Saturday, April 11, 2020

शिवाष्टक shivaashtaka

शिवाष्टक shivaashtaka


जय शिव शंकर जय गंगाधर करुणाकर करतार हरे,
जय कैलाशी जय अविनाशी सुखरासी सुखसार हरे,
जय शशि शेखर जय डमरुधर जय जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी जय मद हारी अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय सगुण अनामय निराकार साकार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।1।।
जय रामेश्वर जय नागेश्वर वैद्यनाथ केदार हरे,
मल्लिकार्जुन सोमनाथ जय महाकाल ओंकार हरे,
त्रंबकेश्वर जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
काशीपति श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नीलकंठ जय भूतनाथ जय मृत्युंजय अविकार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।2।।
जय महेश जय जय भवेश जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुणातीत प्रभु तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भव कारक  तारक हारक पातक दारक शिव शम्भो,
दीन दुःखहर सर्व सु:खकर प्रेम सुधाधर की जय हो,
पार लगा दो भवसागर से बनकर करुणाधार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।3।।
जय मन भावन जय अति पावन शोक नशावन शिव शम्भो,
विपद विदारन अधम उधारन सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयन वर धवल वरन तन शिव शम्भो,
मदन दहन कर पाप हरन हर चरन मनन धन शिव शम्भो,
विवसन विश्वरूप प्रलयंकर जग के मूलाधार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।4।।
भोलानाथ कृपालु दयामय अवघड दानी शिव योगी,
निमिष मात्र में देते हैं नवनिधि मन मानी शिव योगी,
सरल हृदय अति करुणासागर अकथ कहानी शिव योगी,
भक्तों पर सर्वस्व लुटा कर बने मसानी शिवयोगी,
स्वयं अकिंचन जन मन रंजन पर शिव परम उदार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भोपाहि पाहि दातार हरे।।5।।
आशुतोष से इस मोहमयी निद्रा से मुझे जगा देना,
विषम वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना,
रूप सुधा की एक बूंद से जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य ज्ञान भंडार युगल चरणों की लगन लगा देना,
एक बार इस मन मंदिर में कीजै पद संचार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।6।।
दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनुपायनि भक्ति प्रभो,
शक्तिमान हो दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,
त्यागी हो, दो इस असार संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,
परमपिता हो दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुण पुकार हरे,
पार्वतीपति पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।7।।
तुम बिन वेकल हूँ प्राणेश्वर आ जाओ भगवन्त हरे,
चरण शरण की बाँह गहो हे उमा रमण प्रिय कन्त हरे,
विरह व्यथित हूँ दीन दुखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,
आओ तुम मेरे हो जाओ आ जाओ श्रीमन्त हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे।।8।।

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