Pages

Saturday, February 15, 2025

श्री रामाष्टक Shri Ramashtak

 ।।श्री रामाष्टक।।



हे राम मैं तुममें रम जाऊं, ऐसी निर्मल बुद्धि दे दो।
चित् चिन्ता करता रात दिवस, विषयों के आनन्द पाने का।।


हे शत् चेतन आनन्द प्रभू,इस चित्त को भी चेतन कर दो।
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम, मैं, तुममें रम जाऊं।।


यह चंचल मन संकल्पों का, एक जाल बिछाए रहता है।
छोटी सी झलक दिखा करके, मनमोहन रूप इसे कर दो।।


हे राम, हे राम, हे राम, हे राम, मैं, तुममें रम जाऊं।


मुख से गुणगान करूँ भगवन, मीठा ही वचन उचारूं सदा।।
अमृत की बूँद पिला करके, इस वाणी में अमृत भर दो।


हे राम, हे राम, हे राम, हे राम, मैं, तुममें रम जाऊं।।


पर दोष न देखूँ आँखों से, न सुनूँ बुराई कानों से।
सारा जग आनन्द रूप बने, ऐसी मेरी दृष्टि कर दो।।


हे राम, हे राम, हे राम, हे राम, मैं, तुममें रम जाऊं।।


यह अंग प्रत्यंक जो है मेरे, लग जायें आपकी सेवा में।
जीवन अर्पण हो चरणों में, बस नाथ कृपा इतनी कर दो।।


हे राम, हे राम, हे राम, हे राम, मैं, तुम्हें रम जाऊं।।
 हे राम मैं  तुममे रम जाऊं, ऐसी निर्मल बुद्धि दे दो।


हे राम, हे राम, हे राम, हे राम, मैं तुममें रम जाऊं ।।

No comments:

Post a Comment