Monday, August 8, 2022

अथ प्रज्ञावर्धनस्तोत्रम् Ath Pragyavardhana Stotram

 प्रज्ञावर्धन स्तोत्र

अक्सर विद्यार्थियों के सामने यह समस्या आती है कि उनकी विद्याध्ययन में रुचि न होना, पढ़ने में मन का न लगना, उनमें एकाग्रता की कमी,पढ़ा हुआ याद न रहना, पढ़ा हुआ मौके पर भूल जाना आदि।

और इन सब के कारण उनकी अंक प्रतिशत में कमी आती है जिससे उनकी योग्यता पर प्रभाव पड़ता है।यद्यपि इन सब में जन्मपत्रिका में उपलब्ध ग्रहयोग भी मुख्य भूमिका निभाते हैं।
किन्तु प्रज्ञावर्धन स्तोत्र का अपना महत्व है।

विद्याध्ययन करने वाले अर्थात् विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी यह प्रज्ञावर्धन स्तोत्र स्वामी कुमार को समर्पित है।

इसमें स्कन्द के अट्ठाईस नामों का संकलन है।इसके प्रतिदिन 10 या108 पाठ करने का विधान है।इसको अश्वत्थ (पीपल)वृक्ष के मूल अर्थात् जड़ के पास बैठकर पढ़ना चाहिए।अपने घर के मन्दिर में बैठकर भी इसका पाठ कर सकते हैं।

इसके अनुष्ठान से साधकों/विद्यार्थियों को विलक्षण प्रतिभा और वाचाशक्ति की प्राप्ति होती है।तथा स्मरणशक्ति व एकाग्रता में वृद्धि होती है।

इसके अनुष्ठान के लिए इसे पुष्य नक्षत्र में आरम्भ करके पुनः पुष्य नक्षत्र आने तक नित्य करना चाहिए।और सम्भव हो तो अनुष्ठान के दिनों में मयूर (peacock) को तण्डुलादि का भोजन कराना चाहिए।

इससे इसकी सिद्धि प्राप्त होती है।अत्यधिक आवश्यक होने पर इस प्रयोग को आचार्यों के द्वारा सम्पन्न कराना चाहिए।




अथ प्रज्ञावर्धनस्तोत्रम्
Ath Pragyavardhana Stotram

             ।। श्री गणेशाय नमः ।।

अथास्य प्रज्ञावर्धन-स्तोत्रस्य भगवान् शिव- ऋषि: अनुष्टुप्छन्दः स्कन्द-कुमारो देवता प्रज्ञासिद्ध्यर्थं जपे विनियोग: इति संकल्प:।

योगेश्वरो महासेन: कार्तिकेयोग्निनंदन: ।
स्कन्द:कुमार: सेनानी स्वामी शंकरसंभव: ।।1।।

गाङ्गेयस्ताम्रचूडश्च ब्रम्हचारी शिखिध्वज: ।
तारकारिरुमापुत्र: क्रौञ्चारिश्च षडाननः ।।2।।

शब्दब्रम्हसमूहश्च सिद्ध: सारस्वतो गुहः ।
सनत्कुमारो भगवान् भोगमोक्षप्रदः प्रभु:।।3।।

शरजन्मा गणाधीश: पूर्वजो मुक्तिमार्गकृत् ।
सर्वागमप्रणेता च वांछितार्थप्रदर्शक: ।।4।।

अष्टाविंशति नामानि मदीयानीति यः पठेत् ।
प्रत्यूषे श्रद्धया युक्तो मूको वाचस्पतिर्भवेत् ।।5।।

महामन्त्रमयानीति मम नामानि कीर्तयेत् ।
महाप्रज्ञामवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ।।6।।
पुष्यनक्षत्र मारभ्य पुनः पुष्ये समाप्य च।
अश्वत्थमूले प्रतिदिनं दशवारं तु सम्पठेत्।।7।।

सप्तविंश-दिनैरेकं पुरश्चरणकं भवेत्।।

।। इति श्री रूद्रयामले प्रज्ञावर्धनस्तोत्रम् संपूर्णम् ।।

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