कभी भी अपने ज्ञान पर घमंड न करें Never boast on your knowledge
ज्ञान का भी मद होता है, और ये बहुत ही खतरनाक होता है।और मजे की बात तो यह है कि कब ये मद या अभिमान हो जाये पता नहीं चलता है जानते हैं प्रसंग के माध्यम से.......
सुप्रसिद्ध महाकवि कालिदास के जीवन के कई प्रेरक प्रसंग प्रचलित हैं। इन प्रसंगों में छिपी बातों को जीवन में उतार लेने पर हम कई परेशानयों से बच सकते हैं। यहां जानिए एक ऐसा प्रसंग, जिसमें बताया गया है कि हमें अहंकार से बचना चाहिए...
एक दिन महाकवि कालिदास गांव-गांव में भ्रमण कर रहे थे। रास्ते में उन्हें प्यास लगी। जल्दी ही उन्हें एक कुआं दिखाई दिया। वहां एक महिला पानी भर रही थी। कालिदास ने महिला से कहा कि मुझे प्यास लगी है, कृपया मुझे थोड़ा सा पानी दे दीजिए। महिला ने कहा कि मैं आपको जानती नहीं हूं, पहले अपना परिचय दें। इसके बाद ही मैं पानी दे सकती हूं। कालिदास ने कहा कि मैं इस गांव में मेहमान हूं। महिला ने कहा कि आप मेहमान कैसे हो सकते हैं?
इस संसार में बस दो ही मेहमान हैं, एक धन और दूसरा यौवन।
इस संसार में बस दो ही मेहमान हैं, एक धन और दूसरा यौवन।
महिला की ये बात सुनकर कालिदास आश्चर्य चकित रह गए, उन्हें ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने फिर कहा कि मैं सहनशील हूं। महिला बोली कि आप सहनशील नहीं है, इस संसार में सिर्फ दो ही सहनशील हैं। एक ये धरती जो पापी और पुण्यात्माओं दोनों का बोझ उठाती है। दूसरे सहनशील पेड़ हैं, जो पत्थर मारने पर भी मीठे फल ही देते हैं।
कालिदास ने फिर कहा कि मैं हठी हूं। महिला बोली कि आप फिर झूठ बोल रहे हैं। संसार में हठी सिर्फ दो ही हैं। एक हमारे नाखून और दूसरे बाल। इन्हें बार-बार काटने पर भी फिर से बढ़ जाते हैं।
कालिदास ने हार मान ली और कहा कि मैं मूर्ख हूं। इस पर महिला ने कहा कि मूर्ख भी दो ही हैं। एक राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर राज करता है। दूसरे दरबारी जो राजा को खुश करने के लिए गलत बात पर भी झूठी प्रशंसा करते हैं। अब कालिदास महिला के चरणों में गिर पड़े और पानी के लिए याचना करने लगे।
तब महिला ने कहा कि उठो वत्स। कालिदास ने ऊपर देखा तो वहां देवी सरस्वती खड़ी थीं। देवी ने कहा कि शिक्षा से ज्ञान मिलता है, न कि घमंड। तूझे अपने ज्ञान का घमंड हो गया था। इसीलिए तेरा घमंड तोड़ने के लिए मुझे ये सब करना पड़ा। कालिदास समझ गए कि उन्होंने गलत किया है। देवी से क्षमा याचना की और कहा कि अब से वे कभी भी घमंड नहीं करेंगे। इसके बाद देवी वहां से अंतर्ध्यान हो गईं और कालिदास भी पानी पीकर आगे बढ़ गए।
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