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Monday, August 15, 2022

शिव वास shiv vas

शिव वास shiv vas

शिवोपासना रुद्राभिषेक शिवार्चन आदि में शिव वास का विचार

किसी कामना, ग्रहशांति आदि के लिए किए जाने वाले शिवोपासना,रुद्राभिषेक,शिवार्चन आदि में शिव वास का विचार करने पर ही अनुष्ठान सफल होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।यह नारद प्रणीत कहा गया है क्योंकि सर्वप्रथम नारदजी ने ही इसको देवताओं को बताया था।

कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।

शिव वास का विचार सकाम इच्छायुक्त अनुष्ठान/पूजन आदि में किया जाता है।

किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

नित्य और निष्काम भाव से शिवपूजन, रुद्राभिषेक, शिवार्चन आदि में शिव वास का विचार करने की आवश्यकता नहीं होती है।इसके अतिरिक्त ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।

वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपा पात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं।

अतः हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं।

स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है।और जब वो प्रसन्न होते हैं तो प्रारब्ध भी अनुकूल हो जाता है।

इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है।और भगवान् शिव सबका कल्याण करते हैं।

(शिववास कारिका) अर्थात् शिववास ज्ञात करने का सूत्र

तिथिं च द्विगुणीं कृत्य बाणै: संयोजयेत्तदा।।

सप्तमिश्च हरेत्भागं शिववासं समुद्दिशेत्।।

एकेन वास: कैलासे द्वितीये गौरिसन्निधौ।।

तृतीये वृषभारूढ़: सभायां च चतुष्टये।।

पंचमे भोजनेचैव क्रीड़ायां षण्मिते तथा।।

श्मशाने सप्तशेषे च शिववास इतीरत:।।

कैलाशे लभते सौख्यं गौर्यां च सुखसम्पदा।

वृषभे८भीष्टसिद्धि: स्यात् सभा संतापकारिणी।।

भोजने च भवेत् पीड़ा क्रीडायां कष्टमेव च।।

श्मशाने मरणं ज्ञेयं फलमेव विचारयेत्।।

अर्थात्- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से वर्तमान तिथि की संख्या को दुगुना कर दें। यदि कृष्ण पक्ष की तिथि हो तो उसमें १५ और जोड़ने के बाद दुगुना करें। उस संख्या में ५ और जोड़कर ७ का भाग दें।

प्राप्त शेष अंक के अनुसार शिव वास का ज्ञान प्राप्त करें।




उदाहरण-शुक्ल पक्ष में ५ तिथि को लेते हैं।

५+५=१० द्विगुणित

१०+५=१५ नियमानुसार

७)१५(२

    १४

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   १ शेष

अर्थात् भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर विराजमान हैं और इस दिन पूजन करने से कल्याण करते हैं।


इसी प्रकार कृष्ण पक्ष में ४ तिथि को उदाहरण स्वरूप लेते हैं।

४+१५=१९×२=३८ द्विगुणित

३८+५=४३ नियमानुसार

७)४३(६

    ४२

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१ शेष

अर्थात् इस दिन भगवान शिव का पूजन कल्याणकारी होगा और मनोकामना पूर्ति होगी।

इसी प्रकार दोनो पक्षों की अन्य तिथियों की गणना करनी चाहिए।

०- इस समय भूतभावन श्मशान में बात कर रहे हैं। उस समय वे विनाशक शक्तियों से घिरे होते हैं। ऐसे समय में जो उनके पास जाता है उसे वे मृत्युदायक होते हैं। यह शिववास अशुभ है।

१- भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में कैलाश पर्वत पर बैठे हैं तथा उस समय जो उनकी उपासना करते हैं उसे वे संपूर्ण सौख्य आदि प्रदान करते हैं। इस शिववास से भोग-मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। यह शिववास शुभ है।

२- मां गौरी के समीप बैठे हैं। माता पार्वती जगत् के दीन-हीन पुत्रों के दुखों की चर्चा कर रही हैं। यह सुनकर उनका चित्त करुणार्द्र हो रहा है। ऐसे समय में पूजन करने से अतुल संपत्ति शालीनता आदि की कृपा सहज में कर देते हैं। यह शिववास भी शुभ है।

३-भगवान शंकर वृषभ की सवारी पर बैठे आनंदित हो रहे हैं। यत्र-तत्र-सर्वत्र भ्रमण करते हुए याचना करने वालों की समस्त कामनाओं की पूर्ति करते हैं। यह शिववास भी शुभ है।

४- इस समय शिवजी सभा में बैठे हैं तथा विविध विषयों पर सभासदों के साथ विचार विमर्श कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में संताप दायक होते हैं। यह शिववास अशुभ है।

५- इस समय भगवान शंकर भोजन करते रहते हैं। भोजन में विघ्न होने से रुष्ट होते हैं। पूजन करने वाले को पीड़ा देते हैं।वे उस समय जो दुनिया के पाप दोष खा रहे होते हैं वह प्रसाद रूप से दे देते हैं। यह शिववास अशुभ है।

६- इस समय शिव क्रीड़ारत। हैं। इस समय विघ्न करने से पीड़ा, पराजय, हानि आदि फल प्राप्त होते हैं। यह शिववास भी अशुभ है।

ये सात शिव वास होते हैं।इनमे से तीन शिव वास शुभ होते हैं और चार अशुभ।इसे हम सारिणी में देख सकते हैं।

शिव वास सारिणी
इस प्रकार शिववास का ज्ञान करने के बाद जो शिवपूजन आरंभ किया जाता है वह शुभ फलदायक होता है। शिवोपासना रुद्राभिषेक और शिवार्चन में यह अत्यावश्यक अंग है।इस सूत्र के अनुसार कृष्ण पक्ष में १-४-५-८-११-१२-३० तथा शुक्ल पक्ष में २-५-६-९-१२-१३ इन तिथियों में शिववास होता है।अर्थात् रुद्राभिषेक, शिवोपासना, शिवार्चन आदि के लिए प्रतिमाह तेरह दिन शिव वास के और एक दिन शिवरात्रि का प्राप्त होता है।

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