प्राणायाम
हम जीवनभर बाहर की बातों में ही उलझे रहते हैं। सभी इंद्रियां अपने-अपने विषयों में दौड़ती रहती हैं। इसे ही भोग कहते हैं। लेकिन योग साधना में इन सभी इंद्रियों के विषयों को व्यक्ति बाहर ही रोककर ध्यान की अवस्था में बैठकर स्वयं को शून्य में स्थिर कर लेता है।
प्राण को प्राणायाम के द्वारा स्थिर कर आने-जाने वाली सांस की गति को एक जैसा कर लेता है। इससे मन हमारे प्राण से शक्ति पाता है। प्राणायाम के जरिए जैसे ही प्राण को साधा जाता है। मन अपने आप सधने लगता है और फिर साधक अंतर्मुखी साधना की शुरुआत करता है।
हम जीवनभर बाहर की बातों में ही उलझे रहते हैं। सभी इंद्रियां अपने-अपने विषयों में दौड़ती रहती हैं। इसे ही भोग कहते हैं। लेकिन योग साधना में इन सभी इंद्रियों के विषयों को व्यक्ति बाहर ही रोककर ध्यान की अवस्था में बैठकर स्वयं को शून्य में स्थिर कर लेता है।
प्राण को प्राणायाम के द्वारा स्थिर कर आने-जाने वाली सांस की गति को एक जैसा कर लेता है। इससे मन हमारे प्राण से शक्ति पाता है। प्राणायाम के जरिए जैसे ही प्राण को साधा जाता है। मन अपने आप सधने लगता है और फिर साधक अंतर्मुखी साधना की शुरुआत करता है।
Pranayama
We are confused with external issues only. All the senses keep on running in their subjects. This is called enjoyment only. But in Yoga Sadhana, the subjects of all these senses restrain themselves from outside and sit in meditation and stabilize themselves in the vacuum.
By speeding up the prana by pranayama, the speed of the breathing of the one who gets stuck is uniform. This gives us strength from our soul. As soon as prana is done through pranayama. The mind begins to feel self-reliant and then the seeker initiates introverted meditation.
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