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Thursday, April 2, 2020

वास्तु में दिशाओ का महत्व Importance of directions in Vastu


वास्तु में दिशाओ का महत्व
Importance of directions in Vastu

किसी भवन/गृह का निर्माण करते हुए हमारा ध्यान सर्वप्रथम दिशाओं की ओर जाता है कि किस ओर कौनसी दिशा है और वह किस कार्य के लिए महत्वपूर्ण है।जिस तरह ज्योतिष मे दशाओं के माध्यम से फलित करते है उसी प्रकार वास्तु मे दिशाओं को वास्तु के लिए मुख्य रुप से देखा जाता है।
सभी दिशाओं का अपना विशेष महत्व और गुण-धर्म निर्धारित किया गया है।
ईशान दिशा- उत्तर-पूर्व की यह दिशा मुख्य रुप से शुभ मानी जाती है, इस दिशा का स्वामी बृहस्पति ग्रह है। यहा वास्तु पुरुष का मुख होता है। यहां सभी सात्त्विक ऊर्जाएं होती है। सर्वप्रथम सूर्य यही से उदय होता है जो ऊपर आने पर पूर्व से उगता दिखाई देता है। सूर्योदय के समय यहां उन्नत पराबैंगनी किरणों का आगमन होता है। यह दिशा योग, पूजा-पाठ, ध्यान, धार्मिक ग्रंथ और आध्यात्मिक कार्य के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। इस दिशा मे सबसे कम भार  होना चाहिए और इसी दिशा मे ही ढलान होनी चाहिए।ईशान को सबसेअधिक खुला व साफ रखना चाहिए।यहां हल्का सामान रखना चाहिए।इसी स्थान को पानी, बोरिंग और खुदाई के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। ईशान मे बढा भुखंड भी इस दिशा मे ढलान होने के समान शुभ माना जाता है। यहां कटाव, कूडा, बंद होना अशुभ होता है। यहां कटाव होना यानि वास्तु पुरुष का सिर कटा होना है। ईशान मे कटाव होने का कारण जातक को अपना चेहरा छुपाने के लिए बाध्य होना पडता है और संवादहीनता के कारण घर मे झगडा बना रहता है।भाई-बहनो से रिशता मधुर नही रह पाता और साहस की भी कमी बनी रहती है साथ ही जातक को आंख नाक, कान और गले की समस्याएं बनी रहती है क्योंकि ज्योतिष मे यह कुंडली का दुसरा व तीसरा भाव होता है।
यहां दोष होने से स्वास्थय सम्बंधित परेशानी आती है जैसे माईग्रेन, दिमाग भ्रमित, ब्रेन हेमरेज़,गलत निर्णय और अवसाद रहता है। कर्ज़ लेने व देने मे परेशानी होती है और धन का नुकसान होता है। परिवार मे आपस मे गलत-फहमी की वज़ह से झगडा रहता है।
यहां ऑफिस गेट होने से बिज़ली से जुडी परेशानी होती है। यहां दरवाजा होने से आग, नुकसान और दुर्घटनाओं होती है।
यहां रसोई होने से गुस्सा, निराशा और मानसिक उलझन रहती है।
यहां स्टोर होने से दिमाग बंद हो जाता है। यहा शौचालय होने से मानसिक दोष होता है। यहां
ज्यादा बैठने से जिंदगी मे उदासीनता रहती है।
यहां बडे-बडे पेड न हो केवल छोट-छोटे रंग-बिरंगे फूलो वाले पौधे ही यहां शुभ माने जाते है,तुलसी, पुदिना, हल्दी, धनिया आदि के पौधे और कोई आयुर्वेदिक पौधे भी इसी जगह लगाये जा सकते है। इस दिशा मे अपने गुरु और आदर्श व्यक्ति की तस्वीर लगा सकते है।
ईशान मे होने वाले दोष व दोषो के लिए उपाय:-
Remedies for defects and defects in North-East
अगर यहां शौचालय है तो तीन कांसे के कटोरे ऊपरी हिस्से मे रखे। समुद्री नमक का कटोरा रखे। दरवाज़ा हमेशा बंद रखे।यहां रसोईघर होने से गैस स्टोव के ठीक ऊपर कांसे के कटोरा किसी स्लैब पर रखे।
यहां ऑवर हैड टैंक हो या सीढियां हो तो दो ताम्बे के कछुए एक-दुसरे की ओर मुख करके सबसे नीचे के स्टेप पर रखे।
ईशान क्षेत्र उत्तरी पूर्वी दीवार कटी हो तो दीवार पर एक दर्पण लगाये।
अगर आपके घर मे कामचोर या आलसी लोग हो तो यहां सुबह-सुबह के सूर्य के साथ उडते हुए पक्षियों का चित्र लगाये।
बर्फ से ढके कैलाश मे महादेवजी की ध्यान मग्न मुद्रा मे बैठे हुए एक चित्र लगाये जिसमे उनकी जटा से गंगा  निकल रही हैं।
पूर्व- यह सूर्य की दिशा है जो सभी ग्रहों का राजा है। यहां के दिक्पाल देवता इंद्र है जो देवताओं के राजा है। इस दिशा मे बना मार्ग सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। कोई भी नया कार्य करते हुए पूर्व दिशा मे मुख कर बैठने से ऊर्जा व नये प्राणशक्ति का संचार होता है। सूर्योंदय के साथ ही नये दिन का आरम्भ होता है,जिससे इस दिशा को नव कार्य के प्रारम्भ करने की दिशा कहा जाता है। इस दिशा मे स्नानघर बनाना शुभ माना जाता है,लेकिन यहां शौचालय नही होना चाहिए।
इस दिशा मे तरण ताल, अध्ययन कक्ष, भोजन कक्ष, बैठक, बच्चो का कमरा और रसोईघर बनाने के लिए उत्तम रहेगा। इस दिशा को भी हल्का रखना चाहिए और ये दिशा बढ़ी हुई ही शुभ है।
क्योंकि सूर्य की प्रात:काल की किरणे यही अधिक देर तक रहती है। यह एक प्रकाशित क्षेत्र है जो ईशान और आग्नेय के मध्य स्थित है जो तमस व रज़स गुणो के बराबर अनुपात मे है।ज्योतिष मे सूर्य सिंहराशि  का स्वामी और मेष मे उच्च का माना जाता है। प्रथम भाव को पूर्व दिशा का स्वामी माना जाता है जो सिर और मस्तिष्क से जुडा है। पूर्व दिशा का कटा होना, ऊंचा या बंद होना आपके दिल और दिमाग के कार्य को कमज़ोर बनाता है। सिरदर्द, गंजापन, कमज़ोर आंखे, पीलिया, बवासीर, पेट का अल्सर और हड्डियों की समस्या भी तभी होती है। सूर्य सत्ता का कारक है जिससे ये दिशा खराब हो तो राज़नीति मे समस्याएं होती है। राज़नीति मे कार्य की सफलता और सरकारी पद प्राप्त करने के लिए पूर्व दिशा का दोष रहित होना चाहिए।
पूर्व दिशा के दोष दूर करने के लिए कुछ उपाय:-
Some remedies to remove faults of east direction: -
अगर पूर्व दिशा कटी हो तो पूर्व दिशा मे एक आईना लगाना चाहिए।
सूर्यदेव की ताम्बे से बनी प्रतिमा पूर्व दिशा मे लगाये।
सुबह सूर्य को जल को चढाये और गायत्री मंत्र का जाप करे। गुड और चने बंदरों को खिलाये।
इस दिशा मे सुनहरे पीले रंग का बल्ब लगाये। पूर्व की दीवार मे उगते सूर्य के साथ उडते पक्षियोंका चित्र लगाये।
इस दिशा मे गुलाब के फूल और यहां लाल या सुनहरे पीले रंग का प्रयोग करे।
आग्नेय दिशा- यह दक्षिण-पूर्व दिशा शुक्र की दिशा है इसके दिक्पाल अग्नि देवता है। इस दिशा मे अग्नि से जुडे रसोईघर के कार्य, विद्युत उपकरण, हीटर, बॉयलर, इलेक्ट्रानिक, टेलिविज़न,कम्पयुटर, जनरेटर और विद्युत से जुडे कार्य तथा उत्साही करने वाले मनोरंज़न के उपकरण हो सकते है। यह दिशा प्रकाश का मध्य बिंदु है तभी यहां सूर्य अपनी चर्म सीमा मे होता है और यहां दिन भर प्राकृतिक रोशनी बनी रहती है जो भोजन को रुचिकर, तेजस और पोषक बनाता है।
आग्नेय दिशा वायव्य से भारी लेकिन नैऋर्त्य से हल्की होनी चाहिए।
यहां का क्षेत्र बढा हो या यहां ढलान/गड्ढा हो तो आग को जगह मिल जाती है जिससे रहने वालो
का पित्त बढ जाता है और ह्रदय रोग, रक्तचाप, पेट मे अल्सर और आंखो का रोग हो सकता है।
आग्नेय दिशा के कटने या कम होने से शरीर मे सुस्ती, निम्न रक्तचाप, नपुंसकता और जीवन मे
अरुचि देता है। यहां कभी जल के लिए खुदाई नही करे नही तो बेवज़ह खर्चे, मीन-मेख निकालने का स्वभाव, विवाह मे अरुचि और झगडे होते है।
इस दिशा से अच्छी आय, स्वास्थय, आपसी प्रेम और शारीरिक शक्ति मिलती है। यहां दोष होने से घर मे आग लगना, दिल की बीमारी, अवसाद, अच्छी नौकरी न मिलना, तलाक, बाहरी संबंध, कोर्ट केस और जीवन साथी के साथ अनचाहे विवाद रहते है।
ज्योतिष में एकादश व द्वादश भाव आग्नेय दिशा को बताता है। जिससे यह इस दिशा मे
दोष हो तो बेवज़ह के मुकद्दमों, बीमारियों, बच्चों के विवाह और अपनी ही ईच्छाओं मे धन खर्च होता है। इन भावो मे राहु हो तो आग्नेय मे जूते व पूराने सामान रखे जाते है। द्वादश भाव मे शनि, राहु केतु य मंगल हो तो आग्नेय मे भारी बोरिंग, गडढा, या कोई दोष होगा या
अनावश्यक वस्तुओं के रखने का स्थान बन जाएगा। केतु के होने से यहां सुरंगनुमा कुछ होगा।
राहु व शनि के होने से यहां सीलन या अंधेरा हो सकता है।
यहां रहने वालो की कामानायें बहुत बढ जाती है और घर मे संतुष्टि न मिलने पर बाहर भटक
जाता है। ऐसे मे विवाह का कारक शुक्र, मंगल के प्रभाव मे आकर घर मे अशांति लाता है और
पति-पत्नि बेवज़ह आपस मे लडते ही रहते है। जिससे समाज मे हंसी का कारण बनते है।
आग्नेय मे दोष होने पर कुछ उपाय अपनाये:-
Follow some remedies if there is a defect in the south east
यहां सोने का कमरा होतो पलंग को दक्षिण-पश्चिम के किनारे रखे। अपना सिर दक्षिण की ओर रखे।
यह दिशा बडी हो तो यहा कोई परदा लगाये जिससे यह सामान्य आकार मे लगे और ईशान
दिशा को बढाये।
अगर यहां गडढा हो तो उसको मिट्टी से भर दे। यह दिशा कटी हो तो यहां अग्नि का दीपक
जलाये और एक शीशा भी लगा सकते है।
यहां ऊंचे पेड नही लगाये बल्कि रंग-बिरंगे लाल और सुनहरी फूलों वाले पौधे लगाये।
यहां खिडकी नही हो तो सुनहरे पीले या नारंगी-लाल रंग का बल्ब जलाये।
प्रत्येक शुक्र्वार को गाय को रोटी खिलाये और संगरमर की गाय की मूर्ति इस दिशा मे रखे।
दक्षिण दिशा:- यह यम की दिशा है जिसका स्वामी ग्रह मंगल है। इसका प्रथम और अष्टम दोनो भावों पर अधिकार है। इसी दिशा को सबसे अधिक गर्म और प्रकाश देने वाली दिशा कहते है।और वर्षभर सामान्य तापमान उच्च बना रहने के कारण तीव्र गरमी रहती है।
यम की यह दिशा शयनकक्ष के लिए सर्वोत्तम है, जो यम के स्वभाव से मिलती है। यहां भारी
निर्माण करने और दिशा को कम खुला रखना चाहिए किन्तु इस दिशा को एकदम बंद भी नही रखना चाहिए। इस दिशा मे मोटी और भारी दीवारे तथा भारी गहरे रंग के पर्दे होने चाहिए। यहां ऊंचे पेड लगाये जा सकते है। अंदरुनी पौधे जैसे पाम, रबर प्लांट या भारी गमले क्रिसमस ट्री आदि रख सकते है।
दक्षिण दिशा खुली या बढी हुई हो तो शरीर मे पित्त होना, नशे का आदी होना, वैवाहिक सुख मे कमी, वाद-विवाद या जिद्दीपन होता है।
दक्षिण दिशा में दोष के लिए उपाय:-
Remedy for defects in south direction: -
यह दिशा बढी हुई हो तो किसी तरह आकार मे लाने की कोशिश करे।
यहां गडढे हो तो मिट्टी से भर दे और यहां भारी सामान रखे।
घर या कार्यलय मे इस दिशा मे पीठ करके बैठे।
इस दिशा मे हनुमानजी का चित्र या बच्चो के लिए प्रेरणादायक चित्र लगा सकते है।
नैऋर्त्य दिशा:- इस दक्षिण-पश्चिम की दिशा को अशुभ माना जाता है जिसका स्वामी ग्रह राहु
है। इस दिशा का दिक्पाल निऋति राक्षस है। यहां वास्तु पुरुष के पैर होते है। इस दिशा को
सबसे ऊंचा रखना चाहिए और ढलान ईशान की ओर रखनी चाहिए। यहाँ द्वार न हो, न ही यह दिशा खुली हो, यहाँ ठोस मोटी दीवारे होनी चाहिए। इस दिशा मे घर के मुखिया का शयनकक्ष और पूर्ण विश्राम की जगह का निर्माण करना चाहिए। यह दिशा सीढियों, बैंक/तिजोरी, भारी फर्नीचर, गहने, अलमारियों और गुप्त कार्य के लिए बेहतर है।
यहां तक सूर्य के आते-आते किरणे रेडियोधर्मी  हो जाती है। जो सबसे विषैली होती है।
यहाँ पडने वाली किरणे पेयजल को विषैला बना देती है। अत: यहां भूमिगल जल-टंकी, पम्प या अधिक देर तक ठहरा पानी निषिद्ध कहा गया है। यह सबसे तामसिक दिशा है। इस दिशा को भारी और ऊंचा बनाना चाहिए।
यहाँ दोष होने से व्यापार मे नुकसान, खर्चे, पैसा ब्लॉक होना, कर्ज़ की परेशानी, पैरो मे
परेशानी, पैरालाईज़, किडनी की परेशानी, बच्चो का गलत संगति मे और पति-पत्नि के बीच विवाद के साथ वे एक दुसरे को धोखा देने लगते है।
यह दिशा गतिहीनता व गोपनीयता की दिशा है जिससे यहां आराम करने से नींद पुरी होती है।
यहाँ घर के मुखिया और धन कमाने वाले प्रमुख सदस्य को सोना चाहिए। इस दिशा को ऊंचा
रखने से आत्मविश्वास भरा रहता है। यहां गर्भवति स्त्री या नवज़ात शिशु को अपनी माँ के साथ सुलाना चाहिए। यहाँ बच्चों को नही सुलाना चाहिए नही तो बच्चे जिद्दी हो जाते है। इस दिशा की दिवारे मोटी बनानी चाहिए और यहाँ खिडकियां कम बनानी या कम खुली होनी चाहिए।
ज्योतिष के अनुसार कुंडली का अष्टम और नवम भाव नैऋर्त्य कोण में पडता है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा के वास्तु दोषो के लिए कुछ उपाय:-
Some remedies for Vastu defects of south-west direction
यह दिशा बढी हुई, नीची या यहाँ गड्ढे होने से असहनीय परेशानियां होती है। इस दिशा में किसी तरह संतुलन कर व मिट्टी से गड्ढों को भर देना चाहिए और भारी सामान रख कर ऊंचा बनाना चाहिए। इस दिशा मे चार दिवारी बना कर बडे-बडे भारी गमले रखने चाहिए।
यहां रसोई हो तो गैस को आग्नेय दिशा मे रखे। रसोई मे पीला रंग करवाये।
यहां बोरिंग होतो यहां उल्टे हाथ मे गदा सहित खडे हुए पञ्च मुखी हनुमानजी की मूर्ति लगाये।
घर या कार्यस्थल मे इस दिशा की ओर पीठ करके सोना चाहिए।
यहां भारी मुर्तियां रखे या पहाड का चित्र लगाये।
नीव रखते समय यहां ताम्बे के नाग-नागिन दबादे या किसी भी धातु के सिक्के दबा सकते है।
पश्चिम दिशा- इस दिशा का स्वामी ग्रह शनि है। जिसे अंधेरे की दिशा भी कहा जाता है क्योंकि
सूर्य यही आ कर छिपता या अस्त होता है। शनि दीर्घायु और मृत्यु का ग्रह है जिसमे प्राणशक्ति देने वाली ऑक्सीजन है। ज्योतिष मे सप्तम भाव को पश्चिम दिशा का स्थान दिया गया है। यहां शनि को दिग्बल भी मिलता है। यहां के दिक्पाल वरुण देव हैं जो विशाल
जलराशियों के स्वामी है जिससे यहां की छ्त पर जल की टंकी रखी जाती है। यह तामसी व राजसी दिशा कहलाती है जिससे छ्त की टंकी पर खडा पानी तामसी ऊर्जा से भरा ही होता
है और पानी का नियमित प्रयोग होने से राजसी ऊर्जा का प्रवाह भी रहता है।
इस दिशा मे अध्ययन कक्ष, भोजन कक्ष, पुस्तकालय, बैठक और सभी तनावो से मुक्त होने का कमरा होना चाहिए। अगर यहाँ का हिस्सा बढा हुआ है तो कोशिश करे की सही आकार दे या यहाँ अलमारी को स्थान दे सकते है। यहा गड्ढा हो तो इस दिशा को मिट्टी से भर दे और ऊंचा कर दे और यहां भारी सामान रखे। यहां की दिवारे भी भारी होनी चाहिए और यहां भी कम खिडकी व दरवाजे रखे, जिससे पूर्व से आने वाली सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहे। शनि की यह दिशा भूख बढाने और भोजन को पचाने मे सहायता करती है। इस दिशा मे नांरंगी रंग करने से भूख बढती है और खाना जल्दी पच जाता है।
पश्चिम दिशा के वास्तु दोष के लिए उपाय:-
Remedy for Vastu Dosh of West direction: -
घर या कार्यलय मे इस दिशा मे पीठ करके ही बैठे जिससे कार्य मे गम्भीरता आएगी।
यहां भारी सामान या बडे पेड-पौधे लगा सकते है।
वायव्य या उत्तर-पश्चिम दिशा- इस दिशा का स्वामी चंद्रमा है और दिक्पाल वायुदेव है। वायु
का काम है बहना, वायु की दिशा होने से यहाँ रहने वाले व्यक्ति का स्वभाव चंचल हो जाता है।
ज्योतिष के अनुसार यह दिशा जन्मपत्रिका मे पंचम(मानसिक कर्म) और षष्ठ भाव(रोग) को दिखाती है।
जिससे यह दिशा स्वागत कक्ष, नौकरों का कक्ष, नव-विवाहितों का कक्ष, अविवाहित कन्या कक्ष,वाहन, पालतु पशु, खाधान्नों के भंडारण और मनोरंजन कक्ष के लिए उपयुक्त है। यह दिशा काम-सुख, विदेश जाने वाले और जन्म स्थान से भी दूर जाने वालो के लिए उत्तम है।
जैसे सूर्य पश्चिम मे अस्त होता है वैसे चंद्रमा वायव्य मे उदय होता है। यह दिशा गर्म और ठंडे क्षेत्र का मिलन स्थान है। यहाँ चंद्रमा का स्थान होने से मानसिक शान्ति भी मिलती है। सूर्य के अस्त होने और वायव्य मे वायु के तीव्र प्रवाह होने के कारण यह क्षेत्र दिनभर के तनावों, रोगो,दुखों और क्रोध से मुक्ति पाने के लिए उत्तम है। रसोई घर के लिए दुसरी उत्तम दिशा है, वायु अग्नि को जलने मे सहायता करती है और अनाज को नमी और कीटनाशकों से बचाती है।
जो देर रात तक टी.वी. देखना पसंद करते है उनकी आदत छुडाने के लिए यहां टी.वी. रख दे
जिससे देखने वाले को कुछ देर मे ही बैचेनी होने लगेगी और वह उठ कर चला जाएगा। यह क्षेत्र भी सामान आकार का होना चाहिए, अगर यह क्षेत्र बढा हुआ है या ऊंचा है तो वायु तत्व बढ जाएगा जिससे बिना सोचे बोलना, ऊंचा बोलना, अधिक गतिशीलता जैसा व्यवहार हो सकता है। ऐसी स्थिति मे चंद्रमा भी पीडित होता है जिससे मिर्गी, भय, मानसिक रोग, आत्मघात और जातक को मतिभ्रम होने पर घर से भाग भी सकता है। बिगडे वायव्य से बात-बात पर झगडे हो सकते है और जिगर, पेट, गूर्दे और आंतो की बीमारियां हो सकती है। पडोसियों से रिश्ता मधुर नही रहता, कोर्ट-केस, दोस्तो से अधिक दुशमन होना, पुलिस केस, धन का नुकसान, फेफडे की परेशानी, कैंसर और सांस की परेशानी होती है।
यदि वायव्य कटा हो या ऊंचा हो तो जिससे चक्कर आना, सिरदर्द, आलस और बलहानि होती है। जातक घर ही रहना पसंद करता है और स्त्रियों व बच्चों का स्वास्थय भी कमज़ोर
रहता है। इस दिशा मे पानी के लिए बोरिंग करना शुभ नही है।
वायव्य दिशा में वास्तु दोष के लिए उपाय:-
Remedy for Vastu Dosh in Vyavya direction: -
यह दिशा कटी हुई हो तो यहां मरुतदेव हनुमान जी की तस्वीर लगाई जा सकती है।
यहां के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए पूर्णिमा के चंद्र की भी तस्वीर लगाई जा सकती है।
यहां ताज़ा फूलों का गुलदस्ता रखे। यहां छोटा सा फव्वारा व मछलियों को भी रख सकते है।
प्रतिदिन गंगा जल मिला जल शिव-लिंग पर चढाये।
उत्तर दिशा- वास्तु अनुसार यह दिशा शुभ मानी जाती है जिसका स्वामी ग्रह बुध है यह दिशा
अध्ययन कक्ष, बैठक के लिए बेहतर दिशा है। यहां के दिक्पाल कुबेर है। कमज़ोर बच्चों के लिए यह दिशा बहुत उत्तम मानी जाती है। यहां जल्दी खराब होने वाले खाध पदार्थ, रेफिजरेटर,खर्च के लिए धन, औषधियों के लिए सर्वोत्तम स्थान है। जन्मपत्री का चौथा भाव(माता व वाहन-निद्रा) उत्तर दिशा है, दिन भर की थकान के बाद अंधकार, ठंडक और आराम के साथ नींद लाने के लिए यह दिशा उत्तम है। वायव्य का स्वामी चंद्रमा(जडी-बुटियों का कारक) यहां दिग्बल प्राप्त करता है। तभी यह स्वास्थ्य व औषधियों की दिशा है। ईशान और उत्तर के मध्य की दिशा दवाईयां रखने के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है।
जातक को अपने जीवन की सफलता और धन के लिए उत्तर की ओर मुख रखना चाहिए। यहां
खिडकी व दरवाजे होना सबसे शुभ माना जाता है यह दिशा खुली और साफ होनी चाहिए।
यहां मनीप्लांट व तुलसी का पौधा रखना चाहिए और इस दिशा मे बोरिंग होना व खुदाई करके कुछ पानी के लिए स्थान बनाना शुभ माना जाता है। उत्तर दिशा मे ही पानी की ढलान होनी चाहिए। यह दिशा कटी होने से वाक शक्ति मे कमी, अस्थमा या सांस की बीमरी, धन कमाने के अवसरो मे कमी व असंतुलित शरीर होता है।
उत्तर दिशा के वास्तु दोषो के लिए उपाय:-
Remedy for Vastu defects of North direction:
यह दिशा कटी हो तो यहां एक दर्पण लगाये। यह दिशा घटी हो तो यहां देवी लक्ष्मी जो कमलासन पर विराज़मान या चंद्रमा का कोई चिन्ह लगाये।
यहाँ खुला न होने पर चंद्रमा सी नारंगी सफेद रोशनी बिखरने वाला बल्ब जलाये।
उत्तरी दिवार पर हरे तोते का चित्र लगाये। यहां छोटे फूलो वाले सफेद फूलो के पौधे व
सदाबहार फूलो के पौधे लगाये।
ब्रह्मस्थान: यह दिशा घर के केंद्र स्थान यानि मध्य भाग मे स्थित है। इस दिशा मे वास्तु पुरुष
का पेट/नाभी का स्थान है क्योंकि वह औंधे मुख उलटे होते है। यह ब्रह्माजी का स्थान है। इस स्थान पर किसी भी प्रकार का भार, बीम व दीवारो आदि का निर्माण नही रखे और इस दिशा को खुला रखे। पुराने समय मे यहाँ तुलसी, कुल देवता का मंदिर या अन्य धार्मिक उत्सवों के लिए खुली छत रखी जाती था। यहां की दिशा भवन के फेफडो के रुप मे मानी जाती है। यहां गंदी वस्तुएं, जुठन या चप्पले रखने से घर के निवासियों को नुकसान पहुंचता है।
ब्रह्मस्थान व पिशाच स्थान(भवन का सबसे बाहरी स्थान) मे दबाव या बंद होने से जातक मानसिक रोग, अवसाद, पिशाच बाधा, त्वचा की परेशानी व मनोवैज्ञानिक रोग हो सकते है। ब्रह्मस्थान मे दोष होने से स्त्रियों के पेट की समस्याओ के साथ संतान सुख मे भी कमी आती है। जिन लोगो की कुंडली मे चंद्र राहू योग हो उनको ब्रह्मस्थान व पैशाच स्थान खुला रखना चाहिए।
ब्रह्मस्थान व पैशाच स्थान का खुला होना वायु की आवश्यकता को पूरा करता है। मकान मे वायु की कमी के कारण आलस, सिरदर्द, अवसाद, भूख न लगना, मुख से दुर्गंध और एकाग्रता मे कमी आती है। इस स्थान को आम उठने-बैठने,हॉल कमरे या खुले बरामदे के रुप मे इस्तेमाल करना चाहिए। आज कल के फ्लैट वाले घरों मे ऐसा सम्भव नही है तो कोशिश करे यहां खाली ही रखे
और नहाने, खाने-पीने सोने जैसे कायों से बचे।

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