Thursday, August 29, 2019

हवन पद्धति havan paddhati


                        हवन पद्धति


ततो सदाचार पञ्चमहायज्ञादि क्रियावतां ब्रह्मक्षत्रियविशां गृहात्  कांस्यपात्रे नवीन शरावे वा सम्पुटेनाग्निमानीय कुण्डस्य स्थण्डिलस्य वाग्नेय्यां निधाय "हुँ फट्" इति मंत्रेण क्रव्यादांश नैऋत्यां दिशि परित्यज्य
"ॐ अग्निन्दूतं पुरोदधे हव्यवाहमुपब्रुवे। देवां असादयादिह।। इति मंत्रेण आत्माभिमुखमग्निं  संस्थापयेत्।
ततो "ॐ भूर्भुवः स्व: अग्ने वैश्वानर शाण्डिल्य गोत्र शाण्डिलासित देवलेति त्रिप्ररान्वित भूमिमातः वरुणपितः मेषध्वज प्रांगमुख मम सम्मुखो भव इति वरद नामाग्निं प्रतिष्ठाप्य।।
ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये नमः इति मंत्रेण बहिरग्निं  पञ्चोपचारै:संपूज्य प्रार्थयेत्-
"ॐ अग्निं  प्रज्वलितं वन्दे जातवेदं हुताशनम्।
हिरण्यवर्णममलं समृद्धं विश्वतोमुखम्।।
                     आधारादि हवन-
कुशकण्डिका की विधि पूर्ण करने के बाद कुशा द्वारा ब्रह्मा का स्पर्श कर अग्नि के उत्तर भाग में घी से आहुति दें-ओं प्रजापतये स्वाहा मन ही मन इदं प्रजापतये न मम ऊँचे स्वर में पढ़कर आहुति से अतिरिक्त घृत को प्रोक्षणी पात्र में छोड़ें। अग्नि के दक्षिण भाग में-अग्नये स्वाहाइदमग्नये न मम। ओं सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय न मम केवल विवाह में (ॐ इन्द्राय स्वाहा इदमिन्द्राय न मम) इत्याज्यभागौ। इति
आधार संज्ञक हवन 
ॐ भूः स्वाहा, इदमग्नये न मम।
 ओं भुवः स्वाहा, इदं वायवे न मम।
ओं स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय न मम, एता महाव्याहृतयः।
प्रजापति और इन्द्र दोनों आधार संज्ञक और अग्निसोम आज्य भाग हैं। ‘ॐ भूः भूवः स्वः’ को महाव्याहृति कहते हैं।
इसके बाद आचार्य कहें-                
 ॐ यथा बाणप्रहाराणां कवचं वारकं भवेत्।
  तद्वद्देवोपघातानांशान्तिर्भवति वारिका।।
शान्तिरस्तु पुष्टिरस्तु यत्पापं रोगम्, अकल्याणं तद्दूरे प्रतिहतमस्तु, द्विपदे चतुष्पदे सुशान्तिर्भवतु, पढ़कर यजमान के सिर पर जल छिड़क दें।
पञ्चवारुण होम (सर्वप्रायश्चित्तसंज्ञक)-
ॐ त्वं नोऽअग्ने वरुणस्य विद्वान्देवस्य हेडोऽअवयासिसीष्ठाः। यजिष्ठो वह्मितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषाỦसि प्रमुमुग्ध्यस्मत् स्वाहा।। इदमग्नीवरुणाभ्यां न मम।।1।।
 ॐ स त्वं नो अग्नेऽवमो भवोती नेदिष्ठोऽअस्या उषसो व्युष्टौ अवयक्ष्व नो वरुणỦ रराणो वीहि मृडीकỦ सुहवो नऽएधि स्वाहा।। इदमग्नीवरुणाभ्यां न मम।।2।।
ॐ अयाश्चाग्नेऽस्यनभिशस्तिपाश्च सत्य- मित्वमया ऽअसि। अयानो यज्ञỦ वहास्ययानो धेहि भेषजỦ स्वहा।। इदमग्नये न मम।।3।।
ॐ ये ते शतं वरुणं ये सहश्रं यज्ञियाः पाशा वितता महान्तः। तेभिर्नो ऽअद्य सवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्काः स्वाहा।। इदं वरुणाय सवित्रो विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्भ्यः स्वर्केभ्यश्च न मम।।4।।
ॐ उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं विमध्यमỦ श्रथाय। अथा वयमादित्य व्रते तवानागसो ऽअदितये स्याम स्वाहा।। इदं वरुणायादित्यायादितये न मम।।5।। 
पढ़कर यथाक्रम बारह आहुतियों को प्रदान कर प्रोक्षणीपात्र में श्रुवावशिष्ट घृत का प्रक्षेप करें।  इति पञ्च वारुणी (प्रायश्चित्तसंज्ञक) होम।

तदुपरान्त चन्दन, पुष्प, अक्षत द्वारा वायव्यकोण में बहिरग्नि की पूजा कर ग्रह होम पुरस्सर प्रधान होम करें।
गणपति-नवग्रह-अधिदेवता-प्रत्यधिदेवता-पञ्चलोकपाल होम-
एक या दश आहुति गणेश के लिए प्रदान करें-(अन्वारब्धं विना)
ॐ गणानान्त्वा गणपतिỦ हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपतिỦहवामहे निधीनान्त्वा निधिपतिỦ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् स्वाहा। इदं गणपतये न मम। गणेश पूजन के बाद आये अन्य शेष देवताओं के लिए यथाशक्ति हवन करें।
नवग्रह होम
6 इंच (एक वित्ता) लम्बा अंगुलि के समान मोटा अकवन आदि समिधाओं को दधि, दूध, घी, चरु, साकल्य के साथ प्रत्येक देवताओं के लिए आठ-आठ बार आहुति प्रदान करें।
अर्क-   ॐ आकृष्णेन रजसा वत्र्तमानो निवेशयन्नमृतं मत्र्यं च हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् स्वाहा। इदं सूर्याय न मम।।1।।
पलाश-   ओं इमं देवाऽअसपत्नỦ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्येष्ठ्îय महते जानराज्ज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय इमममुष्य पुत्रमुष्यै पुत्रमस्यै विशऽएष वोमी राजा सोमोस्माकं ब्राह्मणाना Ủ राजा स्वाहा। इदं चन्द्रमसे न मम।। 2।।
खदिर-   ॐ अग्निर्मूद्र्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्याऽयम् अपाỦरेताỦ सि जिन्वति स्वाहा। इदं भौमाय न मम।। 3।।
अपामार्ग-   ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सỦसृजेथामयं च अस्मिन्त्सधस्थेऽअध्युत्तरस्मिन्विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत स्वाहा। इदं बुधाय न मम।। 4।।
अश्वत्थ-   ॐ बृहस्पतेऽअतियदय्र्योऽअर्हाद्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु यद्दीदयच्छवसऽऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्राỦ स्वाहा। इदं गुरवे न मम।।5।।
उदुम्बर-   ॐ अन्नात्परिश्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्त्रं पयः सोमम्प्रजापतिः ऋतेन सत्यमिन्द्रियं                                       विपानỦशुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु स्वाहा। इदं शुक्राय न मम।।6।।
शमी-   ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिश्रवन्तु नः स्वाहा। इदं शनैश्चराय न मम।। 7।।
दूर्वा-   कयानश्चित्राऽआभुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता स्वाहा। इदं राहवे न मम।। 8।।
कुश-   ॐकेतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मय्र्या अपेशसे समुषद्भिरजायथाः स्वाहा। इदं केतवे न मम।। 9।।
        इति नवग्रह होम।।
हाथ में जल लेकर अनेन समिधादिकृतेन होमेन सूय्र्यादयो ग्रहाः प्रीयन्तां न मम कहकर जल छोड़ दें।
अधिदेवता-प्रत्यधिदेवता होम-
ईश्वरादिभ्यः पलाशसमिधं मिष्टान्नमिश्रितचर्वाज्यादिद्रव्यैः सह (4-4)चतुष्चतुःसंख्याकाभिराहुतिभिर्जुहुयात्।
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् स्वाहा। इदमीश्वराय।। 1।।
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रो पाश्र्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। इश्णन्निषाणामुम्मऽइषाणसर्वलोकम्मऽइषाण स्वाहा इदमुमायै।।2।।
ॐ यदक्रन्दः प्रथमं जायमानः उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात्। श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहूऽउपस्तुत्यं महिजातन्ते अव्र्वन्स्वाहा। इदं स्कन्दाय।। 3।। 
ॐ विष्णोरराटमसि विष्णोश्नप्त्रोस्त्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोध्र्रुवोसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा स्वाहा। इदं विष्णवे।। 4।।
ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः। सबुध्न्या उपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसश्च विवः स्वाहा।
इदं ब्रह्मणे।।5।।
ॐ सजोष इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमम्पिब वृत्राहा शूर विद्वान् जहि शत्रूाँ रपमृधो नुदस्वाथाभयङ्कृणुहि विश्वतो नः स्वाहा। इदमिन्द्राय।। 6।।
ॐ यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा धम्र्माय स्वाहा धम्र्मः पित्रो स्वाहा। इदं यमाय।। 7।।
ॐ कार्षिरस समुद्रस्य त्वाक्षित्याऽउन्नयामि समापोऽअद्भिर- ग्मतसमोषधीभिरोषधीः स्वाहा। इदं कालाय।। 8।।
ॐ चित्रावसो स्वस्ति ते पारमशीय स्वाहा। इदं चित्रागुप्ताय।।9।।
अनेन सघृत-तिल-यव-चरुसमिद्धोमेन ईश्वराधिदेवताः प्रीयन्तां न कहकर जल छोड़ दे।
यथा बाणप्रहाराण0  पढ़कर यजमान के सिर पर जल छिड़कें।
प्रत्यधिदेवता होम-
ॐ अग्निदूतं पुरो दधे हव्यवाहमुपब्रुवे देवाँ 2 ऽआसादयादिह स्वाहा। इदमग्नये।।1।।
ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवस्तानऽऊज्र्जे दधातन महेरणाय चक्षसे यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः उशतीरिव मातरः। तस्माऽअरङ्गमामवो यस्य क्षयाय जिन्वथ आपो जनयथा च नः स्वाहा। इदमद्भ्îः ।। 2।।
ॐ स्योना पृथिवी नो भवानृक्षरा निवेशनी यच्छा नः शर्म स प्रथाः स्वाहा। इदं पृथिव्यै।।3।।
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रोधा निदधे पदम्,समूढमस्य पा Ủ सुरे स्वाहा। इदं विष्णवे।।4।।
ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रỦ हवे हवे सुहव Ủ शूरमिन्द्रम्, ह्वायामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्र Ủ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः स्वाहा। इदमिन्द्राय0।। 5।।
ॐ अदित्यैरास्नासीन्द्राण्याऽउष्णीयपूषासि धर्मायदीष्व स्वाहा। इदमिन्द्राण्यै0।। 6।।
ॐ प्रजापते नत्वदेतान्नयन्न्यो विश्वारूपाणि परिता बभूव। यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नोऽस्तु वय Ủ स्याम पतयो रयीणाम् स्वाहा। इदं प्रजापतये0।। 7।।
ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु येऽ अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः स्वाहां। इदं सर्पेभ्यः।।8।।
ॐ ब्रह्म यज्ञानम्प्रथमम्पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः सबुध्न्याऽउपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः स्वाहा। इदं ब्रह्मणे।। 9।।
अनेन समिधादिकृतेन होमेन अग्न्यादिप्रत्यधिदेवताः प्रीयन्तां न मम इत्युत्सृजेत्।
पञ्चलोकपालदेवता होम-
विनायकादिपञ्चलोकपाल के लिए और इन्द्रादिदशदिक्पाल के लिए प्रत्येक को पूर्वोक्त द्रव्य द्वारा दो-दो आहुति दें
ॐ गणानान्त्वा गणपति Ủ हवामहे प्रियाणान्त्वां प्रियपति Ủहवामहे निधीनान्त्वा निधिपतिỦ हवामहे व्वसो मम आहमजानिगर्भधमात्त्वमजासि गर्भधं स्वाहा। इदं गणपतये।।1।।
ॐ अंबेऽअंबिकेऽम्बालिके न मानयति कश्चन ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीỦ स्वाहा। इदं दुर्गायै।। 2।।
ॐ आ नो नियुद्भिःशतिनीभिरध्वर Ủ सहश्रिणीभिरुपयाहि यज्ञम्, वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयम्पात स्वस्तिभिः सदा नः स्वाहा। इदं वायये।।3।।
ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसाम्व्वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा दिशः प्रदिशऽआदिशो विदिशऽउद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा। इदमाकाशाय।। 4।।
ॐ यावांकशामधुमत्यश्विनासूनृतावती तया यज्ञम्मिमिक्षताम् स्वाहा। इदमश्विभ्याम्।। 5।।
अनेन होमेन पञ्चलोकपालदेवता प्रीयन्ताम् न मम कहकर जल छोड़ दे यथा बाणप्रहाराणा0 मंत्र द्वारा यजमान के शिर पर जल छोड़ें।
दशदिक्पाल होम-
ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र Ủ हवे हवे सुहव Ủ शूरमिन्दं्र ह्नयामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्रỦ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः स्वाहा। इदमिन्द्राय0।।1।।
ॐ त्वन्नोऽअग्ने तव पायुभिम्र्मघोनो रक्ष तन्वश्च बन्ध। त्राता तोकस्य तनये गवामस्य निमेषỦरक्षमाणस्तवव्व्रते स्वाहा। इदमग्नये।।2।।
ॐ यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा धर्माय स्वाहा धम्र्मेः पित्रो स्वाहा। इदं यमाय।।3।।
ॐ असुन्नवन्तमयजमानमिच्छस्तेन- स्येत्यामन्विहितस्करस्य अन्यमस्मदिच्छ- सातऽइत्यानमो देवि निर्ऋते तुभ्यमस्तु स्वाहा। इदं निर्ऋतये।। 4।।
ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः अहेळमानो वरुणेह बोध्युरूỦसमानऽआयुः प्रमोषीः स्वाहा। इदं वरुणाय।।5।।
ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वरः सहश्रिणीभिरुपयाहि यज्ञम्। वायोऽअस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयम्पात स्वस्तिभिः सदा नः स्वाहा। इदं वायवे।। 6।।
ॐ वय Ủ सोमव्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः प्रजावन्तः सचेमहि स्वाहा। इदं कुबेराय।।7।।
ॐ तमीशानञ्जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्िजन्वमवसे हूमहे वयं। पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्ध स्वस्तये स्वाहा। इदमीशानाय।। 8।।
ॐ अस्मे रुद्रा मेहना पर्वतासो वृत्राहत्ये भरहूतो सजोषः यश Ủ सते स्तुवते धायि वज्रऽइन्द्र ज्येष्ठाऽअस्माँऽअवन्तु देवाः स्वाहा। इदं ब्रह्मणे।।9।।
ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरानिवेशनी यच्छा नः सर्मसप्रथाः स्वाहा। इदमनन्ताय।।10।।
अनेन होमेन इन्द्रादयो दिक्पालदेवताः प्रीयन्तां न ममेति जलमुत्सृजेत्। इति दिक्पालहोम।
अथ पितामहादिदेवानामेकैकयाहुत्या होमः।।
ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः सबुध्न्या उपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः स्वाहा। इदं ब्रह्मणे।। 1।।
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रोधा निदधे पदम् समूढमस्य पाỦसुरे स्वाहा। इदं विष्णवे।। 2।।
ॐ त्रयम्बकं यजामहे0 इदं शिवाय।। 3।।
गणानान्त्वा0 स्वाहा। इदं गणपतये।।4।।
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च0 स्वाहा। इदं लक्ष्म्यै।।5।।
ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपियन्ति सश्रोतसः सरस्वती तु पञ्चधा सो देशे भवत्सरित् स्वाहा। इदं सरस्वत्यै।।6।।
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कञ्चन। ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीỦस्वाहा। इदं दुर्गायै।।7।।
ॐ नहि स्पर्शमविदन्नन्य- मस्माद्वैष्वानरात्पुरऽएतारमग्नेः एमे नम वृधन्नमृता अमत्र्यवैश्वानरं क्षैत्राजित्याय देवाः स्वाहा। इदं क्षेत्रापालाय।।8।।
ॐ भूताय त्वानारातये  स्वरभिविख्ये षन्दृ Ủहतादुर्याः पृथिव्यामुर्वन्तरिक्षमन्वेमि पृथिव्यास्त्वानाभौ सादयाम्यदित्या ऽउपस्त्थेऽग्नेहव्य Ủ रक्ष स्वाहा। इदं भूतेभ्यः।।9।।
ॐ वास्तोष्पते प्रति जानिह्यस्मान्त्स्ववेशोऽअनमीवो भवा नः यस्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व शन्नो भवद्द्विपदे शञ्चतुश्ष्पदे स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये।।10।।
ॐ विश्वकम्र्मन्हविषा वर्द्धनेनत्रातारमिन्द्रमकृणोरवद्धîम् तस्मै विशः समनमन्त पूर्वीरयमुग्रो विहव्योषथासत् स्वाहा। इदं विश्वकर्मणे।। 11।।
प्रधान देव का हवन
ग्रह मण्डल देवता के होम के पश्चात् प्रधान देवता का ध्यान,प्राणायाम कर हवन करें।
तद्यथा-ॐ (मूलमन्त्रा) स्वाहा0 यदि आवरण पूजा किये हो तो यन्त्रास्थ आवरण देवता के लिए एक-एक आहुति देवें।
दुर्गा होम-
मार्कण्डेय उवाच (प्रथम मन्त्र) से प्रारम्भ कर प्रत्येक मन्त्र के बाद स्वाहा कहें। अध्याय पूर्ण होने पर उठकर श्रुव में आज्य लेकर उसमें गंध, पुष्प, सुपारी, ताम्बूल, भोजपत्रा रखकर-
‘ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके नमानयति कश्चन। ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां कांपील-वासिनी स्वाहा हवन करें। ॐ अम्बे स्वाहा,ॐ अम्बिके, ॐ अम्बिालिके स्वााहा।
अग्निपूजन-
(आयतनाद्बहिर्वायव्यां दिशि) ॐ स्वाहा स्वधा युताग्नये वैश्वानराय नमः इससे पञ्चोपचार (सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि, इति वा) पूजा कर, ॐ अनया पूजया स्वाहास्वधायुतोग्निः प्रीयताम्, इति जल छोड़ दे। (होमतर्पणाभिषेकानां मध्ये यदेवं न संभवति तत्स्थाने तत्द्विगुणो जपः कार्यः)
स्विष्टकृद् होम-
हवन से अवशिष्ट हवि द्रव्य को लेकर स्विष्टकृद् होम करें।
ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा (चर्वादिद्रव्ये तदा पात्रन्तरम्) इदमग्नये स्विष्टकृते न मम।
घी द्वारा 9 आहुति देवें-ॐ भूः स्वाहा इदमग्नये न मम।। 1।। ॐ भुुवः स्वाहा इदं वायवे न मम।। 2।। ॐ स्वः स्वाहा इदं सूर्याय न मम।। 3।। ॐ त्वन्नो अग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अवयासिसीष्ठाः। यजिष्ठो वद्दितमः शोचानो विश्वा द्वेषा Ủसि प्रमुमुग्ध्यस्मत् स्वाहा इदमग्नी- वरुणाभ्यां0।।4।। ॐ स त्वन्नो अग्नेऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो व्युष्टौ। अवयक्ष्व नौ वरुणỦरराणो वीहि मृळीकỦसुहवो न एधि स्वाहा। इदमग्नीवरुणाभ्यां0।। 5।। ॐ अयाश्चाग्नेस्यनभिशस्तपाश्च सत्वमित्वमयाऽअसि। अयानो यज्ञं वहास्यया नो धेहि भेषजỦस्वाहा। इदमग्नये न मम।। 6।। ॐ ये ते शतं वरुण ये सहस्त्रं यज्ञियाः पाशा वितता महान्तः। तेभिन्र्नो अद्य सवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्काः स्वाहा। इदं वरुणाय सवित्रो विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्म्îः स्वर्केभ्यश्च न0।।7।। ॐ उदुत्तमं वरुणपाशमस्मदवाधमं विमध्यमỦश्रथाय। अथावयमादित्यव्रते तवानागसो अदितये स्याम स्वाहा। इदं वरुणायादित्यायादितये न0।।8।। ओं प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न0।।9।।
बलिदान
हाथ में जल अक्षत लेकर-ॐ तत्सदद्य अमुकगोत्राः अमुकशम्र्मा (वम्र्मा गुप्तोहं) कृतस्य कर्मणः साङ्तासिद्धîर्थं दशदिक्पालपूर्वकम् आदित्यादि- ग्रहमण्डलस्थापितदेवताभ्यो बलिदानञ्च करिष्ये। अग्नि के चारों ओर 10 दिशाओं में दही मिश्रित उड़द को दोना में रखकर एवं प्रत्येक के समीप दीप रखकर-ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि, अक्षत, जल को भूमि पर छोड़ दें।। भो भो इन्द्रादिदशदिक्पालाः स्वां स्वां दिशं रक्षत बलि भक्षत कृपां वितरत मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयुःकर्तारः क्षेमकर्तारः शान्तिकर्तारः पुष्टिकर्तारः तुष्टिकर्तारो वरदा भवत,प्रार्थना। शिरसि करौ कृत्वा भूमौ जानुभ्यां पतित्वा क्षमध्वमितिवदेदिति सर्वत्रा। एभिर्बलिदानैः इन्द्रादिदशदिक्पालाः प्रीयन्ताम्। ततो ग्रहवेदीसमीपे पत्रावल्युपरि बलिं निधाय आदित्यादिग्रहार्थं बलिद्रव्याय नमः सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि। ॐसूर्यादिनवग्रहेभ्यः साङ्गेभ्यः सपरिवारेभ्यः सायुधेभ्यः सशक्तिकेभ्यः अधिदेवताप्रत्यधिदेवतागणपत्यादिपञ्चलोकपाल-वास्तोष्पतिसहितेभ्यः एतं सदीपमाषभक्तबलिं समर्पयामि इति जलमुत्सृजेत्। भो भो सूर्यादिनवग्रहा साङ्गाः सपरिवाराः सायुधाः सशक्तिका अधिदेवता-प्रत्यधिदेवता- गणपत्यादिपञ्चलोकपालवास्तोष्पतिसहिताः इमं बलिं  मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयुःकर्तारः क्षेमकर्तारः शान्तिकर्तारः तुष्टिकर्तारः पुष्टिकर्तारो वरदा भवत। अनेन बलिदानेन सूर्यादिग्रहाः प्रीयन्ताम्। मातृकाओं के लिए भी एक बलि दें श्रीगौर्यादिमातृभ्यः इमं सदीपदधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि, इति जलमुत्सृजेत्। भो भो गौर्यादिमातर इमं बलिं र्गृीीत आयुःकत्रर्यः क्षेमकत्रर्यः, शान्तिकत्रर्यः, पुष्टिकत्रर्यः, वरदा भवत। अनेन बलिदानेन श्रीगौर्यादिमातरः प्रीयन्ताम्।
योगिनि वेदि के समीप-ॐ चतुःषष्टियोगिनीभ्यः साङ्भ्यः सपरिवाराभ्यः सायुधाभ्यः सशक्तिकाभ्यः इमं सदीपदघिमाषभक्तबलिं समर्पयामि, इति जलमुत्सृजेत्। भो भो चतुःषष्टियोगिन्यः इमं बलिं गृह्णीत मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयुःकत्रर्यः क्षेमकत्रर्यः शान्तिकत्रर्यः तुष्टिकत्रर्यः पुष्टिकत्रर्यो वरदा भवत। अनेन बलिदानेन श्रीचतुःषष्टियोगिन्यः प्रीयन्ताम्। उसके बाद मूल मंत्र के अन्त में कूष्माण्डरसेनाप्यायताम्0 यह कहें। प्रधान देवता के लिए सुपूजित कुष्माण्ड बलि देकर पैर धो लें। आचमन कर शान्तिः शान्तिः शान्तिः कहे।
क्षेत्रपाल बलि-
एक बांस के पात्र में कुश बिछा कर भोजन के दो गुणा या चार गुणा उड़द,दधि और जलपात्र रखकर हल्दी, चन्दन, सिन्दूर,काजल, द्रव्य, पताका, चैमुख दीप से उसे सजाकर संकल्प करें।
ॐ अद्येत्यादिॉ सकलारिष्टशान्तिपूर्वक प्रारिप्सितकर्मणः साङ्ता- सिद्धîर्थं क्षेत्रापालपूजनं बलिदानझ् करिष्ये।
संकल्प कर-ॐ न हि स्पर्शमविदन्नन्यमस्माद्वैश्वानरात्पुर एतारमग्नेः। एमेनमवृधन्नमृता अमत्र्यवैश्वानरं क्षेत्राजित्याय देवाः। ॐ श्रीक्षेत्रापालाय नमः क्षेत्रापालम् इस मंत्र से (बलि में रखे सुपारी में) आवाहयामि स्थापयामि। सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि दक्षिणाझ् श्रीक्षेत्रापालाय नमः।

पूजा कर ध्यान करें-
   भ्राजद्ववक्त्राजटाधरं त्रिनयनं नीला}नाद्रिप्रभं
                        दोर्दण्डान्तगदाकपालमरुणं श्रग्गन्धवस्त्रावृतम्।
            घण्टाघुर्घुरुमेखलाध्वनिमिलद्धुंकारभीमं प्रभुं
            वन्दे संहितसप्र्पकुण्डलधरं श्रीक्षेत्रापालं सदा।।
प्रार्थना-ॐ नमो क्षेत्रापालस्त्वं भूतप्रेतगणैः सह।
             पूजां बलिं गृहाणेमं सौम्यो भवतु सर्वदा ।।1।।

                        देहि मे आयुरारोग्ये निर्विघ्नं कुरु सर्वदा।
                        अनेन पूजनेन श्रीक्षेत्रापालः प्रीयताम्।
हाथ में जल लेकर-   
       ॐ क्षेत्रापाल महाबाहो! महाबलपराक्रम!।
              क्षेत्राणां रक्षणार्थाय बलिं नय नमोस्तु ते।।
श्री क्षौं क्षेत्रापालाय सांगाय भूतप्रेतपिशाचडाकिनीपिशाचिनी- मारीगण- वेतालादिपरिवारयुताय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय इमं सचतुर्मुखदीपदधिमाषभक्तवबलिं समर्पयामि।

जल छोड़कर प्रार्थना करें-भो भोः क्षेत्रापाल ! स्वं क्षेत्रां रक्ष बलिं भक्ष यज्ञं परिरक्ष मम सकुटुम्बस्याभ्युदयं कुरु-आयुःकर्ता क्षेमकर्ता शान्तिकर्ता पुष्टिकर्ता तुष्टिकर्ता निर्विघ्नकर्ता वरदो भव ॐ अनेन बलिदानेन श्रीक्षेत्रापालः प्रीयताम्।
भूतों के लिए बलिदान
शुद्ध सूप में दीप, उड़द, दधि, हल्दी, सिन्दूर, काजल, जल,चन्दन, लालफूल रखकर सपरिवार चैराहे पर जाकर गन्ध पुष्प से सूप की पूजा कर इन मंत्रों से स्थापित करें-
       ॐ बलिं र्गृीन्त्विमे देवा आदित्या वसवस्तथा।
            मरुतश्चाश्विनौ रुद्राः सुपर्णाः पन्नगा ग्रहाः ।।1।।

           असुरा यातुधानाश्च पिशाचोरगराक्षसाः।
         शाकिन्यो यक्षवेताला योगिन्यः पूतना शिवाः ।।2।।

           जृम्भकाः सिद्धगन्धर्वा नानाविद्याधरा नगाः।
           जगतां शान्तिकर्तारः क्रमाद्याश्चैव मातरः ।।3।।

          मा विघ्नं मा च मे रोगो मा सन्तु परिपन्थिनः।
         सौम्या भवन्तु तृप्ताश्च भूताः प्रेताः सुखावहाः।।4।।

           ते सर्वे तृप्तिमायान्तु रक्षां कुर्वन्तु मेऽध्वरे।
            देवताभ्यः पितृभ्यश्च भूतेभ्यः सह जन्तुभिः ।।5।।

         त्रौलौक्ये यानि भूतानि स्थावराणि चराणि च।
         एतस्थानाधिवासिभ्यः प्रयच्छामि बलिं नमः।।6।।

एतेभ्यो भूतेभ्यो गन्धादिकं वः स्वाहा इति बलिदानम्।
पूर्णाहुति होम-
संकल्प-ॐ अद्येत्यादिदेशकालौ सङ्कीत्र्य मम मनोऽभिलषित-धर्मार्थकामादियथेप्सि-तायुरारोग्यैश्वर्यपुत्र-पशु सखि-सुहृत्सम्बन्धिब-ध्वादिप्राप्तये ब्राह्मणद्वारा मत्कारिते अमुककर्मणि श्रीगणपतिगौर्याद्यावाहि- तेष्टदेवताप्रीतये च स्वैर्मन्त्रौर्यवतिलतण्डुलाज्याहुतिभिः परिपूर्णतासिद्धये -वसोर्धारासमन्वितं पूर्णाहुतिहोममहं करिष्ये। श्रुवा में पान सुपारी, अक्षत, घी एवं वस्त्र से लिपटा नारियल, पुष्पमाला लेकर चन्दन लगाकर पूर्णाहुत्यै नमः से पञ्चोपचार पूजन कर सपत्नीक यजमान पूर्णाहुति करें।
मन्त्राµॐ मूर्धानं दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृत आजातमग्निम्। कविỦसम्राजमतिथिञ्जनानामासन्ना पात्रां जनयन्त देवाः।। ॐ पूर्णा दर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत वस्नेव विक्रीणा वहा इषमूर्जỦ शतक्रतो स्वाहा, अग्नि में दोनों हाथों से छोड़ दें।
ततो यजमानःµइदमग्नये वैश्वानराय वसुरुद्रादित्येभ्यः शतक्रतवे सप्तवते अग्नये अभः पुरुषाय श्रियै च न मम। ॐ वसोः पवित्रामसि शतधारं वसोः पवित्रामसि सहश्रधारम्। देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रोण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः स्वाहा,इदं वाजादिभ्योऽग्नये विष्णवे रुद्राय सोमाय वैश्वानराय च न मम।
पूर्णाहुति से शेष को संस्रव पात्र में छोड़ दें। स्रुचि लेकर पूर्णाहुति पर अटूट
घृतधारा छोड़े। मन्त्र-ॐ वसोः पवित्रामसि शतधारं वसोः पवित्रामसि
सहश्रधारम्। देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रोण शतधारेण सुप्वा
कामधुक्षः स्वाहा, इदं वाजादिभ्योऽग्नये विष्णवे रुद्राय सोमाय वैश्वानराय च न मम।
अग्निप्रार्थनाµॐ श्रद्धा मेधां यशः प्रज्ञां विद्यां पुष्टिं श्रियं बलम्। तेज आयुष्यमारोग्यं देहि मे हव्यवाहन!।1।। भो भो अग्ने ! महाशक्ते!सर्वकर्मप्रसाधन! कर्मान्तरेऽपि सम्प्राप्ते सान्निध्यं कुरु सर्वदा।।
भस्मवन्दन-त्रयायुषकरण - 
कुण्ड में दग्ध पूर्णाहुति के नारियल के राख को स्रुव के पृष्ठ भाग से लेकर दाहिने हाथ के अनामिका अंगुलि से आचार्य स्वयं तिलक करे। पुनः यजमान को निम्न मन्त्र से भस्म अंकित करे। मन्त्राµॐ त्रयायुषं जमदग्नेरिति ललाटे। कश्यपस्य त्रयायुषमिति हृदि वामस्कन्धे च। यजमानपक्षे ‘तन्नो’ इत्यस्य स्थाने ‘तत्ते’ इति वाच्यम्। 
संश्रवप्राशन-प्रोक्षणी पात्र में छोड़े गये घी को यजमान अनामिका एवं अंगूठा से पीये। मन्त्राµॐयस्माद्यज्ञपुरोडाशाद्यज्वानो ब्रह्मरूपिणः। तं संश्रवपुरोडाशं प्राश्नामि सुखपुण्यदम्। आचमन कर प्रणीता पात्र में स्थित दोनों पवित्राी का ग्रन्थि खोलकर उसे शिर पर लगाकर अग्नि में छोड़ दें।
ब्रह्मा के लिए पूर्ण पात्र दान-
ॐअद्येत्यादिकृतैतदमुक-होम-कर्मणः प्रतिष्ठार्थमिदं तण्डुलपूरितं पूर्णपात्रां सदक्षिणं प्रजापतिदैवतं ब्रह्मणे तुभ्यमहं संप्रददे। ॐस्वस्तीति प्रतिवचनम्। ब्रह्म ग्रन्थी खोल दें। जल युक्त प्रणीता पात्र को अग्नि के पीछे से लाकर ॐ आपः शिवाः शिवतमाः शान्ताः शान्ततमास्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम्। उपयमन कुशा द्वारा यजमान के सिर पर जल छिड़कें।
ॐ दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु योऽस्मान्द्वेष्टि यञ्च वयं द्विष्मः। इत्यैशान्यां प्रणीतां न्युब्जीकुर्यात्। उपयमन कुशा को अग्नि में छोड़ दें।
बर्हि र्होम-
बिछाये गये बर्हि कुश को घी में डुबाकर-ॐ देवा गातु विदो गातु वित्वा गातु मित मनसस्पत इमं देव यज्ञỦस्वाहा वातेधाः स्वाहा। पढ़कर हवन
कर दें।
दशांश तर्पण मार्जन विधि-होम पूर्ण कर पात्रस्थ जल की पूजा कर दूध एवं तीर्थों का जल उसमें मिला लें। तदनन्तर होम के दशांश तर्पण करें। मूल मंत्र के बाद
ॐ साङ्ं सपरिवारम् अमुकदेवतां तर्पयामि ऐसा कहकर तर्पण करें। तर्पण के दशांश मूल मंत्र के बाद आत्मानमभिषिंंचामि नमः इतना कहे। तर्पण एवं सिंचन के अतिरिक्त शुद्ध जल से यजमान के सिर पर या पृथ्वी पर मार्जन करें।

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4 comments:

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जगदानन्द झा said...

पंडित जी आपने मक्षिका स्थाने मक्षिका लिख दिया है। मूल पुस्तक भी खोलकर देख लिया करें। यदि मूल पुसतक नहीं हो तो मुझसे ही बोल देते। अशुद्ध पाठ से किसका भला होगा?

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