Thursday, April 2, 2020

पञ्च तत्व और वास्तु Five elements and vastu


पञ्च तत्व और वास्तु
Five elements and vastu

पञ्च तत्व अर्थात् अग्नि,पृथ्वी, वायु, ज़ल,और आकाश।
ये पञ्च तत्व ही हमारी सृष्टि का आधार हैं। इन्हीं पंचतत्वो से ही भवन/गृह का निर्माण होता है। इनका संतुलित होना ही सकारात्मक का कारण है।सर्वप्रथम आकाश बना, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और अंत मे जल से पृथ्वी बनी, यह विकास हमारे जीवन के विकास से मेल खाता है।
ये पंच तत्व हमारे अंदर और बाहर सभी जगह विद्यमान हैं। वास्तु मे इनके संतुलन पर मुख्य रुप से ध्यान दिया जाता है। वास्तु नाम ही इन पंचत्तवो का आधार है।

1-आकाश- मनुष्य इस अन्नंत आकाश से घिरा हुआ है। वास्तु मे ब्रह्मस्थान ही आकाश तत्व यानि केंद्र स्थान है। यह भवन का नाभि व ह्रदय का स्थान है। यहां कोई भी भारी वस्तु, खम्बा, सीढी, शौचालय, रसोईघर व स्टोर नही होनी चाहिए। जिससे पाचन संबंधी रोग व पेट की समस्या होती है। यह सबके बीच संबंध स्थापित करती है। हर तत्व संतुलित मात्रा मे होना चाहिए।
आकाश तत्व की अधिकता होने से दबाव व अवसाद की समस्यायें होती है। जो जन्मपत्रिका मे पिशाचादि दोष के समान है। जिसमे राहु चंद्रमा साथ मे हो। यह सबसे रहस्यात्मक और विस्तार का तत्व है।
जो अनचाही शक्तियों से परेशान करता है।इसके सम होने से शारीरिक, मानसिक,
आध्यात्मिक, भौतिक व सामाजिक जीवन मे शुभता आती है। यह तत्व हमारे मानसिक विचार व प्रक्रिया को संतुलित करता है। इसके संतुलित होने से भाग्य मे उन्नति, कार्य की क्षमता, रचनात्मक, ज्ञान और विचारो के जागरुकता के साथ लाभ भी मिलता है।

2-वायु- वायु तत्व जीवन जीने के लिए आवशयक है। इसे वायव्य दिशा का स्वामित्व प्राप्त है।
जिसका स्वभाव रज़स है और वात रोग देती है। इसका भवन मे संतुलित होना जीवन मे वृद्धि
का कारण है और जीवन मे ताज़गी का अनुभव, आनंद, साहस और खुशी आती है।इसका संतुलन होने से जातक को तरक्की और प्रभावशाली व्यक्त्तित्व मिलता है। वायु तत्व का मुख्य गुण स्पर्श है और शनि ग्रह वायु तत्व का स्वामी है। मनुष्य साफ और ताज़ी हवा के बिना बीमार हो जाएगा क्योंकि वायु मे ही ऑक्सीज़न है जो मनुष्य का प्राण है। भवन मे एक दरवाज़ा दुसरे दरवाज़े के ठीक सामने नही होना चाहिए जिससे वायु का प्रवाह संतुलित रहता है। व्यवसायिक या किसी कम्पनी मे कर्मचारियों को यहां नही बैठना चाहिए क्योंकि यहां होने से मन अस्थिर रहता है और कार्य मे मन नही लगता है। किसी बिकने वाले तैयार सामान को यहां रखे और दुकान व शोरुम मे भी रोजाना इस्तेमाल होने वाली साम्रगी यहां रखे। कैश या लॉकर यहां नही होना चाहिए यहां रखा धन स्थिर नही रहता है। यहां कबाडरखने या बंद होने से सांस लेने मे परेशानी होती है और बच्चो की शिक्षा मे बाधा आती है, और मन पढाई मे अस्थिर रहता है।

3-अग्नि- अग्नि का का कार्य ताप और प्रकाश देने का है। अग्नि का मुख्य गुण हमारी दृष्टिं इन्द्रियां हैं, जो आंखो व रंगो द्वारा शासित है। सूर्य व मंगल अग्नि तत्व के ग्रह है। यह पित्त दोष देती है। गर्मी की सही मात्रा ही जन्म दे सकती है कोई भी जीव पौधा या मनुष्य अग्नि के बिना जन्म नही ले सकता है। वास्तु मे यह पूर्व-दक्षिण दिशा(आग्नेय) मे व्याप्त रहती है। जो आधुंनिक जीवन मे धन के प्रवाह को दिखाती है। जो आत्मविश्वास के साथ उत्साह देती है। यह हमे हमारे लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इच्छाशक्ति और लगन देता है। दक्षिण मे पानी की टंकी का होना आग, बैचेनी,अशांत नींद का कारण बनती है।इसके संतुलित होने से प्रसिद्धि और पहचान मिलती है, जिससे जातक को आत्मविशवास व शक्ति मिलती है और वह धन कमाने मे पूर्णता सक्षम होता है। यह भवन मे जनरेटर, इलेक्ट्रिक सामान, लाल रंग और त्रिकोण के रुप मे हो सकती है। यहां बेडरुम
होने से जातक का मन चिडचिडा और बैचेन रहता है। यह अग्नि की दिशा है एक इंसान जलती आग मे नही रह सकता है। यहां पानी के साधन, पाईपलाईन व स्विमिंग पूल नही होने चाहिए।यहां जल होने से जातक मुकद्दमों, मानहानि, मशीनरी के खराब, तनाव व बिज़ली के उपकरण संबंधी समस्याये आती है।

4-जल- पांचो तत्व मे जल सबसे कम तत्व है जिसका गुण स्वाद व रस है जिसका स्वभाव सात्विक है ,और जो कफ दोष का निर्माण करता है। चंद्र और शुक्र अस्थिर जल तत्व के ग्रह है। जिसकी मुख्य दिशा ईशान यानि उत्तर-पूर्व व उत्तर है। भवन मे यहां अग्नि का होना नये अवसरों, धन,और कार्य मे कमी कर देती है। इस दिशा मे जल का होना या नीले रंग का होना सकरात्मकता लाता है। जिससे लोग जीवन को बडे दृष्टिकोण से देख पाते है और आध्यात्मिक जीवन जीते है।जल का स्वभाव बहना है और बहुत शर्मीला स्वभाव है जो धरती के गर्भ मे छिप जाना चाह्ता है। वास्तु मे पानी का चयन सबसे महत्वपूर्ण है। यह नींव के पास हुआ तो आवास मे सीलन पैदा कर देगा और ठहरा रहा तो दुर्गंध पैदा कर देगा। यह सात्विक स्वभाव का अस्थिर तत्व है। यह तत्व नये-नये विचार, सोच, अवसर, विचारो की स्पष्टता, दूर-दृष्टि और मज़बूत रोग प्रतिरोधक क्षमता देती है। यह भवन मे झरना, बोरिंग, मंगल कलश, झरने वाली पैटिंग, नीला रंग, पानी का कोई भी स्रोत, मछली घर या स्विमिंग पूल के रुप मे हो सकता है। घर मे नल का बहना भी धन की बर्बादी या चोरी होने का प्रतीक है।

5-पृथ्वी- यह तत्व मुख्य रुप से वास्तु के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जमीन का चयन करने के बाद ही हम उस पर भवन का निर्माण करते है। पृथ्वी का आकार निश्चित है और इसकी दिशा नैऋर्त्य है जिसका गुण तमस और स्थिरता है। यह संतुलन, धैर्य, स्वस्थता और मज़बूती का तत्व है।
तमस का अर्थ क्रियाहीनता, आलसीपन और अंधकार है। इसका ग्रह बुध है और गंध द्वारा पृथ्वी की उपयोगिता की पहचान होती है। इस तत्व के संतुलन होने से कार्य, व्यवहार व रिश्तों और प्रयासो मे सफलता मिलती है। यह भवन मे मिट्टी या पत्थर से बनी कोई चीज़, पीला रंग,
क्रिस्टल क्लस्टर या भुरे रंग की भी कोई वस्तु के रुप मे हो सकता है। यहां बंद होना, भारी
मशीने या स्टोर होना भी पृथ्वी तत्व का घोतक है। यहां तहखाने का होना, बोरिंग, ढलान और
भुमिगत पानी की टंकी होना वास्तु दोष का कारण है जिससे जीवन मे अस्थिरता आती है और आर्थिक नुकसान होता है।

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