प्राक्कथन
श्री कूष्माण्डा चालीसा का प्रणयन संवत् २०१९ कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को पं.-श्री सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय 'संत'द्वारा हुआ.
यह वही समय है जब विश्व पर अष्टग्रही योग का प्रभाव व्याप्त था और भारत पर चीन का आक्रमण हुआ था.उस समय ये परास्नातक (हिन्दी) के विद्यार्थी थे.ये बचपन से ही शान्त एवं अध्यात्मिक विचारधारा के व्यक्ति रहे हैं.
उस समय तीन वर्ष घाटमपुर में प्रवास करने के दौरान माँ कूड़हा (कूष्माण्डा) देवी के प्रति लगन एवं उनके आशीर्वाद से इनके ह्रदय में ऐसी प्रेरणा हुई कि अपने कृतित्व द्वारा माँ के चरणों में कुछ श्रद्धा सुमन अर्पित किये जायें.
इसी सन्दर्भ में माँ की चालीसा की रचना का विचार उत्पन्न हुआ,उस समय अपने जेब खर्च से इन्होंने इसकी रचना कर एक हजार प्रतियाँ छपवा कर वितरित की,इस क्रम से आज तक इसकी रचना का प्रसाद भक्तों में वितरित होता रहा.
उम्र के अनुभव और अंतर्मन की प्रेरणा से जीवन के उत्तरार्ध में इन्हें पुनः यह विचार आया कि इस रचना को वह पुनः प्रसाद रूप में वितरित करे,किन्तु आज की प्रति में संशोधन एवं कुछ और प्रकरण जो मूल प्रति में थे परन्तु बाद के संस्करणों में उनका अभाव देखा गया,इसलिये रचयिता द्वारा अन्य प्रतियो में छोड़े गये अंशो को पुनः प्रकाशित करना आवश्यक समझा गया साथ ही इसमें कूष्माण्डा पंचामृत,शिव शतनाम को जोड़ा गया है.
इस प्रकार यह संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण पुनः आपके सम्मुख माँ के प्रसाद के रूप में प्रस्तुत है.
-:निवेदक:-
विजय कुमार शुक्ल (आचार्य)
कानपुर (उत्तर प्रदेश )
मो_9936816114
vijay.shukla003@gmail.com
कूष्माण्डा महात्म्य
या देवी सर्व भूतेषु मात्र रूपेण संस्थिता.
श्री कूष्माण्डा चालीसा
दोहा
अम्बे पद चित लाय करि विनय करहुँ कर जोरि,
जय जय जय कुड़हा महरानी, त्रिविध ताप नाशक तिमुहानी. १.
कूष्माण्डा पञ्चामृत
जग के जंजाल माहि जकड़े हुये को मातु,
आप ही छुडाय कर दुःख दूर करती हो .
संतन की रक्षा हित धरती हो रौद्र रूप,
दुष्टों का विनाश कर शान्ति बसा देती हो.
सिंह पै सवार हो कंपाती दल असुरन के,
भक्तों के ह्रदयों में मोद सुधा भरती हो.
करती हो सभी का कुशल मातु जगदम्बा तुम,
नाम की महिमा मातु कुशला बता देती हो ..१..
असहायों अनाथों का सहारा हो मातु तुम,
गिरे हुये जनमन को तुम ऊपर उठा देती हो.
करती हो पूर्ण तुम मनोरथ सभी के मातु,
जीवन की कटुता में मृदुता भर देती हो .
आता जो भी है शरण तुम्हारी माँ,
उसको निज गोद में तुरत उठा लेती हो.
देती हो मनः शान्ति दुःख से उबार कर,
उसके फिर मन में आनन्द बसा देती हो..२..
तुमने ही बड़े-बड़े दुष्टों को संहारा मातु,
किसने नहीं जानी तुम्हारी यह महिमा है.
गूँज रही त्रिभुवन में तुम्हारी गुण गाथा एक,
उसके समान 'सन्त' किसकी और महिमा है.
तुम नहीं होती यदि मातु जगदम्बा तो,
शव समान शिव की न होती यह महिमा है.
जग की हो आदि अन्त मातु कूष्माण्डा जी,
पाता न कोई नर तुम्हारी शक्ति सीमा है..३..
तुम हो निष्शीम और अक्षय जगदम्बिके,
पुत्र वत्सलता की रखती एक सानी हो.
आँख भी उठाता यदि कोई दुष्ट नीच व्यक्ति,
एक ही बार में बनाती काल की कहानी हो.
देखा सुना हमने भी अरियों को जलते हुए,
कोई न बचा जिसने तुमसे रांर ठानी हो.
करती हो चूर्ण अभिमान अहंकारी का,
पाखण्डी के पाप की मिटाती निशानी हो..४..
मधु और कैटभ का किया है मान-मर्दन भी,
महिषासुर की कुमहिमा की मिटाई निशानी है.
सेनापति धूम्रलोचन का किया है अन्त आपने ही,
चन्ड-मुन्ड के जीवन की अन्त की कहानी है.
रक्त-बीज वंशजों को किया है काल-कवलित,
शुम्भ और निशुम्भ बध माँ की मनमानी है.
माँ का बल विक्रम-पराक्रम देख देवों नें,
बार-बार वाणी से माँ की महिमा बखानी है..५..
शिव शतनाम
जय महादेव शिव शंकर शम्भो उमाकान्त त्रिपुरारी,
चंद्रमौलि गंगाधर सोमेश्वर भूतनाथ कामारी ..१..
हर-हर शूलपाणि गिरिजापति बाघाम्बर धारी,
पंचानन कालेश्वर नागेश्वर आशुतोष प्रलयंकारी..२..
तीननेत्र भुजगेन्द्र्हार कर्पूरगौर करुणावतार,
केदारनाथ देवाधिदेव गिरिईश रूद्र संसार सार..३..
घुष्मेश जटाधर विश्वरूप श्री विरूपाक्ष श्री शिवाधार,
सर्वशक्ति श्मशानवास पशुपति भोला तन लसित छार..४..
नीलकंठ वृषकेतु महेश्वर विश्वनाथ अवढर दानी,
कैलाशनाथ डमरूधर गौरी पति गुणातीत गुणखानी..५..
वेधषे दिगम्बर वेदगीत गोपत कपोत मंगलदानी,
लिंगरूप परमार्थरूप अव्यय त्रिदेव सर्वज्ञानी ..६..
लालाबन्ध सरूप सिंह अज्ञात ज्ञात विज्ञानी,
लोहित नील व्याघ्र गर्वकित श्री सुरेश परमात्म बखानी..७..
भीमशंकर मल्लिकार्जुन हे कपर्दिन मुण्डमाली,
सिद्धिदा परमेष्टिने हे महीधर मरीचिमाली..८..
हे व्यालप्रिय मृत्युंजयी हे दीर्घरूप हे दीर्घनाम,
हे बुद्धिनाथ हे जगत्पिता हे व्योमकेश करते प्रणाम..९..
रंगदेव रामेश्वर जागेश्वर हे अजगव धारी,
त्र्यम्बक प्रभाव हे अर्थरूप श्री महेश प्रतिवास बिहारी..१०..
हे चन्द्रचूड शशि-शेखर नन्दीश्वर अवलेश्वर ललाम,
हे तपोरूप दुर्गा दुर्गेश्वर करते चरणों में शत-शत प्रणाम..११..
शान्ति पाठ
जै जै अम्बे जय जगदम्बे जय कुशले कल्याण करो,
जय कूष्माण्डा जय कल्याणी सदबुद्धि का दान करो.
उग्रवाद आतंकवाद का माँ समूल तुम नाश करो ,
पुत्र पुकारें जय जगदम्बे जग का माँ उत्थान करो.
नैतिकता का पाठ पढ़ाकर माँ चरित्र निर्माण करो,
साहस शील शिष्टता संयम से मानव का उत्थान करो.
दैहिकादि त्रिविध तापों से माँ जग का तुम उद्धार करो,
शान्ति-शान्ति माँ शान्त रूप से जग को शान्ति प्रदान करो..
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श्री कूष्माण्डा चालीसा का प्रणयन संवत् २०१९ कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को पं.-श्री सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय 'संत'द्वारा हुआ.
यह वही समय है जब विश्व पर अष्टग्रही योग का प्रभाव व्याप्त था और भारत पर चीन का आक्रमण हुआ था.उस समय ये परास्नातक (हिन्दी) के विद्यार्थी थे.ये बचपन से ही शान्त एवं अध्यात्मिक विचारधारा के व्यक्ति रहे हैं.
उस समय तीन वर्ष घाटमपुर में प्रवास करने के दौरान माँ कूड़हा (कूष्माण्डा) देवी के प्रति लगन एवं उनके आशीर्वाद से इनके ह्रदय में ऐसी प्रेरणा हुई कि अपने कृतित्व द्वारा माँ के चरणों में कुछ श्रद्धा सुमन अर्पित किये जायें.
इसी सन्दर्भ में माँ की चालीसा की रचना का विचार उत्पन्न हुआ,उस समय अपने जेब खर्च से इन्होंने इसकी रचना कर एक हजार प्रतियाँ छपवा कर वितरित की,इस क्रम से आज तक इसकी रचना का प्रसाद भक्तों में वितरित होता रहा.
उम्र के अनुभव और अंतर्मन की प्रेरणा से जीवन के उत्तरार्ध में इन्हें पुनः यह विचार आया कि इस रचना को वह पुनः प्रसाद रूप में वितरित करे,किन्तु आज की प्रति में संशोधन एवं कुछ और प्रकरण जो मूल प्रति में थे परन्तु बाद के संस्करणों में उनका अभाव देखा गया,इसलिये रचयिता द्वारा अन्य प्रतियो में छोड़े गये अंशो को पुनः प्रकाशित करना आवश्यक समझा गया साथ ही इसमें कूष्माण्डा पंचामृत,शिव शतनाम को जोड़ा गया है.
इस प्रकार यह संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण पुनः आपके सम्मुख माँ के प्रसाद के रूप में प्रस्तुत है.
-:निवेदक:-
विजय कुमार शुक्ल (आचार्य)
कानपुर (उत्तर प्रदेश )
मो_9936816114
vijay.shukla003@gmail.com
कूष्माण्डा महात्म्य
या देवी सर्व भूतेषु मात्र रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः.
सुरा सम्पूर्ण कलशं रूधिराप्लुतमेव च .
दधाना हस्त पद्माभ्याम कूष्माण्डा शुभदास्तुमे.
माँ भगवती दुर्गा के चौथे स्वरुप का नाम कूष्माण्डा हैं.अपनी मंद हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रम्हाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है.
जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था चारो ओर अन्धकार ही अन्धकार परिव्याप्त था तब इन्ही देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रम्हाण्ड की रचना की थी.अतः यही सृष्टि की आदि स्वरूपा शक्ति है.
इनका निवास सूर्य मण्डल के भीतर के लोक में है सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्ही में है,इनके शरीर की कान्ति और प्रभा भी सूर्य के समान ही देदीप्यमान और भास्वर है,इनके तेज की तुलना इन्ही से की जा सकती है.
इनकी आठ भुजायें है,अतः यह अष्टभुजी देवी के नाम से भी विख्यात है,इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डलु,धनुष,बाण,कमल-पूष्प,अमृत पूर्ण कलश,चक्र,तथा गदा है आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है,इनका वाहन सिंह है,बलियों में इन्हें कुम्हड़े की बलि सर्वाधिक प्रिय है इसलिये भी इन्हें कूष्माण्डा कहा जाता है.
नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरुप की पूजा की जाती है,इस दिन साधक का मन 'अनाहत चक्र' में अवस्थित होता है,इनकी भक्ति से आयु,यश,बल,और आरोग्य की वृद्धि होकर समस्त रोग-शोक विनष्ट हो जाते है,यदि मनुष्य सच्चे ह्रदय से माँ के शरणागत हो जाये तो उसे अत्यन्त सुगमता से परमपद की प्राप्ति हो जाती है,अतः लौकिक,पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिये.
दोहा
अम्बे पद चित लाय करि विनय करहुँ कर जोरि,
बरनऊ तव मै विशद यश करहु विमल मति मोरि.
दीन हीन मुझ अधम को आप उबारो आय,
तुम मेरी मनकामना पूर्ण करो सरसाय.
चौपाई
जय जय जय कुड़हा महरानी, त्रिविध ताप नाशक तिमुहानी. १.
आदि शक्ति अम्बिके भवानी, तुम्हरी महिमा अकथ कहानी .२.
रवि सम तेज तपै चहुँ ओरा, करहु कृपा जनि होंहि निहोरा .३.
धवल धाम मंह वास तुम्हारो, सब मंह सुन्दर लागत न्यारो .४.
तिनकै रचना बरनि न जाई, सुन्दरता लखि मन ठग जाई.५.
सोहत इहां चारि दरवाजा, विविध भॉंति चित्रित छवि छाजा.६.
चवँर घंट बहु भॉंति विराजहिं, मठ पर ध्वजा अलौकिक लागहिं.७.
शीश मुकुट अरु कानन कुण्डल, अरुण बदन से प्रगटै तव बल.८.
रूप अठ्भुजी अद्भुत सोहे, होय सुखी जो मन से जोहै.९.
तन पर शुभ्र वसन हैं राजत, कर कंकन पद नूपुर छाजत.१०.
विविध भॉंति मन्दिर चहुँ ओरा, चूमत गगन हवै सब ओरा.११.
शंकर महावीर को वासा, औरहु सुर सुख पावहिं पासा.१२.
सरवर सुन्दर जहाँ सुहाई, तेहि कै महिमा बरनि न जाई.१३.
घाट मनोहर सुन्दर सोहैं, पडत दृष्टि तुरतै मन मोहैं.१४.
नीर मोति अस निर्मल तासू , अमृत आनि कपूर सुवासू .१५.
पीपल नीम आछि अमराई, औरहु तरुवर इहां सुहाई .१६.
बहु भांतिन ध्यावैं नर नारी, मन वांछित फल पावहिं चारी.१७.
तुम्हरो ध्यान करहिं जे प्रानी, होहिं मुक्त रहि जाइ कहानी.१८.
जोगी जती ध्यान जो लावें, तुरतै सिद्ध पुरुष होई जावै.१९.
नेत्र हीन तव आवहिं पासा, पूजा करहिं होइ तम नासा.२०.
दिव्य दृष्टि तिनकै होइ जाई, होहिं सुखी जब होउ सहाई.२१.
पुत्रहीन कहुं ध्यान लगावै, तुरतै पुत्रवान होइ जावै.२२.
रंक आइ सब नावहिं माथा, पावहिं धन अरु होंहिं सनाथा.२३.
नाम लेत दुःख दरिद नसाहीं, अक्षत से अरिगन हटी जाहीं.२४.
नित प्रति आइ करहिं जो दर्शन, मनवांछित फल पावै सो जन.२५.
जो सरवर मंह मज्जन करहीं, कलुष नसाइ जात हैं सबहीं.२६.
जो जन मन से ध्यावहिं तुमही, सब विपत्ति से छूटहिं तबहीं.२७.
सोम शुक्र दिन आवहिं प्रानी, पूजा करहिं प्रेम रस सानी.२८.
कार्तिक माह पूर्णिमा आवत, तेहि दिन मेला सुन्दर लागत.२९.
लेत नाम भव भय मिटि जाई, भूत प्रेत सब भजै पराई.३०.
पूजा जो जन मन से करहीं, होहिं सुखी मुद मंगल भरहीं.३१.
दूर दूर से आवहिं प्रानी, करहिं सुदर्शन मन सुख मानी.३२.
तुम्हरी कीर्ति रही जग छाई, तेहिते सब जन आवत भाई.३३.
दरश परश कर मन हरषाहीं, जग दुर्लभ तिनकहु कछु नाहीं.३४.
जो ध्यावें पद मातु तुम्हारे, भव बन्धन मिटि जाइ सकारे.३५.
बालक प्रमुदित करहिं जो ध्याना, आइ करहिं बहु विनती नाना.३६.
तिन कहँ अवसि सफलता देहू, बुद्धि बढ़ाइ सुखी करि देहू.३७.
आवहिं नर अरु नावहिं शीशा, होहिं सुखी पावहिं आशीषा.३८.
जो यह पाठ करै मन लाई, अम्बे ता कहूँ होहिं सहाई.३९.
'सन्त' सदा चरनन तव दासा, आय करहु मम ह्रदय निवासा.४०.
दोहा
मातु तुम्हारी भक्ति से सुख उपजै मन माहि.
करहु कृपा हम दीन पर आयहु चरनन माहि..
मंगलमय तुम मातु हो सदा करहु कल्यान.
गावहिं सुनहिं जे प्रेम से पावहिं सुन्दर ज्ञान..
जग के जंजाल माहि जकड़े हुये को मातु,
आप ही छुडाय कर दुःख दूर करती हो .
संतन की रक्षा हित धरती हो रौद्र रूप,
दुष्टों का विनाश कर शान्ति बसा देती हो.
सिंह पै सवार हो कंपाती दल असुरन के,
भक्तों के ह्रदयों में मोद सुधा भरती हो.
करती हो सभी का कुशल मातु जगदम्बा तुम,
नाम की महिमा मातु कुशला बता देती हो ..१..
असहायों अनाथों का सहारा हो मातु तुम,
गिरे हुये जनमन को तुम ऊपर उठा देती हो.
करती हो पूर्ण तुम मनोरथ सभी के मातु,
जीवन की कटुता में मृदुता भर देती हो .
आता जो भी है शरण तुम्हारी माँ,
उसको निज गोद में तुरत उठा लेती हो.
देती हो मनः शान्ति दुःख से उबार कर,
उसके फिर मन में आनन्द बसा देती हो..२..
तुमने ही बड़े-बड़े दुष्टों को संहारा मातु,
किसने नहीं जानी तुम्हारी यह महिमा है.
गूँज रही त्रिभुवन में तुम्हारी गुण गाथा एक,
उसके समान 'सन्त' किसकी और महिमा है.
तुम नहीं होती यदि मातु जगदम्बा तो,
शव समान शिव की न होती यह महिमा है.
जग की हो आदि अन्त मातु कूष्माण्डा जी,
पाता न कोई नर तुम्हारी शक्ति सीमा है..३..
तुम हो निष्शीम और अक्षय जगदम्बिके,
पुत्र वत्सलता की रखती एक सानी हो.
आँख भी उठाता यदि कोई दुष्ट नीच व्यक्ति,
एक ही बार में बनाती काल की कहानी हो.
देखा सुना हमने भी अरियों को जलते हुए,
कोई न बचा जिसने तुमसे रांर ठानी हो.
करती हो चूर्ण अभिमान अहंकारी का,
पाखण्डी के पाप की मिटाती निशानी हो..४..
मधु और कैटभ का किया है मान-मर्दन भी,
महिषासुर की कुमहिमा की मिटाई निशानी है.
सेनापति धूम्रलोचन का किया है अन्त आपने ही,
चन्ड-मुन्ड के जीवन की अन्त की कहानी है.
रक्त-बीज वंशजों को किया है काल-कवलित,
शुम्भ और निशुम्भ बध माँ की मनमानी है.
माँ का बल विक्रम-पराक्रम देख देवों नें,
बार-बार वाणी से माँ की महिमा बखानी है..५..
शिव शतनाम
जय महादेव शिव शंकर शम्भो उमाकान्त त्रिपुरारी,
चंद्रमौलि गंगाधर सोमेश्वर भूतनाथ कामारी ..१..
हर-हर शूलपाणि गिरिजापति बाघाम्बर धारी,
पंचानन कालेश्वर नागेश्वर आशुतोष प्रलयंकारी..२..
तीननेत्र भुजगेन्द्र्हार कर्पूरगौर करुणावतार,
केदारनाथ देवाधिदेव गिरिईश रूद्र संसार सार..३..
घुष्मेश जटाधर विश्वरूप श्री विरूपाक्ष श्री शिवाधार,
सर्वशक्ति श्मशानवास पशुपति भोला तन लसित छार..४..
नीलकंठ वृषकेतु महेश्वर विश्वनाथ अवढर दानी,
कैलाशनाथ डमरूधर गौरी पति गुणातीत गुणखानी..५..
वेधषे दिगम्बर वेदगीत गोपत कपोत मंगलदानी,
लिंगरूप परमार्थरूप अव्यय त्रिदेव सर्वज्ञानी ..६..
लालाबन्ध सरूप सिंह अज्ञात ज्ञात विज्ञानी,
लोहित नील व्याघ्र गर्वकित श्री सुरेश परमात्म बखानी..७..
भीमशंकर मल्लिकार्जुन हे कपर्दिन मुण्डमाली,
सिद्धिदा परमेष्टिने हे महीधर मरीचिमाली..८..
हे व्यालप्रिय मृत्युंजयी हे दीर्घरूप हे दीर्घनाम,
हे बुद्धिनाथ हे जगत्पिता हे व्योमकेश करते प्रणाम..९..
रंगदेव रामेश्वर जागेश्वर हे अजगव धारी,
त्र्यम्बक प्रभाव हे अर्थरूप श्री महेश प्रतिवास बिहारी..१०..
हे चन्द्रचूड शशि-शेखर नन्दीश्वर अवलेश्वर ललाम,
हे तपोरूप दुर्गा दुर्गेश्वर करते चरणों में शत-शत प्रणाम..११..
शान्ति पाठ
जै जै अम्बे जय जगदम्बे जय कुशले कल्याण करो,
जय कूष्माण्डा जय कल्याणी सदबुद्धि का दान करो.
उग्रवाद आतंकवाद का माँ समूल तुम नाश करो ,
पुत्र पुकारें जय जगदम्बे जग का माँ उत्थान करो.
नैतिकता का पाठ पढ़ाकर माँ चरित्र निर्माण करो,
साहस शील शिष्टता संयम से मानव का उत्थान करो.
दैहिकादि त्रिविध तापों से माँ जग का तुम उद्धार करो,
शान्ति-शान्ति माँ शान्त रूप से जग को शान्ति प्रदान करो..
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