पंचम भाव, सप्तम भाव
से संबंध और शुक्र ग्रह का लग्न
या एकादश भाव मे होना ।
७) पंचम-सप्तम का संबंध ।
८) मंगल-शुक्र
की युति या दृस्टी संबंध किसी भी भाव
मे होना ।
९) पंचमेश-नवमेश
की युति किसी भी भाव मे होना ।
अंतरजातीय विवाह मे इन सूत्रो के
अलावा यह चार सूत्र भी सटीकता से
उपयुक्त पाये गए ।
१) लग्न, सप्तम व नवम भाव पर
शनि का प्रभाव ।
२) विवाह कारक शुक्र व गुरु पर
शनि का प्रभाव ।

३) लग्नेश, सप्तमेश का छठे भाव , 

षष्ठेश से संबंध-अंतरजातीय विवाह मे
शत्रुता या विवाद का होना आवशयक
होता हैं जिस कारण छठे भाव का संबंध
लग्नेश या सप्तमेश से होना ज़रूरी हो
जाता हैं ।
४) द्वितीय भाव मे पाप ग्रह ।

कपड़े और आपका व्यक्तित्व Clothes and your personality


कपड़े ना सिर्फ शरीर ढकने के काम
आते है बल्कि हमारे
व्यक्तित्व,व्यवसाय,स्तर के साथ
साथ हमारे
चरित्र,व्यवहार,आत्मविश्वास
को भी दर्शाने के काम आते हैं
किसी भी व्यक्ति को उसके कपड़े
पहनने के तरीके से,कपड़ो के रंग
से,कपड़ो की गुणवत्ता से अर्थात
पहनावे से सरलता से
पहचाना जा सकता हैं
की उसका सामाजिक स्तर उसकी सोच
व व्यवसाय किस प्रकार का है।

ढीले कपड़े–ऐसे वस्त्र पहनना जातक
के शांत,कोमल,सीधे व सरल स्वभाव
को बताता हैं ऐसे लोग धैर्यवान
दूसरों को राह बताने वाले स्वयं
को किसी भी परिस्थिति मे ढालने वाले
होते हैं प्राय; इनके लग्न या चन्द्र
पर गुरु गृह का प्रभाव होता हैं इसलिए
ये चिंतन,मनन,ध्यान व अध्यात्म मे
ज़्यादा रुचि रखते हैं .

तंग कपड़े- ऐसे जातक
चुस्त,फुर्तीले,कुछ कर गुजरने की सोच
वाले,अस्थिर स्वभाव वाले, निडर व
साहसी प्रवर्ती के होते हैं . इनका मन
मस्तिष्क हर वक़्त
किसी ना किसी उधेड़ बुन मे
लगा रहता हैं . इनके लग्न या चन्द्र
पर शनि अथवा राहू ग्रह का प्रभाव
रहता हैं दिखावा व बहसबाजी
करना इन्हे पसंद होता हैं लंबे समय
तक कोई काम करना इन्हे पसंद
नहीं होता स्वयं पर खूब लगाव रखते
हैं तारीफ के भूखे परंतु खर्च के मामले
मे कंजूस होते हैं अपना काम निकलवाने
मे तथा धन कमाने मे ये लोग माहिर
होते हैं कभी कभी हीन भावना के कारण
छोटा रास्ता (शॉर्ट कट)
भी अपना लेते हैं

 े ब्रांडेडकपड़े -पहनने वाले
जातक महत्वकांक्षी,मूडी व बिंदास होते
हैं सदैव ऊपर उठने की कोशिश करते
रहते हैं इनमे आत्मविश्वास
की कमी होती हैं जिसे यह छिपाते रहते
हैं दूसरों के प्रति होड,जलन व
प्रतिद्वंदिता की भावना इनमे
पनपती रहती हैं जिस कारण यह अपने
को आर्थिक रूप से सम्पन्न दर्शाते हैं
छोटी छोटी बातें व मोलभाव
करना इन्हे पसंद नहीं होता अपने से
कमजोर से यह बहस बाजी करते हैं
परंतु साथ वाले या बड़े से यह
ज़्यादा नहीं बोलते या बिलकुल चुप
रहते हैं . इनके लग्न अथवा चन्द्र पर
सूर्य ग्रह का प्रभाव रहता हैं जिस
कारण यह बड़े आत्मसम्मान से
जीना पसंद करते हैं .

हाथ से बने कपड़े -ऐसे वस्त्र पहनने
वाले लोग
हंसमुख,संवेदनशील,भावुक,शांत व
प्रतिभावान होते हैं अपने सभी कार्य
स्वयं करना पसंद करते हैं
इनकी बातों मे दर्शन,धर्म,दया व
अनुभव साफ झलकता हैं ये रचनात्मक
व कला से संबन्धित कार्य करते हैं
पारखी नज़र व दूरदर्शी होते हुये
दूसरों के दूख दर्द को समझते हैं समय
व नियम के पक्के होते हैं प्राय: इनके
लग्न या चन्द्र का संबंध गुरु
या शनि से होता हैं जिसके कारण
इनकी मेहनत,त्याग व प्रेम को लोग
समझ नहीं पाते और
इनको अपना उचित हक़ भी नहीं मिल
पाता हैं परंतु यह किसी से शिकायत
ना करते हुये भी किसी पर आश्रित
रहना पसंद नहीं करते हैं .

कपड़ो का रंग -ज़्यादातर लोग कुछ
विशेष रंग के कपड़ो का प्रयोग कुछ
ज़्यादा करते हैं इससे उनके स्वभाव व
व्यक्तित्व का काफी पता चलता है।

लाल रंग -इस रंग के कपड़े
ज़्यादा पहनने वाले लोग
गुस्सेबाज़,कामुक,उत्साही,ऊर्जावान
तथा प्रबल इच्छाशक्ति वाले होते हैं
जो ठान लेते हैं उसे करके ही दम लेते हैं
सुनते कम व सुनाते ज़्यादा हैं इनमे
धैर्य की कमी होती हैं जिससे इन्हे कई
बार हानी का सामना करना पड़ता हैं
अपनी हरकतों व बातों के द्वारा ये
सदा आकर्षण का केंद्र बनना चाहते हैं
. यह जातक मंगल ग्रह से प्रभावित
होने के कारण ज़्यादातर मेष
अथवा वृश्चिक राशि के हो सकते हैं
 काला रंग- यह रंग त्याग व
रहस्यात्मकता दर्शाता हैं जिस कारण
इनका प्रयोग करने वाले लोग अच्छे
विचारवान व अनुशाशित होते हैं जिन्हे
स्वयं पर पूरा नियंत्रण होता हैं यह
अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाना जानते
हैं इनके जीवन मे आकस्मिक घटनाए
ज़्यादा होती हैं जिस कारण इनके
व्यक्तित्व व कार्य पर

हमेशा प्रश्नचिह्न लगतारहता हैं ।

यह जातक शनि ग्रह से संबन्धित होने
के कारण मकर या कुम्भ राशि के
हो सकते हैं .

सफ़ेद रंग-इस रंग का प्रयोग करने
वाले जातक
शांत,संतुलित,स्पष्टवक्ता,सकारात्मक
व आशावादी दृस्टीकोण रखने वाले होते
हैं खुले विचारो वाले ये लोग एकांत एवं
साधारण जीवनशैली मे रहना व
जीना पसंद करते हैं . यह जातक चन्द्र
ग्रह से प्रभावित होने के कारण कर्क
राशि के हो सकते हैं .

पीला रंग-ऐसे जातक
चुनौती पसंद,प्रेरणा प्रदान करने वाले
व सदा अपने कार्यो मे लगे रहने वाले
होते हैं आध्यात्मिक प्रवृति के लोग
सहजता से जीवन गुजारना पसंद करते
हैं इनकी वाणी मे मिठास,समर्पण व
अपनत्व की भावना अधिक होती हैं . ऐसे लोग गुरु ग्रह से प्रभावित होने के
कारण धनु व मीन राशि के हो सकते हैं
.
नीला रंग -ऐसे लोग आत्मनिर्भर व
गहरे विचार रखने वाले होते
हैं,काल्पनिक व व्यावहारिक
दोनों प्रकार का दृस्टीकोण रखते हैं
शांत एवं ज़रूरत से ज़्यादा श्रम करने
के शौकीन तथा किसी भी बात की तह
तक जाना पसंद करते हैं जिस कारण
इन्हे कई बार
दूसरों की जिम्मेदारिया भी पूरी करनी प
ड़ती हैं . ऐसे जातक शनि व शुक्र
दोनों ग्रहो के प्रभाव मे रहते है .
हरा रंग- यह जातक अपनी वाणी से
किसी को भी अपना बना लेते हैं परंतु
किसी पर जल्दी से
भरोसा नहीं करते,स्वतंत्र जीने के
शौकीन यह लोग किसी के अधीन
ना रहकर घूमने फिरने का बेहद लगाव
रखते हैं हर समस्या का समाधान इनके
पास होता हैं . ऐसे जातक बुध ग्रह से
प्रभावित होने के कारण मिथुन
या कन्या राशि के होते हैं .

भूरा रंग-यह लोग आत्मकेंद्रित,अकेले
जीवन जीने वाले तथा स्वनियंत्रित
होते हैं अच्छे मार्गदर्शक व आलोचक
हो सकते हैं समय का नियोजन ना कर
पाने के कारण हमेशा तनाव मे रहते हैं . इन जातको पर राहू ग्रह का ज़्यादातर
प्रभाव रहता हैं .

गुलाबी रंग- इस रंग को चाहने वाले
जातक स्नेही,उदार व समझदार होते हैं
परंतु इनमे इच्छाशक्ति का अभाव
होता हैं अपनी उम्र के हिसाब से इनमे
बचपना अधिक रहता हैं छोटी सी बात
भी इन्हे परेशान कर देती हैं .यह लोग
सूर्य ग्रह से प्रभावित होने के कारण
सिंह राशि के हो सकते हैं .


पहनने का ढंग एवं बांधने का तरीका-
नाभि से ऊपर कपड़े बांधने वाले लोग
चिंतित,व्याकुल,संजीदा,संस्कार व
परंपरा को मानने वाले होते हैं
मनचाहा प्राप्त ना होने से असहज
महसूस करते हैं वस्तुओ व
लोगों को जल्दी से अपनी पसंद
नहीं बनाते हैं बड़े बुजुर्गो का आदर
करने वाले तथा रूढ़िवादी विचारधारा के
होते हैं .

नाभि के नीचे वस्त्र बांधने वाले लोग
स्वतंत्र विचार रखने
वाले,मस्तमौला,अपनी ही दुनिया मे
रहने वाले,आत्मविश्वासी व निडर
प्रवृति के होते हैं .इन्हे बंधन या रोक
टोक मे रहना बिल्कुल पसंद
नहीं आता,भीड़ से अलग दिखना इन्हे
बहुत पसंद होता हैं दिखावे के साथ
साथ इनमे कामुकता भी कूट कूट कर
भरी होती हैं यह सुनते सबकी हैं पर
करते अपने मन की  हैं .
चमक दमक व भड़कीले कपड़े पहनने
वाले लोग दिखावटी एवं रसिक मिजाज़
के होते हैं पारदर्शी वस्त्र पहनने वाले
निर्भीक,स्वतंत्र तथा मनमौजी होते है ।

प्रैस किए हुये वस्त्र पहनने वाले
बुद्दिमान,सभ्य व सजग
जबकि उधड़े,फटे कपड़े पहने
व्यक्ति लापरवाह व गैर जिम्मेदार
प्रकार के होते हैं ।

 कमीज़ को अंदर
दबाकर पहनने वाले औपचारिक व
सभ्य स्वभाव के तथा कमीज़ बाहर
रखने वाले हंसमुख,रौबीले एवं बिंदास
प्रकार के होते है.
प्लेन कमीज़
या टी शर्ट वाले सीधा,सरल व
चिन्तामुक्त जीवन जीने वाले
जबकि चैक या लाइन कमीज़
या टी शर्ट पहनने वाले लोग
चुनौतियों के शौक़ीन होते हैं इन्हे
परिवर्तन या नवीनता पसंद होती हैं .

महिलाओं के श्रंगार और बिंदी Women's darts and bindi

शास्त्रों में स्त्री के सोलह श्रंगार बताए गये हैं।अंगशुची, मंजन, वसन, माँग, महावर, केश।

तिलक भाल, तिल चिबुक में, भूषण मेंहदी वेश।।

मिस्सी काजल अरगजा, वीरी और सुगंध।

अर्थात् अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, माँग भरना, महावर 

लगाना, बाल सँवारना, तिलक लगाना, ठोढी पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी 

रचाना, दाँतों में मिस्सी, आँखों में काजल लगाना, सुगांधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला 

पहनना, नीला कमल धारण करना।

स्नान के पहले उबटन का बहुत प्रचार था। इसका दूसरा नाम अंगराग है। 

जिनमें से बिंदी लगाना भी एक है।बिंदी का संबंध हमारे मन से जुड़ा हुआ है। जहां बिंदी लगाई जाती है वहीं हमारा आज्ञा चक्र स्थित होता है। यह चक्र हमारे मन को नियंत्रित करता है ।मन को एकाग्र करने के लिए इसी चक्र पर दबाव दिया जाता है ।

महिलाओं का मन अति चंचल होता है। इसी वजह से किसी भी स्त्री का मन बदलने में पलभर का ही समय लगता है। वे एक समय एक साथ कई विषयों पर चिंतन करती रहती हैं। अतः उनके मन को नियंत्रित और स्थिर रखने के लिए यह बिंदी बहुत कारगर उपाय है। इससे उनका मन शांत और एकाग्र बना रहता है।अतः

बिंदी लगाने के तीन खास फायदें होतें है। 

बिंदी लगाने से सौन्दर्यमें वृद्धि होतीहै।विवाहित स्त्री के सुहाग का प्रतीक है।

मन को स्थिर रखने में बहुत ही कारगर उपाय है।

मूलांक और प्रेम अभिव्यक्ति Radix and love expression

जिस तरह मेष आदि लग्नों में जन्म लेने का अपना-अपना फल है। ठीक उसी तरहअंक हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे अपना महत्व रखते हैं ।

यह अंक जन्म तारीख(मूलांक ) के रूप मे हर व्यक्ति के जीवन मे कुछ ना कुछ प्रभाव अवश्य डालतें हैं। यहाँ हमने मूलांक द्वारा प्रेम संबंधो पर प्रकाश डालने का प्रयास किया हैं । 

मूलांक 1 –इस मूलांक के जातक स्थिर मन व स्थिर प्रकृति के कारण पहली नज़र मे प्रेम प्रदर्शित नहीं करते बल्कि पूर्ण संतुष्ट होने पर ही बात आगे बढ़ाते है। यह अटूट प्रेम व जीवन भर प्रेम को निभाने पर यकीन करते हुए शारीरिक सौन्दर्य के मुक़ाबले विचारो को अधिक महत्व प्रदान करते हैं । 

 मूलांक 2 –इस मूलांक के जातक चंचल मन व स्वभाव से कल्पनाशील होने के कारण कई बार एक तरफा प्रेम कर बैठते हैं जिस कारण बदनाम भी हो जाते हैं अत्याधिक भावुकता व त्यागी स्वभाव के चलते प्रेम मे ज़्यादातर असफल होते हैं । 

 मूलांक 3 -इस मूलांक के जातक अनुशाशन व आदर्शवादी प्रकृति के होने के कारण प्रेम अभिव्यक्ति सोच समझकर करते हैं । प्रेम मे स्थायित्व चाहने के कारण अपने प्रेम को विवाह मे बदलना पसंद करते हैं । 

मूलांक 4 –इस मूलांक के जातक प्रेम मे पड़ने से पहले किसी भी प्रकार का सोच विचार करना पसंद नहीं करते बस पहली नजर मे ही प्रेम कर बैठते हैं । इनका प्रेम ऊंच-नीच,अमीर- गरीब,सुंदरता इत्यादि पर विचार ना कर दार्शनिकता लिए हुए होता हैं जिस कारण यह प्रेम मे धोखा खा जाते हैं । 

 मूलांक 5 –इस मूलांक के जातक व्यापारिक प्रकृति व लेखक हृदय के होने के कारण प्रेम के लिए ज़्यादा उत्साही नहीं होते बल्कि प्रेमी के विचार व कला से ज़्यादा प्रभावित होते हैं ।प्रेम अभिव्यक्ति कविता व शायरी के रूप मे करना पसंद करते हैं । 

 मूलांक 6-इस मूलांक के जातक कलाप्रिय,सौन्दर्य प्रेमी व आधुनिक विचारो के होते हैं अपने प्रेम मे सौंदर्यता देखने पसंद करते हैं इसलिए खूबसूरत प्रेमी की चाह रखते हैं अपने मे ग़ज़ब का आकर्षण लिए हुए यह जातक भावुक होने के कारण प्रेम का इजहार अलग ढंग से करना पसंद करते हुये ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीना चाहतें हैं। 

 मूलांक 7-इस मूलांक के जातक कल्पनाओ की दुनिया मे जीने वाले,घूमने फिरने के शौकीन व भावुकता लिए हुए होने के कारण प्रेम करने के लिए ही पैदा हुये होते हैं ।यह प्रेम मे पहल स्वयं करते है परंतु प्रेम अभिव्यक्ति देर से करते हैं जिस कारण इनका प्रेम जितनी तेजी से आरंभ होता हैं उतना ही तेजी से समाप्त भी हो जाता हैं प्राय एक से ज़्यादा प्रेम संबंध बनाते हैं । 

मूलांक 8-यह मूलांक वाले जातक गंभीर,एकांकी व उदासीन प्रकृति के होने के कारण बहुत देर से प्रेम अभिव्यक्ति करते हैं जिस कारण गुप्त प्रेमी कहलाते हैं अपने साथी से प्रेम की पहल की अपेक्षा रखते हुए सादा जीवन ऊंच विचार मे विश्वास रखते हैं व एक ही साथी से जुड़ा रहना चाहते हैं । 

 मूलांक 9 -इस मूलांक के जातक साहसी,उग्र,जल्दबाज़ व आक्रामक होने के कारण पहली मुलाक़ात मे ही प्रेम अभिव्यक्ति करना पसंद करते हैं जिस वजह से कई बार इन्हे नाकामयाबी या बदनामी प्राप्त होती हैं| अपने प्रेम निवेदन को अस्वीकार प्राप्ति होने पर प्रेमी को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं ।अपनी इस प्रकार की आदतों के कारण बहुत कम ही अपने प्रेम को विवाह मे तब्दील कर पाते हैं ।


Releted topics-



Friday, December 6, 2013

अष्ट सिद्धियाँ Ashta Siddhiya

सिद्धि अर्थात पूर्णता की प्राप्ति होना व सफलता की अनुभूति मिलना है। जो इन सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है वह जीवन की पूर्णता को पा लेता है. असामान्य कौशल या क्षमता अर्जित करने को 'सिद्धि' कहा गया है. चमत्कारिक साधनों द्वारा 'अलौकिक शक्तियों को पाना जैसे - दिव्यदृष्टि, अपना आकार छोटा कर लेना, घटनाओं की स्मृति प्राप्त कर लेना इत्यादि। सिद्धियाँ दो प्रकार की होती हैं, एक परा और दूसरी अपरा. यह सिद्धियां इंद्रियों के नियंत्रण और व्यापकता को दर्शाती हैं. सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियाँ अपरा सिद्धियां कहलाती है . मुख्य सिद्धियाँ आठ प्रकार की कही गई हैं. इन सिद्धियों को पाने के उपरांत साधक के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं रह जाता। सिद्धियां क्या हैं व इनसे क्या हो सकता है इन सभी का उल्लेख मार्कंडेय पुराण तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में प्राप्त होता है जो इस प्रकार है:- अणिमा लघिमा गरिमा प्राप्ति: प्राकाम्यंमहिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वंच सर्वकामावशायिता:।। यह आठ मुख्य सिद्धियाँ इस प्रकार हैं:- अणिमा सिद्धि- अपने को सूक्ष्म बना लेने की क्षमता ही अणिमा है. यह सिद्धि यह वह सिद्धि है, जिससे युक्त हो कर व्यक्ति सूक्ष्म रूप धर कर एक प्रकार से दूसरों के लिए अदृश्य हो जाता है. इसके द्वारा आकार में लघु होकर एक अणु रुप में परिवर्तित हो सकता है. अणु एवं परमाणुओं की शक्ति से सम्पन्न हो साधक वीर व बलवान हो जाता है. अणिमा की सिद्धि से सम्पन्न योगी अपनी शक्ति द्वारा अपार बल पाता है। महिमा सिद्धि- अपने को बड़ा एवं विशाल बना लेने की क्षमता को महिमा कहा जाता है. यह आकार को विस्तार देती है विशालकाय स्वरुप को जन्म देने में सहायक है. इस सिद्धि से सम्पन्न होकर साधक प्रकृति को विस्तारित करने में सक्षम होता है. जिस प्रकार केवल ईश्वर ही अपनी इसी सिद्धि से ब्रह्माण्ड का विस्तार करते हैं उसी प्रकार साधक भी इसे पाकर उन्हें जैसी शक्ति भी पाता है । गरिमा सिद्धि - इस सिद्धि से मनुष्य अपने शरीर को जितना चाहे, उतना भारी बना सकता है. यह सिद्धि साधक को अनुभव कराती है कि उसका वजन या भार उसके अनुसार बहुत अधिक बढ़ सकता है जिसके द्वारा वह किसी के हटाए या हिलाए जाने पर भी नहीं हिल सकता । लघिमा सिद्धि- स्वयं को हल्का बना लेने की क्षमता ही लघिमा सिद्धि होती है. लघिमा सिद्धि में साधक स्वयं को अत्यंत हल्का अनुभव करता है. इस दिव्य महासिद्धि के प्रभाव से योगी सुदूर अनन्त तक फैले हुए ब्रह्माण्ड के किसी भी पदार्थ को अपने पास बुलाकर उसको लघु करके अपने हिसाब से उसमें परिवर्तन कर सकता है। प्राप्ति सिद्धि - इस सिद्धि के बल पर जो कुछ भी पाना चाहें उसे प्राप्त किया जा सकता है. इस सिद्धि को प्राप्त करके साधक जिस भी किसी वस्तु की इच्छा करता है, वह असंभव होने पर भी उसे प्राप्त हो जाती है. जैसे रेगिस्तान में प्यासे को पानी प्राप्त हो सकता है या अमृत की चाह को भी पूरा कर पाने में वह सक्षम हो जाता है केवल इसी सिद्धि द्वारा ही वह असंभव को भी संभव कर सकता है। प्राकाम्य सिद्धि- कोई भी रूप धारण कर लेने की क्षमता प्राकाम्य सिद्धि की प्राप्ति है. इसके सिद्ध हो जाने पर मन के विचार आपके अनुरुप परिवर्तित होने लगते हैं. इस सिद्धि में साधक अत्यंत शक्तिशाली शक्ति का अनुभव करता है. इस सिद्धि को पाने के बाद मनुष्य जिस वस्तु कि इच्छा करता है उसे पाने में कामयाब रहता है. व्यक्ति चाहे तो आसमान में उड़ सकता है और यदि चाहे तो पानी पर चल सकता है। ईशिता सिद्धि - हर सत्ता को जान लेना और उस पर नियंत्रण करना ही इस सिद्धि का अर्थ है. इस सिद्धि को प्राप्त करके साधक समस्त प्रभुत्व और अधिकार प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है. सिद्धि प्राप्त होने पर अपने आदेश के अनुसार किसी पर भी अधिकार जमाय अजा सकता है. वह चाहे राज्यों से लेकर साम्राज्य ही क्यों न हो। इस सिद्धि को पाने पर साधक ईश रुप में परिवर्तित हो जाता है। वशिता सिद्धि- जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण पा लेने की क्षमता को वशिता या वशिकरण कही जाती है. इस सिद्धि के द्वारा जड़, चेतन, जीव-जन्तु, पदार्थ- प्रकृति, सभी को स्वयं के वश में किया जा सकता है. इस सिद्धि से संपन्न होने पर किसी भी प्राणी को अपने वश में किया जा सकता है।

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त Mantra theory for suffering peace

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त  Mantra theory for suffering peace संसार की समस्त वस्तुयें अनादि प्रकृति का ही रूप है,और वह...