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Monday, August 25, 2014

जिन्दगी jindagee

जिन्दगी एक सवाल बनकर 

हर बार मेरे सामने आई

हमारी बेबसी देखो,रोना जो चाहा

तो मुस्कराहट की फीकी सी लहर

चेहरे पर आई।

हमने जब भी एक गम से

सुलह करके हँसना चाहा

तकलीफ एक नई चादर ओढ़े 

सामने आई।

हम गैरों में मुहब्बत की

एक लालसा लीये बैठे रहे

रिश्ते हमारे अपने हमें

तन्हा करते रहे।

मरना जो चाहा तो जिन्दगी 

दो मासूम चेहरों के रूप में

सामने आ खड़ी हुई

मरने की चाह रखकर भी

जीना मज़बूरी हुई।

यूँ तन्हा दिल लेकर कितनी दूर तक

जांयेगे,हमने भी खाई कई कसम

हर हाल में मुस्कुरायेंगे।

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