Wednesday, May 5, 2021

जानें ब्रह्माजी की पूजा क्यों नहीं होती है?Know why Brahma is not worshiped?

 


जानें ब्रह्माजी की पूजा क्यों नहीं होती है?Know why Brahma is not worshiped?



ब्रह्माजी का एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर राज्स्थान के पुष्कर में है। शैव और शाक्त आगम संप्रदायों की तरह ही ब्रह्माजी की उपासना का भी एक विशिष्ट संप्रदाय है, जो "वैखानस संप्रदाय" के नाम से प्रसिद्ध है। माध्व संप्रदाय के आदि आचार्य ब्रह्मा जी ही माने जाते हैं। इसलिए उडुपी आदि मुख्य माध्वपीठों में इनकी पूजा-आराधना की विशेष परम्परा है। देवताओं तथा असुरों के द्वारा सबसे अधिक आराधना इन्हीं की होती है।
लेकिन समाज में इनकी पूजा कोई नहीं करता और न ही इनके नाम का कोई व्रत या त्योहार है। आखिर ऐसा क्यों है? इसके कई कारण बताए जाते हैं। इनमें से प्रमुख तीन कारण जानिए...

पहला कारण : पुष्कर में ब्रह्माजी को एक यज्ञ करना था और उस वक्त उनकी पत्नीं सावित्री उनके साथ नहीं थी। उनकी पत्नी सावित्री वक्त पर यज्ञ स्थल पर नहीं पहुंच पाईं। यज्ञ का समय निकल रहा था।इसलिए ब्रह्माजी ने एक स्थानीय  बाला गायत्री से शादी कर ली और यज्ञ में बैठ गए।
यह गायत्री देवी राजस्थान के पुष्कर की रहने वाली थी जो वेदज्ञान में पारंगत होने के कारण विख्‍यात थी।
देवी सावित्री थोड़ी देर से पहुंचीं। लेकिन यज्ञ में अपनी जगह पर किसी और को देखकर गुस्से से पागल हो गईं। और उन्होंने ब्रह्माजी को शाप दे दिया कि जाओ इस पृथ्वी लोक में तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी। सावित्री के इस रुप को देखकर सभी देवता लोग डर गए। उन्होंने उनसे विनती की कि अपना शाप वापस ले लीजिए। जब गुस्सा ठंडा हुआ तो सावित्री ने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में ही आपकी पूजा होगी। कोई भी दूसरा आपका मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा।
ब्रह्माजी ने पुष्कर झील के किनारे कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था, जिसकी स्मृति में अनादि काल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। यहां विश्व में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पीछे रत्नागिरि पहाड़ पर जमीन तल से दो हजार तीन सौ 69 फुट की ऊंचाई पर ब्रह्माजी की प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है। झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है। पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है।

दूसरा कारण : दूसरा कारणशिवपुराण के अनुसार यह है कि ब्रह्मांड की थाह लेने के लिए जब भगवान शिव ने विष्णु और ब्रह्मा को भेजा तो ब्रह्मा ने वापस लौटकर असत्य वचन कहा था कि उन्हें ऊपरी छोर प्राप्त हो गया है।इसलिए भगवान शिव ने इन्हें शाप दे दिया कि तुम्हारी पूजा अर्चना नही होगी।

तीसरा कारण : जगत पिता ब्रह्माजी की काया कांतिमय और मनमोहक थी। उनके मनमोहक रूप को देखकर स्वर्ग अप्सरा मोहिनी  कामासक्त हो गई और वह समाधि में लीन ब्रह्माजी के समीप ही आसन लगाकर बैठ गई। जब ब्रह्माजी की तंद्रा  टूटी तो उन्होंने मोहिनी से पूछा, देवी! आप स्वर्ग का त्याग कर मेरे समीप क्यों बैठी हैं?

मोहिनी ने कहा, 'हे ब्रह्मदेव! मेरा तन और मन आपके प्रति प्रेममय हो रहा है। कृपया आप मेरा प्रेम स्वीकार करें।'

ब्रह्माजी मोहिनी के कामभाव को दूर करने के लिए उसे नीतिपूर्ण ज्ञान देने लगे लेकिन मोहिनी ब्रह्माजी को अपनी ओर असक्त करने के लिए कामुक अदाओं से रिझाने लगी। ब्रह्माजी उसके मोहपाश से बचने के लिए अपने इष्ट श्रीहरि को याद करने लगे।

उसी समय सप्तऋषियों का ब्रह्मलोक में आगमन हुआ। सप्तऋषियों ने ब्रह्माजी के समीप मोहिनी को देखकर उन से पूछा, यह रूपवती अप्सरा आप के साथ क्यों बैठी है? ब्रह्मा जी बोले, 'यह अप्सरा नृत्य करते-करते थक गई थी विश्राम करने के लिए पुत्री भाव से मेरे समीप बैठी है।'

सप्तऋषियों ने अपने योग बल से ब्रह्माजी की मिथ्याभाषण को जान लिया और मुस्कुरा कर वहां से प्रस्थान कर गए। ब्रह्माजी के अपने प्रति ऐसे वचन सुनकर अप्सरा मोहिनी को बहुत क्रोध आया। मोहिनी बोली, मैं आपसे अपनी काम इच्छाओं की पूर्ति चाहती थी और आपने मुझे पुत्री का दर्जा दिया। अपने मन पर संयम होने का बड़ा घमंड है आपको तभी आपने मेरे प्रेम को ठुकराया। यदि मैं सच्चे हृदय से आपसे प्रेम करती हूं तो कामासक्त होने का मिथ्यारोप आपको लगेगा और जगत में आपको पूजा नहीं जाएगा।

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