क्या होता है वर और कन्या का अष्टकूट मिलान, और विवाह के लिए क्यों है जरूरी?
हमारे हिन्दू धर्म में जब किसी के विवाह प्रस्ताव की बात आती है तो सबसे पहले दोनों की जन्मकुण्डली का मिलान किया जाता है।इसमें मुख्यतः आठ विषयों का समावेश किया गया है इससे इसे अष्टकूट मिलान या मेलापक कहा जाता है। ताकि वर वधू का आने वाला जीवन सुख-पूर्वक व्यतीत हो सके।
आइए जानते हैं कि वो आठ विषय कौन से हैं?
1-वर्ण- इसमें राशि के अनुसार वर्ण का मिलान किया जाता है। वर और कन्या के वर्ण से उच्चस्तरीय या फिर समान वर्ण होने पर, एक गुण मिलता है। यह व्यक्ति की मानसिक अभिरुचियों से संबंधित होता है।
2-वश्य- इसें वर और वधू की राशियों के आधार पर आकलन किया जाता है। यह वर और वधू के भावनात्मक संबंध को दर्शाता है।
3-तारा- इसमें वर और वधू को जन्म नक्षत्रों की गणना करके मिलान किया जाता है। इसका संबंध भाग्योदय से होता है।
4-योनि- जब कोई भी मनुष्य जन्म लेता है तो वह किसी न किसी योनि में आता है। इन योनियों को अश्व, श्वान, गज आदि जीवों से जोड़ा जाता है। इनकी गणना जन्म नक्षत्र के आधार पर की जाती है। कुछ योनियों को एक दूसरे का परम शत्रु माना गया है। इसे वर और कन्या के आपसी तालमेल से जोड़कर देखा जाता है।
5-ग्रहमैत्री- इसमें वर-वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रहों का मिलान किया जाता है। यदि चन्द्र राशियों के स्वामी मित्र न हो तो विचारों में भिन्नता रहती है, जिसके कारण क्लेश की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके आधार पर आपसी विश्वास और सहयोग की स्थिति का आकलन किया जाता है।
6-गण- जन्म नक्षत्र के आधार पर तीन तरह के गण बताए गए हैं जिसमें देव गण, मनुष्य गण और राक्षस गण बताया गया है। यदि वर और कन्या का गण एक ही है तो इस बहुत शुभ माना जाता है। देव गण और मनुष्य गण को समान माना जाता है। यदि दोनों में से किसी का देव गण और किसी का राक्षस गण हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है। इसके आधार पर आने वाले जीवन में कुटुम्ब के साथ संबंध और सामंजस्य का आकलन किया जाता है।
7-भकूट- भकूट मिलान को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें वर और कन्या की कुण्डली में परस्पर चन्द्रमा की स्थिति का आकलन किया जाता है। यदि यह मिलान सही प्रकार से न किया जाए तो दाम्पत्य जीवन में मधुरता और प्रेम की कमी रहती है इसके साथ ही जीवन में किसी न किसी प्रकार से परेशानियां आती रहती हैं।
8-नाड़ी- व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के आधार पर नाड़ी का तीन तरह से वर्गीकरण किया गया है। मध्य, आदि और अन्त्य नाड़ी। वर और वधू की नाड़ी एक नहीं होनी चाहिए। इसे संतान प्राप्ति और स्वास्थ्य से जोड़कर देखा जाता है।
इन आठ बातों के आधार पर भलि-भांति विचार करके वर और वधू के आने वाले जीवन के बारे में आकलन किया जाता है। इन सभी के अंको का कुल योग 36 होता है यदि इसमें से 18 या फिर उससे ज्यादा गुण मिलते हैं तभी विवाह शुभ माना जाता है।
इसके अलावा भी अन्य बातें जैसे-मङ्गल दोष,वर -वधू के पारस्परिक ग्रहों की स्थितियां, आयुष्य,सन्तान,कार्यक्षेत्र,भाग्य आदि का विचार कर लेना चाहिए।