Pages

Tuesday, March 8, 2022

मङ्गल दोष विवेचना mangal dosha

मङ्गल दोष विवेचना

 नर नारी के दांपत्य जीवन को संपदा युक्त अथवा दुख दुविधा युक्त बनाने के लिए केवल मात्र मंगल ग्रह ही उत्तरदाई नहीं है। मांगलिक योग सदैव मांगलिक संज्ञा का ही नहीं होता है- सुमंगल पक्ष की संरचना भी बन पाती है। अतः जन्म कुंडली में केवल मंगल की स्थिति को ही आधारभूत नहीं माने। दांपत्य जनजीवन को कष्टप्रद बनाने वाले शनि-राहु-केतु-सूर्य तथा शुक्र के भाव विषम स्थिति रचना पर भी ध्यान देना चाहिए।1 


●कुजदोष- मंगल का स्थान न्यास जन्म कुंडली के 1-4-7-8-12 भाव स्थान पर होने से वर-कन्या की पत्रिका मांगलिक संज्ञा की कही जाती है। यथा सूत्र:-

लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।
कन्याभर्तुविनाश: स्याद्भर्तुभार्या विनाशनम्।।



● यदि वर कन्या की पत्रिका में जिस स्थान भाव पर मंगल हो तथा अन्य कोई प्रबल पाप ग्रह भी उस स्थान पर ही रहते कुज-भौम दोष नहीं रहता है एवं परिहार रचना बन जाती है।2

यथा सूत्र-

शनि भौमो¿थवा कश्चित्पापो वा ताद्र्शो भवेत्।

तेष्वेव भवनष्वेव भौम दोष विनाश कृत।।

भौम तुल्यो यदा भौमः पापो वा तादृशो भवेत्।उद्वाह:शुभदः प्रोक्ताश्चियुश्च सुखप्रदः।।

● वर कन्या की पत्रिका में 1-4-7-8-12 स्थान भाव में शनि हो तो भी भौम दोष शांत हो जाता है। यथा सूत्र- 

यामित्रे च यदा सौरिर्लग्ने चा हिबुके तथा। 

अष्टमे द्वादशे चैव भौमदोषों न विद्यते।।

●4- एक विशेष सूत्र रचना यह भी है कि वर कन्या के जन्म लग्न तथा चंद्र लग्न दोनों से भाव गणना करना चाहिए।यथा-चन्द्राल्लग्न व्ययाष्टमे मदसुखे राहु:कुजार्की तथा।कन्याश्चेद्वरनाश-कृद्वरवधूहानिर्ध्रुवं जायतेति।।

●5- मांगलिक कन्या का विवाह मांगलिक वर के साथ करना यह भी शास्त्र में प्रचलित है। यथा सूत्र-

कुजदोषवती देया कुजदोषवते किल।

नास्ति न चानिष्टं दाम्पत्यो:सुखवर्धनम्।।

●6- तथापि वर-कन्या मांगलिक वर्ग-संज्ञा में मान्य है भी या नहीं?

इस पक्ष पर भी विचार मंथन कर लेना योग्य विषय है।मंगल रचना में यदि निम्न वचन शास्त्र नियामक भी प्रतीत होवे तो मांगलिक-कुज दोष नहीं बनेगा।

यथा सूत्र-

सप्तमस्थो यदा भौमो गुरूणा च निरीक्षित:।

तदा तु सर्व सौख्यं स्याद्भौम दोषो विनश्यति।। 

अर्थात् मङ्गल पर गुरु की पूर्ण दृष्टि बनते मंगल कृत दोष नहीं रहे।

●7- मेष राशि का मंगल लग्न में अथवा वृश्चिक राशि का मंगल चतुर्थ सुख भाव में अथवा मकर राशि का मंगल सप्तम भाव में तथा कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में अथवा धनु राशि का मंगल द्वादश भाव में हो तो भौम दोष नहीं होता है।

यथा शास्त्र वचन-

अजे लग्ने व्यये चापे पाताले वृश्चिके कुजे।

द्यूने मृगे कर्किचाष्टौभौमदोषो न विद्युते।

●8- यदि वर कन्या के मंगल की स्थिति वक्री-नीच-अस्त तथा शत्रु राशि की 1-4-7-8-12 वें भाव में हो तथा गुरु-शुक्र लग्न केंद्र आदि में बलवान राशि रचना के हो तो भी भौम दोष नगण्य माना जाता है।

यथा-वक्रिणि-नीचारिगृहस्थे वार्कस्थेपिवा न कुज दोष:।सबले गुरौ भृगौ वा लग्ने द्यूनगेपिवाथवा भौमे।।

●9- गुरु शुक्र केंद्र स्थान 1-4-7 दसवें भाव में स्थित एवं स्वनवमांश वर्ग का अथवा चंद पर गुरु शुक्र की पूर्ण दृष्टि हो अथवा शुभ ग्रहों के साथ संबंधशील मंगल तथा कर्क लग्न का मंगल अपनी नीच राशि का अथवा शत्रु राशि मिथुन-कन्या का अथवा अस्तगत स्थिति का रहते भी अनिष्ट सूचक नहीं होता है।यथा सूत्र-

जीवोथवा भृगु सुतश्च स्वकेन्द्र संस्थस्तौ शीत भानुमपि पूर्णतयासुदृष्टया।नीच:स्वभागगमितौ यदि वीर्यवन्तौ भौमोत्थ दोषजभयं नयतो विनाशनम्।।

पुनरपि सूत्र-शुभयोगादिकर्तव्ये नाशुभं कुरूते कुज:।

कुज: कर्कटलग्नस्थोन कदाचन दोषकृत।।

नीचराशिगत:सोयं शत्रुक्षेत्र गतोपि च।

शुभाशुभ फलं नैव दद्यादस्तं गतोपि च।

अस्तगते नीचगेभौमेशत्रुक्षेत्र गतेपिवा।

कुजाष्टमोद्भवो दोषो न किंचदपि विद्यते।।


●10- यदि वर कन्या मांगलिक होवे तथा यदि सूर्य 3-6 दस ग्यारह भाव स्थान में हो एवं गुरु कर्क उच्च राशि तथा शुक्र उच्च मीन राशि तत्व संज्ञा के होवें तथा चंद्रमा 2-5-9-11 स्थान भाव में हो तो मंगल दोष विनाशक अर्थात मांगलिक संज्ञा नहीं बनेगी।यथा-

त्र्यायारिदिक्षु मार्तण्डो स्वोच्चगौ जीवभार्गवौ।

पक्षेषु नवरुद्रेषु शीतगुश्चेत्तदा शुभ:।।


●11- वर कन्या के मांगलिक स्थिति रचना उपरांत यदि मंगल मकर उच्च राशि का अथवा स्वगृही मेष-वृश्चिक राशि का हो अथवा स्वनवमांश मांस राशि वर्ग का हो एवमेव 3-6- 10-11 स्थान भाव में प्रभावशील रहते भी मंगल दोष नहीं बनता है।

यथा सूत्र-स्वगृहे स्वोच्चगे भौमे वर्गोत्तम गतेपिवा।बलाढ्योपचय स्थाने भौमस्तस्य न दोष कृत।।

तनु धन सुखमदना युर्लाभव्ययग:कुजस्तु दम्पत्यम्।विघटयति तद्गृहेशो न विघटयति तुंगमित्रगेहे वा।।

अर्थात् मित्र राशि सिंह-कर्क-धनु-मीन का मंगल मंगली दोष कारक नही बनता है।

●12-वर कन्या के अष्टकूट गुणादि मेलापक जन्मराशि नक्षत्र अनुसार यदि 25 से 30 संख्या के गुण प्राप्त होवें तथा राशिपति मित्रता एवं परस्पर गण एकसमान वर्ग के होवें तो भी भौम-कुजदोष का निवारण होता है।

यथा-राशिमैत्रं यदा याति गणैक्यं वा यदा भवेत्।

अथवा गुण बाहुल्ये भौम दोषो न विद्यते।।

●13-जिस वर कन्या की जन्मपत्रिका में प्रथम भावादि 1-4-7-8-12 में स्थित मंगल यदि चन्द्र अथवा गुरु के साथ युतिकारक अथवा चन्द्रमा केन्द्र स्थान में हो तथा सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में हो एवं केन्द्र-त्रिकोण भाव में शुभग्रह तथा 3-6-11भाव स्थानों में पापग्रह हो इस प्रकार की स्थिति बनते भी मांगलिक दोष मान्य नहीं होगा।यथा-

केन्द्रे कोणे शुभाढ्याश्चेत् त्रिषडायेप्य सद्ग्रहा:।

तदा भौमस्य दोषो न मदने मदपस्तथा।।

कुजो जीवसमायुक्तो युक्तो वा शशिना यदा।

चन्द्र:केन्द्रगतो वापि तस्य दोषो न मंगली।।

●14- यदि वर-कन्या की पत्रिका में लग्न से- चंद्रमा से- तथा शुक्र से 1-2-4-7-8-12 इन भाव स्थानों में किसी एक स्थान पर ही अर्थात् जिस भाव राशि में वर के स्थित हो उसी भाव राशि स्थान में कन्या के भी होवें तो भी मांगलिक परिहार बन पाता है तथा दांपत्य जीवन सुखद रहता है।परंतु यदि वर-कन्या में से दोनों के मंगल अलग-अलग स्थानों पर हो तो उपर्युक्त सुफल नहीं प्राप्त होगा।यथा-

दम्पत्योर्जन्मकाले व्ययधनहिबुके सप्तमे रन्ध्रलग्ने।

लग्नाश्च शुक्रादपि खलु निवसन् भूमिपुत्रस्तयोश्च।

दाम्पत्यं दीर्घकालं सुतधनबहुलं पुत्रलाभश्च सौख्यं।दद्यादेकत्र हीनौ मृतिमखिलभयं पुत्रनाशं करोति।।


●15- मंगल आदि अन्य तत्सम पापा ग्रहों के परिहार दोष निवारण हेतु यह सूत्र भी अवलोकनीय है यथा जो भाव अपने स्वामी से युक्त हो या दृष्टि प्रदाता हो तो उन भाव का फल शुभ सूचक बनेगा। तथा पाप ग्रह युक्त बुध एवं क्षीण चन्द्रमा यदि शनि-मंगल-सूर्य के साथ अथवा इनसे ही देखा जावे तो उन भाव स्थानों की हानि नेष्टफल बनना भी स्पष्ट है तथा शुभ ग्रह बुध-गुरु-शुक्र सबल प्रभावशील चन्द्र से युक्त अथवा दृष्ट हो उन भावों का प्रतिफल शुभ सूचक बनता है।यथा-

यो यो भाव:स्वामिद्रृष्टो युतो वा सौम्येर्वास्यात्तस्य तस्यास्ति वृद्धि:।

पापैरेवं तस्य भावस्य हानि निर्देष्टव्या पृच्छतां जन्मतो वा।।

इस प्रकार केवल 1-4-7-8-12 स्थान स्थित मंगल के रहते ही कुजदोष मांगलिक कुयोग नहीं बन पाता है। अन्य भी लिखित विविध शास्त्रीय परिहार समाधान सूचक वचनों का मंथन करते-विचारशील रहते सारभूत तथ्य निर्णय करना शास्त्र सम्मत है।

इसे यूट्यूब चैनल पर देखें-मङ्गल दोष विवेचना

Related topics:-भद्रा Bhadra


No comments:

Post a Comment