Tuesday, June 18, 2019

विरह-ज्वर-विनाशकं ब्रह्म-शक्ति स्तोत्रम् ।। Virah-fever-destroyer Brahma-Shakti stotrama ..

विरह-ज्वर-विनाशकं ब्रह्म-शक्ति स्तोत्रम् ।।
Virah-fever-destroyer Brahma-Shakti stotrama ..




                      ।।श्री शिव उवाच।। 

ब्राह्मि ब्रह्म-स्वरूपे त्वं, मां प्रसीद सनातनि ! परमात्म-स्वरूपे च, परमानन्द-रूपिणि !।। 
ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे, मां प्रसीद भवार्णवे। सर्व-मंगल-रूपे च, प्रसीद सर्व-मंगले !।। 
विजये शिवदे देवि ! मां प्रसीद जय-प्रदे। वेद-वेदांग-रूपे च, वेद-मातः ! प्रसीद मे।। 
शोकघ्ने ज्ञान-रूपे च, प्रसीद भक्त वत्सले। सर्व-सम्पत्-प्रदे माये, प्रसीद जगदम्बिके!।। लक्ष्मीर्नारायण-क्रोडे, स्रष्टुर्वक्षसि भारती। 
मम क्रोडे महा-माया, विष्णु-माये प्रसीद मे।। काल-रूपे कार्य-रूपे, प्रसीद दीन-वत्सले। कृष्णस्य राधिके भद्रे, प्रसीद कृष्ण पूजिते!।। समस्त-कामिनीरूपे, कलांशेन प्रसीद मे। 
सर्व-सम्पत्-स्वरूपे त्वं, प्रसीद सम्पदां प्रदे!।। यशस्विभिः पूजिते त्वं, प्रसीद यशसां निधेः। चराचर-स्वरूपे च, प्रसीद मम मा चिरम्।। 
मम योग-प्रदे देवि ! प्रसीद सिद्ध-योगिनि। सर्व-सिद्धि-स्वरूपे च, प्रसीद सिद्धि-दायिनि।। अधुना रक्ष मामीशे, प्रदग्धं विरहाग्निना। स्वात्म-दर्शन-पुण्येन, क्रीणीहि परमेश्वरि !।।

                ।।फल-श्रुति।।

 एतत् पठेच्छृणुयाच्चन, वियोग-ज्वरो भवेत्। न भवेत् कामिनीभेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि।। इस स्तोत्र का पाठ करने अथवा सुनने वाले को वियोग-पीड़ा नहीं होती और जन्म जन्मान्तर तक कामिनी-भेद नहीं होता।पारिवारिक कलह, रोग या अकाल-मृत्यु आदि की सम्भावना होने पर इसका पाठ करना चाहिये।
प्रणय सम्बन्धों में बाधाएँ या पति-पत्नी के बीच सामन्जस्य का अभाव होने पर  इसका पाठ अभीष्ट फलदायक होगा।
अपनी इष्ट-देवता या भगवती गौरी का षोडषोपचार या पञ्चोपचार आदि विविध उपचारों से पूजन करके उक्त स्तोत्र का पाठ करें। अभीष्ट-प्राप्ति के लिये एकाग्रता के साथ कातरता और समर्पण आवश्यक है।

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