देवताओं का पूजनक्रम और उनसे प्राप्त होने वाले प्रमुख लाभThe order of worship of the gods and the main benefits derived from them
गन्ध,पुष्प,धूप,दीप,नैवेद्य आदि अर्पित करने से होने वाले लाभBenefits of offering fragrance, flowers, incense, lamps, offerings etc
कहा गया है कि "देवो भूत्वा देवं यजेत्"देवता की तरह बनकर देवता की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
अर्थात् चित्त के द्वारा उस आराध्य देव की छवि अपने हृदय में धारण करके आराध्य देव की पूजा अर्चना की जाय तो वह पूजा विशेष फल देने वाली होती है।
हमारे आराध्य देव हमारी किसी भी सेवा को यूँही नही लेते हैं हम जो भी वस्तु उनको अर्पण करते हैं या चढ़ाते हैं, उसका भी फल प्राप्त होता है।
हम नित्य पूजनादि में देवताओं को वस्त्र,फलादि वस्तुएं अर्पण करते हैं।इनका एक क्रम होता है तो आइए जानते हैं कि उनसे प्राप्त होने वाले लाभ/फल क्या है?
सर्वप्रथम हम पूजन की तैयारी करने के बाद आराध्य देव का ध्यान आवाहन करते हैं-
1-ध्यान/आवाहन-देवसानिध्य।
देवता की मूर्ति को अपने ह्रदय में धारण करते हुए उन्हें पूजन हेतु निमंत्रित किया जाना आवाहन कहलाता है, इससे देवता का सानिध्य प्राप्त होता है।
2-आसन-स्थिरता की प्राप्ति।आवाहन के पश्चात देवता को सामने उपस्थित आसन पर स्थित होने की प्रार्थना करनी चाहिए,इससे स्थिरता की प्राप्ति होती है।
3-पाद्य- अर्थात् देवता के स्वागत हेतु उनके पादप्रक्षालन से पातक नष्ट होते हैं।
4-अर्घ्य-अनर्घ्य अर्थात् मन की दुविधा को मिटाता है।
5-आचमन -सुचित्त सुखी,आंच मन की मिटती है,अर्थात् मन के क्लेश मिटते हैं।
6-स्नान-मल नाश अर्थात् व्याधि हरण।
7-वस्त्र-आराध्य देव के निमित्त वस्त्र अर्पित करने से आयुष्य वर्धन होता है।
8-उपवीत-अर्थात् यज्ञोपवीत आराध्य देव को अर्पित करने से ब्रह्मवेत्ता होता है या ईश्वर के सानिध्य का मार्ग प्रशस्त होता है।
9-आभूषण-अर्पित करने से धन और ऐश्वर्य प्राप्ति होती है।
10-गन्ध-रोली,चन्दन, कुमकुम, इत्र आदि के अर्पण करने से काम अर्थात् मनोकामना पूर्ति होती है।
11-अक्षत-आराध्य देव को अक्षत(साबुत चावल)अर्पित करने से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
12-नाना पुष्प-आराध्य देव को विभिन्न प्रकार के पुष्प अर्पित करने से राज्य और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
13-धूप-आराध्य देव को उत्तम औषधियों से निर्मित सुगंधित धूप अर्पित करने से पापों का नाश होता है।
14-दीप-दीपो मृत्युविनाशनः अर्थात् अज्ञान रूपी अंधकार का विनाश होता है।
15-नैवेद्य-"सर्वमानस्तु तृप्तिरतोभवेत्"अर्थात् फल मिष्ठान आदि अर्पण करने से तृप्ति की अनुभूति होती है,और समाज में सम्मान की प्राप्ति होती है।
16-ताम्बूल-अर्थात् पान सुपाड़ी लौंग इलायची आदि के अर्पण करने से कीर्ति या प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है।
17-दक्षिणा-द्रव्य अर्थात् धन के रूप में दक्षिणा अर्पण करने से पूर्ति की प्राप्ति होती है,इससे पूजन पूर्ण होता है।
18-नीराजन-तत्पश्चात आराध्य देव की आरती करने से आत्मशुद्धि होती है।
19-प्रदक्षिणा-पुनः आराध्य देव की प्रदक्षिणा करने से पापों का हरण हो जाता है,मन में पापों के कारण उत्पन्न क्षोभ मिट जाता है।
20-दण्डप्रणाम-अपने आप को आराध्य देव को प्रणाम करके समर्पित करने से देव का सानिध्य प्राप्त हो जाता है।
21-स्तोत्र और पुराणादि पठन-पुनः आराध्य देव के निमित्त स्तुति आदि करने से सर्वपापक्षय होकर मन निर्मल हो जाता है।
इस प्रकार जाने-अनजाने पूजन में की गई कोई भी वस्तु अर्पण करने पर उसका फल प्राप्त होता है।
हमें श्रद्धा भाव से नित ही प्रभु का पूजन करना चाहिए।
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