Saturday, February 2, 2019

जीवन का मुख्य रहस्य The main secret of life

जीवन का मुख्य रहस्य 

The main secret of life



गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा, है और जो होगा  वो भी अच्छा ही होगा।

भगवान श्रीकृष्ण जी ने दूसरा सूत्र यह भी बताया है कि कर्म करते जाओ फल की चिन्ता न करो।
कभी आपने विचार किया है कि कैसे?

क्या वास्तव में आपके साथ जो हुआ वो अच्छा ही हुआ ?
या जो हो रहा है वो सब अच्छा ही हो रहा है?

क्या यह सम्भव है कि हम बिना फल की चिन्ता किये ही कर्म करते जाएं?
यदि नही तो इसका अर्थ ये हुआ कि हम सब लोग अपने कर्मों का सही निर्वाहन नही कर रहें हैं।

मनुष्य अक्सर नकारात्मक विचारों (Negetive Thoughts) का स्मरण करता है। जो भी गलत घटनाएं, विचार, अनुभव है, उनका ही वह स्मरण करता रहता है, और जो भी शुभ है अर्थात सफलता उपलब्धि आदि, उसका स्मरण नहीं करता। ये मनुष्य की मुख्य भूलों (Blunders) में से एक  है कि जो भी नकारात्मक (Negetive) है,उसका वह स्मरण करता है; और जो भी विधायक है,सकारात्मक(Positive) है, उसका स्मरण नहीं करता।

किसी को शायद ही वे क्षण याद आते हों, जब आप प्रेम से भरे हुए थे,या अत्यंत उत्साहित थे,जब अपने स्वास्थ्य की कोई बहुत अदभुत ( Amazing) अनुभूति ( Sensation) की थी,या किसी क्षण बहुत शांत हो गए थे।

लेकिन आपको वे स्मरण(Remember)रोज आएंगे जब आप क्रोधित या अशांत हुए थे,जब किसी ने आपका अपमान किया था, या आपने किसी से बदला लिया था। आप उन-उन बातों को निरंतर स्मरण करते हैं, जो घातक हैं,और उनका स्मरण शायद ही होता हो, जो कि आपके जीवन के लिए विधायक हो सकती हैं।


विधायक अनुभूतियों का स्मरण बहुत बहुमूल्य है। उन-उन अनुभूतियों को निरंतर स्मरण करना चाहिए। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तो यह होगा कि अगर आप विधायक अनुभूतियों को स्मरण करते हैं, तो उन अनुभूतियों के वापस पैदा होने की संभावना आपके भीतर बढ़ जाएगी।

जो आदमी घृणा की बातों को बार-बार याद करता हो, बहुत संभावना है,कि घृणा की कोई घटना उसके जीवन में बार-बार घटेगी। जो आदमी उदासी की बातों को बार-बार स्मरण करता हो, बहुत संभव है,कि उदासी बार-बार उसके करीब आएगी।
क्योंकि उसके एक तरह के झुकाव पैदा हो जाते हैं और वही बातें उसमें पुनरुक्त हो जाती हैं। ये जो भाव हैं, स्थायी बन जाते हैं और जीवन में उन-उन भावों का बार-बार पैदा हो जाना आसान हो जाता है।

इसको अपने भीतर विचार करें कि आप किस तरह के भावों को स्मरण करने के आदी हैं। हर आदमी स्मरण करता है। किस तरह के भावों को आप स्मरण करने के आदी हैं? और यह स्मरण रखें कि अतीत के जिन भावों को आप स्मरण करते हैं, भविष्य में आप उन्हीं भावों के घटनाओं के, बीजों को बो रहे हैं और उनकी फसल को काटेंगे। अतीत का स्मरण भविष्य के लिए रास्ता बन जाता है।

जो व्यर्थ है, जिसका कोई उपयोग नहीं है, उसे याद न करें। उसका कोई मूल्य नहीं है। अगर उसका स्मरण भी आ जाए, तो रुकें और उस स्मरण को कहें कि बाहर हो जाओ, तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं है। कांटों को भूल जाएं और फूलों को स्मरण रखें।

"बीती ताहि बिसारिये आगे की सुधि लेय।।"

 कांटे बहुत हैं, लेकिन फूल भी हैं। जो फूलों को स्मरण रखेगा, उसके जीवन में कांटे क्षीण होते जाएंगे और फूल बढ़ जाएंगे। और जो कांटों को स्मरण रखेगा, उसके जीवन में हो सकता है, फूल विलीन हो जाएं और केवल कांटे रह जाएं।

हम क्या स्मरण करते हैं, वही हम बनते चले जाते हैं। जिसका हम स्मरण करते हैं, वही हम हो जाते हैं। जिसका हम निरंतर विचार करते हैं, वैसा ही वातावरण हमारे लिए तैयार हो जाता है, वह विचार हमें परिवर्तित कर देता है क्योंकि इस संसार मे विचार ही सार है।और हमारा प्राण हो जाता है। इसलिए शुभ, सद, जो भी आपको श्रेष्ठ मालूम पड़े, उसे स्मरण करें और आप पाएंगे कि वो सब आपको प्राप्त होता जा रहा है।
यही आकर्षण का सिद्धांत(Attraction of Low)) है।

इस ईश्वर प्रदत्त जीवन में--इतना दरिद्र जीव कोई  नहीं है कि उसके जीवन में कोई शांति के, आनंद के, सौंदर्य के, प्रेम के क्षण न घटित हुए हों। और अगर आप उनके स्मरण में समर्थ हो गए, तो यह भी हो सकता है कि आपके चारों तरफ अंधकार हो, लेकिन आपकी स्मृति में प्रकाश हो और इसलिए चारों तरफ का अंधकार भी आपको दिखायी न पड़े। यह भी हो सकता है, आपके चारों तरफ दुख हो, लेकिन आपके भीतर कोई प्रेम की, कोई सौंदर्य की, कोई शांति की अनुभूति हो और आपको चारों तरफ का दुख भी दिखायी न पड़े। यह संभव है, यह संभव है कि बिलकुल कांटों के बीच में कोई व्यक्ति फूलों में हो। इसके विपरीत भी संभव है। और यह हमारे ऊपर निर्भर है।

यह मनुष्य के ऊपर निर्भर है कि वह अपने को विचारों के साथ कहां स्थापित कर देता है,क्योंकि जो आज हमारे साथ घट रहा है हो यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम स्वर्ग में रहते हैं या नर्क में रहते हैं।

 स्वर्ग- नर्क कोई भौगोलिक स्थान नहीं हैं। वे मानसिक, मनोवैज्ञानिक स्थितियां हैं। हममें से अधिकतर लोग दिन में कई बार नर्क में चले जाते हैं और कई बार स्वर्ग में आ जाते हैं। और हममें से कई लोग दिनभर नर्क में रहते हैं। और हममें से कई लोग स्वर्ग में वापस लौटने का रास्ता ही भूल जाते हैं। लेकिन ऐसे लोग भी हैं, जो चौबीस घंटे स्वर्ग में रहते हैं। इसी जमीन पर, इन्हीं स्थितियों में ऐसे लोग हैं, जो स्वर्ग में रहते हैं। आप भी उनमें से एक बन सकते हैं। कोई बाधा नहीं है, सिवाय कुछ सूत्रों/ नियमों को समझने के।

हमारे चित्त की स्थिति हम जैसी बनाए रखेंगे, यह दुनिया भी ठीक वैसी बन जाती है। न मालूम कौन-सा चमत्कार है कि जो आदमी भला होना शुरू होता है, यह सारी दुनिया उसे एक भली दुनिया में परिवर्तित हो जाती है। और जो आदमी प्रेम से भरता है, इस सारी दुनिया का प्रेम उसकी तरफ प्रवाहित होने लगता है।

और यह नियम इतना शाश्वत है कि जो आदमी घृणा से भरेगा, प्रतिकार में घृणा उसे उपलब्ध होने लगेगी। हम जो अपने चारों तरफ फेंकते हैं, वही हमें उपलब्ध हो जाता है। इसके सिवाय कोई रास्ता भी नहीं है।

तो हर समय उन क्षणों का स्मरण करें, जो जीवन में अदभुत थे, ईश्वरीय थे। वे छोटे-छोटे क्षण, उनका स्मरण करें और उन क्षणों पर अपने जीवन को खड़ा करें। और उन बड़ी-बड़ी घटनाओं को भी भूल जाएं, जो दुख की हैं, पीड़ा की हैं, घृणा की हैं, हिंसा की हैं। उनका कोई मूल्य नहीं है। उन्हें विसर्जित कर दें, उन्हें जीवन से हटा दें। जैसे सूखे पत्ते दरख्तों से गिर जाते हैं, वैसे जो व्यर्थ है, उसे छोड़ते चले जाएं; और जो सार्थक है और जीवंत है, उसे स्मरणपूर्वक पकड़ते चले जाएं। हर समय इसका सातत्य रहे। एक धारा मन में बहती रहे शुभ की, सौंदर्य की, प्रेम की, आनंद की।

तो आप क्रमशः पाएंगे कि जिसका आप स्मरण कर रहे हैं, वे घटनाएं बढ़नी शुरू हो गयी हैं। और जिसको आप निरंतर साध रहे हैं, उसके चारों तरफ दर्शन होने शुरू हो जाएंगे। और तब यही दुनिया बहुत दूसरे ढंग की दिखायी पड़ती है। और तब ये ही लोग बहुत दूसरे लोग हो जाते हैं। और ये ही आंखें और ये ही फूल और ये ही पत्थर एक नए अर्थ को ले लेते हैं, जो हमने कभी पहले जाना नहीं था। क्योंकि हम कुछ और बातों में उलझे हुए थे।
जब हम इस स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं तो बुरा शब्द ही हमारे लिए समाप्त हो जाता है, और फिर जो भी होता हैअच्छा ही होता है, और हम बिना किसी फल की इच्छा के कर्म करते चले जाते हैं।

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