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Saturday, May 19, 2012

बुद्धि, ज्ञान और पद प्राप्ति हेतु उपाय buddhi, gyaan aur pad praapti ke lie upaay


         बुद्धि, ज्ञान और पद प्राप्ति हेतु उपाय
  • १, माघ मास की कृष्णपक्ष अष्टमी के दिन को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में अर्द्धरात्रि के समय रक्त चन्दन से अनार की कलम से “ॐ ह्वीं´´ को भोजपत्र पर लिख कर नित्य पूजा करने से अपार विद्या, बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  • २, बच्चों का पढ़ाई में मन न लगता हो, बार-बार फेल हो जाते हों, तो यह सरल सा टोटका करें-

शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से ठीक आधा घंटा पहले बड़ के पत्ते पर पांच अलग-अलग प्रकार की मिठाईयां तथा दो छोटी इलायची पीपल के वृक्ष के नीचे श्रद्धा भाव से रखें और अपनी शिक्षा के प्रति कामना करें। पीछे मुड़कर न देखें, सीधे अपने घर आ जाएं। इस प्रकार बिना क्रम टूटे तीन बृहस्पतिवार करें। यह उपाय माता-पिता भी अपने बच्चे के लिये कर सकते हैं।

  • ३, श्री गोस्वामी तुलसीदास विरचित “अत्रिमुनि द्वारा श्रीराम स्तुति´´ का नित्य पाठ करें। निम्न छन्द अरण्यकाण्ड में वर्णित है।

`मानस पीयूष´ के अनुसार यह `राम चरित मानस की नवीं स्तुति है और नक्षत्रों में नवाँ नक्षत्र आश्लेषा (नक्षत्र स्वामी-बुध) है। अत: जीवन में जिनको सर्वोच्च आसन पर जाने की कामना हो, वे इस स्तोत्र को भगवान् श्रीराम / रामायणी हनुमान के चित्र या मूर्ति के समक्ष बैठकर नित्य पढ़ें।
।।श्रीअत्रि-मुनिरूवाच।।
नमामि भक्त-वत्सलं, कृपालु-शील-कोमलम्।
भजामि ते पदाम्बुजं, अकामिनां स्व-धामदम्।।1
निकाम-श्याम-सुन्दरं, भवाम्बु-नाथ मन्दरम्।
प्रफुल्ल-कंज-लोचनं, मदादि-दोष-मोचनम्।।2
प्रलम्ब-बाहु-विक्रमं, प्रभो·प्रमेय-वैभवम्।
निषंग-चाप-सायकं, धरं त्रिलोक-नायकम्।।3
दिनेश-वंश-मण्डनम्, महेश-चाप-खण्डनम्।
मुनीन्द्र-सन्त-रंजनम्, सुरारि-वृन्द-भंजनम्।।4
मनोज-वैरि-वन्दितं, अजादि-देव-सेवितम्।
विशुद्ध-बोध-विग्रहं, समस्त-दूषणापहम्।।5
नमामि इन्दिरा-पतिं, सुखाकरं सतां गतिम्।
भजे स-शक्ति सानुजं, शची-पति-प्रियानुजम्।।6
त्वदंघ्रि-मूलं ये नरा:, भजन्ति हीन-मत्सरा:।
पतन्ति नो भवार्णवे, वितर्क-वीचि-संकुले।।7
विविक्त-वासिन: सदा, भजन्ति मुक्तये मुदा।
निरस्य इन्द्रियादिकं, प्रयान्ति ते गतिं स्वकम्।।8
तमेकमद्भुतं प्रभुं, निरीहमीश्वरं विभुम्।
जगद्-गुरूं च शाश्वतं, तुरीयमेव केवलम्।।9
भजामि भाव-वल्लभं, कु-योगिनां सु-दुलर्भम्।
स्वभक्त-कल्प-पादपं, समं सु-सेव्यमन्हवम्।।10
अनूप-रूप-भूपतिं, नतोऽहमुर्विजा-पतिम्।
प्रसीद मे नमामि ते, पदाब्ज-भक्तिं देहि मे।।11
पठन्ति से स्तवं इदं, नराऽऽदरेण ते पदम्।
व्रजन्ति नात्र संशयं, त्वदीय-भक्ति-संयुता:।।12

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