मस्तक पर तिलक का रहस्य
Tilak's secret on the head
भारतीय संस्कृति के दैनिक आचार में मस्तक पर तिलक होना संस्कृति का अभिन्न अंग है।
शास्त्रों के अनुसार तिलक हीन व्यक्ति के द्वारा कृत नित्य नैमित्तिक सभी कर्म व्यर्थ होते हैं।
"यज्ञो दानं तपो होमः स्वाध्याय पितृ तर्पणम्।
व्यर्थ भवति तत्सर्वं तिलकेन विनाशकृतम्।।
परंतु आज के धार्मिक व्यक्तियों के भाल का अवलोकन करने पर तिलक अनेको भाति का दिखता है तब तिलक के शास्त्रीय रूप विषयक जिज्ञासा स्वाभाविक है।
तिलक वास्तव में अपनी उपास्य संप्रदाय /परंपरा पर है। हमारे वैदिक उपासना की मुख्य पांच परंपरा है, जिनको पंचदेव उपासना कहते हैं। यथा गणेश, सूर्य, शिव, शक्ति और विष्णु यही नित्य उपास्य हैं, बाकी के अन्य सभी देव इनके ही अन्तर्भूत हैं।
इन पांच देवों के उपासकों को वैष्णव, शैव, गाणपत्य, शाक्त, सौरि संज्ञा प्राप्त है।
यहां वैष्णव को ऊर्ध्वपुण्ड्र, शैवों को त्रिपुण्ड्र, गाणपत्य को अर्धचन्द्र शाक्तों को वर्तुल और सौरों को त्रिशूलाक तिलक धारण करना चाहिए।
"वैष्णवस्योर्ध्वपुण्ड्रस्यात्त्रिपुण्ड्र: शिव सेवितुः।
अर्धचंद्रः गणेशस्य देवीभक्तस्य वर्तुलम्।।
नारायण परोयस्तु चन्दनेन त्रिशूलकम्।।
(पुरश्चर्यार्णव तरंग)
साथ ही वर्ण भेद से भी तिलक निरूपित हैं-
ब्राह्मण आदि वर्णक्रमानुसार ऊर्ध्वपुण्ड्र-त्रिपुण्ड्र-अर्धचन्द्र-वर्तुलाकृति तिलक धारण करें।
"ब्राह्मणस्योर्ध्वपुण्ड्रस्तु क्षत्रियस्यत्रिपुण्ड्रकम्।
अर्धचन्द्रं तु वैश्यस्य शूद्राणां वर्तुलाकृतिः।।"(पुरश्चर्यार्णवतरंग)
ऊर्ध्वपुण्ड्र:-तिलक स्वरूप यह आकृति वैष्णव तिलक है।इसे भगवान का चरण चिन्ह मानते हैं।वैष्णवों में सम्प्रदाय भेद से इसकी कई आकृतियां हैं।
यह मस्तक सहित शरीर के 12 स्थानों पर लगाते हैं।यह गोपीचन्दन, तुलसी, अश्वत्थ, तीर्थरज आदि से धारण करते हैं।चन्दन के अभाव में मृतिका, कुमकुम ग्राह्य है।
त्रिपुण्ड्र:-यह शैव तिलक है, यह भी अनेक प्रकार का दिखता है।यह मस्तक सहित 5/7 स्थानों पर धारण करते हैं।यह यज्ञ भस्म से लगाया जाता है।
वर्तुल:-गोल बिन्दी यह शक्ति तिलक है।इसे मस्तक पर कुंकुंम से धारण करते हैं।
अर्धचन्द्र:-यह गाणपत्य तिलक है।मस्तक पर सिन्दूर कुंकुंम आदि से धारण किया जाता है।
त्रिशूल:-यह सौरि तिलक है।यह मस्तक पर चन्दन से धारण करते हैं।
सभी तिलक निर्दिष्ट वस्तु के अभाव में चन्दन से धारण कर सकते हैं।और चन्दन के अभाव में जल ग्राह्य है तथा जल के अभाव में अंगुली से सूखा तिलक आकृति द्वारा धारण करना आवश्यक है।
वर्तमान में वैष्णव आदि सभी तिलकों के मध्य में बिन्दी आदि भी दृष्ट हैं।
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