Wednesday, April 3, 2019

श्रावणी उपाकर्म Shravani Upakarma


क्या होता है श्रावणी उपाकर्म, क्यों किया जाता है?
What happens is the Shravani Upakarma, why it is done?

श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षा बंधन का दिन ब्राह्मणों का विशेष पर्व होता है, इसे श्रावणी उपाकर्म या संस्कृत दिवस के नाम से भी जाना जाता है।
यह  पवित्र नदी के घाट पर सामूहिक रूप से मनाया जाता है।

आइये जानते हैं क्या है श्रावणी उपाकर्म-
Let's know what Shravani Upakarma -

श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष है- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय।
There are three sides of the Shravani Upakarma: Atonement Resolve, Sanskar and Swadhyaya.

सर्वप्रथम होता है- प्रायश्चित रूप में हेमाद्रि  स्नान संकल्प। गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मïचारी गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र तथा पवित्र कुशा से स्नानकर वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित कर जीवन को सकारात्मकता से भरते हैं।स्नान के बाद ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान एवं यज्ञोपवीत पूजन तथा नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं। 

यज्ञोपवीत या जनेऊ आत्म संयम का संस्कार है। आज के दिन जिनका यज्ञोपवित संस्कार हो चुका होता है, वह पुराना यज्ञोपवित उतारकर नया धारण करते हैं।
इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है।

उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय का है। इसकी शुरुआत सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, सदसस्पति, अनुमति, छंद और ऋषि को घी की आहुति से होती है। जौ के आटे में दही मिलाकर ऋग्वेद के मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। इस यज्ञ के बाद वेद-वेदांग का अध्ययन आरंभ होता है।  इस प्रकार वैदिक परंपरा में वैदिक शिक्षा साढ़े पांच या साढ़े छह मास तक चलती है। वर्तमान में श्रावणी पूर्णिमा के दिन ही उपाकर्म और उत्सर्ग दोनों विधान कर दिए जाते हैं। प्रतीक रूप में किया जाने वाला यह विधान हमें स्वाध्याय और सुसंस्कारों के विकास के लिए प्रेरित करता है ताकि हमारे साथ हमारा मानव समाज आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो।

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