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Monday, July 10, 2023

सफलता के 10 नियम 10 Laws of Success

सफलता का अर्थ  Meaning of Success 

सफलता पाने के लिए हम न जाने क्या क्या उपाय करते रहते हैं।
जीवन में किसी भी क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि प्राप्त करना, पद प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त करना, पारिवारिक और सामाजिक सुख प्राप्त करना, शारीरिक स्वास्थ और मानसिक शांति प्राप्त करना, ज्ञान से समृद्ध होना और बुद्धि से कुशलता प्राप्त करने को सफलता माना जाता हैं।



सफलता के तत्व क्या है?
What are the elements of success?

उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम - यह 6 गुण जिस भी व्यक्ति के पास होते हैं, भगवान भी उसकी मदद करते हैं।
सफलता जिसे हम अपने जीवन के लक्ष्य प्राप्ति के रूप में परिभाषित करते है। सफलता एक चीज है जो जीवन में हम पाना चाहते है।हमें अपने सपने साकार करने के लिए कड़ी मेहनत और अपने समय का सही उपयोग करने की आवश्यकता है।

श्रीमद्देवीभागवत में स्वयं देवी भगवती ने बताए हैं सफलता पाने के ये 10 नियम

साधारणतया मनुष्य को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसका वर्णन कई ग्रंथों और शास्त्रों में पाया जाता है। इन बातों को समझ कर, उनका पालन करने पर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है। श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में स्वयं देवी भगवती ने 10 नियमों के बारे में बताया है। इन नियमों का पालन हर मनुष्य को अपने जीवन में करना ही चाहिए।
श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के अनुसार, ये है वह 10 नियम जिन्हें हर मनुष्य को अपने जीवन में अपनाना चाहिए-
श्लोक-

तपः सन्तोष आस्तिक्यं दानं देवस्य पूजनम्।
सिद्धान्तश्रवणं चैव ह्रीर्मतिश्च जपो हुतम्।।

अर्थ-
तप, संतोष, आस्तिकता, दान, देवपूजन, शास्त्रसिद्धांतों का श्रवण, लज्जा, सद्बुद्धि, जप और हवन- ये दस नियम देवी भगवती द्वारा कहे गए है।


1- तप
तपस्या करने या ध्यान लगाने से मन को शांति मिलती है। मनुष्य को जीवन में कई बातें होती हैं, जिन्हें समझ पाना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है। तप करने या ध्यान लगाने से हमारा सारा ध्यान एक जगह केन्द्रित हो जाता है और मन भी शांत हो जाता है। शांत मन से किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है। साथ ही ध्यान लगाने से कई मानसिक और शारीरिक रोगों का भी नाश होता है।


2- संतोष
मनुष्य के जीवन में कई इच्छाएं होती हैं। हर इच्छा को पूरा कर पाना संभव नहीं होता। ऐसे में मनुष्य को अपने मन में संतोष (संतुष्टि) रखना बहुत जरूरी होता है। असंतोष की वजह से मन में जलन, लालच जैसी भावनाएं जन्म लेने लगती हैं। जिनकी वजह से मनुष्य गलत काम तक करने को तैयार हो जाता है। सुखी जीवन के लिए इन भावनाओं से दूर रहना बहुत आवश्यक होता है। इसलिए मनुष्य हमेशा अपने मन में संतोष रखना चाहिए।


3- आस्तिकता
आस्तिकता का अर्थ होता है- देवी-देवता में विश्वास रखना। मनुष्य को हमेशा ही देवी-देवताओं का स्मरण करते रहना चाहिए। नास्तिक व्यक्ति पशु के समान होता है। ऐसे व्यक्ति के लिए अच्छा-बुरा कुछ नहीं होता। वह बुरे कर्मों को भी बिना किसी भय के करता जाता है। जीवन में सफलता हासिल करने के लिए आस्तिकता की भावना होना बहुत ही जरूरी होता है।


4- दान
हमारे धर्म में दान का बहुत ही महत्व है। दान करने से पुण्य मिलता है। दान करने पर ग्रहों के दोषों का भी नाश होता है। कई बार मनुष्य को उसकी ग्रह दशाओं की वजह से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दान देकर या अन्य पुण्य कर्म करके ग्रह दोषों का निवारण किया जा सकता है। मनुष्य को अपने जीवन में हमेशा ही दान कर्म करते रहना चाहिए।


5- देव पूजन
हर मनुष्य की कई कामनाएं होती हैं। अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कर्मों के साथ-साथ देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना भी की जाती है। मनुष्य अपने हर दुःख में, हर परेशानी में भगवान को याद अवश्य करता है। सुखी जीवन और हमेशा भगवान की कृपा अपने परिवार पर बनाए रखने के लिए पूरी श्रद्धा के साथ भगवान की पूजा करनी चाहिए।


6- शास्त्र सिद्धांतों को सुनना और मानना
कई पुराणों और शास्त्रों में धर्म-ज्ञान संबंधी कई बातें बताई गई हैं। जो बातें न कि सिर्फ उस समय बल्कि आज भी बहुत उपयोगी हैं। अगर उन सिद्धान्तों का जीवन में पालन किया जाए तो किसी भी कठिनाई का सामना आसानी से किया जा सकता है। शास्त्रों में दिए गए सिद्धांतों से सीख के साथ-साथ पुण्य भी प्राप्त होता है। इसलिए, शास्त्रों और पुराणों का अध्यन और श्रवण करना चाहिए।


7- लज्जा
किसी भी मनुष्य में लज्जा (शर्म) होना बहुत जरूरी होता है। बेशर्म मनुष्य भी पशु के समान होता है। जिस मनुष्य के मन में लज्जा का भाव नहीं होता, वह कोई भी दुष्कर्म कर सकता है। जिसकी वजह से कई बार न केवल उसे बल्कि उसके परिवार को भी अपमान का पात्र बनना पड़ सकता है। लज्जा ही मनुष्य को सही और गलत में फर्क करना सिखाती है। मनुष्य को अपने मन में लज्जा का भाव निश्चित ही रखना चाहिए।


8- सदबुद्धि
किसी भी मनुष्य को अच्छा या बुरा उसकी बुद्धि ही बनाती है। अच्छी सोच रखने वाला मनुष्य जीवन में हमेशा ही सफलता पाता है। बुरी सोच रखने वाला मनुष्य कभी उन्नति नहीं कर पाता। मनुष्य की बुद्धि उसके स्वभाव को दर्शाती है। सदबुद्धि वाला मनुष्य धर्म का पालन करने वाला होता है और उसकी बुद्धि कभी गलत कामों की ओर नहीं जाती। अतः हमेशा सदबुद्धि का पालन करना चाहिए।

9- जप
शास्त्रों के अनुसार, जीवन में कई समस्याओं का हल केवल भगवान का नाम जपने से ही पाया जा सकता है। जो मनुष्य पूरी श्रद्धा से भगवान का नाम जपता हो, उस पर भगवान की कृपा हमेशा बनी रहती है। भगवान का भजन-कीर्तन करने से मन को शांति मिलती है और पुण्य की भी प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, कलियुग में देवी-देवताओं का केवल नाम ले लेने मात्र से ही पापों से मुक्ति मिल जाती है।


10- हवन
किसी भी शुभ काम के मौके पर हवन किया जाता है। हवन करने से घर का वातावरण शुद्ध होता है। कहा जाता है, हवन करने पर हवन में दी गई आहुति का एक भाग सीधे देवी-देवताओं को प्राप्त होता है। उससे घर में देवी-देवताओं की कृपा सदा बनी रहती है। साथ ही वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा भी बढ़ती है।


इस प्रकार हम अपने कर्म को सुदृढ़ करके अर्थात् सफलता के तत्व जो पहले बताए गए हैं उनका उपयोग करके और श्रीमद्देवीभागवत में भगवती द्वारा बताए गए नियमों का पालन करते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल हो सकते हैं इसमें संदेह नहीं है।

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Saturday, June 17, 2023

मुख्यद्वार Main door

मुख्यद्वार Main door




अक्सर लोग यह प्रश्न करते हैं कि मुख्य द्वार कहाँ पर होना चाहिए?

और यह प्रश्न इसलिए भी उनके मन में आता है क्योंकि हमारे ग्रन्थों में पूर्व और उत्तर मुख वाले भूखण्ड को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
लेकिन पश्चिम और दक्षिण मुख वाले भूखण्ड भी कुछ लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं होते हैं।

तो आज हम बात करते हैं अपने घर के मुख्यद्वार की।
अर्थात् आपके भवन का जो मुख है उसमें मुख्यद्वार कहाँ पर होना चाहिए?

●वास्तु के अनुसार घर का मुख्यद्वार
●भवन के मुख्य द्वार का विचार
●मुख्‍य द्वार की सही दिशा लाए जीवन में खुशहाली
●मुख्‍य द्वार की सही दिशा से मिलते हैं कई लाभ 

दिशा से तात्पर्य यह है कि आपका भवन पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण किसी भी दिशा की ओर मुख का है लेकिन उसमें प्रवेश करने के लिए मुख्यद्वार कहाँ पर हो?

वास्‍तुशास्‍त्र में मुख्‍य द्वार की सही दिशा के कई लाभ बताए गए हैं।
साधारणतया किसी भी भवन में मुख्‍य रूप से एक या दो द्वार मुख्‍य द्वारों की श्रेणी के होते हैं जिनमें से प्रथम मुख्‍य द्वार से हम भवन की सीमा में प्रवेश करते हैं। द्वितीय से हम भवन के अन्दर  प्रवेश करते हैं। भवन के मुख्य द्वार का हमारे जीवन से एक घनिष्ठ संबंध है।

मुख्यद्वार और वास्तु के सिद्धान्त

वास्तु के सिद्धान्तों के अनुसार मुख्यद्वार की सही स्थिति गृहस्वामी को लक्ष्मी (संपदा), ऐश्वर्य, पारिवारिक सुख एवं वैभव प्रदान करते हैं। जबकि गलत दिशा में स्थित मुख्य द्वार जीवन में अनेक समस्याओं को उत्पन्न करता है।
बहुमंजिला इमारतों में अपने फ्लैट का द्वार हमारा मुख्यद्वार होता है।
यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा में मुख्य द्वार का निर्माण न कर सके तो भवन के मुख्य (आंतरिक) ढांचे में प्रवेश के लिए उपरोक्त में से किसी एक दिशा को चुन लेने से भवन के मुख्‍य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है।

आईये हम जानते हैं कि मुख्यद्वार कहाँ बनाया जाए?

यदि भूखण्ड को चारों दिशाओं में 9 भागों में बांटा जाए तो कुल मिलाकर 32 कोष्ठक बनते हैं। यह ईशान से घड़ी की चाल की दिशा से चलते हुए आग्नेय, नैऋत्य एवं वायव्य होते हुए ईशान तक 1 से संख्या 32 तक होते हैं। यदि मुख्य द्वार पूर्व दिशा में बना हो तो कोष्ठक तीन और चार सर्वश्रेष्ठ हैं। इसी प्रकार दक्षिण में 11 12  या 13, पश्चिम में 20 21 तथा उत्तर में 27 28 व 29 कोष्ठक सर्वश्रेष्ठ हैं।
यदि भूखंड विदिशा में हो तो दिशा सूचक यंत्र से ईशान कोण ढूंढ लें। भूखण्ड पर पूर्वोक्त विधि के अनुसार 32 कोष्ठक बना ले और पूर्व निर्धारित स्थानों में द्वार का निर्माण करें।

अब आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि यह नियम नए निर्माण में लागू हो सकता है लेकिन  पहले से बने हुए भवन में यदि मुख्यद्वार सही स्थिति में नहीं है तो क्या करना चाहिए?
इसका उत्तर है कि

●यदि दो द्वार हैं तो उनमें से एक का सही स्थिति में होना आवश्यक है।
●द्वार को सही स्थिति में करा लिया जाए।
●मुख्यद्वार की दहलीज पर चांदी का तार लगाएं।
●उत्तम मुहूर्त में वास्तुयन्त्र को प्रतिष्ठित करा कर उसकी स्थापना करें।

●घर में पञ्चगव्य की धूनी करें।

●सायंकाल में मुख्यद्वार पर गोमय दीप प्रज्वलित करें।

इसे वीडियो में देखें-मुख्यद्वार का विचार

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सुन्दर काण्ड sundarakaand


Tuesday, February 28, 2023

गोमय दीपदान gomay deepdan

 गोमय दीपदान gomay deepdan

यश,धन,समृद्धि, पुत्र, दीर्घायु, ग्रह दोष,अरिष्ट और बाधा नाश के लिए करें गोमय दीपदान




दीपक ज्ञान, प्रकाश, भयनाशक, विपत्तियों व अंधकार के विनाश का प्रतीक है।  गोमय दीपदान किसी भी विपत्ति के निवारणार्थ श्रेष्ठ उपाय है।
हमारे शास्त्रों में दीपदान की विशेष महिमा है।मान्यता है कि दीपदान व्रत योग और मोक्ष प्रदान करने वाला है। जो मनुष्य देवमंदिर अथवा ब्राह्मण के घर में एक वर्ष तक दीपदान करता है, वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है। चातुर्मास्य में दीपदान करने वाला श्रीविष्णु भगवान के धाम, कार्तिक मास में दीपदान करने वाला स्वर्गलोक तथा श्रावण मास में दीपदान करने वाला भगवान शिव के लोक को प्राप्त कर लेता है। चैत्र मास में मां भगवती के मंदिर में दीप जलाने से व्यक्ति मां जगदम्बा के नित्य धाम को प्राप्त करता है। दीपदान से दीर्घ आयु और नेत्र ज्योति की प्राप्ति होती है। दीपदान से धन और पुत्र आदि की भी प्राप्ति होती है। दीपदान करने वाला व्यक्ति सौभाग्य युक्त होकर स्वर्ग लोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है।

गोमय दीपदान का महत्व

अत्यंत सुगमता से किया जाने वाला यह एक ऐसा वैदिक विधान है जो किसी यज्ञ के बराबर फल देने वाला है।यदि संभव हो तो किसी योग्य ब्राह्मण के सान्निध्य में दीपदान की प्रक्रिया को पूरा करना चाहिए। 

गोमय दीपदान का समय निर्धारण

ऋतु-दीपदान हेतु बसन्त, हेमन्त, शिशिर, वर्षा व शरद ऋतु उत्तम मानी गई है।

मास-वैशाख, श्रावण, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन मास श्रेष्ठ है।

पक्ष-शुक्ल पक्ष दीपदान के लिए अधिक उत्तम होता है।

तिथि-प्रथमा, द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी,नवमी,एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी,चतुर्दशी,अमावस्या व पूर्णिमा तिथि गोमय दीपदान के लिए श्रेष्ठ होती है।

नक्षत्र-इन नक्षत्रों में गोमय दीपदान करना चाहिए। जैसे-रोहिणी, आर्दा, पुष्य, तीनों उत्तरा, हस्त, स्वाती, विशाखा, ज्येष्ठा और श्रवण।

योग-सौभाग्य, शोभन, प्रीति, सुकर्म, वृद्धि, हर्षण, व्यतीपात और वैधृत योगों में गोमय दीपदान करना अत्यंत लाभप्रद होता है।

विशेषः-सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, संक्रान्ति, कृष्ण पक्ष की अष्टमी, नवरात्र एवं महापर्वो पर गोमय दीपदान करना विशेष फलदायक रहता है।

गोमय दीपदान का समय-प्रातः, सायं, मध्यरात्रि तथा अन्य यज्ञकर्म की पूर्णाहूति से पहले किया जाना चाहिए।

कहां करते हैं गोमय दीपदान?

1. देवमंदिर में करते हैं दीपदान। 

2. विद्वान ब्राह्मण के घर में करते हैं दीपदान।

3. नदी के किनारे या नदी में करते हैं दीपदान।

4. दुर्गम स्थान अथवा भूमि (धान के उपर) पर करते हैं दीपदान।


5.अश्वत्थ अर्थात् पीपल तुलसी आदि पूजनीय वृक्ष के समीप करते हैं दीपदान।


6.चौराहा, मार्ग पर करते हैं दीपदान।


7.आकाश में करते हैं दीपदान।


कैसे करते हैं गोमय दीपदान?

1. गोमय के दिये में घी डालकर उससे मंदिर में ले जाकर जलाकर उसे वहां पर रख दें। दीपों की संख्या और बत्तियां खास समयानुसार और मनोकामना अनुसार रखी जाती है।

2. गोमय दीपक बनाकर उसमें घी डालकर रुई की बत्ती जलाकर उसे पीपल या बड़(बरगद) के पत्ते पर रखकर नदी में प्रवाहित किया जाता है।

3. देवस्थल/मन्दिर में गोमय दीपक को किसी आधार पर सप्तधान या चावल के उपर ही रखकर जलाते हैं। भूमि पर रखने से भूमि को आघात लगता है।

कब करते हैं गोमय दीपदान?

1. सभी स्नान पर्व और व्रत के समय दीपदान करते हैं। 

2. धनतेरस, रूपचतुर्दशी या नरकचतुर्दशी और यम द्वितीया के दिन दीपदान करते हैं।

3. दीपवली, अमावस्या या पूर्णिमा के दिन करते हैं दीपदान।

4. दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है।

5. पद्मपुराण के उत्तरखंड में स्वयं महादेव कार्तिकेय को दीपावली, कार्तिक कृष्णपक्ष के पांच दिन में दीपदान का विशेष महत्व बताते हैं।

कृष्णपक्षे विशेषेण पुत्र पंचदिनानि च।

पुण्यानि तेषु यो दत्ते दीपं सोऽक्षयमाप्नुयात्।

अर्थात कृष्णपक्ष में रमा एकादशी से दीपावली तक 5 दिन बड़े पवित्र है। उनमें जो भी दीप आदि का दान किया जाता है, वह सब अक्षय और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है।

गोमय दीपदान करने के फायदे :

1. अकाल मृत्यु से बचने के लिए करते हैं गोमय दीपदान।

2. अपने मृ‍तकों की सद्गति के लिए करते हैं गोमय दीपदान।

3. लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु को प्रसन्न कर उनकी कृपा हेतु करते हैं गोमय दीपदान।

5. यम, शनि, राहु,केतु और अन्य ग्रहों के बुरे प्रभाव से बचने के लिए करते हैं गोमय दीपदान।

6. सभी तरह की बाधाओं, गृहकलह और संकटों से बचने के लिए करते हैं गोमय दीपदान।

7. जीवन से अंधकार मिटे और उजाला आए इसीलिए करते हैं दीपदान।

8. मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं गोमय दीपदान।

9. किसी भी तरह की पूजा या मांगलिक कार्य की सफलता हेतु करते हैं गोमय दीपदान।

10. घर में धन समृद्धि बनी रहे इसीलिए भी कहते हैं गोमय दीपदान।

11. कार्तिक माह में भगवान विष्णु या उनके अवतारों के समक्ष गोमय दीपदान करने से समस्त यज्ञों, तीर्थों और दानों का फल प्राप्त होता है।

12. कांति, ओज, और तेज के लिए करते हैं गोमय दीपदान।

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गोमय श्रीयंत्र Gomaya Shreeyantra

Wednesday, April 15, 2020

शुभ और अशुभ विचार shubh aur ashubh vichaar

शुभ और अशुभ विचार 
shubh aur ashubh vichaar


अक्सर हम किसी नगर या ग्राम में बसने, किसी वाहन आदि की खरीदारी, या कोई उद्योगादि प्रारम्भ करने,इत्यादि अनेकों कार्यों में शुभ और अशुभ प्रभाव का विचार करते हैं।कि हमारे लिए वो कितना शुभ या अशुभ फल देने वाला होगा?


लाभ-हानि का विचार
Profit and loss consideration


किसी नगर, ग्राम आदि में स्थाई निवास बनाने अथवा कोई कारोबार या उसकी कोई शाखा स्थापित करने, कोई भागीदार, प्रबंधक या कर्मचारी नियुक्त करने, किसी से व्यापारिक या आर्थिक स्थाई संबंध स्थापित करने, वस्तु विशेष के उत्पादन या व्यापार करने आदि के समय यह स्वाभाविक प्रश्न उपस्थित होता है कि उस नगर ग्राम या व्यक्ति और वस्तु के कार्य-व्यापार से उसके कर्ता को लाभ होगा या नहीं?

ज्योतिषशास्त्र दृष्टया इसका निश्चय करने के लिए वास्तु प्रकरण में तीन विधियां बताई गई हैं।


1- राशि परित्वेन2-नक्षत्र परित्वेन3-काकिणी परित्वेन


व्यवहार कर्ता व्यक्ति की संज्ञा "साधक" और जिससे व्यवहार करना है उस नगर, व्यक्ति या वस्तु आदि की संज्ञा "साध्य"समझनी चाहिए।

इस सन्दर्भ में नाम, राशि, नक्षत्र का ही उपयोग श्रेष्ठ रहता है।यथा-

काकिण्यां वर्ग शुद्धौ च वादे द्यूते स्वरोदये।
मन्त्रे पुनर्भ वरणे,.     नामराशेः प्रधानतः।।

राशि परित्वेन विचार


साधक की राशि से साध्य( नगर, ग्राम, व्यक्ति विशेष या वस्तु आदि) की राशि 2,5,11,वीं हो तो विशेष शुभ, 9,10 होने पर अल्पशुभ,  तथा 1, 3, 4, 6, 7, 8, 12 वीं हो तो अशुभ समझनी चाहिए।
साधक से साध्य की राशि 1,7 होने पर शत्रुता,3,6 से हानि , 4,8,12,वीं होने पर रोगोत्पात (विपत्ति) कारक होती है।


नक्षत्र परित्वेन विचार


साध्य के नक्षत्र से साधक के नक्षत्र तक साभिजित् गणना करें।7 तक धनैश्वर्य, वृद्धि, मान-सम्मान,8 से 14 तक धन हानि,15 से 21 तक सुखोपभोग तथा सम्पत्ति लाभ।आगे 22 से 28 तक अनिष्ट जाने।

काकिणी विचार



निवास करने वाले वर्ग की संख्या को दोगुना करके स्थान की वर्ग संख्या जोड़कर 8 से भाग दें, जो शेष बचे वह प्रवासी की काकिणी होती है। और स्थान की वर्ग संख्या दूनी करके प्रवासी के वर्ग की संख्या जोड़कर 8 का भाग देने पर ग्राम या स्थान की काकिणी होती है। बसने वाले की काकिणीअधिक हो तो उत्तम लाभप्रद जाने।



काकिणी विचार 2- निवास के लिए तो करते ही हैं, इसको अन्य और भी कामों में विचारा जाता है जैसे- किसी को किसी के साथ फर्म आदि चालू करने के लिए समझौता करना हो। कोई कहे कि मैं अमुक वस्तु विशेष का उत्पादन करना चाहता हूं या दुकान खोलना चाहता हूं। फायदे में रहूंगा या नही? कौन ऋणी और कौन धनी होगा? इसका उत्तर काकिणी परित्वेन सहज प्राप्त कर सकते हैं। पहले शहर का नाम विचार कर, फिर मोहल्ला-नगर का, पुनः ब्लॉक का अथवा सेक्टर का नाम देखकर निर्णय लेना चाहिए। इसी से वाहन,पशु, नौकर चाकर के शुभाशुभ का सहज ज्ञान संभव है।

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Thursday, April 2, 2020

वास्तु में दिशाओ का महत्व Importance of directions in Vastu


वास्तु में दिशाओ का महत्व
Importance of directions in Vastu

किसी भवन/गृह का निर्माण करते हुए हमारा ध्यान सर्वप्रथम दिशाओं की ओर जाता है कि किस ओर कौनसी दिशा है और वह किस कार्य के लिए महत्वपूर्ण है।जिस तरह ज्योतिष मे दशाओं के माध्यम से फलित करते है उसी प्रकार वास्तु मे दिशाओं को वास्तु के लिए मुख्य रुप से देखा जाता है।
सभी दिशाओं का अपना विशेष महत्व और गुण-धर्म निर्धारित किया गया है।
ईशान दिशा- उत्तर-पूर्व की यह दिशा मुख्य रुप से शुभ मानी जाती है, इस दिशा का स्वामी बृहस्पति ग्रह है। यहा वास्तु पुरुष का मुख होता है। यहां सभी सात्त्विक ऊर्जाएं होती है। सर्वप्रथम सूर्य यही से उदय होता है जो ऊपर आने पर पूर्व से उगता दिखाई देता है। सूर्योदय के समय यहां उन्नत पराबैंगनी किरणों का आगमन होता है। यह दिशा योग, पूजा-पाठ, ध्यान, धार्मिक ग्रंथ और आध्यात्मिक कार्य के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। इस दिशा मे सबसे कम भार  होना चाहिए और इसी दिशा मे ही ढलान होनी चाहिए।ईशान को सबसेअधिक खुला व साफ रखना चाहिए।यहां हल्का सामान रखना चाहिए।इसी स्थान को पानी, बोरिंग और खुदाई के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। ईशान मे बढा भुखंड भी इस दिशा मे ढलान होने के समान शुभ माना जाता है। यहां कटाव, कूडा, बंद होना अशुभ होता है। यहां कटाव होना यानि वास्तु पुरुष का सिर कटा होना है। ईशान मे कटाव होने का कारण जातक को अपना चेहरा छुपाने के लिए बाध्य होना पडता है और संवादहीनता के कारण घर मे झगडा बना रहता है।भाई-बहनो से रिशता मधुर नही रह पाता और साहस की भी कमी बनी रहती है साथ ही जातक को आंख नाक, कान और गले की समस्याएं बनी रहती है क्योंकि ज्योतिष मे यह कुंडली का दुसरा व तीसरा भाव होता है।
यहां दोष होने से स्वास्थय सम्बंधित परेशानी आती है जैसे माईग्रेन, दिमाग भ्रमित, ब्रेन हेमरेज़,गलत निर्णय और अवसाद रहता है। कर्ज़ लेने व देने मे परेशानी होती है और धन का नुकसान होता है। परिवार मे आपस मे गलत-फहमी की वज़ह से झगडा रहता है।
यहां ऑफिस गेट होने से बिज़ली से जुडी परेशानी होती है। यहां दरवाजा होने से आग, नुकसान और दुर्घटनाओं होती है।
यहां रसोई होने से गुस्सा, निराशा और मानसिक उलझन रहती है।
यहां स्टोर होने से दिमाग बंद हो जाता है। यहा शौचालय होने से मानसिक दोष होता है। यहां
ज्यादा बैठने से जिंदगी मे उदासीनता रहती है।
यहां बडे-बडे पेड न हो केवल छोट-छोटे रंग-बिरंगे फूलो वाले पौधे ही यहां शुभ माने जाते है,तुलसी, पुदिना, हल्दी, धनिया आदि के पौधे और कोई आयुर्वेदिक पौधे भी इसी जगह लगाये जा सकते है। इस दिशा मे अपने गुरु और आदर्श व्यक्ति की तस्वीर लगा सकते है।
ईशान मे होने वाले दोष व दोषो के लिए उपाय:-
Remedies for defects and defects in North-East
अगर यहां शौचालय है तो तीन कांसे के कटोरे ऊपरी हिस्से मे रखे। समुद्री नमक का कटोरा रखे। दरवाज़ा हमेशा बंद रखे।यहां रसोईघर होने से गैस स्टोव के ठीक ऊपर कांसे के कटोरा किसी स्लैब पर रखे।
यहां ऑवर हैड टैंक हो या सीढियां हो तो दो ताम्बे के कछुए एक-दुसरे की ओर मुख करके सबसे नीचे के स्टेप पर रखे।
ईशान क्षेत्र उत्तरी पूर्वी दीवार कटी हो तो दीवार पर एक दर्पण लगाये।
अगर आपके घर मे कामचोर या आलसी लोग हो तो यहां सुबह-सुबह के सूर्य के साथ उडते हुए पक्षियों का चित्र लगाये।
बर्फ से ढके कैलाश मे महादेवजी की ध्यान मग्न मुद्रा मे बैठे हुए एक चित्र लगाये जिसमे उनकी जटा से गंगा  निकल रही हैं।
पूर्व- यह सूर्य की दिशा है जो सभी ग्रहों का राजा है। यहां के दिक्पाल देवता इंद्र है जो देवताओं के राजा है। इस दिशा मे बना मार्ग सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। कोई भी नया कार्य करते हुए पूर्व दिशा मे मुख कर बैठने से ऊर्जा व नये प्राणशक्ति का संचार होता है। सूर्योंदय के साथ ही नये दिन का आरम्भ होता है,जिससे इस दिशा को नव कार्य के प्रारम्भ करने की दिशा कहा जाता है। इस दिशा मे स्नानघर बनाना शुभ माना जाता है,लेकिन यहां शौचालय नही होना चाहिए।
इस दिशा मे तरण ताल, अध्ययन कक्ष, भोजन कक्ष, बैठक, बच्चो का कमरा और रसोईघर बनाने के लिए उत्तम रहेगा। इस दिशा को भी हल्का रखना चाहिए और ये दिशा बढ़ी हुई ही शुभ है।
क्योंकि सूर्य की प्रात:काल की किरणे यही अधिक देर तक रहती है। यह एक प्रकाशित क्षेत्र है जो ईशान और आग्नेय के मध्य स्थित है जो तमस व रज़स गुणो के बराबर अनुपात मे है।ज्योतिष मे सूर्य सिंहराशि  का स्वामी और मेष मे उच्च का माना जाता है। प्रथम भाव को पूर्व दिशा का स्वामी माना जाता है जो सिर और मस्तिष्क से जुडा है। पूर्व दिशा का कटा होना, ऊंचा या बंद होना आपके दिल और दिमाग के कार्य को कमज़ोर बनाता है। सिरदर्द, गंजापन, कमज़ोर आंखे, पीलिया, बवासीर, पेट का अल्सर और हड्डियों की समस्या भी तभी होती है। सूर्य सत्ता का कारक है जिससे ये दिशा खराब हो तो राज़नीति मे समस्याएं होती है। राज़नीति मे कार्य की सफलता और सरकारी पद प्राप्त करने के लिए पूर्व दिशा का दोष रहित होना चाहिए।
पूर्व दिशा के दोष दूर करने के लिए कुछ उपाय:-
Some remedies to remove faults of east direction: -
अगर पूर्व दिशा कटी हो तो पूर्व दिशा मे एक आईना लगाना चाहिए।
सूर्यदेव की ताम्बे से बनी प्रतिमा पूर्व दिशा मे लगाये।
सुबह सूर्य को जल को चढाये और गायत्री मंत्र का जाप करे। गुड और चने बंदरों को खिलाये।
इस दिशा मे सुनहरे पीले रंग का बल्ब लगाये। पूर्व की दीवार मे उगते सूर्य के साथ उडते पक्षियोंका चित्र लगाये।
इस दिशा मे गुलाब के फूल और यहां लाल या सुनहरे पीले रंग का प्रयोग करे।
आग्नेय दिशा- यह दक्षिण-पूर्व दिशा शुक्र की दिशा है इसके दिक्पाल अग्नि देवता है। इस दिशा मे अग्नि से जुडे रसोईघर के कार्य, विद्युत उपकरण, हीटर, बॉयलर, इलेक्ट्रानिक, टेलिविज़न,कम्पयुटर, जनरेटर और विद्युत से जुडे कार्य तथा उत्साही करने वाले मनोरंज़न के उपकरण हो सकते है। यह दिशा प्रकाश का मध्य बिंदु है तभी यहां सूर्य अपनी चर्म सीमा मे होता है और यहां दिन भर प्राकृतिक रोशनी बनी रहती है जो भोजन को रुचिकर, तेजस और पोषक बनाता है।
आग्नेय दिशा वायव्य से भारी लेकिन नैऋर्त्य से हल्की होनी चाहिए।
यहां का क्षेत्र बढा हो या यहां ढलान/गड्ढा हो तो आग को जगह मिल जाती है जिससे रहने वालो
का पित्त बढ जाता है और ह्रदय रोग, रक्तचाप, पेट मे अल्सर और आंखो का रोग हो सकता है।
आग्नेय दिशा के कटने या कम होने से शरीर मे सुस्ती, निम्न रक्तचाप, नपुंसकता और जीवन मे
अरुचि देता है। यहां कभी जल के लिए खुदाई नही करे नही तो बेवज़ह खर्चे, मीन-मेख निकालने का स्वभाव, विवाह मे अरुचि और झगडे होते है।
इस दिशा से अच्छी आय, स्वास्थय, आपसी प्रेम और शारीरिक शक्ति मिलती है। यहां दोष होने से घर मे आग लगना, दिल की बीमारी, अवसाद, अच्छी नौकरी न मिलना, तलाक, बाहरी संबंध, कोर्ट केस और जीवन साथी के साथ अनचाहे विवाद रहते है।
ज्योतिष में एकादश व द्वादश भाव आग्नेय दिशा को बताता है। जिससे यह इस दिशा मे
दोष हो तो बेवज़ह के मुकद्दमों, बीमारियों, बच्चों के विवाह और अपनी ही ईच्छाओं मे धन खर्च होता है। इन भावो मे राहु हो तो आग्नेय मे जूते व पूराने सामान रखे जाते है। द्वादश भाव मे शनि, राहु केतु य मंगल हो तो आग्नेय मे भारी बोरिंग, गडढा, या कोई दोष होगा या
अनावश्यक वस्तुओं के रखने का स्थान बन जाएगा। केतु के होने से यहां सुरंगनुमा कुछ होगा।
राहु व शनि के होने से यहां सीलन या अंधेरा हो सकता है।
यहां रहने वालो की कामानायें बहुत बढ जाती है और घर मे संतुष्टि न मिलने पर बाहर भटक
जाता है। ऐसे मे विवाह का कारक शुक्र, मंगल के प्रभाव मे आकर घर मे अशांति लाता है और
पति-पत्नि बेवज़ह आपस मे लडते ही रहते है। जिससे समाज मे हंसी का कारण बनते है।
आग्नेय मे दोष होने पर कुछ उपाय अपनाये:-
Follow some remedies if there is a defect in the south east
यहां सोने का कमरा होतो पलंग को दक्षिण-पश्चिम के किनारे रखे। अपना सिर दक्षिण की ओर रखे।
यह दिशा बडी हो तो यहा कोई परदा लगाये जिससे यह सामान्य आकार मे लगे और ईशान
दिशा को बढाये।
अगर यहां गडढा हो तो उसको मिट्टी से भर दे। यह दिशा कटी हो तो यहां अग्नि का दीपक
जलाये और एक शीशा भी लगा सकते है।
यहां ऊंचे पेड नही लगाये बल्कि रंग-बिरंगे लाल और सुनहरी फूलों वाले पौधे लगाये।
यहां खिडकी नही हो तो सुनहरे पीले या नारंगी-लाल रंग का बल्ब जलाये।
प्रत्येक शुक्र्वार को गाय को रोटी खिलाये और संगरमर की गाय की मूर्ति इस दिशा मे रखे।
दक्षिण दिशा:- यह यम की दिशा है जिसका स्वामी ग्रह मंगल है। इसका प्रथम और अष्टम दोनो भावों पर अधिकार है। इसी दिशा को सबसे अधिक गर्म और प्रकाश देने वाली दिशा कहते है।और वर्षभर सामान्य तापमान उच्च बना रहने के कारण तीव्र गरमी रहती है।
यम की यह दिशा शयनकक्ष के लिए सर्वोत्तम है, जो यम के स्वभाव से मिलती है। यहां भारी
निर्माण करने और दिशा को कम खुला रखना चाहिए किन्तु इस दिशा को एकदम बंद भी नही रखना चाहिए। इस दिशा मे मोटी और भारी दीवारे तथा भारी गहरे रंग के पर्दे होने चाहिए। यहां ऊंचे पेड लगाये जा सकते है। अंदरुनी पौधे जैसे पाम, रबर प्लांट या भारी गमले क्रिसमस ट्री आदि रख सकते है।
दक्षिण दिशा खुली या बढी हुई हो तो शरीर मे पित्त होना, नशे का आदी होना, वैवाहिक सुख मे कमी, वाद-विवाद या जिद्दीपन होता है।
दक्षिण दिशा में दोष के लिए उपाय:-
Remedy for defects in south direction: -
यह दिशा बढी हुई हो तो किसी तरह आकार मे लाने की कोशिश करे।
यहां गडढे हो तो मिट्टी से भर दे और यहां भारी सामान रखे।
घर या कार्यलय मे इस दिशा मे पीठ करके बैठे।
इस दिशा मे हनुमानजी का चित्र या बच्चो के लिए प्रेरणादायक चित्र लगा सकते है।
नैऋर्त्य दिशा:- इस दक्षिण-पश्चिम की दिशा को अशुभ माना जाता है जिसका स्वामी ग्रह राहु
है। इस दिशा का दिक्पाल निऋति राक्षस है। यहां वास्तु पुरुष के पैर होते है। इस दिशा को
सबसे ऊंचा रखना चाहिए और ढलान ईशान की ओर रखनी चाहिए। यहाँ द्वार न हो, न ही यह दिशा खुली हो, यहाँ ठोस मोटी दीवारे होनी चाहिए। इस दिशा मे घर के मुखिया का शयनकक्ष और पूर्ण विश्राम की जगह का निर्माण करना चाहिए। यह दिशा सीढियों, बैंक/तिजोरी, भारी फर्नीचर, गहने, अलमारियों और गुप्त कार्य के लिए बेहतर है।
यहां तक सूर्य के आते-आते किरणे रेडियोधर्मी  हो जाती है। जो सबसे विषैली होती है।
यहाँ पडने वाली किरणे पेयजल को विषैला बना देती है। अत: यहां भूमिगल जल-टंकी, पम्प या अधिक देर तक ठहरा पानी निषिद्ध कहा गया है। यह सबसे तामसिक दिशा है। इस दिशा को भारी और ऊंचा बनाना चाहिए।
यहाँ दोष होने से व्यापार मे नुकसान, खर्चे, पैसा ब्लॉक होना, कर्ज़ की परेशानी, पैरो मे
परेशानी, पैरालाईज़, किडनी की परेशानी, बच्चो का गलत संगति मे और पति-पत्नि के बीच विवाद के साथ वे एक दुसरे को धोखा देने लगते है।
यह दिशा गतिहीनता व गोपनीयता की दिशा है जिससे यहां आराम करने से नींद पुरी होती है।
यहाँ घर के मुखिया और धन कमाने वाले प्रमुख सदस्य को सोना चाहिए। इस दिशा को ऊंचा
रखने से आत्मविश्वास भरा रहता है। यहां गर्भवति स्त्री या नवज़ात शिशु को अपनी माँ के साथ सुलाना चाहिए। यहाँ बच्चों को नही सुलाना चाहिए नही तो बच्चे जिद्दी हो जाते है। इस दिशा की दिवारे मोटी बनानी चाहिए और यहाँ खिडकियां कम बनानी या कम खुली होनी चाहिए।
ज्योतिष के अनुसार कुंडली का अष्टम और नवम भाव नैऋर्त्य कोण में पडता है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा के वास्तु दोषो के लिए कुछ उपाय:-
Some remedies for Vastu defects of south-west direction
यह दिशा बढी हुई, नीची या यहाँ गड्ढे होने से असहनीय परेशानियां होती है। इस दिशा में किसी तरह संतुलन कर व मिट्टी से गड्ढों को भर देना चाहिए और भारी सामान रख कर ऊंचा बनाना चाहिए। इस दिशा मे चार दिवारी बना कर बडे-बडे भारी गमले रखने चाहिए।
यहां रसोई हो तो गैस को आग्नेय दिशा मे रखे। रसोई मे पीला रंग करवाये।
यहां बोरिंग होतो यहां उल्टे हाथ मे गदा सहित खडे हुए पञ्च मुखी हनुमानजी की मूर्ति लगाये।
घर या कार्यस्थल मे इस दिशा की ओर पीठ करके सोना चाहिए।
यहां भारी मुर्तियां रखे या पहाड का चित्र लगाये।
नीव रखते समय यहां ताम्बे के नाग-नागिन दबादे या किसी भी धातु के सिक्के दबा सकते है।
पश्चिम दिशा- इस दिशा का स्वामी ग्रह शनि है। जिसे अंधेरे की दिशा भी कहा जाता है क्योंकि
सूर्य यही आ कर छिपता या अस्त होता है। शनि दीर्घायु और मृत्यु का ग्रह है जिसमे प्राणशक्ति देने वाली ऑक्सीजन है। ज्योतिष मे सप्तम भाव को पश्चिम दिशा का स्थान दिया गया है। यहां शनि को दिग्बल भी मिलता है। यहां के दिक्पाल वरुण देव हैं जो विशाल
जलराशियों के स्वामी है जिससे यहां की छ्त पर जल की टंकी रखी जाती है। यह तामसी व राजसी दिशा कहलाती है जिससे छ्त की टंकी पर खडा पानी तामसी ऊर्जा से भरा ही होता
है और पानी का नियमित प्रयोग होने से राजसी ऊर्जा का प्रवाह भी रहता है।
इस दिशा मे अध्ययन कक्ष, भोजन कक्ष, पुस्तकालय, बैठक और सभी तनावो से मुक्त होने का कमरा होना चाहिए। अगर यहाँ का हिस्सा बढा हुआ है तो कोशिश करे की सही आकार दे या यहाँ अलमारी को स्थान दे सकते है। यहा गड्ढा हो तो इस दिशा को मिट्टी से भर दे और ऊंचा कर दे और यहां भारी सामान रखे। यहां की दिवारे भी भारी होनी चाहिए और यहां भी कम खिडकी व दरवाजे रखे, जिससे पूर्व से आने वाली सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहे। शनि की यह दिशा भूख बढाने और भोजन को पचाने मे सहायता करती है। इस दिशा मे नांरंगी रंग करने से भूख बढती है और खाना जल्दी पच जाता है।
पश्चिम दिशा के वास्तु दोष के लिए उपाय:-
Remedy for Vastu Dosh of West direction: -
घर या कार्यलय मे इस दिशा मे पीठ करके ही बैठे जिससे कार्य मे गम्भीरता आएगी।
यहां भारी सामान या बडे पेड-पौधे लगा सकते है।
वायव्य या उत्तर-पश्चिम दिशा- इस दिशा का स्वामी चंद्रमा है और दिक्पाल वायुदेव है। वायु
का काम है बहना, वायु की दिशा होने से यहाँ रहने वाले व्यक्ति का स्वभाव चंचल हो जाता है।
ज्योतिष के अनुसार यह दिशा जन्मपत्रिका मे पंचम(मानसिक कर्म) और षष्ठ भाव(रोग) को दिखाती है।
जिससे यह दिशा स्वागत कक्ष, नौकरों का कक्ष, नव-विवाहितों का कक्ष, अविवाहित कन्या कक्ष,वाहन, पालतु पशु, खाधान्नों के भंडारण और मनोरंजन कक्ष के लिए उपयुक्त है। यह दिशा काम-सुख, विदेश जाने वाले और जन्म स्थान से भी दूर जाने वालो के लिए उत्तम है।
जैसे सूर्य पश्चिम मे अस्त होता है वैसे चंद्रमा वायव्य मे उदय होता है। यह दिशा गर्म और ठंडे क्षेत्र का मिलन स्थान है। यहाँ चंद्रमा का स्थान होने से मानसिक शान्ति भी मिलती है। सूर्य के अस्त होने और वायव्य मे वायु के तीव्र प्रवाह होने के कारण यह क्षेत्र दिनभर के तनावों, रोगो,दुखों और क्रोध से मुक्ति पाने के लिए उत्तम है। रसोई घर के लिए दुसरी उत्तम दिशा है, वायु अग्नि को जलने मे सहायता करती है और अनाज को नमी और कीटनाशकों से बचाती है।
जो देर रात तक टी.वी. देखना पसंद करते है उनकी आदत छुडाने के लिए यहां टी.वी. रख दे
जिससे देखने वाले को कुछ देर मे ही बैचेनी होने लगेगी और वह उठ कर चला जाएगा। यह क्षेत्र भी सामान आकार का होना चाहिए, अगर यह क्षेत्र बढा हुआ है या ऊंचा है तो वायु तत्व बढ जाएगा जिससे बिना सोचे बोलना, ऊंचा बोलना, अधिक गतिशीलता जैसा व्यवहार हो सकता है। ऐसी स्थिति मे चंद्रमा भी पीडित होता है जिससे मिर्गी, भय, मानसिक रोग, आत्मघात और जातक को मतिभ्रम होने पर घर से भाग भी सकता है। बिगडे वायव्य से बात-बात पर झगडे हो सकते है और जिगर, पेट, गूर्दे और आंतो की बीमारियां हो सकती है। पडोसियों से रिश्ता मधुर नही रहता, कोर्ट-केस, दोस्तो से अधिक दुशमन होना, पुलिस केस, धन का नुकसान, फेफडे की परेशानी, कैंसर और सांस की परेशानी होती है।
यदि वायव्य कटा हो या ऊंचा हो तो जिससे चक्कर आना, सिरदर्द, आलस और बलहानि होती है। जातक घर ही रहना पसंद करता है और स्त्रियों व बच्चों का स्वास्थय भी कमज़ोर
रहता है। इस दिशा मे पानी के लिए बोरिंग करना शुभ नही है।
वायव्य दिशा में वास्तु दोष के लिए उपाय:-
Remedy for Vastu Dosh in Vyavya direction: -
यह दिशा कटी हुई हो तो यहां मरुतदेव हनुमान जी की तस्वीर लगाई जा सकती है।
यहां के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए पूर्णिमा के चंद्र की भी तस्वीर लगाई जा सकती है।
यहां ताज़ा फूलों का गुलदस्ता रखे। यहां छोटा सा फव्वारा व मछलियों को भी रख सकते है।
प्रतिदिन गंगा जल मिला जल शिव-लिंग पर चढाये।
उत्तर दिशा- वास्तु अनुसार यह दिशा शुभ मानी जाती है जिसका स्वामी ग्रह बुध है यह दिशा
अध्ययन कक्ष, बैठक के लिए बेहतर दिशा है। यहां के दिक्पाल कुबेर है। कमज़ोर बच्चों के लिए यह दिशा बहुत उत्तम मानी जाती है। यहां जल्दी खराब होने वाले खाध पदार्थ, रेफिजरेटर,खर्च के लिए धन, औषधियों के लिए सर्वोत्तम स्थान है। जन्मपत्री का चौथा भाव(माता व वाहन-निद्रा) उत्तर दिशा है, दिन भर की थकान के बाद अंधकार, ठंडक और आराम के साथ नींद लाने के लिए यह दिशा उत्तम है। वायव्य का स्वामी चंद्रमा(जडी-बुटियों का कारक) यहां दिग्बल प्राप्त करता है। तभी यह स्वास्थ्य व औषधियों की दिशा है। ईशान और उत्तर के मध्य की दिशा दवाईयां रखने के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है।
जातक को अपने जीवन की सफलता और धन के लिए उत्तर की ओर मुख रखना चाहिए। यहां
खिडकी व दरवाजे होना सबसे शुभ माना जाता है यह दिशा खुली और साफ होनी चाहिए।
यहां मनीप्लांट व तुलसी का पौधा रखना चाहिए और इस दिशा मे बोरिंग होना व खुदाई करके कुछ पानी के लिए स्थान बनाना शुभ माना जाता है। उत्तर दिशा मे ही पानी की ढलान होनी चाहिए। यह दिशा कटी होने से वाक शक्ति मे कमी, अस्थमा या सांस की बीमरी, धन कमाने के अवसरो मे कमी व असंतुलित शरीर होता है।
उत्तर दिशा के वास्तु दोषो के लिए उपाय:-
Remedy for Vastu defects of North direction:
यह दिशा कटी हो तो यहां एक दर्पण लगाये। यह दिशा घटी हो तो यहां देवी लक्ष्मी जो कमलासन पर विराज़मान या चंद्रमा का कोई चिन्ह लगाये।
यहाँ खुला न होने पर चंद्रमा सी नारंगी सफेद रोशनी बिखरने वाला बल्ब जलाये।
उत्तरी दिवार पर हरे तोते का चित्र लगाये। यहां छोटे फूलो वाले सफेद फूलो के पौधे व
सदाबहार फूलो के पौधे लगाये।
ब्रह्मस्थान: यह दिशा घर के केंद्र स्थान यानि मध्य भाग मे स्थित है। इस दिशा मे वास्तु पुरुष
का पेट/नाभी का स्थान है क्योंकि वह औंधे मुख उलटे होते है। यह ब्रह्माजी का स्थान है। इस स्थान पर किसी भी प्रकार का भार, बीम व दीवारो आदि का निर्माण नही रखे और इस दिशा को खुला रखे। पुराने समय मे यहाँ तुलसी, कुल देवता का मंदिर या अन्य धार्मिक उत्सवों के लिए खुली छत रखी जाती था। यहां की दिशा भवन के फेफडो के रुप मे मानी जाती है। यहां गंदी वस्तुएं, जुठन या चप्पले रखने से घर के निवासियों को नुकसान पहुंचता है।
ब्रह्मस्थान व पिशाच स्थान(भवन का सबसे बाहरी स्थान) मे दबाव या बंद होने से जातक मानसिक रोग, अवसाद, पिशाच बाधा, त्वचा की परेशानी व मनोवैज्ञानिक रोग हो सकते है। ब्रह्मस्थान मे दोष होने से स्त्रियों के पेट की समस्याओ के साथ संतान सुख मे भी कमी आती है। जिन लोगो की कुंडली मे चंद्र राहू योग हो उनको ब्रह्मस्थान व पैशाच स्थान खुला रखना चाहिए।
ब्रह्मस्थान व पैशाच स्थान का खुला होना वायु की आवश्यकता को पूरा करता है। मकान मे वायु की कमी के कारण आलस, सिरदर्द, अवसाद, भूख न लगना, मुख से दुर्गंध और एकाग्रता मे कमी आती है। इस स्थान को आम उठने-बैठने,हॉल कमरे या खुले बरामदे के रुप मे इस्तेमाल करना चाहिए। आज कल के फ्लैट वाले घरों मे ऐसा सम्भव नही है तो कोशिश करे यहां खाली ही रखे
और नहाने, खाने-पीने सोने जैसे कायों से बचे।

पञ्च तत्व और वास्तु Five elements and vastu


पञ्च तत्व और वास्तु
Five elements and vastu

पञ्च तत्व अर्थात् अग्नि,पृथ्वी, वायु, ज़ल,और आकाश।
ये पञ्च तत्व ही हमारी सृष्टि का आधार हैं। इन्हीं पंचतत्वो से ही भवन/गृह का निर्माण होता है। इनका संतुलित होना ही सकारात्मक का कारण है।सर्वप्रथम आकाश बना, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और अंत मे जल से पृथ्वी बनी, यह विकास हमारे जीवन के विकास से मेल खाता है।
ये पंच तत्व हमारे अंदर और बाहर सभी जगह विद्यमान हैं। वास्तु मे इनके संतुलन पर मुख्य रुप से ध्यान दिया जाता है। वास्तु नाम ही इन पंचत्तवो का आधार है।

1-आकाश- मनुष्य इस अन्नंत आकाश से घिरा हुआ है। वास्तु मे ब्रह्मस्थान ही आकाश तत्व यानि केंद्र स्थान है। यह भवन का नाभि व ह्रदय का स्थान है। यहां कोई भी भारी वस्तु, खम्बा, सीढी, शौचालय, रसोईघर व स्टोर नही होनी चाहिए। जिससे पाचन संबंधी रोग व पेट की समस्या होती है। यह सबके बीच संबंध स्थापित करती है। हर तत्व संतुलित मात्रा मे होना चाहिए।
आकाश तत्व की अधिकता होने से दबाव व अवसाद की समस्यायें होती है। जो जन्मपत्रिका मे पिशाचादि दोष के समान है। जिसमे राहु चंद्रमा साथ मे हो। यह सबसे रहस्यात्मक और विस्तार का तत्व है।
जो अनचाही शक्तियों से परेशान करता है।इसके सम होने से शारीरिक, मानसिक,
आध्यात्मिक, भौतिक व सामाजिक जीवन मे शुभता आती है। यह तत्व हमारे मानसिक विचार व प्रक्रिया को संतुलित करता है। इसके संतुलित होने से भाग्य मे उन्नति, कार्य की क्षमता, रचनात्मक, ज्ञान और विचारो के जागरुकता के साथ लाभ भी मिलता है।

2-वायु- वायु तत्व जीवन जीने के लिए आवशयक है। इसे वायव्य दिशा का स्वामित्व प्राप्त है।
जिसका स्वभाव रज़स है और वात रोग देती है। इसका भवन मे संतुलित होना जीवन मे वृद्धि
का कारण है और जीवन मे ताज़गी का अनुभव, आनंद, साहस और खुशी आती है।इसका संतुलन होने से जातक को तरक्की और प्रभावशाली व्यक्त्तित्व मिलता है। वायु तत्व का मुख्य गुण स्पर्श है और शनि ग्रह वायु तत्व का स्वामी है। मनुष्य साफ और ताज़ी हवा के बिना बीमार हो जाएगा क्योंकि वायु मे ही ऑक्सीज़न है जो मनुष्य का प्राण है। भवन मे एक दरवाज़ा दुसरे दरवाज़े के ठीक सामने नही होना चाहिए जिससे वायु का प्रवाह संतुलित रहता है। व्यवसायिक या किसी कम्पनी मे कर्मचारियों को यहां नही बैठना चाहिए क्योंकि यहां होने से मन अस्थिर रहता है और कार्य मे मन नही लगता है। किसी बिकने वाले तैयार सामान को यहां रखे और दुकान व शोरुम मे भी रोजाना इस्तेमाल होने वाली साम्रगी यहां रखे। कैश या लॉकर यहां नही होना चाहिए यहां रखा धन स्थिर नही रहता है। यहां कबाडरखने या बंद होने से सांस लेने मे परेशानी होती है और बच्चो की शिक्षा मे बाधा आती है, और मन पढाई मे अस्थिर रहता है।

3-अग्नि- अग्नि का का कार्य ताप और प्रकाश देने का है। अग्नि का मुख्य गुण हमारी दृष्टिं इन्द्रियां हैं, जो आंखो व रंगो द्वारा शासित है। सूर्य व मंगल अग्नि तत्व के ग्रह है। यह पित्त दोष देती है। गर्मी की सही मात्रा ही जन्म दे सकती है कोई भी जीव पौधा या मनुष्य अग्नि के बिना जन्म नही ले सकता है। वास्तु मे यह पूर्व-दक्षिण दिशा(आग्नेय) मे व्याप्त रहती है। जो आधुंनिक जीवन मे धन के प्रवाह को दिखाती है। जो आत्मविश्वास के साथ उत्साह देती है। यह हमे हमारे लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इच्छाशक्ति और लगन देता है। दक्षिण मे पानी की टंकी का होना आग, बैचेनी,अशांत नींद का कारण बनती है।इसके संतुलित होने से प्रसिद्धि और पहचान मिलती है, जिससे जातक को आत्मविशवास व शक्ति मिलती है और वह धन कमाने मे पूर्णता सक्षम होता है। यह भवन मे जनरेटर, इलेक्ट्रिक सामान, लाल रंग और त्रिकोण के रुप मे हो सकती है। यहां बेडरुम
होने से जातक का मन चिडचिडा और बैचेन रहता है। यह अग्नि की दिशा है एक इंसान जलती आग मे नही रह सकता है। यहां पानी के साधन, पाईपलाईन व स्विमिंग पूल नही होने चाहिए।यहां जल होने से जातक मुकद्दमों, मानहानि, मशीनरी के खराब, तनाव व बिज़ली के उपकरण संबंधी समस्याये आती है।

4-जल- पांचो तत्व मे जल सबसे कम तत्व है जिसका गुण स्वाद व रस है जिसका स्वभाव सात्विक है ,और जो कफ दोष का निर्माण करता है। चंद्र और शुक्र अस्थिर जल तत्व के ग्रह है। जिसकी मुख्य दिशा ईशान यानि उत्तर-पूर्व व उत्तर है। भवन मे यहां अग्नि का होना नये अवसरों, धन,और कार्य मे कमी कर देती है। इस दिशा मे जल का होना या नीले रंग का होना सकरात्मकता लाता है। जिससे लोग जीवन को बडे दृष्टिकोण से देख पाते है और आध्यात्मिक जीवन जीते है।जल का स्वभाव बहना है और बहुत शर्मीला स्वभाव है जो धरती के गर्भ मे छिप जाना चाह्ता है। वास्तु मे पानी का चयन सबसे महत्वपूर्ण है। यह नींव के पास हुआ तो आवास मे सीलन पैदा कर देगा और ठहरा रहा तो दुर्गंध पैदा कर देगा। यह सात्विक स्वभाव का अस्थिर तत्व है। यह तत्व नये-नये विचार, सोच, अवसर, विचारो की स्पष्टता, दूर-दृष्टि और मज़बूत रोग प्रतिरोधक क्षमता देती है। यह भवन मे झरना, बोरिंग, मंगल कलश, झरने वाली पैटिंग, नीला रंग, पानी का कोई भी स्रोत, मछली घर या स्विमिंग पूल के रुप मे हो सकता है। घर मे नल का बहना भी धन की बर्बादी या चोरी होने का प्रतीक है।

5-पृथ्वी- यह तत्व मुख्य रुप से वास्तु के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जमीन का चयन करने के बाद ही हम उस पर भवन का निर्माण करते है। पृथ्वी का आकार निश्चित है और इसकी दिशा नैऋर्त्य है जिसका गुण तमस और स्थिरता है। यह संतुलन, धैर्य, स्वस्थता और मज़बूती का तत्व है।
तमस का अर्थ क्रियाहीनता, आलसीपन और अंधकार है। इसका ग्रह बुध है और गंध द्वारा पृथ्वी की उपयोगिता की पहचान होती है। इस तत्व के संतुलन होने से कार्य, व्यवहार व रिश्तों और प्रयासो मे सफलता मिलती है। यह भवन मे मिट्टी या पत्थर से बनी कोई चीज़, पीला रंग,
क्रिस्टल क्लस्टर या भुरे रंग की भी कोई वस्तु के रुप मे हो सकता है। यहां बंद होना, भारी
मशीने या स्टोर होना भी पृथ्वी तत्व का घोतक है। यहां तहखाने का होना, बोरिंग, ढलान और
भुमिगत पानी की टंकी होना वास्तु दोष का कारण है जिससे जीवन मे अस्थिरता आती है और आर्थिक नुकसान होता है।

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वास्तु में ग्रह, दिशा तथा रंगो का मह्त्व Importance of planets, direction and colors in Vastu


वास्तु में ग्रह, दिशा तथा रंगो का मह्त्व
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वास्तुशास्त्र के अनुसार ग्रहों और दिशा के साथ रंगो का भी अपना ही मह्त्व है। रंगो का हमारे व्यक्तित्व व मनःस्थिति पर बहुत प्रभाव पडता है। घर मे रंग सुंदरता के लिए प्रयोग किए जाते हैं ये रंग समृद्धि और सौम्यता भी लाते है। इन रंगो का हमारे शरीर में स्थित सातों चक्रों पर भी बहुत प्रभाव पडता है। रंगो से ही रोशनी मे कम्पन(Vibration) होती है और हमारा वातावरण प्रभावित होता है। रंग हमारे जीवन में बहुत महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कुछ रंग हमें उत्तेजित करते हैं, कुछ हमें क्रोधित करते हैं और कुछ रंग हमें शांत करते हैं। शरीर और मन को स्‍वस्‍थ रखने के लिए रंगों का सही संतुलन बनाए रखना बहुत आवश्‍यक है। शरीर में रंग विशेष की कमी या अधिकता के कारण शारीरिक और मानसिक समस्‍याएं उत्पन्न हो जाती हैं। रंगो का वास्तु और ज्‍योतिष में बहुत महत्‍व है, हर ग्रह व दिशा का अपना एक अलग रंग है जो हमारे जीवन पर प्रभाव डालता है रंगों के सही प्रयोग से ग्रहों को भी अनुकूल किया जा सकता है।

लाल रंग – सूर्य और मंगल ग्रह लाल रंग के स्‍वामी है। लाल रंग कामावेग, अग्नि की गर्मी,संवेदनाओं, इच्‍छाओं, भावनाओं व क्रांति का प्रतीक है। वास्‍तुशास्‍त्र अनुसार यह दक्षिण दिशा का रंग है। जिन लोगो को यह रंग पसंद होता है वे विशाल हृदय के स्‍वामी, उदार उत्तम व्यक्तित्‍व गुणों वाले होते हैं। ऐसे लोग साहसिक जीवन जीते है।
सर्दियों मे घर के दक्षिणी और के खिड़कियों दरवाजे खोलकर रखें, इससे घर में काफी मात्रा में लाल रंग प्राकृतिक रूप से आ जाता है, लाल रंग घावों को जल्‍दी ठीक करता है।लेकिन पागल इंसान के लिए बहुत खतरनाक है। मंद बुद्धि लोगों, अविकसित मस्तिष्‍क
वाले और हीन भावना से ग्रस्‍त लोगों के लिए लाल रंग वरदान है यह सुस्‍त, काहिल,नि‍ष्‍क्रय लोगों को सक्रिय करता है।

पीला रंग – पीला रंग अग्नि में समाहित होता है यह रंग गुरू के ताप का गुण रखने वाले इस रंग में साहस, विद्धता और सात्‍विकता है। गुरू स्वर्ण अर्थात् सोने का स्‍वामी है।
यह रंग हमारे शरीर की गर्मी का संतुलन बनाए रखता है। यह आज्ञानरूपी अंधकार दूर करने वाली वैज्ञानिक बुद्धि का प्रतीक  है। रहस्‍यवादी लोग अशुभता को दूर भगाने के लिए हल्‍दी से स्वास्तिक, ॐ,शंख,चक्र आदि पवित्र चिन्‍ह बनाते हैं। पीला रंग बच्‍चों को सक्रिय करता है,ऊर्जा से भरता है और सृजनात्‍मकता देता है।सुस्‍त मंद‍बुद्धि बच्‍चों के अध्‍ययन कक्ष के लिए यह रंग शुभ रहता है। यह रंग पक्‍के फलों, सब्‍जियों और अनाजों का प्रतीक है, इस प्रकार यह रंग धन-दौलत भौतिक सुख व समृद्धि से जुड़ा हुआ है। पीला रंग हमारे शरीर में कुंडलिनी के तीसरे चक्र यानि मणीपुर चक्र का स्‍वामी है। यह हमेशा संतुलित स्थिति में रहना चाहिए। गुरू का यह रंग गरीबी और बेहाली को दूर करता है।
बच्‍चों के कमरे व पूजा के कमरे में यह रंग इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इसे रसोई घर के लिए भी उपयुक्‍त माना जाता है क्‍योंकि यह पेट और आंतों को तनाव रहित कर शांत
करता है, अत्‍यधिक मोटे या कफ प्रकृति के व्‍यक्ति को पीली किरणें ठीक करती हैं।
बृहस्‍पति को अच्‍छे  करने के लिए पीला पुखराज सुनेहला या सुनहरी, पीले रंग का रत्‍न धारण करते हैं। यह मानसिकता को शांत करता है और पढ़ाई करने या सृजनात्‍मक कार्य हेतु कमरों बहुत उपयोगी रहता है।

हरा रंग – हरे रंग बुध का है जो पृथ्‍वी का प्रतीक है।
इसे हास्‍य व आशा से जोड़ा जाता है। हरा रंग बसंत ऋतु, आशा, प्रकृति, नए जीवन, कर्मठता और जवानी का रंग है। हरा रंग पसंद करने वाले लोग बुढ़ापे से घृणा करते हैं। ये लोग जल्‍दी-जल्‍दी काम करते हैं और चतुर स्‍वभाव व वाणिज्यिक योग्‍यता,प्रखर वक्‍ता, सट्टेबाजी और जुये की ओर इनका सहज रूझान होता है।हरे रंग की अल्‍पता से मानसिक रोग, हिस्‍टीरिया और स्‍नायु गड़बडि़यां पैदा होती है।
मानसिक रूप से पागल लोग हरे वातावरण में ठीक रहते हैं जैसे हरे रंग के कमरे, हरे रंग की चादर, हरे रंग के पर्दे हरा रंग आरामदायक व शांत होता है।
बुध का रंग होने से यह रंग पढ़ाई के कमरों के लिए यह रंग अच्‍छा माना जाता है। उत्तर दिशा में बने कमरों में यह रंग उपयुक्‍त है। शरीर में हरा रंग बढ़ाने के लिए ताम्बे की अंगूठी व हरा पन्‍ना पहन सकते हैं बुध को मज़बूत करने के लिए शरीर में हरा रंग धारण करें यह शांति और संतुलन की भावना पैदा करता है। यह दिमाग की नसों को तेज करता है। इस रंग को प्रकृतिक रंग भी कहते हैं। जो मानसिकता का संतुलन ठीक करता है।

नीला रंग-  यह रंग जल, विस्‍तार शांति का प्रतीक है यह ग्रहों में न्‍यायधीश शनि का रंग है। यह अनंत आकाश और विशाल सागरों का रंग है यह वृद्धि का प्रतीक है। यह
पवित्रता, शांति, न्‍याय, वफादारी व निश्‍चिंता का प्रतीक है। गहरी नींद के लिए यह शयनकक्ष मे शुभ रहता है।
गर्म क्षेत्रों में नीला रंग सर्वोत्तम रहता है। परन्‍तु रसोईघर में कभी नहीं करवाना चाहिए।
नीला रंग तनी हुई नसों को और पागलों की उत्‍तेजना को शांत करता है नील किरण-चिकित्‍सा से पागलपन फटाफट दूर हो जाता है। गर्मियों में हल्‍के नीले कपड़े बहुत अच्‍छे रहते हैं क्‍योंकि ये शरीर को ठंडा रखते हैं।
यह रंग धर्म, शांति, धैर्य का रंग है। प्रार्थना या ध्‍यान कक्ष के लिए भी यह रंग शुभ रहता है। गहरा नीला आसमानी रंग आध्‍यात्मिक और इंद्रिया शक्तियों की प्राप्ति में सहायक बनते हैं। स्‍नान घर में विभिन्‍न नीला रंग बहुत प्रभावी रहते हैं।
जल का रंग दिखाई देने वाला प्रकाश सात रंगों का एक मिश्रण है जो बैगनी नीले रंग,आसमानी, हरे, पीले, नारंगी, और लाल रंग में प्रकट होता है, ये रंग सूरज से निकलते हैं। ऊर्जा की विविध तीव्रताओं के साथ भिन्‍न तरंग तीर्थताओं में यात्राऐं करते हैं।

रंगों का दिशा के अनुसार प्रयोग Use of colors according to the direction


उत्तर-पूर्व- हल्का नीला
पूर्व- हरा या हल्का नीला
दक्षिण-पूर्व- नारंगी, गुलाबी
उत्तर- हरा, पिस्ता हरा
उत्तर-पश्चिम- सफेद, हल्का भूरा, क्रीम
पश्चिम- नीला, सफेद
दक्षिण-पश्चिम- पीच, मिट्टी का रंग, बिस्किट का रंग, हल्का भूरा
दक्षिण- लाल, पीला, गुलाबी

दिशाओं के अनुसार कमरे व रंग Rooms and colors according to directions


मास्टर बेडरुम: दक्षिण-पश्चिम (नीला रंग, गुलाबी)
ड्राईंग रुम: उत्तर-पश्चिम (सफेद)
बच्चो का कमरा: बडे बच्चे के लिए-उत्तर-पश्चिम (सफेद)
अध्ययन कक्ष: हरा
रसोई: दक्षिण-पूर्व (नारंगी,लाल, गुलाबी)
बाथरुम: उत्तर-दक्षिण (सफेद)
हॉल: उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम (पीला, सफेद)
पूजा का कमरा: ईशान (पीला)

अन्य दिशा मे कमरे बने होने पर Having room in other direction


बेडरुम(शयनकक्ष): पिंक, लाईट ग्रीन, लाईट ब्लु और ब्राउन, बैंगनी
लिविंग रुम(बैठक): पीला, हरा, क्रीम, नीला, टैन, बेज़
रसोई: सफेद, नारंगी, पीच, भूरा, पीला, गुलाबी, लाल, चॉकलेट
बाथरुम (स्नानघर): सफेद, ग्रे, गुलाबी, पेस्टल
डाईनिंग(भोजन): हरा, गुलाबी, नीलाबैंगनी, पीच, पीला
बच्चो का कमरा: हल्का हरा, हल्का पीला
घर मे लाल, काले, गहरे पीले, थिसस रंग, भूरे, ग्रे  आदि रंगो का प्रयोग सावधानी से करे।

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वास्तु कम्पास(दिशा सूचक) Vastu compass (direction indicator)


वास्तु कम्पास(दिशा सूचक)
Vastu compass (direction indicator)

भूखण्ड या गृह की मुख्य दिशाओं का पता लगाने के लिए वास्तु कम्पास का प्रयोग किया जाता है। यह वास्तु उपकरणों मे से मुख्य उपकरण है। जिसके बाद हम नक्शे का निर्माण करते है। इसमे एक चुम्बकीय सूई होती है जिस पर लाल रंग लगा होता है और उत्तर दिशा के लिए N लिखा होता है। जिस दिशा मे उत्तर दिशा होती है यह लाल रंग़ लगी सूई की नोंक खुद ही वही घूम जाती है। कम्पास  दिशा पहचान करने का  स्वचालित यन्त्र है।
भूखण्ड या भवन के केंद्र स्थान मे खडे हो जाये और वहां फर्श की साफ सतह पर कम्पास (दिशा सूचक) रखे।
कम्पास के नजदीक मोबाईल, लोहा, घडी या बिजली की तार नही होनी चाहिए। लाल सूई अपने आप ही उत्तर की तरफ जा कर रुक जाएगी। लाल सूई और “एन” के बीच की डिग्री मे अंतर, भवन की दिशा की डिग्री बताती है कि भवन का मुख किस ओर है और उत्तर दिशा और आपकी मुख्य दिशा मे कितना अन्तर है।
घर की दिशा निर्धारण के लिए घर के अंदर खडे हो कर बाहर दरवाजे की ओर मुख करे और उसी अनुसार दिशा का पता लगाये। इस प्रकार वास्तु कम्पास दिशा निर्धारण मे मदद करता है।
इस तरह आप दिशा और विदिशा की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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Thursday, December 19, 2019

जानें आपके लिए कैसा रहेगा दक्षिण मुखी घर Know how South home will be for you

जानें आपके लिए कैसा रहेगा दक्षिण मुखी घर Know how South home will be for you



सामान्यतया दक्षिण दिशा को घर के लिए अशुभ मानते हैं,किन्तु यदि बात दिशाओं की हो तो लगभग 20 प्रतिशत घर दक्षिण दिशा की ओर मुख वाले होते हैं।
वैसे दक्षिण दिशा को घर के लिए अशुभ माना जाता है, परन्तु वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा सभी के लिए अशुभ नहीं होती है। ज्योतिष के अनुसार कुछ राशि के जातकों को इस दिशा से लाभ भी मिलता है।

जानते हैं सभी राशियों के लिए दक्षिण मुखी घर का प्रभाव कैसा रहता है। know how the effect of Dakshin Mukhi Ghar is for all zodiac signs.


मेष राशि
मेष राशि के जातकों के लिए दक्षिण मुखी घर काफी शुभ रहता है। दक्षिण मुखी घर से मेष राशि के जातकों के व्यक्तित्व में निखार आता है।
वृष राशि
वृष राशि के जातकों के लिए दक्षिण मुखी घर में रहना अशुभ होता है। इस घर में रहने से आय से अधिक खर्चे होते हैं।
मिथुन राशि
मिथुन राशि के जातकों को इस दिशा में अशुभ फल प्राप्त होते हैं। इस दिशा में रहने से बीमारियां बढ़ने का खतरा रहता है।
कर्क राशि
कर्क राशि के जातकों के लिए यह दिशा काफी शुभ रहती है। इस दिशा में घर होने से मान- सम्मान में वृद्धि होती है और नौकरी में प्रमोशन भी मिल सकता है।
सिंह राशि
सिंह राशि के जातकों के लिए दक्षिण मुखी घर काफी शुभ रहता है। ऐसे लोगों को एक से अधिक भवन प्राप्त होते हैं।
कन्या राशि
कन्या राशि के जातकों को ऐसे घर में रहने से बचना चाहिए। दक्षिण मुखी घर कन्या राशि के लिए अशुभ होते हैं। इन लोगों के लिए ये घर परेशानियां बढ़ा सकता है।
तुला राशि
तुला राशि के जातकों के लिए दक्षिण मुखी घर सामान्य रहता है। ऐसा घर इनके लिए मध्यम परिणाम देने वाला होता है।
वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि के लिए दक्षिण मुखी घर शुभ परिणाम देने वाला होता है। ऐसे घर में रहने से मान- सम्मान और आत्मबल में वृद्धि होती है।
धनु राशि
धनु राशि के जातकों के लिए संतान की दृष्टि से दक्षिण मुखी घर काफी अच्छा रहता है। इस घर में रहने से संतान उच्च शिक्षा प्राप्त करता है।
मकर राशि
मकर राशि के जातकों के लिए दक्षिण मुखी घर मिला-जुला परिणाम देने वाला होता है। धन संबंधी मामलों में तो लाभ होता है परंतु व्यक्ति का विकास नहीं हो पाता है।
कुंभ राशि
कुंभ राशि के जातकों के लिए दक्षिण दिशा में रहने से जीवन के संघर्ष बढ़ने लगते हैं। 
मीन राशि
मीन राशि के जातकों के लिए दक्षिण मुखी घर शुभ रहता है। मीन राशि के जातकों के लिए दक्षिण मुखी घर भाग्य लेकर आता है।


Friday, June 14, 2019

घर मे अलमारी रखने का सही स्थान The right place to keep the cupboard in the house

घर मे कहाँ रखें अलमारी?
Where to keep a cupboard in the house?
वास्तु के अनुसार आलमारी को रखने की सही दिशा कौन सी है?
According to Vastu, what is the right direction to keep the cupboard?


अलमारी हमारे घर का एक अंग होती है।घर चाहे जैसा भी हो,छोटा हो या बड़ा उसमे अलमारी होती ही है।
आप ने अलमारी को घर के किस कोने में रखा हैं, अलमारी के अन्दर कौन कौन सा सामान हैं, अलमारी का रंग कौन सा हैं, इन सभी बातों का असर पड़ता हैं. आसान शब्दों में कहा जाय तो अलमारी को वास्तु के हिसाब से रखने पर आपके घर धन की वर्षा हो सकती हैं लेकिन यदि आप ने  वास्तु नियमों का पालन नहीं किया तो आपके घर दरिद्रता प्रवेश कर सकती हैं।

1. घर की अलमारी के दरवाजे कभी भी दक्षिण दिशा में नहीं खुलने चाहिए. जिन अलमारियों के दरवाजे दक्षिण दिशा की ओर खुलते हैं वो पैसो के मामले में हमेशा खाली ही रहती हैं।

2. अलमारी को कभी भी सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए. उसके नीचे लकड़ी के पटिए या स्टैंड लगा देना चाहिए।
चाहे तो अलमारी के नीचे पेपर, पन्नी या कपड़ा भी बिछा सकते हैं।

3. घर के उत्तर- पूर्वी कोने में भूलकर भी अलमारी ना रखे. इस कोने में अलमारी रखना अशुभ माना जाता हैं।

4. घर के दक्षिण पश्चिम का कोना या सिर्फ पश्चिम दिशा में अलमारी को रखना शुभ होता हैं. इस जगह रखी गई अलमारी में कभी भी धन की कमी नहीं होती हैं।

5. अलमारी के अन्दर बनी तिजोरी को कभी खाली ना रखे. इसके अन्दर कुछ ना कुछ पैसे और गहने अवश्य रखे. इस तरह घर में बढ़ोत्तरी होती रहती हैं।

6. अलमारी के अन्दर गणेश जी और लक्ष्मी जी की तस्वीर जरूर रखे. इसे आप अलमारी के अंदरूनी या बाहरी हिस्से में चिपका सकते हैं. ऐसा करने से अलमारी के अन्दर धन की वृद्धि होती हैं।

7. अलमारी के अन्दर 5 या 7 चांदी के सिक्के जरूर रखे. ऐसा करने से घर में अचानक धन लाभ के आसार बढ़ जाते हैं।

8. घर के अन्दर रखी अलमारी का रंग क्रीम या हल्का पीला होना चाहिए. भूलकर भी घर में हरे या लाल रंग की अलमारी ना रखे।

9. घर के दक्षिण पश्चिम कोने या पश्चिम दिशा में अलमारी रखने से पहले उस स्थान पर यानी अलमारी के ठीक नीचे स्वस्तिक का निशान बना दे. एक स्वस्तिक का चिह्न आप अलमारी के ऊपर भी बना सकते हैं. ऐसा करने से घर में धन चोरी होने का खतरा टल जाता हैं।

10. अलमारी के उपर धूल की परत ना जमने दे. इसकी साफ़ सफाई का ध्यान रखे,तभी लक्ष्मी इसके अन्दर आएगी।

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Sunday, February 17, 2019

वास्तु के अनुसार सीढ़ियों का निर्माणConstruction of stairs according to Vastu

 वास्तु के अनुसार सीढ़ियों का निर्माण

Construction of stairs according to Vastu



गृह निर्माण के समय यदि सीढ़ियों को बनाते समय कुछ वास्तु सम्मत  बातों का ध्यान रखा जाए तो यही सीढ़ियां न केवल भवन की सुंदरता में चार चाँद लगाती हैं बल्कि हमे समृद्ध भी बनाती हैं।

1.सीढ़ियों का निर्माण भवन के दक्षिण या पश्चिम भाग में करना उत्तम रहता है।

2.सीढ़ियों का घुमाव दक्षिणावर्ती होना चाहिए।

3.सीढ़ियों के सामने कोई बन्द दरवाजा नहीं होना चाहिए।

4.सीढ़ियों के नीचे शौचालय कदापि नहीं होना चाहिए।

5.सीढ़ियां विषम संख्या में बनवानी चाहिए। 

6. सीढ़ी चढ़ते समय चेहरा या तो उत्तर या पूर्व की ओर होना चाहिए।

7. सीढ़ी हमेशा दक्षिणावर्त दिशा में होनी चाहिए।

8. सीढ़ी के नीचे कोई कमरा नहीं बनाना चाहिए।

9. सीढ़ियों की नीचे और उपर द्वार रखना चाहिए। नीचे वाले दरवाजे से उपर वाला दरवाजा 12 भाग कम होना चाहिए।

10. यदि किसी मकान में सीढ़ियां पूर्व या उत्तर दिशा में बनी हों तो, उसके वास्तुदोष को कम करने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक कक्ष बनवाना देना चाहिए।

11.सीढ़ियों के नीचे किसी भी प्रकार का कबाड़, जूता-चप्पल आदि रखना परिवार के मुखिया के लिए अशुभकारी होता है।

12.वास्तुशास्त्र के नियम के अनुसार सीढ़ियों का निर्माण उत्तर से दक्षिण की ओर अथवा पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर करवाना चाहिए। जो लोग पूर्व दिशा की ओर से सीढ़ी बनवा रहे हों उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सीढ़ी पूर्व दिशा की दीवार से लगी हुई नहीं हो। पूर्वी दीवार से सीढ़ी की दूरी कम से कम 3 इंच होने पर घर वास्तुदोष से मुक्त होता है।

13.सीढ़ी के लिए नैऋत्य यानी दक्षिण दिशा उत्तम होती है। इस दिशा में सीढ़ी होने पर घर प्रगति की ओर अग्रसर रहता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण में सीढ़ियों का निर्माण नहीं करना चाहिए।

14. मकान की सीढ़ियां पूर्व से पश्चिम या उतर से दक्षिण की ओर जाने वाली होनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखें सीढ़ियां जब पहली मंजिल की ओर निकलती हों तो हमारा मुख उतर-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व में होना चाहिए।

15.सीढ़ियों के लिए भवन के पश्चिम, दक्षिण या र्नैत्य का क्षेत्र सर्वाधिक उपयुक्त होता है। नैत्य कोण या दक्षिण-पश्चिम का हिस्सा सीढ़ियां बनाने के लिए अत्यंत शुभ एवं कल्याणकारी होता है।

16. सीढ़ियां कभी भी उतरी या पूर्वी दीवार से जुड़ी हुई नहीं होनी चाहिए। उतरी या पूर्वी दीवार एवं सीढ़ियों के बीच कम से कम 3’’ (तीन इंच) की दूरी अवश्य होनी चाहिए।

17. घर के उतर-पूर्व या ईशान कोण में सीढ़ियों का निर्माण कभी नहीं करवाना चाहिए। इस क्षेत्र में सीढ़ियां बनवाने से आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्यवसाय मंे नुकसान एवं स्वास्थ्य की हानि भी होती है तथा गृह स्वामी के दिवालिया होने की संभावना भी निरंतर बनी रहती है। घर के आग्नेय कोण अर्थात् दक्षिण-पूर्व में सीढ़ियां बनवाने से संतान के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

18.सीढ़ियां यदि गोलाई में या घुमावदार बनवानी हों तो घुमाव सदैव पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से पश्चिम, पश्चिम से उतर तथा उतर से पूर्व दिशा में होना चाहिए। यदि घर के ऊपर का हिस्सा किराये पर देना हो और स्वयं मकान मालिक को नीचे रहना हो तो ऐसी स्थिति में ऊपर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां कभी भी घर के सामने नहीं बनवानी चाहिए। ऐसी स्थिति में किरायेदार को आर्थिक लाभ होता है तथा मकान मालिक को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। सीढ़ियों के आरंभ एवं अंत द्वार अवश्य बनवाना चाहिए।

19.सीढ़ियों का द्वारा पूर्ण अथवा दक्षिण दिशा में ही होना चाहिए। एक सीढ़ी दूसरी सीढ़ी के मध्य लगभग 9’’ का अंतर होना चाहिए।

20. सीढ़ियों के दोनों ओर रेलिंग लगी होनी चाहिए।

21. सीढ़ियों का प्रारंभ त्रिकोणात्मक रूप में नहीं करना चाहिए।

22. अक्सर लोग सीढ़ियों के नीचे जूते, चप्पल रखने की रैक या अलमारी बनवा देते हैं। यह सर्वथा अनुचित है। सीढ़ियों के नीचे का स्थान हमेशा खुला रहना चाहिए। इससे घर के बच्चों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सहायता मिलती है।

23.सीढ़ियां संबंधी वास्तु दोषों को दूर करने के उपाय: यदि घर बनवाते समय सीढ़ियों से संबंधित कोई वास्तु दोष रह गया हो तो उस स्थान पर बारिश का पानी मिट्टी के कलश में भरकर तथा मिट्टी के ढक्कन से ढककर जमीन के नीचे दबा दें। ऐसा करने से सीढ़ियों संबंधी वास्तु दोषों का नाश होता है। यदि यह उपाय करना भी संभव न हो तो घर में प्रत्येक प्रकार के वास्तु दोषों को दूर करने के लिए घर की छत पर एक म्टिटी के बर्तन में सतनाजा तथा दूसरे बर्तन में जल भरकर पक्षियों के लिए रखें ।

24.मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही पहली सीढ़ी न दिखाई दे,यह धन हानि या गरीबी की निशानी मानी जाती है।

25. सीढ़ियों की संख्या हमेशा विषम होना चाहिए। या सीढ़ियों की संख्या इस प्रकार होनी चाहिए कि उसे 3 से भाग दें तो 2 शेष रहे। 
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Saturday, July 30, 2016

वास्तु टिप्स vaastu tips

  वास्तु टिप्स


घर में रखें पीतल का शेर, बढेगा आत्मविश्वास

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में रखा हर सामान घर के वास्तु पर अपना गहरा प्रभाव डालता है। घर में कुछ विशेष प्रकार का सजावट का सामान रखने से उसका सकारात्मक प्रभाव कुछ ही समय में दिखाई देने लगता है। यदि आपको लगता है कि आपमें आत्मविश्वास की कमी है तो आपको घर में पीतल का शेर रखना चाहिए।

घर में रखें  क्रिस्टल ग्लोब,  मिलेगी सफलता

वास्तु शास्त्र के अनुसार जो लोग अपने व्यापार या करियर के प्रति चिंतित हैं तो उन्हें अपने कमरे, दुकान या ऑफिस में क्रिस्टल ग्लोब रखना चाहिए। इस ग्लोब से पॉजिटिव एनर्जी निकलती है, जो आपके व्यक्तित्व में नई ऊर्जा का संचार करती है और आप अपने करियर में उन्नति करते हैं। विद्यार्थियों के लिए क्रिस्टल ग्लोब काफी लाभदायक होता है। इससे उनकी स्मरण शक्ति तथा एकाग्रता बढ़ती है। इसलिए विद्यार्थियों के कमरे में क्रिस्टल ग्लोब रखना अच्छा होता है।

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Saturday, August 13, 2011

भवन के विभिन्न क्षेत्रों के लीये शुभ रंग bhavan ke vibhinn kshetron ke leeye shubh rang


भवन के विभिन्न क्षेत्रों के लीये शुभ रंग 
    कक्ष             शुभ रंग

ड्राइंग रूम-              श्वेत,पिंक,क्रीम,ब्राउन
मुख्य शयन कक्ष-     आसमानी,पिंक,हल्का हरा
अन्य शयन कक्ष-     हरा,श्वेत,नीला
भोजन कक्ष-            पिंक,आसमानी,हल्का हरा
रसोई घर -            श्वेत
अध्ययन कक्ष-        पिंक,ब्राउन,आसमानी,हल्का हरा
शौचालय/स्नानागार- श्वेत,पिंक

कष्ट शान्ति के लिये मन्त्र सिद्धान्त

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