Saturday, March 12, 2022

ज्योतिष की दृष्टि में मनोरोग लक्षण कारण एवं निदान Psychiatric symptoms causes and diagnosis from the point of view of astrology

 ज्योतिष की दृष्टि में मनोरोग उसके कारण एवं निदान


जन्म पत्रिका में प्रथम भाव अर्थात् लग्न को शरीर का प्रतीक माना जाता है तथा दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह सूर्य एवं चंद्रमा को क्रमश: आत्मा एवं मन का कारक माना जाता है।लग्न के पीड़ित होने पर यह निश्चित हो जाता है कि व्यक्ति को कोई न कोई शारीरिक रोग अवश्य है तथा चंद्रमा के पीड़ित होने पर यह निश्चित हो जाता है कि व्यक्ति को कोई न कोई मनोरोग अवश्य है। डिप्रेशन, अवसाद, बेचैनी आदि मनोरोगी होने के सामान्य लक्षण हैं। इनके अतिरिक्त भी ऐसे अनेक लक्षण है जिनसे यह निर्धारित किया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति मनोरोगी है या नहीं यहां पर कुछ ऐसे ही लक्षण दिए जा रहे हैं।


मनोरोग के सामान्य लक्षण:-

●सदैव चिंता ग्रस्त रहना।

●बहुत अधिक भावुक होना। 

●अकारण ही भयग्रस्त रहना। 

●अपने भविष्य या परिवार को लेकर बहुत अधिक सोचना। 

●छोटी-छोटी बातों का बुरा मान जाना या चिड़चिड़ापन होना।

●भीड़ से या स्टेज से घबराना।

●खाली समय में घर पर ही रहना या आगंतुकों से नहीं मिलना।

● अत्यधिक शराब पीना या कोई अन्य नशा आदि अधिक करना।

●असफल होने पर हत्या आत्महत्या या ऐसा ही अन्य कोई गलत कदम उठाना।

●दूसरों के बहकावे में शीघ्र आ जाना एवं सामान्य सी बात को नहीं समझना।

●किसी प्रकार का भ्रम,डर या फोबिया होना।

●किसी विशिष्ट व्यक्ति के समक्ष या विपरीत लिंगी के समक्ष अथवा नए माहौल में असामान्य व्यवहार करना।

●किसी चीज के लिए बहुत अधिक क्रेजी होना या बिना वजह अपने आप को हीन समझना।

●पत्नी अथवा बच्चों को बात-बात पर मारना या पड़ोसियों के साथ दुर्व्यवहार करना।




मनोरोग सम्बन्धी अनुभवजन्य एवं शास्त्रोक्त कतिपय ज्योतिषीय योग-


●सामान्यत: जन्मपत्रिका में चन्द्रमा पापग्रहों से युत, दृष्ट होने या पाप राशि से पीड़ित होने पर व्यक्ति मनोरोगी होता है।

●चन्द्रमा के क्षीणबली होने एवं किसी पापग्रह से भी दृष्ट होने पर व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है।चन्द्रमा त्रिक भावों में यदि शत्रु राशि में स्थित हो तो आत्म बल कमजोर होता है।

● मनोरोगों में लग्न एवं सूर्य का भी विचार करना चाहिए क्योंकि लग्न,लग्नेश एवं सूर्य के शुभ युक्त, शुभ दृष्ट,या शुभ प्रभाव में होने पर व्यक्ति का शरीर स्वस्थ रहेगा और स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।

● चंद्रमा अष्टकवर्ग के अनुसार जन्म समय में 0 से 3 रेखाओं के मध्य स्थित हो अथवा राहु या केतु ग्रह से पीड़ित हो तो भी व्यक्ति में पूर्वोत्तर में से कोई लक्षण अवश्य दृष्टिगोचर होता है।


● ज्योतिष में पाप ग्रह के साथ स्थित बुध, शनि,मंगल,राहु एवं केतु को पापग्रह माना गया है।इनसे क्षीण चंद्रमा का संबंध होने पर तत्संबंधित मनो रोग होने की संभावना रहती है-यथा क्षीण चन्द्रमा के-

शनि से पीड़ित होने पर-निराशा की अधिकता, अधिक शराब पीना,भीड़ से घबराना,अपने आप को हीन समझना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

मङ्गल से पीड़ित होने पर- बात-बात पर क्रोध करना,पत्नी एवं बच्चों को पीटना,पड़ोसियों से झगड़ा करना, मन का उच्चाटन होना।

राहु-केतु से पीड़ित होने पर- सदैव भ्रमित रहना,बहुत अधिक शक्की होना, हत्या या आत्महत्या जैसा कदम उठाना, बहकी-बहकी बातें करना, किसी प्रकार का दौरा पड़ना या पिशाच आदि किसी नकारात्मक बाधा से पीड़ित होना।

पापी बुध से पीड़ित होने पर- बहुत अधिक चंचल होना, तंत्रिका तंत्र में खराबी के कारण बहकी बहकी या एकदम नई बातें करना, शौकिया चोरी करने की आदत होना।

● चंद्रमा के अतिरिक्त राहु भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है राहु यदि मेष, कर्क,सिंह,या वृश्चिक राशि में लग्न या सप्तम भाव में स्थित हो एवं चंद्रमा क्षीण बली हो और लग्नेश भी अल्पबली हो तो भी व्यक्ति का मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता है तथा मनुष्य पागल भी हो सकता है।

इनके अतिरिक्त शास्त्रों में निम्नलिखित योग भी इस संबंध में बताए गए हैं-

● गुरु पापयुत,पापदृष्ट या पाप राशि में स्थित हो एवं लग्नेश निर्बल हो तो मिर्गी,अपस्मार या मतिभ्रम रोग हो सकता है।

● लग्न में सूर्य एवं सप्तम में मंगल हो तो उन्माद रोग होता है हालांकि मनुष्य पागल नहीं होता है लेकिन कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

● लग्न में शनि स्थित हो एवं सप्तम या त्रिकोण में मंगल हो तो मनोस्थिति ठीक नहीं होती है।

● जन्म के समय धनु लग्न प्रारंभ हो अर्थात धनु लग्न का प्रथम नवांश उदित हो, सूर्य और चंद्रमा एक साथ लग्न,पंचम या नवम भाव में हो तथा बृहस्पति तृतीय या केंद्र में हो तो जातक को उन्माद रोग होता है।


● चंद्र तथा बुध केंद्र में हो या अशुभ नवांश में स्थित हो,तो जातक की बुद्धि भ्रमित रहती है, व्यर्थ की चिंता,उद्वेग इत्यादि के कारण जातक परेशान रहता है तथा अत्यधिक मद्यपान करता है।

● चंद्र एवं बुध की युति केंद्र स्थान में बन रही हो, जिस भाव में वे स्थित हों उस भाव के स्वामी की दृष्टि उन पर नहीं हो, और अन्य किसी भी ग्रह की युति उनके साथ नहीं हो रही हो, तो जातक किसी ऊपरी बाधा के कारण असामान्य बर्ताव करता है।

● हथेली में चंद्र पर्वत पर दो या तीन क्रास के निशान हो एवं संपूर्ण हथेली पर छोटी-छोटी आड़ी तिरछी रेखाओं की अधिकता हो तो ऐसा व्यक्ति सदैव चिंतित रहता है। यदि इसके साथ गुरु पर्वत पर भी क्रास या जाली का निशान हो तो मिर्गी की तरह दौरे आने लगते हैं। यदि चंद्र पर्वत पर क्रास के साथ-साथ मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत की दिशा में बहुत नीचे तक चली गई हो या मणिबंध रेखाओं तक मस्तिष्क रेखा जा रही हो तो ऐसे व्यक्ति के पागल होने के पूर्ण योग होते हैं।

● जिन व्यक्तियों का चंद्र पूर्ण बली हो साथ ही लग्न, लग्नेश एवं सूर्य की स्थिति बहुत अच्छी हो तो उन्हें प्रतिदिन बदलते गोचर एवं प्रतिवर्ष बदलती वर्ष कुंडली के फलस्वरूप अल्पकालिक चिंता या अवसाद का शिकार हो सकते हैं।


मनोरोगों से मुक्ति के उपाय-


● प्रतिदिन भगवान शिव को दुग्ध मिश्रित जल की धारा अर्पित करना चाहिए तथा यथासंभव वहां बैठकर शिव कवच,शिव चालीसा या शिव पंचाक्षरी या रूद्र गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए।

● चंद्रमा के 108 नामों का सोमवार से प्रारंभ कर प्रतिदिन जप करना चाहिए।

● ज्योतिषीय परामर्श से मोती एवं लग्नेश का रत्न धारण करना चाहिए।

●किसी भी शुभ मुहूर्त में 2 मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

● शुभ मुहूर्त में चांदी से निर्मित चंद्र यंत्र की पूजा अर्चना करें एवं अपने गले में धारण करें। ●प्रत्येक सोमवार या पूर्णिमा के दिन कच्चे चावल दान करें।

● दूध,दही,चांदी,मोती इत्यादि वस्तुओं का दान करें।


●मनोरोगों में ध्यान एवं योग का भी बहुत अधिक महत्व है अतः प्रतिदिन ध्यान-योग का अभ्यास करें।

● अनेक बार यह भी देखा गया है कि क्षीण चंद्रमा,शनि,राहु या षष्ठेश की महादशा या अंतर्दशा आने पर मानसिक कष्ट का अनुभव होता है।अतः पीड़ा कारक दशेश या अंतर्दशेश से संबंधित उपाय करने पर भी बहुत राहत प्राप्त हो सकती है।

● मानसिक शांति के लिए सोमवार का व्रत करना श्रेष्ठ रहता है शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से इसे प्रारंभ करना चाहिए एवं कम से कम 10 या 54 की संख्या में इसे करना चाहिए।व्रत के दिन यथासंभव श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए एवं श्वेत पुष्पों से पूजन करना चाहिए।भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए एवं दही,खीर,चावल,घी इत्यादि का सेवन करना चाहिए।व्रत के अंतिम दिन ब्राह्मणों एवं 9 वर्ष से कम आयु के बालकों को भोजन कराना चाहिए।

● चंद्रमा जिस ग्रह से पीड़ित हो, या जो ग्रह रोग कारक बन रहा है उससे संबंधित विशेष अनुष्ठान कर रोग को दूर किया जा सकता है।

● नित्य प्रति सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पञ्चगव्य धूनी का प्रयोग करें।

●  ब्राह्मी, शंखपुष्पी, मीठी वच,शतावर, अश्वगंधा आदि औषधियों का प्रयोग करें अथवा सरस्वती पंचक गव्य धूपबत्ती का प्रयोग करें।

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