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Saturday, October 10, 2015

नवरात्र Navratra

नवरात्रियों तक व्रत करने से 'नवरात्र' व्रत पूर्ण होता है.वैसे तो
वासंती नवरात्रों में विष्णु की और शारदीय नवरात्रों में शक्ति की
उपासना का प्राधान्य है;किन्तु ये दोनों बहुत ही व्यापक है,अतः
दोनों में दोनों की उपासना होती है इनमे किसी वर्ण,विधान या देवादि
की भिन्नता नहीं है;सभी वर्ण अपने अभीष्ट की उपासना करते है.
यदि नवरात्र पर्यन्त व्रत रखने की सामर्थ्य न हो तो-
(१) प्रतिपदा से सप्तमी पर्यन्त 'सप्तरात्र' ;
(२) पञ्चमी से नवमी पर्यन्त 'पञ्चरात्र' ;
(३) सप्तमी से नवमी पर्यन्त 'त्रिरात्र'
(४) आरम्भ और समाप्ति के दो व्रतों से 'युग्मरात्र'
(५) आरम्भ या समाप्ति के एक व्रत से 'एकरात्र' के रूप में जो भी
किये जायें, उन्ही से अभीष्ट की सिद्धि होती है.
दुर्गा पूजा में- प्रतिपदा को केश संस्कार द्रव्य,आँवला आदि,
द्वितीया को बाल बांधने के लिये रेशमी डोरी;
तृतीया को सिन्दूर और दर्पण;
चतुर्थी को मधुपर्क,तिलक और नेत्रांजन;
पंचमी को अंगराग और अलंकार;
षष्ठी को फूल आदि
सप्तमी को गृह मध्य पूजा;
अष्टमी को उपवास पूर्वक पूजन;
नवमी को महापूजा और कुमारी पूजा तथा दशमी को नीराजन और
विसर्जन करें।
नवरात्र में कलश स्थापन हेतु चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग वर्जित है।
यदि इन दोनों का मान रात्रि तक है और कलश स्थापन का कोई मुहूर्त न हो तो मध्याह्न मे अभिजित मुहूर्त को कलश स्थापन हेतु ग्रहण किया जाता  है ।
लेकिन यह एक विकल्प है।
और दुर्गा पूजा हमारे नित्य अनुष्ठानों में आती है।
अतः कलश स्थापन भी जरुरी हो जाता है।ऐसी स्थिति मे हमें क्षण वार,नक्षत्र और योग का ग्रहण करना चाहिये।
बृहज्ज्योतिषार के अनुसार प्रत्येक दिन सूर्योदय से अहोरात्र भर मे 2-2 घड़ी के 30 नक्षत्र बीतते है,जो क्षण नक्षत्र कहलाते है।यथा-1 आर्द्रा,2 श्लेषा,3 अनुराधा, 4 मघा,5 धनिष्ठा, 6 पूर्वाषाढ,7 उत्तराषाढा,8 अभिजित,9 रोहिणी,10 ज्येष्ठा,11 विशाखा,12 मूल,13 शतभिषा,14 उत्तराफाल्गुनी,15 पूर्वाफाल्गुनी,16 आर्द्रा,17 पूर्वाभाद्रपद,18 उत्तराभाद्रपद,19 रेवती,20 आश्विनी,21 भरणी,22 कृतिका,23 रोहिणी,24 मृगशिरा,25 पुनर्वसु,26 पुष्य,27 श्रवण,28 हस्त, 29 चित्रा,30 स्वाती।
चित्रा का मान 29 वें स्थान है अर्थात् 56 घड़ी बीत जाने पर चित्रा का वर्जनीय काल होगा।
इसी तरह स्थूल योग के पूर्ण मान का 27 वाँ भाग एक-एक सूक्ष्म योग होता है।
आवश्यकता पड़ने पर स्थूल के निषिद्ध होने पर भी सूक्ष्म मे कार्य करना श्रेष्ठ होता है।
इस तरह हम ब्रह्म मुहूर्त के अलावा सूर्योदय के एक घण्टे के बाद किसी भी समय कलश स्थापन कर सकते है।इसमें किसी प्रकार का भ्रम पलने की आवश्यकता नही है।

नवरात्र की त्रिदिवसीय पूजा मे सप्तमी तिथि जिस दिन पड़े उससे देवी आगमन के वाहन का तथा दशमी जिस दिन पड़े उससे गमन का विचार होता है।
यद्यपि इसका लौकिक प्रमाण ही प्राप्त होता है।
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