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Tuesday, September 9, 2025

वाणी की चार अवस्थाएं vaanee kee chaar avasthaen

 वाणी की चार अवस्थाएं 

वाणी  की चार अवस्थाएँ हैं, जिनका वर्णन वैदिक और तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है।



1. परा वाणी (Para Vani)

यह वाणी की सबसे सूक्ष्म अवस्था है।


इसे "मूल" या "बीज" स्वरूप कहा जाता है।


यह कंठ से भी गहरी—मूलाधार चक्र (कुंडलिनी) में स्थित मानी जाती है।


इसमें शब्द अभी केवल "अविचारित संकल्प" के रूप में रहते हैं, बाहर प्रकट नहीं होते।


यह ब्रह्म स्वरूप, दिव्य और मौन वाणी है।


2. पश्यन्ती वाणी (Pashyanti Vani)

"पश्यन्ती" का अर्थ है "देखना"।


यह वाणी की वह अवस्था है जब शब्द रूपी विचार "दृश्य" या "चित्र" के रूप में अंतःकरण में प्रकट होने लगते हैं।


यह नाभि या हृदय क्षेत्र में स्थित मानी जाती है।


यहाँ वाणी ध्वनि में परिवर्तित होने की तैयारी में होती है, लेकिन अभी ध्वनि नहीं बनी है।


3. मध्यमा वाणी (Madhyama Vani)

यह वाणी की मध्य अवस्था है।


इसमें विचार मन और बुद्धि के माध्यम से आकार लेते हैं।


यह वाणी कंठ (गले) में रहती है।


यहाँ तक पहुँचने पर शब्द रूपी विचार "भाषा" का रूप लेने के लिए तैयार हो जाते हैं।


4. वैखरी वाणी (Vaikhari Vani)

यह वाणी का सबसे स्थूल और प्रकट रूप है।


यही हमारी बोलचाल की भाषा है।


इसका स्थान जिव्हा (जीभ, होंठ, तालु आदि उच्चारण अंग) हैं।


यहाँ वाणी श्रवणीय ध्वनि के रूप में बाहर आती है।


संक्षेप में:

परा – बीज रूप (मूलाधार, मौन)


पश्यन्ती – दृश्य रूप (हृदय, भाव/चित्र)


मध्यमा – मानसिक रूप (कंठ, भाषा का आकार)


वैखरी – वाचिक रूप (जिह्वा, प्रकट शब्द)



मैं आपको वाणी की चार अवस्थाओं को एक सुंदर तालिका के रूप में प्रस्तुत करता हूँ।

वाणी की चार अवस्थाएँ – तालिका

वाणी की अवस्था, स्थान, (चक्र/अंग)स्वरूप, विशेषता-


परा- मूलाधार चक्र (कुंडलिनी)बीज रूप, मौन शब्द संकल्प रूप में; अभी ध्वनि नहीं।


पश्यन्ती- हृदय/नाभि क्षेत्र दृश्य रूप विचार चित्र/भाव के रूप में प्रकट होते हैं।


मध्यमा- कंठ (गला)मानसिक रूप शब्द भाषा का रूप लेने लगते हैं।


वैखरी- जिह्वा, तालु, होंठ वाचिक रूप श्रवणीय ध्वनि, बोलचाल की भाषा।

साधारण रूप में

वैखरी वाणी (जिह्वा - प्रकट शब्द) 

मध्यमा वाणी (कंठ - मानसिक भाषा)

पश्यन्ती वाणी (हृदय/नाभि - भाव/चित्र)

परा वाणी (मूलाधार - मौन बीज)

 इसे ऐसे समझें:

परा = बीज।


पश्यन्ती = भाव/चित्र।


मध्यमा = विचार/भाषा का रूप।


वैखरी = प्रकट शब्द (हमारी बोली)।


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