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Wednesday, March 12, 2025
होलिका दहन 2025 शुभ मुहूर्त Holika Dahan 2025 auspicious time
Saturday, January 18, 2025
Friday, October 25, 2024
A reflection on the dilemma of Diwali festival 2024 दीपावली पर्व 2024 के असमंजस पर एक चिंतन
A reflection on the dilemma of Diwali festival 2024
दीपावली पर्व 2024 के असमंजस पर एक चिंतन
सभी विद्वत्जन किन्हीं ना किन्हीं धर्म ग्रंथो और उनमें दिए गए सूत्रों का आधार लेकर के बता रहे हैं।
जिससे यह स्पष्ट होता है कि अपनी-अपनी जगह पर दोनों ही ठीक है,क्योंकि धर्म शास्त्रों के सूत्र दोनों ही तरफ निर्णय दे रहे हैं।
अब मुख्य विषय यह है कि इनमें से कौन अधिक सही है यह निर्णय विद्वानों/पंचांगकर्ताओं/पंचांग के संपादकों को करना चाहिए था।
ना कि केवल अपना-अपना मत देना या अपना-अपना नजरिया बताने की आवश्यकता है।
चाहे वह विद्वत् परिषद हो, धर्मसभा हो, धर्मस्थल हो या व्यक्तिगत रूप से कोई भी ज्योतिष/आचार्य हो,
सभी को सम्मिलित रूप से अपना एक निर्णय देना चाहिए कि क्या 31अक्टूबर 2024 को दीपावली पर्व मानने पर 01 नवंबर 2024 को अंझा अर्थात् त्यौहार में एक दिन का अंतर/अंतराल/फासला/अवकाश रहेगा।
या फिर जन सामान्य इस बार दोनों ही दिन दीपावली पर्व को मनाकर माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करके और अधिक आनंदित/समृद्ध होंगे?
क्योंकि दीपावली पर्व तो धनतेरस से प्रारम्भ होकर द्वितीया तिथि तक चलता है।
एक प्रश्न और उठता है, कि पंचांगों का अस्तित्व यहां पर क्या रह जाता है?
कोई पंचांग 31 अक्टूबर को दीपावली बताता है तो कोई पंचांग 01 नवंबर 2024 को दीपावली पर्व बताता है,यही स्थिति विद्वानों की भी है,
तो हमारे यहां ऐसा कोई साधन नहीं है?
जिससे यह स्पष्ट हो सके कि दीपावली पर्व वास्तव में कब है?
मेरे अपने मत के अनुसार तो कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या(दीपावली पर्व)को लेकर जितने भी सूत्र/शास्त्र वचन कहे गए हैं उन सबको एकत्र करके सभी विद्वानों/धर्म परिषद/सभाओं को स्पष्ट निर्णय लेना चाहिए और उसका स्पष्ट रूप से पालन होना चाहिए।
और फिर उन निर्देशों पर सबसे पहले पंचांगकर्ताओं/पंचांग संपादक गण को ध्यान देना होगा।
जिससे पंचांग जब प्रकाशित हो तभी सारे व्रत-पर्व स्पष्ट हों जिससे जनमानस में किसी भी व्रत-पर्व आदि को लेकर किसी भी प्रकार की भ्रांति उत्पन्न न हो।
और पंचांग की स्थिति भी स्पष्ट रहे।
हमारे समाज में तिथि/व्रत/पर्व आदि के निर्णय में मुख्य निर्णायक भूमिका पंचांग की ही होनी चाहिए।
मैंने जनसामान्य की भूमिका में अपना विचार व्यक्त किया है,अगर कोई त्रुटि हुई हो तो विद्वत् जन मुझे क्षमा करेंगें।
वैसे मैं तो दोनों ही दिन दीपावली पर्व पर पूजन करूँगा, अखण्ड दीप स्थापन करके माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सार्थक प्रयास करूंगा।
और ऐसा ही सबको करने के लिए प्रेरित भी करुंगा।
निवेदन है कि सभी त्यौहारों को उनके वास्तविक स्वरूप में श्रद्धा के साथ एकजुट होकर मनाएं।और देवकृपा के लाभार्थी बने।
।।जय श्री कृष्ण।।
दीपावली पूजन 2024 dipawali pujan 2024
Tuesday, June 25, 2024
Shukra Uday 2024 शुक्र उदय कब होंगे?
Shukra Uday 2024
Shukrodaya 2024
Shukra Uday 2024
Shukroday 2024
इस बार गर्मियों में विवाह प्रस्तावों और सभी संस्कारों पर यकायक रोक लग गई कारण गुरु और शुक्र ग्रह एक के बाद एक अस्त हो गए।
क्योंकि गूगल पर सर्च करने पर लोगों को कई अलग-अलग तारीखों की जानकारी मिल रही है, जैसे-कहीं पर 28 या 29 जून 2024 को शुक्र ग्रह का उदय बताया गया है।तो कहीं पर 02 जुलाई 2024 को तो कहीं पर 07 जुलाई 2024 को।
यह सारी जानकारी तथाकथित आचार्यो के द्वारा ही डाली गई है,ऐसा माना जाएगा क्योंकि गूगल के पास अपना तो कुछ है ही नहीं, वो तो आपके सर्च करने पर वही दिखाता है जो जानकारी उस विषय पर लोगों के द्वारा दी गई है।
अब बात करें इंटरनेट पर जानकारी की तो हम इनमे से किसी भी तारीख को सही मान लेते हैं और इंटरनेट के ही एक अंग ज्योतिष एप या सॉफ्टवेयर पर देखने में क्यों अंतर हो रहा है?
आप स्वयं देखिए कि शुक्र उदय गूगल पर दिखाई तारीखों पर क्या हम उसी तारीख की जन्मपत्री किसी भी एप पर देखेंगे तो शुक्रास्त ही दिखेगा,ऐसा कैसे सम्भव है?
क्या आपके पास इसका कोई जवाब है?
जबकि पञ्चाङ्ग में जो निर्णय दिया गया है वो गूगल पर नही दिखता।
इससे या तो पञ्चाङ्ग का महत्व ही नहीं रहा या तो फिर वो अपडेट नही किये गए।
जबकि कुछ समय पहले तक सारा निर्णय पञ्चाङ्ग से ही होता रहा है।
अब शुक्र का उदय होने जा रहा हैं। पञ्चाङ्ग निर्णय के अनुसार 05 जुलाई 2024 को शुक्र उदय होंगे और 08 जुलाई जो शुक्र का बालत्व समाप्त हो जाएगा।
शास्त्रों में पञ्चाङ्ग का बड़ा महत्व बताया गया है,नववर्ष आरम्भ में पञ्चाङ्ग श्रवण का शुभफल प्राप्त होता है।
मेरा उन सभी महानुभाव ज्योतिषाचार्य महोदय से अनुरोध है,कि जो लोग मुख्य भूमिका में हैं बड़े-बड़े संस्थानों का संचालन कर रहे हैं उन्हें अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि सर्व सम्मति से निर्णय दें।
क्योंकि जनसाधारण आचार्यगण तो अनुसरण ही करते हैं, उनकी स्थिति उन्हें उस परिवेश से बाहर नहीं निकलने देती है।
अन्यथा इस प्रकार के कन्फ्यूजन हमारी संस्कृति पर आघात करते हैं, कारण किसी को भी तथ्य समझने की आवश्यकता नहीं है उनके पास समय ही नहीं है।
अतः आप सभी से अनुरोध है कि अपनी संस्कृति को बचाए रखने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है।
यूट्यूब चैनल पर देखें-
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Tuesday, January 2, 2024
खरमास kharmas
खरमास
सनातन धर्म में खरमास का विशेष महत्व है। इसमें किसी भी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्यों का अभाव हो जाता है। खरमास के प्रारंभ होते ही हर प्रकार के मांगलिक कार्य भी स्थगित कर दिए जाते हैं।
आइए आज हम जानते हैं क्या होता खरमास और क्या है इसका महत्व....
सूर्य के धनु या फिर मीन राशि में गोचर करने की अवधि खरमास कहलाती है।
कुछ लोग खरमास और मलमास को एक ही समझते हैं, ऐसा नहीं है।
खरमास के दौरान नियमों का पालन करना जरूरी होती है।इस दौरान कुछ चीजों का उल्लेख किया गया है कि क्या करें और क्या न करें?
खरमास में क्या करें-
● खरमास के दिनों में भगवान भास्कर की पूजा और उपासना करने से साधक को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
● कहा गया है कि खरमास में भगवान विष्णु की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है। साथ ही घर में यश-वैभव का आगमन होता है।
● धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि इन दिनों में गौमाता, गुरुदेव,सन्तजनों की सेवा और पुराणों का श्रवण करना चाहिए इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है।
● खरमास के दौरान नियमित रूप से भगवान भास्कर को लाल रंग युक्त जल का अर्ध्य दें। साथ ही, सूर्य मंत्र का जाप करना लाभदायी है।
● खरमास में गरीबों और जरूरतमंदों को सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य करें।
खरमास में क्या न करें-
● इस समयकाल में मांगलिक कार्य नही होते हैं,इसलिए इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य न करें।
● तामसिक भोजन से बचें।
● किसी से वाद-विवाद न करें।
● खरमास में बेटी या बहू की विदाई नहीं करनी चाहिए।
●कारोबार/व्यवसाय का श्रीगणेश न करें।
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Saturday, July 16, 2022
रक्षाबन्धन कब है 2022 rakshabandhan 2022
रक्षाबन्धन कब है 2022
रक्षाबन्धन पर्व को लेकर इस बार लोगों के मन में दुविधा है कि इस वर्ष 2022 में रक्षाबन्धन का त्योहार किस दिन मनाया जाएगा यह विषय लेकर हम आपके समक्ष प्रस्तुत है।
यद्यपि पूर्णिमा 11तारीख को प्रातः10:38 मिनट के बाद प्रारम्भ होगी और इसी समय से भद्रा काल आरम्भ हो जाएगा जो रात्रि में 08:51 मिनट तक रहेगी।
साथ ही पूर्णिमा 12 तारीख को प्रातः सूर्योदय के बाद 3 घड़ी 3 पल तक रहेगी।
रक्षाबन्धन प्रतिवर्ष अपराह्न या प्रदोषकाल व्यापिनी श्रावण सुदी पूर्णिमा में मनाया जाए, यह कथन धर्मसिन्धु का है बशर्ते कि कर्मकाल के समय भद्रा की व्याप्ति ना हो।
यथा- पूर्णिमायां भद्रारहिताया त्रिमुहूर्ताधिकोदय व्यापिन्यामपराह्ने प्रदोषे वा कार्यम्।।
और निर्णयसिन्धु में हेमाद्रि का मन्तव्य भविष्य पुराण का उल्लेख करते हुए लिखा है कि श्रावण की पौर्णमासी में सूर्योदय के अनन्तर श्रुति-स्मृति विधान से बुद्धिमान उपा कर्म श्रावणी कर्म रक्षाबंधन को करें।
उपरान्त अपराह्न के समय शुभरक्षा पोटलिका को बांधे, जिसमें चावल सरसों के दाने तथा स्वर्ण हो। इदं भद्रायां न कार्यम्।इस काम को शुभ की इच्छा रखने वाली माताएं, बहन, बेटियाँ अपने भाइयों की कलाई में राखी भद्रा मे न बांधे तथा द्विजचार्यों की विदुषी महिलायें एवं द्विजमात्र विद्वान यजमानों के हाथ में रक्षा विधान भद्रा में ना करें-
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी।।
भद्रा में रक्षाबन्धन घर के प्रधान व्यक्ति को और होलिका दहन ग्राम, नगर, मोहल्ला विशेष को क्षति करने वाला होता है।अर्थात् हानि होती है।
निर्णयामृत में लिखा है कि अपराह्न या रात्रि में भद्रा रहित समय हो तो रक्षा विधान करें अन्यथा नहीं।
किन्तु लौकिक व्यवहार में रक्षाविधान हमेशा सुबह के समय दिन में होता रहा है।
ध्यान रहे-श्रीरामनवमी, दुर्गाष्टमी, एकादशी, गुरुपूर्णिमा, रक्षाबंधन, भाईदूज,भ्रातृद्वितीया आदि का कर्मकाल दिन में पड़ता है, इसलिए इन्हें दिनव्रत के नाम से जाना जाता है।
दिनव्रत के लिए केवल उदया तिथि (साकल्यापादिता तिथि) ली जाती है।
तिथि दो प्रकार की होती है।
एक तो वह तिथि जो सूर्य-चंद्र के भोग्यांश प्रति 12 अंश पर सुनिश्चित करके पंचांग में प्रतिदिन समय के सहित दी जाती है।
दूसरी वह तिथि होती है, जिसे साकल्यापादिता तिथि के नाम से जाना जाता है।
ध्यान दें- साकल्यापादिता तिथि सूर्योदय के बाद चाहे जितनी हो, उसी को उस दिन व्रत, पूजा,यज्ञानुष्ठान, स्नान, दानादि के लिए सम्पूर्ण दिन अहोरात्र में पुण्यफल (सफलता) प्रदान करने वाली माना जाता है। केवल श्राद्ध कर्म को छोड़कर सभी शुभकर्मों में ग्राह्य मानी गई है। चाहे वह एक घटी हो या आधी घटी।
जैसाकि कालमाधव का कहना है-
या तिथि समनुप्राप्य उदयं याति भास्करः।
सा तिथि:सकला ज्ञेया स्नान-दान-व्रतादिषु।।
उदयन्नैव सविता यां तिथिं प्रतिपद्यते।
सा तिथि: सकलाज्ञेया दानाध्यन कर्मसु।।
व्रतोपवास नियमे घटिकैकायदा भवेत्।
सा तिथि सकला ज्ञेया पित्रर्थेचापराह्निकी।।
इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा 12 अगस्त 2022 शुक्रवार में सूर्योदय के बाद 3 घटी से भी अधिक रहेगी, जो कि साकल्यापादिता तिथि धर्म कृत्योपयोगी रक्षाबन्धन के लिए श्रेष्ठ मानी जाएगी।
याद रहे कोई पंचांग अथवा जंत्री आदि ज्योतिष की पत्रिकाओं में पहले दिन तारीख 11 अगस्त गुरुवार में राखी बांधने के लिए लिख सकते हैं,जो कि सिद्धान्तत: गलत है क्योंकि तारीख 11 अगस्त गुरुवार में चौदस प्रातः 10:38 तक रहेगी उसी समय भद्रा प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि रात्रि में 08:51 तक रहेगी।
भद्रा में रक्षाबन्धन सर्वमतेन वर्जित है- भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।
कोई विद्वान रात्रि में रक्षाबन्धन के लिए लिख सकता है।
इस विषय पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।और यदि इस ब्लॉग की कोई भी विषय वस्तु आपको उपयोगी सिद्ध होती है तो हमारा प्रयास सार्थक होगा।
इसे यूट्यूब चैनल पर देखें-
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Tuesday, May 10, 2022
क्या होता है वर और कन्या का अष्टकूट मिलान, और विवाह के लिए क्यों है जरूरी।gun milan।ashtkoot milan
क्या होता है वर और कन्या का अष्टकूट मिलान, और विवाह के लिए क्यों है जरूरी?
हमारे हिन्दू धर्म में जब किसी के विवाह प्रस्ताव की बात आती है तो सबसे पहले दोनों की जन्मकुण्डली का मिलान किया जाता है।इसमें मुख्यतः आठ विषयों का समावेश किया गया है इससे इसे अष्टकूट मिलान या मेलापक कहा जाता है। ताकि वर वधू का आने वाला जीवन सुख-पूर्वक व्यतीत हो सके।
आइए जानते हैं कि वो आठ विषय कौन से हैं?
1-वर्ण- इसमें राशि के अनुसार वर्ण का मिलान किया जाता है। वर और कन्या के वर्ण से उच्चस्तरीय या फिर समान वर्ण होने पर, एक गुण मिलता है। यह व्यक्ति की मानसिक अभिरुचियों से संबंधित होता है।
2-वश्य- इसें वर और वधू की राशियों के आधार पर आकलन किया जाता है। यह वर और वधू के भावनात्मक संबंध को दर्शाता है।
3-तारा- इसमें वर और वधू को जन्म नक्षत्रों की गणना करके मिलान किया जाता है। इसका संबंध भाग्योदय से होता है।
4-योनि- जब कोई भी मनुष्य जन्म लेता है तो वह किसी न किसी योनि में आता है। इन योनियों को अश्व, श्वान, गज आदि जीवों से जोड़ा जाता है। इनकी गणना जन्म नक्षत्र के आधार पर की जाती है। कुछ योनियों को एक दूसरे का परम शत्रु माना गया है। इसे वर और कन्या के आपसी तालमेल से जोड़कर देखा जाता है।
5-ग्रहमैत्री- इसमें वर-वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रहों का मिलान किया जाता है। यदि चन्द्र राशियों के स्वामी मित्र न हो तो विचारों में भिन्नता रहती है, जिसके कारण क्लेश की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके आधार पर आपसी विश्वास और सहयोग की स्थिति का आकलन किया जाता है।
6-गण- जन्म नक्षत्र के आधार पर तीन तरह के गण बताए गए हैं जिसमें देव गण, मनुष्य गण और राक्षस गण बताया गया है। यदि वर और कन्या का गण एक ही है तो इस बहुत शुभ माना जाता है। देव गण और मनुष्य गण को समान माना जाता है। यदि दोनों में से किसी का देव गण और किसी का राक्षस गण हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है। इसके आधार पर आने वाले जीवन में कुटुम्ब के साथ संबंध और सामंजस्य का आकलन किया जाता है।
7-भकूट- भकूट मिलान को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें वर और कन्या की कुण्डली में परस्पर चन्द्रमा की स्थिति का आकलन किया जाता है। यदि यह मिलान सही प्रकार से न किया जाए तो दाम्पत्य जीवन में मधुरता और प्रेम की कमी रहती है इसके साथ ही जीवन में किसी न किसी प्रकार से परेशानियां आती रहती हैं।
8-नाड़ी- व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के आधार पर नाड़ी का तीन तरह से वर्गीकरण किया गया है। मध्य, आदि और अन्त्य नाड़ी। वर और वधू की नाड़ी एक नहीं होनी चाहिए। इसे संतान प्राप्ति और स्वास्थ्य से जोड़कर देखा जाता है।
इन आठ बातों के आधार पर भलि-भांति विचार करके वर और वधू के आने वाले जीवन के बारे में आकलन किया जाता है। इन सभी के अंको का कुल योग 36 होता है यदि इसमें से 18 या फिर उससे ज्यादा गुण मिलते हैं तभी विवाह शुभ माना जाता है।
इसके अलावा भी अन्य बातें जैसे-मङ्गल दोष,वर -वधू के पारस्परिक ग्रहों की स्थितियां, आयुष्य,सन्तान,कार्यक्षेत्र,भाग्य आदि का विचार कर लेना चाहिए।
Friday, January 7, 2022
तेजी मन्दी परिज्ञानम् fast bearish knowledge
तेजी मन्दी परिज्ञानम्
fast bearish knowledge
पञ्चाङ्ग में मास तिथि वार नक्षत्र योग और मेषादि संक्रांतियों के ध्रुवांक जोड़कर लिख दिए जाते हैं। जिन्हें तेजी मंदी सूचकांक कहते हैं बीच के कॉलम में वस्तु ध्रुवांक लिखे हैं। जिस मास में जिस वस्तु की तेजी मंदी ज्ञात करनी हो उसी मास के तेजी मंदी सूचकांकों में वस्तु ध्रुवांक जोड़कर 3 से भाग देने पर एक बचे तो मंदी हो,दो बचे तो भाव समान रहे और यदि 0 शेष बचे तो वह वस्तु तेज होगी ऐसा जाने।
भाव कितने बढ़ेंगे या घटेंगे?
चंद्र दर्शन एवं सूर्य संक्रांति के मुहूर्तों का चालू मार्केट के रुख पर बहुत ही प्रभाव पड़ता है। इसलिए चंद्रमा एवं संक्रांति का मुहूर्त कितना है।यह प्रत्येक पक्ष में लिखा रहता है। सामान्यतया संक्रांति व चंद्र दर्शन मुहूर्त, 15 तेजी के,30 समभाव के और 45 मन्दी के सूचक होते हैं।
नक्षत्र ग्रह वेध-
नक्षत्र दृष्टि तथा ग्रहों का नक्षत्र व राशिचार, उदय,अस्त तथा वक्री-मार्गी होने का बहुत भारी प्रभाव चालू मार्केट पर पड़ता है।
संक्रांति कालीन कुंडली में सूर्य शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो सूर्याश्रित राशि के प्रभावांतर्गत आने वाली वस्तुओं का बाजार भाव बढ़ जाता है अशुभ ग्रहों से दृष्ट या युद्ध होने पर भाव घट जाते हैं। अमावस्या अथवा पूर्णिमा को चंद्रमा शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो चंद्र आश्रित नक्षत्र आधीन वस्तुओं के भाव बढ़ जाते हैं अशुभ ग्रह युति या दृष्ट होने पर भाव घटा करते हैं सूर्य चंद्र ग्रह संयोगात् के अभाव में मुहूर्तदर्शन का प्रभाव परिलक्षित होता है।
सूर्य,चंद्रमा व बुध से जिस समय जैसे ग्रह का वेध लगेगा। वैसी ही प्रतिक्रिया व्यापार जगत में होगी। जैसे सूर्य चंद्र बुध का वेध होने पर सरकार व्यापार का निरीक्षण करने लगती है। छापे पड़ते हैं या आयात निर्यात संबंधी विचार-विमर्श होने लगता है।
शुभाशुभ नक्षत्र-
श्रुति गुन कर गुन यु जुग मृग हय रेवती सखाउ।
देहि लेहि धन धरनि धरु गएहुं न जाइहि काउ।।
गोस्वामी तुलसीदास जी के मतानुसार शुभ नक्षत्र- अश्विनी,मृगसिरा,पुनर्वसु,पुष्य,हस्त,चित्रा, स्वाति, अनुराधा, श्रवण,धनिष्ठा, शतभिषा, और रेवती हैं। जिनमें जमीन जायदाद संबंधी लेनदेन में व्यय होने पर या बहु लाभकारी योजना में लगाया जाने पर धन जाता हुआ प्रतीत होने पर भी नहीं जाएगा अर्थात नुकसान नहीं होगा।
ऊ गुन पू गुन वि अज कृ म आ भ आ मू गुनु साथ।
हरो धरो गाड़ो दियो धन फिर चढइ न हाथ।।
अशुभ नक्षत्र-भरणी, कृतिका, रोहिणी, आर्द्रा, अश्लेषा, मघा,विशाखा, मूल,तीनो पूर्वा और तीनों उत्तरा हैं।इन 14 नक्षत्रों में हरा हुआ(चोरी गया हुआ),धरोहर रखा हुआ,गाड़ा गया या कारोबार में लगाया गया तथा उधार दिया हुआ धन फिर लौट कर हाथ नहीं लगता है।
टिप्पणी- इन नक्षत्रों के अलावा भद्रा तथा व्यतिपात योग में जो द्रव्य किसी को दिया जाए, पृथ्वी में गाड़ा जाए या किसी व्यवहार में लगाया जाए या बैंक में जमा किया जाए, अथवा चोरी आदि में चला जाए तो वह फिर प्राप्त नहीं होता।यथा-
तीक्ष्ण मिश्र ध्रुवोग्रैर्यद् द्रव्यं दत्तं निवेशितम्।
प्रयुक्तं च विनिष्टं च विष्ट्या पाते च नाप्यते।।
मुहूर्त चिंतामणि के इस श्लोक में केवल एक नक्षत्र ज्येष्ठा के अलावा अन्य सब निषिद्ध नक्षत्र वही है जो गोस्वामी जी ने बताए हैं। मघा के बजाय ज्येष्ठा को अशुभ माना है। अतः मघा को द्रव्य प्रयोग में न अशुभ न शुभ बल्कि मध्यम समझना चाहिए और आवश्यकता में तत्परक तिथि वार शुभ होने पर ही उसे उपयोग में लेना चाहिए।
लेनदेन के लिए वर्जित समय- रविवार, मंगलवार,संक्रांति, दिन वृद्धि योग और हस्त नक्षत्र में यदि ऋण ले तो कभी मुक्त ना हो। बुधवार को द्रव्य अनावश्यक देना नहीं चाहिए।
वस्तु खरीदने के नक्षत्र:- अश्विनी, चित्रा, स्वाती, श्रवण, शतभिषा, रेवती,तथा वारों में बुध रवि सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं।
वस्तु बेचने के नक्षत्र:- भरणी, कृतिका, अश्लेषा, विशाखा, तीनो पूर्वा यह 7 नक्षत्र और गुरुवार, सोमवार श्रेष्ठ माने गए हैं।
खरीदने के नक्षत्रों में बेचना और बेचने के नक्षत्र वारादि में खरीदना सुनिश्चित रूप से घाटे का सौदा जानना चाहिए। जो वस्तु, पशु, धन जिस ग्रह के कारकत्व में आता है उसे उससे संबंधित ग्रह के नक्षत्र, वार में युक्तियुक्त विचार कर बेचा या खरीदा जा सकता है।
कौन सी वस्तु किस ग्रह के अधीन है?
सूर्य-माणिक्य, स्वर्ण,पीतल, गुड़,खांड, चना, भूसा,हल्दी, सरसों, मुनक्का, सभी औषधियां, शर्बत, लाल-पीला रंग, रंगीन वस्त्र,सरकारी ऋणपत्र, पशु,वृक्षादि।
चन्द्र-मोती,चन्द्रमणि,सुसंस्कृत(cultured) मोती, चांदी,पारा, दूध,दही,मक्खन,दूध से बने पदार्थ,मछली,सर्वोषधी, फल-फूल,रसदार पदार्थ,सोडा वाटर,बर्फ,शीशा।
मङ्गल- मूंगा,सुर्ख अकीक, सोना, तांबा, गन्ना, गुड,मुनक्का,आसवारिष्ट,किसमिश, छुहारा, लौंग,किराना,गेहूं,चना,मसूर,मोठ,लाल सरसो, सुपारी, हल्दी,धनिया,लाल मिर्च, शराब, चाय, काफी,चमड़ा,लाख,लाल रंग, बारीक लालऊन, बारदाना,धातुपदार्थ,मशीनरी सामान, विभिन्न शेयर्स।
बुध- पन्ना,जबरजद हरा पत्थर,अकीक, विभिन्न रंगों का फिरोजा, ज्वार,बाजरा, गेहूं, जौ,मूंग,मटर, ग्वार, अरहर, काली खेसारी, सौंफ,सर्वरस, सर्वधान्य, हरे उड़द,पीली सरसों, घी, कपास, अलसी(तीसी), एरण्ड(अण्डी), बिनोला(काकड़ा), मूंगफली(सींगदाना),हैसियन, जूट, पाट, सफेद बारदाना, रेशम, टेक्सटाइल, न्यूजप्रिंट कागज, पेपर मिल्स के शेयर्स।
गुरू- पुखराज, सुनहला पत्थर,बुलियान, नमक,जमीन से पैदा होने वाले कंद, मूल, आलू, प्याज, अदरक,आदि सब्जियां, नकली सिल्क, पाट(कुष्टा),रबड़,तंबाकू,बैंक शेयर्स, खरड, जवाहरात, समुद्री पदार्थ, हाइड्रो खाद।
शुक्र- हीरा, वैकांत, ओपल, सफेद गेहूं, चावल, चीनी,अरहर(तुअर), रुई,रेशम,हैशियन, सिल्क,फैंसी सामान, श्रृंगार प्रसाधन की चीजें,अत्तारोंकी दवाएं, टैक्स,टाइल्स, शेयर्स, देसी अंग्रेजी दवाएं।
शनि- नीलम,लाजवर्त,कसौटी,तिलहन,खनिज आदि सर्व तेल,काले तिल, उड़द,तोरिया, काली मिर्च, काला ऊन,काला रंग,बारदाना, काली धारी, भैंस, लोहा, वाहन,जस्ता,टीन, रांगा, सीसा,कांसी,संगमरमर,चमड़ा व चमड़े की चीजें, कोलतार, आयल सेल्स, कोयले की खानों के शेयर्स, कलपुर्जे तथा वाहन आदि।
राहु-केतु- वैदूर्यमणि(लहसुनिया), दुआ(तारामीरा), संगमूसा,गोमेद,फिरोजा, वायरलेस, टेलीफोन, तार, बिजली के सामान, एलुमिनियम आदि मिश्रित धातुऐं दोनों ग्रहों के अधीन हैं।
व्यापारिक अमूल्य चुटकुले-
● यदि कोई वस्तु सामयक भाव को देखते हुए एकदम मन्दी हो जाए तो निश्चय 100 दिन के भीतर उसका भाव बहुत बढ़ जाता है। यदि तेज हो जाए तो उक्त अवधि में काफी मन्दी का झटका लगता है।
● भाव बढ़ने पर विक्रय वाले नक्षत्रों में बेचना तथा भाव घटने पर क्रय वाले नक्षत्रों में खरीदना चाहिए।
● गुरुवार के बने भाव मामूली हेरफेर से अगले गुरुवार को वही होते हैं।
मंगल को तेजी होकर यदि शनिवार को भी तेजी हो तो अगले मंगलवार तक तेजी ही चलती है। यदि शनिवार को मन्दी आ जाए तो तेजी की लाइन रुकी रहेगी ऐसा जाने।
● किसी भी ग्रह के वक्री,अस्त,युतिकाल में जो भाव किसी वस्तु के बने,उससे उल्टा रुख उक्त ग्रह के मार्गी, उदय,या युति छूटने के बाद प्राय: हो जाता है।
● संक्रांति के पूर्वदिन का भाव संक्रांति के दिन मंदा रहे तो आगे तेजी का रुख एक मास तक चलेगा।यदि तेज रहे तो मास पर्यंत मंदा जाने।
● ग्रह गति अंतर अपने अधीन वस्तुओं को बहुत ही प्रभावित करता है। चालू मार्केट रुख को पलट देता है।सर्वतोभद्र चक्र में जहां जिस स्थान पर ग्रहवेध हो वहां सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।
● यद्यपि बुध ग्रह सबसे छोटा ग्रह है लेकिन व्यापार का कर्ता होने से इसका बहुत तीव्र प्रभाव चालू मार्केट पर पड़ता है। बुध का सूर्य के साथ युति या प्रतियोग होने पर पृथ्वी पर शासन तंत्र व्यापार पर नियंत्रण करने लगता है या सरकार खुद ही रेट घटाती-बढ़ाती है।शुभ ग्रह योग होने पर महंगाई बढ़ती है तो क्रूर पाप ग्रह संयोगात महंगाई घटती जाती है।
अंतिम कालम में उल्लिखित मेषादि राशि के आधीन वस्तु नाम ग्रह संचार तथा वेधादि के कारण विशेष प्रतिक्रिया हुआ करती है। उत्पाद से विनाश होता है भाव बहुत बढ़ जाते हैं।
मण्डलं नगरं ग्रामो दुर्ग देवालयं पुरम्।
क्रुरैरुभयतो विद्धं विनश्यतिन संशयः।।
अपनी सामर्थ्य और संपत्ति के अनुसार ही व्यापार करना चाहिए। ज्योतिष से लाभ उठाने वालों को योग्य ज्योतिषी द्वारा अपने शुभाशुभ समय का ज्ञान करवा लेना चाहिए। अशुभ समय अर्थात् बुरे दिनों के फेर से कभी-कभी भारी घाटा लग जाता है।भाग्यका कर्ता समय सर्वोपरि है।काल की सत्ता को सभी नमन करते हैं।खोटे ग्रहों के दुष्प्रभाव को विनष्ट करने में धर्म सर्वोपरि है।कहा गया है-
धर्मेणहन्यते व्याधि,धर्मेणहन्यते ग्रहा:।
धर्मेणहन्यते शत्रु,यतो धर्मस्ततो जय।।
राशियों के अधीन वस्तुएं देश तथा स्थान विशेष-
1-मेष- चावल,सर्वधान्य, तृण, तुषधान्य,वस्त्र,घी,मिर्च,युगंधरी,सर्वोषधी, खच्चर,ऊंट।
देश:-इंग्लैंड,जर्मनी,डेनमार्क,पोलैंड,सीरिया।
2-वृष- सर्वरस,चावल,जौ,सर्वधान्य, सर्वधातु, तिल, ऊनी वस्त्र, रत्न, मणि, हीरा।
घोड़े, गाय, भैंस, गर्दभ।
देश:-आयरलैंड,पारस,साइप्रस,अर्ध भाग रूस, और हालैंड।
दिल्ली मध्य प्रदेश तथा केंद्र शासित प्रदेश।
3-मिथुन- ज्वार,बाजरा,कोदों धान्य, तुअर,तेल, लवण, सर्वक्षार रस, सुगंधित द्रव्य, लाख, सोना, रूपा, शेयर्स।
देश:- यूनाइटेड स्टेट्स अमेरिका (यू.एस.ए.) बेल्जियम,इजिप्ट।
4-कर्क-गेहूं आदि धान्य, चावल, गुड़,खांड, चीनी,मजीठ,
सेलडी,सुण्ठी,कोदों, सरसों,सज्जी, तेल,हींग,सौचरनमक, कपास, रेशमी वस्त्र, घी,सोना,रूपा।
देश:- अफ्रीका,न्यूजीलैंड,हालैंड,स्कॉटलैंड। राजस्थान।
5-सिंह- चना, गुड़, मसूर, उड़द,मूंग, तिल, तेल, धृत, प्रवाल, कंबल,ऊन,अलसी,कांगुनी,रूपा, युगन्धरी।
देश:- फ्रांस,इटली,सिसली,केलिफोर्निया,आल्पस, रोम। मुंबई।
6-कन्या- चावल,कोंदो, लहसुन, सज्जी,चंदन,कपूर,देवदारु,अगर-तगर, कंदमूल,पन्ना,सोना।
देश:- टर्की,स्विट्जरलैंड,वेस्टइंडीज,यूनान,येरुशलम,लासएंजिल्स, पेरिस, बगदाद, पाकिस्तान।
7-तुला- सुपारी,मिर्च, सरसों तेल, राई, हींग, खजूर,मूंग,जौ, चावल, गेहूं, मसूर,मोठ। घोड़ा वाहन।
देश:- इंडो चाइना, ऑस्ट्रिया तिब्बत, चीन, वर्मा,अर्जेंटीना, वियना, लिस्बन और जापान ।पश्चिमोत्तर भारत,कश्मीर,राजस्थान।
8-वृश्चिक- सभी अन्न, चावल, गुड़, हींग,मोठ,गुग्गुल,लाख,कपूर,पारा, हिंगुल। देश:-स्वीडन,ब्राजील,नार्वे,सीरिया,अल्जीरिया,वाशिंगटन,हेलीफैक्स,डोबर,लिवरपूल,न्यूफाउंडलैण्ड, फ्रैंकफर्ट।
9-धनु- चावल, घृत, कंदमूल,तुषधान्य,अनाज, सेचर, सेंधा नमक, श्वेतवस्तु, रस,सुरमा, कपास,लवण।
देश:-अरब,इजरायल,ऑस्ट्रेलिया,हंगरी,स्पेन, मेडागास्कर ।उत्तर प्रदेश।
10-मकर- दाख,खजूर,घृत,अखरोट,चिरौंजी,पिपली, सुपारी,इलायची,मूंग,जायफल,लोहादिस्याह धातु।
देश:-भारत,सीरिया,अफगानिस्तान,बुल्गारिया, मेक्सिको,लिथुनिया।
11-कुम्भ-मद्यादि अर्क, नशेड़ी वस्तुएं,प्रियंगु,मूल, जावित्री,देवदारू,तेल,सर्वधान्य,सर्वधातु,सर्वोषधी,कोंदो।भैंस वाहन। मणि,मोती,नीलम आदि रत्न।
देश:-अर्धाल्प अरब,रूस,अबीसनिया,स्वीडन।
12-मीन- गुड़, खांड,शक्कर,चावल,घृत,नारियल, सुपारी,त्वली,किराना।मणि,मोती।
देश:-पुर्तगाल,सहारा,रेगिस्तान,अलैक्जेंड्रिया। पंजाब,हिमाचल,हरियाणा।
Saturday, January 30, 2021
गृह प्रवेश मुहूर्त विचार grih pravesh muhurt vichaar
गृह प्रवेश मुहूर्त विचार
grih pravesh muhurt vichaar
शुभ नक्षत्र- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा एवं रेवती नक्षत्र गृह प्रवेश के लिए शुभ हैं।
शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, दशमी, एकादशी व त्रयोदशी तिथियां भी गृह प्रवेश के लिए शुभ मानी गई हैं।
शुभ वार- गृह प्रवेश के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार व शुक्रवार शुभ हैं।
रिक्ता तिथि (चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी) और शनिवार को गृह प्रवेश नहीं करना चाहिए।
गृह प्रवेश के समय वास्तु पूजन अवश्य कराना चाहिए।
वास्तु पूजन के बाद ब्राह्मण भोज करवाना चाहिए।
घर में तुलसी का पौधा लगाना अच्छा होता है। इससे शुभ फल मिलते हैं।
घर के मुख्य दरवाजे के आस-पास शुभ चिह्न जैसे- ॐ,स्वास्तिक भी बनवाना चाहिए।
नोट-जिन लोगों को नौकरी आदि में स्थानांतरण आदि के कारण मकान बदलने होते हैं या किराये के मकान खाली कर दूसरी जगह निवास करना पड़ता है।देशकाल परिस्थिति वश इन मुहूर्तों में गुरु,शुक्र का अस्तकाल,अधिकमास दोष,गुर्वादित्य दोष,कलशचक्र शुद्धि, होलाष्टक आदि का विचार नहीं किया जाता है।
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